जयपुर का पानी

Submitted by admin on Fri, 06/26/2009 - 10:03
Source
timesofindia.indiatimes.com

पानी का अगला घूँट पीने से पहले थोड़ा रुकिये, क्या आप आश्वस्त हैं कि यह पानी पीने के लिये सुरक्षित है? नहीं ना… जी हाँ, जयपुर (राजस्थान) के निवासियों के लिये यह प्रश्न बेहद अहम बन गया है। जो पानी आप पी रहे हैं उसमें बैक्टीरिया और विभिन्न केमिकल्स का ऐसा भयानक घालमेल है जो कभी भी आपके स्वास्थ्य पर एक बुरा प्रभाव तो डाल ही सकता है, शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग को भी कुछ समय बाद खराब बना सकता है। यह वही पानी है जो रोज़ाना आपके नलों से आ रहा है, और जिसके बारे में लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (PHED) के अधिकारी, आधिकारिक रूप से कहते हैं कि “यह पानी सुरक्षित है…”।

गुलाबी शहर में जलजनित बीमारियों के बढ़ते प्रकोप के कारण (याद कीजिये जब हाल ही में छः बच्चों की मौत दूषित जल पीने से ही हुई) द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने मामले की तह में जाने का फ़ैसला किया। क्या सचमुच शहर को दिया जाने वाला पानी पीने के लिये सुरक्षित है जैसा अधिकारी दावा करते हैं या बात कुछ और ही है? शहर के कुछ अलग-अलग स्थानों से पानी के नमूने एकत्रित किये गये और उन्हें “स्वतन्त्र जाँच” हेतु सुरेश ज्ञान विहार विश्वविद्यालय में भेजा गया। इस विश्वविद्यालय के “एयर एंड वाटर मोडलिंग” केन्द्र द्वारा जाँच के जो नतीजे आये वह जयपुर निवासियों के लिये खतरे की घंटी के समान हैं। जाँच के पानी के उक्त नमूने बैक्टीरिया और केमिकल टेस्ट के मुख्य छह मानकों में से पाँच में फ़ेल पाये गये।

इससे यह साबित होता है कि काफ़ी लम्बे समय से जो पानी जयपुरवासी पी रहे हैं वह उन्हें किडनी, हड्डी की बीमारियाँ, याददाश्त में कमी अथवा कैंसर जैसी घातक बीमारियों से भी ग्रसित कर सकता है। यह पानी व्यक्ति की जनन क्षमता को भी कम कर सकता है। पानी में बैक्टीरिया की अधिक मात्रा में उपस्थिति से पेचिश और डायरिया जैसी बीमारियों का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है।

Physico-Chemical जाँच के लिये PHE की नल लाइनों से पानी के विभिन्न नमूने लिये गये। 15 जून को मालवीय नगर, रेल्वे स्टेशन के पास साईं कालोनी, रामगंज की लालगढ़ बस्ती, अम्बाबारी के किशनबाग, मानसरोवर स्थित थाड़ी मार्केट, आदर्श नगर स्थित बीस दुकान तथा C- स्कीम स्थित चौमू हाऊस से नमूने लिये गये। 20 जून को लालगढ़ बस्ती तथा किशनबाग को छोड़कर अन्य पाँच स्थानों से पुनः पानी के नमूने बैक्टीरिया की जाँच हेतु लिये गये।

Physico-Chemical जाँच में मुख्य पैमाने, जैसे pH, TDS (Total Dissolved Oxygen), तथा फ़्लोराईड आदि की जाँच की जाती है, जबकि बैक्टीरिया हेतु जाँच में मुख्य रूप से E. Coli एवं अन्य बैक्टीरिया जैसे Streptococcus, Staphylococcus, Salmonella, Shigella, Pscudomonas तथा अन्य कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया की जाँच की जाती है, जिससे पानी की शुद्धता का स्तर पता लगाया जा सकता है।

यदि पीने के पानी के “मानक स्तर” को देखें, तो उसमें बैक्टीरिया के अंश बिलकुल नहीं होना चाहिये। इस दृष्टि से आदर्श नगर से लिया पानी का नमूना ही जाँच में पास किया गया, जबकि अन्य जगहों के नमूने में E.Coli तथा अन्य बैक्टीरिया भारी मात्रा में पाये गये। मालवीय नगर के पानी में सर्वाधिक 10-12 CFU/ml तथा अन्य नमूनों में 8-10 CFU/ml तक E.Coli पाया गया। विशेषज्ञों के अनुसार E.Coli बैक्टीरिया प्रदूषण का एक मुख्य कारक है और इसकी जल में उपस्थिति से जल प्रदूषण के स्तर का पता चलता है। सुरेश ज्ञान विहार विवि के माइक्रोबायलॉजी विभाग के शिक्षक गौरव शर्मा कहते हैं, “सबसे खतरनाक बात यह होती है कि यह बैक्टीरिया पानी में अकेले नहीं बढ़ता, बल्कि अन्य दूसरे बैक्टीरिया को बढ़ने में मदद भी करता है…”। यदि इस प्रकार का बैक्टीरिया प्रदूषित पानी रोज़ाना पिया जाये तो यह आन्त्रशोथ, दस्त, हेपेटाइटिस, टायफ़ाइड, कॉलरा आदि बीमारियों का कारण बन सकता है। शर्मा आगे कहते हैं, “यह बैक्टीरिया प्रदूषण अन्य रास्तों से पानी की पाइप लाइनों में लीकेज के चलते वाटर पंप हाउस के पानी को भी प्रदूषित कर सकता है…”।

भले ही मालवीय नगर का पानी-नमूना बैक्टीरिया टेस्ट में बुरी तरह अनुत्तीर्ण हुआ हो, लेकिन Physico-Chemical टेस्ट में यह पानी उत्तीर्ण पाया गया। इस मानक पर सर्वाधिक बुरी स्थिति रही रामगंज स्थित लालगढ़ बस्ती की, जहाँ पानी में pH का स्तर 7.6, TDS का स्तर 3753 mg/l, Electrical Conductance 3230 micro siemen/l तथा फ़्लोराइड का स्तर 3.16 mg/l पाया गया। जिसके अनुसार pH को छोड़कर अन्य सभी स्तरों पर यह पानी सुरक्षितता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। केन्द्र के संयोजक आरसी छीपा कहते हैं, “यह पाया गया है कि इन प्रदूषक तत्वों के लगातार लम्बे समय तक लिये जाने के कारण ये शरीर में जम जाते हैं और किडनी के रास्ते बाहर नहीं निकल पाते, जिस वजह से किडनी के फ़ेल होने का खतरा बढ़ जाता है…”। वे आगे कहते हैं, “गत 50 वर्षों में लगभग 50 लाख नये केमिकल वातावरण और पर्यावरण में घुलमिल गये हैं जिसमें से 70,000 केमिकल मनुष्य पर सीधा असर डालते हैं, इन्हें कम करना या इनसे मनुष्य शरीर को मुक्त करवाना एक महती कार्य है, जिसे पूरा करना ही होगा…”।

रूंगटा अस्पताल के डॉ नीरज माथुर कहते हैं कि, “जलजनित बीमारियों के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, गत वर्ष की अपेक्षा ऐसी बीमारियों के मरीज लगभग दोगुने हो गये हैं। ऐसे युवा और छात्र जो अक्सर घर से बाहर खाते हैं, वे टायफ़ाइड व डायरिया आदि से अधिक ग्रस्त होते हैं…”।

विभिन्न शिशुरोग विशेषज्ञ कहते हैं कि 2 से 5 वर्ष के बच्चे इस जल प्रदूषण से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं। फ़ोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल के डॉ राजप्रीत सोनी कहते हैं, “इन छोटे-छोटे बच्चों के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का पूरा विकास नहीं हुआ होता, तथा कई बार टीकाकरण भी पूरी तरह नहीं हो पाता है, ऐसे में इनके टायफ़ाइड, डायरिया, पेचिश आदि बीमारियों से ग्रस्त होने के पूरे आसार होते हैं। जब इस प्रकार की बीमारियों से कोई बच्चा शुरुआत में ही ग्रसित हो जाते हैं, उन्हें ये रोग आगे लम्बे समय तक तकलीफ़ देते हैं…”।

इस सम्बन्ध में जब PHED विभाग के उच्चाधिकारियों से सम्पर्क किया गया तो उन्होंने तब तक कोई टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया, जब तक कि वे यह रिपोर्ट नहीं देख लेते।