पिछले करीब एक दशक से बदलते मौसम ने खेती को पूरी तरह से बदल दिया है जलवायु में आये परिवर्तन ने कुछ परंपरागत खेती पर भी असर डाला है पहाड़ो में किसान आमतौर ओर पूरी तरह बरसात के पानी पर निर्भर रहते है और अगर समय से बारिश न हो तो बोया हुआ बीज भी खेत से वापिस नही आता अब आप अंदाजा लगा सकते है कि जिस फसल के लिए किसान 6 महीने का लंबा इंतजार करता है और 1 से 2 महीना लगातार खेतों में काम करता है अंत मे वो फसल पूरी तरह भगवान भरोसे होती है
यानी किसान जुआ अपनी खेती के साथ हर 6 महीने में एक बार खेलता है जिसमे उसे ज्यादातर हार का ही सामना करना पड़ता है ,पानी के सरंक्षण को लेकर अगर कोई व्यक्तिगत रूप से प्रयास भी करता है तो पहाड़ो पर वो सफल नही हो पाते और अगर सरकार ग्रामीण को हौज बनाकर देती भी तो उसे भरने के लिए प्राकृतिक जल स्रोत पर्याप्त नही है ऐसे में किसान पूरी तरह बरसात के पानी पर निर्भर रहता है
जनजातीय क्षेत्र जौनसार के किसान स्वराज चौहान कहते है कि मात्र एक गेंहू की फसल ही ऐसी है जिसे सबसे कम पानी की जरूरत होती है बाकी इसके अलावा हर फसल को समय समय पर पानी की जरूरत होती है और क्या कुछ कहा किसान स्वराज चौहान ने सुनिए उनके साथ हुई बातचीत का पूरा साक्षात्कार