जस्ता अथवा यशद (Zinc) एक तत्व है, जिसमें विशेष धातु गुण होते हैं। यह आवर्तसारणी के द्वितीय अंतरवर्ती समूह (transition group) में कैडमियम एवं पारद के साथ स्थित है। यशद के पाँच स्थिर समस्थानिक (isotopes) प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 64, 66, 67, 68 तथा 70 हैं। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियधर्मी समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्याएँ 65, 69, 71 एवं 72 हैं। अनेक भारतीय पुरातन ग्रंथों में यशद का वर्णन मिलता है। यशोधराकृत ''रसप्रकाशसुधाकर'' में कैलामाइन (calamine) से यशद बनाने की विधि बताई गई हैं। ''रुद्रयामलतंत्र'' के अंतर्गत ''धातु क्रिया'' ग्रंथ में यशद एवं शुल्क (ताँबा) के योग से पीतल बनाने का संकेत है। जस्ते के अनेक पर्याय जरासीत, जासत्व, राजत, खर्पर, यशदयाक, चर्मक, रसक, यशद, रूप्यभ्राता आदि पुरातन ग्रंथों में प्रयुक्त हुए हैं।
16वीं शताब्दी के अंत में यह धातु यूरोपीय वैज्ञानिकों को भारत से प्राप्त हुई। इसका वर्णन एंद्रेज लिवैवियस ने किया है। ज़िंक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग पेरासेलास ने ज़िंकन रूप में किया था। 18वीं शताब्दी में जस्ता तैयार करने के कारखाने इंग्लैंड में बने और इसके पश्चात् यूरोप के अन्य देशों में भी यह तत्व बनाया जाने लगा।
उपस्थिति एवं निर्माणविधि- जस्ता मुक्त अवस्था में नहीं प्राप्त होता। यह सल्फाइड के रूप में ही मिलता है, जिसे ज़िंक ब्लेंड अथवा स्फेलराइट (sphalerite) कहते हैं। इसके मुख्य स्रोत अमरीका, मेक्सिको, कैनाडा, जर्मनी, पोलैंड, बेल्जियम, इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया, स्पेन तथा आस्ट्रेलिया हैं। भारत के जस्ते के खनिज के साथ सीस और अल्प चाँदी के भी खनिज मिले रहते हैं। सीस के निर्माण में उपजात के रूप में जस्ता प्राप्त होता है।
जस्ता धातु को ऑक्साइड के अवकरण द्वारा तैयार करते हैं। अयस्क को सांद्रित करके भर्जन (roasting) द्वारा ऑक्साइड में परिणत करते हैं। तत्पश्चात् उसे अधिक कार्बन के साथ मिलाकर 1,2000 सें. पर गरम करते हैं।
ज़िंक ऑक्साइड + कार्बन ज़िंक + कार्बन मोनॉक्साइड
ZnO + C Zn + CO
इस क्रिया से जस्ता वाष्प बनकर भट्ठे के ठंडे स्थानों पर जम जाता है। प्राप्त जस्ते को आसवन द्वारा शुद्ध करते हैं। विद्युतरसायनिक विधि द्वारा अति शुद्ध जस्ता बनता है। इस क्रिया में ज़िंक ऑक्साइड को सल्फ्यूरिक अम्ल में घुलाते हैं। तत्पश्चात् विद्युत प्रवाह द्वारा ऐल्यूमिनियम ऋणाग्र पर जस्ते की परत जमाई जाती है। इस प्रकार 99.95 प्रति शत शुद्ध जस्ता खुरचकर निकलता है, जिसके द्रवीकरण द्वारा बड़े टुकड़े बनते है। भारत में शुद्ध जस्ता तैयार करने के कारखाने खोलने का प्रयत्न हो रहा है।
विशुद्ध जस्ते के गुणधर्म जस्ता नील-श्वेत रंग की धातु है। इसके भौतिक गुण बनाने की रीति पर निर्भर करते हैं, यथा यह भंगुर तथा तन्य (ductile) दोनों रूपों में बनाया जा सकता है। जस्ते के कुछ विशेष गुणधर्म निम्नांकित हैं :
जस्ता वायु में दूषित (tarnish) नहीं होता। लगभग 900 सें. तक गरम करने पर यह वेग से प्रकाश के साथ जलता है। यह उबलते पानी का विघटन कर हाइड्रोजन मुक्त करता है। जस्ते पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा वेग से हाइड्रोजन मुक्त होता है। परंतु अत्यंत शुद्ध जस्ते को तनु सलफ्यूरिक अम्ल में डालने पर बहुत क्षीण क्रिया होती है। यदि प्लैटिनम, ताम्र, रजत अथवा स्वर्ण के टुकड़े का उससे मिलाकर रखा जाय, तो जस्ता शीघ्र विलयित होने लगता है और वेग से हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है। इससे यह ज्ञात होता है कि जस्ते पर तनु सल्फ्यूरिक, अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, का प्रभाव कुछ अधिक ऋणात्मक अपद्रव्यों के कारण ही होता है। अपद्रव्य जितनी ही अधिक मात्रा में उपस्थित होंगे उतनी ही वेगवान अभिक्रिया होगी। जस्ते पर तनु नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से ज़िंक नाइट्रेट [(Zn (NO3)2] बनता है तथा नाइट्रस ऑक्साइड गैस (N2O) मुक्त होती है। सांद्र अम्ल अथवा उच्च ताप पर नाइट्रिक ऑक्साड गैस (NO) बनती है। जस्ता क्षार विलयनों, जैसे दाहक सोडा आदि में विलेय होकर ज़िंकेट आयन [Zn (OH)4 --] बनाता है, परंतु ऐमोनिया (NH3) विलयन द्वारा अप्रभावित रहता हैं।
जस्ते के यौगिक- जस्ता द्विसंयोजी (bivalent) अवस्था में अनेक यौगिक बनाता है। इसका यह गुण पारद एवं कैडमियम से बहुत मिलता जुलता हैं। जस्ते का आयन (Zn++) रंगहीन है। आम्लिक एवं उदासीन दशा में यह आयन जलसंयोजित रूप [Zn (H2O4)] ++ में रहता है। सामान्य क्षार की क्रिया से श्वेतरंग हाइड्रॉक्साइड Zn (OH)2 बनाता है, जिसकी विलेयता कम हैं। परंतु अधिक क्षारीय माध्यम में यह फिर विलेय होकर ज़िंकेट आयन में परिणत हो जाता है। यशद आयन Zn ++ अनेक विलयनों से क्रिया कर जटिल (complex) आयन बनाता है, जैसे ज़िंक टेट्राऐमिन [Zn (NH3)4 ++], टेट्रासायनोज़िंकेट [Zn (CN)4] आदि।
जिंक आक्साइड (ZnO) सफेद चूर्ण है, जो जस्ते के अयस्क की भर्जन करने पर बनता है। जस्ते के वाष्प को वायु में जलाने से विशुद्ध आक्साइड बनता है। व्यापार के लिये ज़िंक ऑक्साइड कोयले के साथ भट्ठी में जलाकर बनाया जाता है। उच्च ताप पर ज़िंक ऑक्साइड का रंग पीला हो जाता है। यह पानी में अविलेय है, परंतु अम्लों के विलयन में घुल कर लवण बनाता है। ज़िंक आक्साइड का उपयोग श्वेत वर्णक (pigment) के रूप में होता है।
ज़िंक क्लोराइड (Zn Cl2) जस्ते को क्लोरीन गैस में गरम करने पर बनता है। 7000सें. ताप पर इसका वाष्प बनता है। इसमें जलसंचय की विशेष क्षमता है। इसके विलयन को सांद्रित करने पर इसके (ZnCl2.H2O) के मणिभ बनते हैं। ज़िंक क्लोराइड का सांद्र विलयन अनेक कार्बनिक पदार्थों को विलेय यौगिकों में परिणत करता है।
ज़िंक सलफाइड (ZnS) प्राकृतिक अवस्था में ज़िंक ब्लेंड अयस्क के रूप में मिलता है। ज़िंक लवण के विलयन में ऐमोनियम अथवा सोडियम सल्फाइड डालने से भी यह बनाया जा सकता है। प्राकृतिक ब्लेंड में सूक्ष्म अशुद्धियों के कारण स्फुरदीप्ति (phosphorescence) का गुण होता है।
ज़िंक सल्फेट (ZnSo4. 7H2O) लवण जस्ते को सल्फ़्यूरिक अम्ल में घुलाने पर बनता है। इसके मणिभ जल के सात अणुओं के साथ मणिभीकृत होते हैं। यह पोटैसियम सल्फ़ेट के साथ द्विगुण लवण (double salt) बनाता है।
उपयोग- जस्ते का उपयोग अन्य धातुओं को संक्षारण (corrosion) से बचाने में होता है। लोहे की चादरों को इससे जस्ती (galvanised) चादरों में परिणत करते हैं।
जस्ते के यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। ज़िंक आक्साइड वर्णक तथा पालिश के लिये काम आता है। इसे मोटर के टायर में, चिपकने वाले टेप आदि में पूरक (filler) के रूप में प्रयुक्त करते हैं। ज़िंक ऑक्सीक्लोराइड का उपयोग दाँत के भरने में होता है। इसका विलयन रेशम को घुलाने की क्षमता रखता है, जिस कारण इसका उपयोग ऊन से रेशम के पृथक्करण में होता है। ज़िंक ब्लेंड प्राय: घड़ियों आदि के डायलों पर लगाए जाने वाले ज्योतीय (luminous) पेंट बनाने में काम आता है। ज़िंक सफ़ेल्ट और बेरियम सल्फ़ाइड मिलाने पर लिथोपोन (lithopone) नामक उपयोगी वर्णक बनता है। जस्ते के अनेक यौगिकों के विलयनों से आँख, कान या अन्य घाव आदि साफ किए जाते हैं। कीटाणुनाशक गुण रहने के कारण इनके अनेक चिकित्सीय उपयोग हैं, परंतु जस्ते के यौगिक दाहक तथा विषैले होते हैं। इनको खाने पर शरीर की विशेष हानि या मृत्यु तक हो सकती है। यदि दुर्घटनावश इसका लवण खा लिया जाय तो साबुन का जल, या गर्म तेल आदि देना चाहिए, जिससे वामन द्वारा वह बाहर निकल जाए। तत्पश्चात् मक्खन, कच्चा अंडा, दूध या क्रीम खिलाना विशेष लाभकारी होगा।
जस्ता, (इंजीनियरी में)- जस्ते का सबसे अधिक उपयोग ताँबे के साथ मिलाकर पीतल बनाने में होता है, जिसमें इसका अंश 10 से 40 प्रति शत तक होता है। काँसे की कुछ किस्मों और कुछ अन्य मिश्र धातुओं में भी जस्ता लगता है। सीसे को उसमें मिली हुई चाँदी से पृथक् करने के लिये 'पार्क' विधि में इसका काफी उपयोगी होता है।
जस्ते का दूसरा महत्वपूर्ण उपयोग लोहे के प्रतिरक्षण में किया जाता है। जस्तीकृत लोहा पानी, साबुन के विलयन, पेट्रोल, और खनिज तेलों के आक्रमण को सह सकता है। जलवायु के प्रभाव से इसका संक्षरण, सादे लोहे की अपेक्षा दशमांश ही होता है। जस्तीकरण में कोई स्थानीय दोष रह जाए, तो भी वहाँ पर लोहे के बजाय जस्ते का ही क्षरण होता है, क्योंकि नमी पाने से जस्ते और लोहे के विद्युद्युग्म बन जाता है, जिसमें जस्ता ऋण ध्रुव होता है। किंतु अम्ल या दाहक क्षारों के संपर्क में आने पर जस्ते का आवरण नष्ट हो जाता है और धातु गल जाती है।
रंग रोगन में जस्ते के ऑक्साइड, सल्फाइड और चूर्ण काम आते हैं। चूर्ण का रोगन ब्रश से भी लगाया जा सकता है और फुहारे (spray) द्वारा भी। लोहे के खड़े ढाँचों के प्रतिरक्षण के लिये यह जस्तीकरण की सस्ती विधि है, किंतु इसका आवरण बहुत टिकाऊ नहीं होता। जस्ता चूर्ण अत्यंत सक्रिय रसायनक है। यह कपड़े की छपाई में और 'साइनाइड' विधि से सोना निकालने में भी काम आता है। ज़िंक ऑक्साइड रंग रोगन के अतिरिक्त रबर उद्योग और ओषधियों में भी काम आता है।
जस्ते को बेलकर उसकी चादरें और पत्तियाँ भी बनाई जाती हैं। छतों में बरसाती पानी की नालियों नलकों में, सूखी बैटरी के डिब्बों में और पेटियों में अस्तर के लिये चादरों का प्रयोग बहुतायत से होता है। लीथो की छपाई भी जस्ते की चादरों से होती है। इस विधि को ज़िंकोग्राफी कहते हैं। बॉयलरों में और जहाजों में, जहाँ संक्षरण की अधिक संभावना होती है, जस्ते का प्रयोग होता है। प्राथमिक सेलों का ऋण ध्रुव बहुधा जस्ते का ही होता है।
16वीं शताब्दी के अंत में यह धातु यूरोपीय वैज्ञानिकों को भारत से प्राप्त हुई। इसका वर्णन एंद्रेज लिवैवियस ने किया है। ज़िंक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग पेरासेलास ने ज़िंकन रूप में किया था। 18वीं शताब्दी में जस्ता तैयार करने के कारखाने इंग्लैंड में बने और इसके पश्चात् यूरोप के अन्य देशों में भी यह तत्व बनाया जाने लगा।
उपस्थिति एवं निर्माणविधि- जस्ता मुक्त अवस्था में नहीं प्राप्त होता। यह सल्फाइड के रूप में ही मिलता है, जिसे ज़िंक ब्लेंड अथवा स्फेलराइट (sphalerite) कहते हैं। इसके मुख्य स्रोत अमरीका, मेक्सिको, कैनाडा, जर्मनी, पोलैंड, बेल्जियम, इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया, स्पेन तथा आस्ट्रेलिया हैं। भारत के जस्ते के खनिज के साथ सीस और अल्प चाँदी के भी खनिज मिले रहते हैं। सीस के निर्माण में उपजात के रूप में जस्ता प्राप्त होता है।
जस्ता धातु को ऑक्साइड के अवकरण द्वारा तैयार करते हैं। अयस्क को सांद्रित करके भर्जन (roasting) द्वारा ऑक्साइड में परिणत करते हैं। तत्पश्चात् उसे अधिक कार्बन के साथ मिलाकर 1,2000 सें. पर गरम करते हैं।
ज़िंक ऑक्साइड + कार्बन ज़िंक + कार्बन मोनॉक्साइड
ZnO + C Zn + CO
इस क्रिया से जस्ता वाष्प बनकर भट्ठे के ठंडे स्थानों पर जम जाता है। प्राप्त जस्ते को आसवन द्वारा शुद्ध करते हैं। विद्युतरसायनिक विधि द्वारा अति शुद्ध जस्ता बनता है। इस क्रिया में ज़िंक ऑक्साइड को सल्फ्यूरिक अम्ल में घुलाते हैं। तत्पश्चात् विद्युत प्रवाह द्वारा ऐल्यूमिनियम ऋणाग्र पर जस्ते की परत जमाई जाती है। इस प्रकार 99.95 प्रति शत शुद्ध जस्ता खुरचकर निकलता है, जिसके द्रवीकरण द्वारा बड़े टुकड़े बनते है। भारत में शुद्ध जस्ता तैयार करने के कारखाने खोलने का प्रयत्न हो रहा है।
विशुद्ध जस्ते के गुणधर्म जस्ता नील-श्वेत रंग की धातु है। इसके भौतिक गुण बनाने की रीति पर निर्भर करते हैं, यथा यह भंगुर तथा तन्य (ductile) दोनों रूपों में बनाया जा सकता है। जस्ते के कुछ विशेष गुणधर्म निम्नांकित हैं :
संकेत | य (Zn) |
परमाणु संख्या | 30 |
परमाणु भार | 65.307 |
गलनांक | 419.5° सें. |
क्वथनांक | 907.6° सें. |
घनत्व (20° सें. पर) | 7.14 ग्राम प्रति घन सेंमी. |
परमाणु व्यास | 2.7 एंग्सट्राम |
विद्युत प्रतिरोधकता | 5.92 माइक्रोओह्म सेंमी. |
जस्ता वायु में दूषित (tarnish) नहीं होता। लगभग 900 सें. तक गरम करने पर यह वेग से प्रकाश के साथ जलता है। यह उबलते पानी का विघटन कर हाइड्रोजन मुक्त करता है। जस्ते पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की क्रिया द्वारा वेग से हाइड्रोजन मुक्त होता है। परंतु अत्यंत शुद्ध जस्ते को तनु सलफ्यूरिक अम्ल में डालने पर बहुत क्षीण क्रिया होती है। यदि प्लैटिनम, ताम्र, रजत अथवा स्वर्ण के टुकड़े का उससे मिलाकर रखा जाय, तो जस्ता शीघ्र विलयित होने लगता है और वेग से हाइड्रोजन गैस मुक्त होती है। इससे यह ज्ञात होता है कि जस्ते पर तनु सल्फ्यूरिक, अथवा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, का प्रभाव कुछ अधिक ऋणात्मक अपद्रव्यों के कारण ही होता है। अपद्रव्य जितनी ही अधिक मात्रा में उपस्थित होंगे उतनी ही वेगवान अभिक्रिया होगी। जस्ते पर तनु नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से ज़िंक नाइट्रेट [(Zn (NO3)2] बनता है तथा नाइट्रस ऑक्साइड गैस (N2O) मुक्त होती है। सांद्र अम्ल अथवा उच्च ताप पर नाइट्रिक ऑक्साड गैस (NO) बनती है। जस्ता क्षार विलयनों, जैसे दाहक सोडा आदि में विलेय होकर ज़िंकेट आयन [Zn (OH)4 --] बनाता है, परंतु ऐमोनिया (NH3) विलयन द्वारा अप्रभावित रहता हैं।
जस्ते के यौगिक- जस्ता द्विसंयोजी (bivalent) अवस्था में अनेक यौगिक बनाता है। इसका यह गुण पारद एवं कैडमियम से बहुत मिलता जुलता हैं। जस्ते का आयन (Zn++) रंगहीन है। आम्लिक एवं उदासीन दशा में यह आयन जलसंयोजित रूप [Zn (H2O4)] ++ में रहता है। सामान्य क्षार की क्रिया से श्वेतरंग हाइड्रॉक्साइड Zn (OH)2 बनाता है, जिसकी विलेयता कम हैं। परंतु अधिक क्षारीय माध्यम में यह फिर विलेय होकर ज़िंकेट आयन में परिणत हो जाता है। यशद आयन Zn ++ अनेक विलयनों से क्रिया कर जटिल (complex) आयन बनाता है, जैसे ज़िंक टेट्राऐमिन [Zn (NH3)4 ++], टेट्रासायनोज़िंकेट [Zn (CN)4] आदि।
जिंक आक्साइड (ZnO) सफेद चूर्ण है, जो जस्ते के अयस्क की भर्जन करने पर बनता है। जस्ते के वाष्प को वायु में जलाने से विशुद्ध आक्साइड बनता है। व्यापार के लिये ज़िंक ऑक्साइड कोयले के साथ भट्ठी में जलाकर बनाया जाता है। उच्च ताप पर ज़िंक ऑक्साइड का रंग पीला हो जाता है। यह पानी में अविलेय है, परंतु अम्लों के विलयन में घुल कर लवण बनाता है। ज़िंक आक्साइड का उपयोग श्वेत वर्णक (pigment) के रूप में होता है।
ज़िंक क्लोराइड (Zn Cl2) जस्ते को क्लोरीन गैस में गरम करने पर बनता है। 7000सें. ताप पर इसका वाष्प बनता है। इसमें जलसंचय की विशेष क्षमता है। इसके विलयन को सांद्रित करने पर इसके (ZnCl2.H2O) के मणिभ बनते हैं। ज़िंक क्लोराइड का सांद्र विलयन अनेक कार्बनिक पदार्थों को विलेय यौगिकों में परिणत करता है।
ज़िंक सलफाइड (ZnS) प्राकृतिक अवस्था में ज़िंक ब्लेंड अयस्क के रूप में मिलता है। ज़िंक लवण के विलयन में ऐमोनियम अथवा सोडियम सल्फाइड डालने से भी यह बनाया जा सकता है। प्राकृतिक ब्लेंड में सूक्ष्म अशुद्धियों के कारण स्फुरदीप्ति (phosphorescence) का गुण होता है।
ज़िंक सल्फेट (ZnSo4. 7H2O) लवण जस्ते को सल्फ़्यूरिक अम्ल में घुलाने पर बनता है। इसके मणिभ जल के सात अणुओं के साथ मणिभीकृत होते हैं। यह पोटैसियम सल्फ़ेट के साथ द्विगुण लवण (double salt) बनाता है।
उपयोग- जस्ते का उपयोग अन्य धातुओं को संक्षारण (corrosion) से बचाने में होता है। लोहे की चादरों को इससे जस्ती (galvanised) चादरों में परिणत करते हैं।
जस्ते के यौगिकों के अनेक उपयोग हैं। ज़िंक आक्साइड वर्णक तथा पालिश के लिये काम आता है। इसे मोटर के टायर में, चिपकने वाले टेप आदि में पूरक (filler) के रूप में प्रयुक्त करते हैं। ज़िंक ऑक्सीक्लोराइड का उपयोग दाँत के भरने में होता है। इसका विलयन रेशम को घुलाने की क्षमता रखता है, जिस कारण इसका उपयोग ऊन से रेशम के पृथक्करण में होता है। ज़िंक ब्लेंड प्राय: घड़ियों आदि के डायलों पर लगाए जाने वाले ज्योतीय (luminous) पेंट बनाने में काम आता है। ज़िंक सफ़ेल्ट और बेरियम सल्फ़ाइड मिलाने पर लिथोपोन (lithopone) नामक उपयोगी वर्णक बनता है। जस्ते के अनेक यौगिकों के विलयनों से आँख, कान या अन्य घाव आदि साफ किए जाते हैं। कीटाणुनाशक गुण रहने के कारण इनके अनेक चिकित्सीय उपयोग हैं, परंतु जस्ते के यौगिक दाहक तथा विषैले होते हैं। इनको खाने पर शरीर की विशेष हानि या मृत्यु तक हो सकती है। यदि दुर्घटनावश इसका लवण खा लिया जाय तो साबुन का जल, या गर्म तेल आदि देना चाहिए, जिससे वामन द्वारा वह बाहर निकल जाए। तत्पश्चात् मक्खन, कच्चा अंडा, दूध या क्रीम खिलाना विशेष लाभकारी होगा।
जस्ता, (इंजीनियरी में)- जस्ते का सबसे अधिक उपयोग ताँबे के साथ मिलाकर पीतल बनाने में होता है, जिसमें इसका अंश 10 से 40 प्रति शत तक होता है। काँसे की कुछ किस्मों और कुछ अन्य मिश्र धातुओं में भी जस्ता लगता है। सीसे को उसमें मिली हुई चाँदी से पृथक् करने के लिये 'पार्क' विधि में इसका काफी उपयोगी होता है।
जस्ते का दूसरा महत्वपूर्ण उपयोग लोहे के प्रतिरक्षण में किया जाता है। जस्तीकृत लोहा पानी, साबुन के विलयन, पेट्रोल, और खनिज तेलों के आक्रमण को सह सकता है। जलवायु के प्रभाव से इसका संक्षरण, सादे लोहे की अपेक्षा दशमांश ही होता है। जस्तीकरण में कोई स्थानीय दोष रह जाए, तो भी वहाँ पर लोहे के बजाय जस्ते का ही क्षरण होता है, क्योंकि नमी पाने से जस्ते और लोहे के विद्युद्युग्म बन जाता है, जिसमें जस्ता ऋण ध्रुव होता है। किंतु अम्ल या दाहक क्षारों के संपर्क में आने पर जस्ते का आवरण नष्ट हो जाता है और धातु गल जाती है।
रंग रोगन में जस्ते के ऑक्साइड, सल्फाइड और चूर्ण काम आते हैं। चूर्ण का रोगन ब्रश से भी लगाया जा सकता है और फुहारे (spray) द्वारा भी। लोहे के खड़े ढाँचों के प्रतिरक्षण के लिये यह जस्तीकरण की सस्ती विधि है, किंतु इसका आवरण बहुत टिकाऊ नहीं होता। जस्ता चूर्ण अत्यंत सक्रिय रसायनक है। यह कपड़े की छपाई में और 'साइनाइड' विधि से सोना निकालने में भी काम आता है। ज़िंक ऑक्साइड रंग रोगन के अतिरिक्त रबर उद्योग और ओषधियों में भी काम आता है।
जस्ते को बेलकर उसकी चादरें और पत्तियाँ भी बनाई जाती हैं। छतों में बरसाती पानी की नालियों नलकों में, सूखी बैटरी के डिब्बों में और पेटियों में अस्तर के लिये चादरों का प्रयोग बहुतायत से होता है। लीथो की छपाई भी जस्ते की चादरों से होती है। इस विधि को ज़िंकोग्राफी कहते हैं। बॉयलरों में और जहाजों में, जहाँ संक्षरण की अधिक संभावना होती है, जस्ते का प्रयोग होता है। प्राथमिक सेलों का ऋण ध्रुव बहुधा जस्ते का ही होता है।
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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