आज पर्यावरण दिवस है, इसलिए पर्यावरण के लिए मर-मिटनेवाले उन आप्त पुरुषों को याद कर लेना उचित होगा। इनमें से एक जोन चैपमैन (1774 से 1885) हैं जिन्हें जोनी एपलसीड के नाम से लोग ज्यादा पहचानते हैं। पश्चिमी अमरीका में रहनेवाले इस अनोखे व्यक्ति ने अपनी पूरी जिंदगी अमरीका भर में सेब के पेड़ों को फैलान में बिता दी।
जोन चैपमैन नेथेनिएल चैपमैन और एलिजाबेथ चैपमैन की दूसरी संतान थे। उनके बचपन के बारे में यह ज्ञात है कि वे अक्सर अपने घर से भागकर जंगल में चले जाते थे और वहां कई दिन बिताकर पक्षियों और पेड़-पौधों को देखते रहते थे। नेथेनिएल अपने बेटे जोन को फलों की बागवानी की कला सिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उसे क्रोफोर्ड नामक व्यक्ति के पास भेज दिया, जिनके पास सेब के बड़े-बड़े बागान थे। जोन ने सेब उगाने की कला यहीं से सीखी।
जब वे 18 वर्ष के हुए तब तक उनकी मां का निधन हो चुका था, और पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। तब जोन अपनी एक बहन को साथ लेकर अपने देश के पश्चिम की ओर निकल पड़े जहां नई बस्तियां स्थापित हो रही थीं। इसी से उनकी यायावरी जिंदगी शुरू हो जाती है, जो जीवनपर्यंत चलती रही। जहां भी वे जाते, वे सेब के पौधे रोपते जाते और इन पौधों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर बाड़ बना देते। उसके बाद इन पौध-शालाओं को किसी स्थानीय व्यक्ति के हवाले कर देते, जो उसकी देखरेख करता। फिर दो-चार साल बाद वे लौट आते। तब तक सेब के पौधे बड़े हो चुके होते और उनमें फल और बीज आ रहे होते। इन पेड़ों को वे लोगों को बेच देते। उन दिनों अमरीका भर में सेब से शराब बनानेवाली बहुत सी चक्कियां थीं, जो सेब ऊंचे दामों पर खरीदते थे। इसलिए सेब के पेड़ों की खूब मांग थी। एक पेड़ की कीमत लगभग पांच पेन्स थी, पर वे कई बार इससे कहीं कम दामों पर भी पेड़ बेच देते थे। पेड़ों के बदले वे पैसे ही नहीं, कोई भी चीज स्वीकार कर लेते थे, जैसे, पुराने कपड़े, बर्तन, खाने की चीजें आदि। इनमें से सबसे खराब हालत के कपड़ों को वे अपने उपयोग के लिए रख लेते थे, और बाकी को गरीबों में बांट देते थे। वे जूते नहीं पहनते थे और बर्फीले प्रदेशों में भी नंगे पैर ही चलते थे। टोपी के स्थान पर वे टिन का एक बर्तन सिर पर धारण करते थे, जो चाय आदि बनाने में भी काम देता था। प्रायः वे बिना वस्त्रों के भी रह जाते थे। स्थानीय लोग, जिनमें रेड इंडियन आदिवासी भी शामिल हैं, उन्हें कोई संत ही मानते थे।
उन्हें पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों से अगाध प्रेम था। ऐसे कई किस्से प्रचलित हैं जो उनकी इस अभिरुचि को उजागर करते हैं। एक बार सर्दियों में एक रात उन्होंने ठंड से राहत पाने के लिए आग जलाई और उसके पास लेट गए। लेकिन उन्होंने देखा हवा के रुख के कारण बहुत से मच्छर उड़कर आग में गिर रहे हैं और जल कर मर रहे हैं। उन्होने तुरंत यह कहते हुए आग बुझा दी, “अपने आराम के लिए ऐसी आग जलाने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है जो ईश्वर द्वारा निर्मित दूसरे प्राणियों के लिए मौत का कारण बने।”
दूसरी एक बार उन्होंने एक पेड़ के खोल में रात बिताने का निश्चय किया और उसके पास आग भी सुलगा ली। पर जब वे खोल में जाने लगे, तो उन्होंने देखा उसमें भालू के मासूम बच्चे सो रहे हैं। तुंरत ही उन्होंने आग बुझा दी और स्वयं हिम में लेटकर रात बिता दी।
एक अन्य किस्सा जोन चैपमैंन द्वारा एक घोड़े को मृत्यु से बचाने से संबंधित है। यह घोड़ा बीमार हो गया था, और उसका मालिक उसे मार देने वाला था। जोन चैपमान ने वह घोड़ा उससे ले लिया और उसे पास के एक मैदान में छोड़ दिया। कुछ दिनों में वह घोड़ा पूर्ण स्वस्थ हो गया। तब जोन चैपमैन ने उसे किसी अन्य व्यक्ति को इस शर्त पर दे दिया, कि वह उसके प्रति क्रूर व्यवहार नहीं करेगा।
जोन चैपमैन सेब का रस निकालने वाली चक्कियों से सड़े सेब और बीज ले आते थे, और इन्हें जगह-जगह पौधशालाएं स्थापित करके रोप देते थे। सेब ले जाने का उनका तरीका यह था कि वे दो नावों को परस्पर बांध देते थे। एक नाव पर सेबों को रखते और दूसरे में स्वयं बैठकर उसे खेते। उनकी मृत्यु के समय उनके द्वारा स्थापित पौधशालाओं का विस्तार 1200 एकड़ (500 हेक्टेयर) जितना था। उन दिनों भी इसकी कीमत दसियों लाख डालर के बराबर थी। यदि वे हिसाब किताब रखने में अधिक मुस्तैद होते, तो उनकी संपत्ति और भी अधिक हो सकती थी। सच बात तो यह है कि स्वयं उन्हें ही पता नहीं था कि उन्होंने कहां-कहां सेब की पौधशालाएं लगाई हैं।
जोनी ऐपलसीड ने लंबी आयु पाई, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें मारफान सिंड्रोम नामक एक बीमारी थी, जिससे शरीर की हड्डियां बहुत लंबी हो जाती हैं। इस बीमारे से पीड़ित व्यक्तियों का दिल भी कमजोर होता है, और उनकी मृत्यु अक्सर हृदयाघात से होती है। लेकिन जोनी एपलसीड सौ से भी अधिक साल जिए। उनका देहांत नींद में हुआ, शायद निमोनिया के कारण। आजीवन उनका कोई घर नहीं था, हालांकि कुछ लोग बताते हैं कि वे अपने आपको पेनसिलवेनिया का निवासी कहते थे। उन्होंने कभी भी अपने लिए कोई संपत्ति एकत्र नहीं की। अपना पूरा जीवन अमरीका के पश्चिमी भागों में सेब के पौधे उगाते हुए बिता दिया।
जोन चैपमैन अमरीका की लोक कथाओं और लोक जीवन का एक अविस्मरणीय पात्र बन गए हैं। आज पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के प्रति उनकी समर्पण भावना, अत्यंत सादा जीवन, और अन्य मनुष्यों और जीवों के प्रति करुणा, हमें विस्मित ही नहीं करती, उनके प्रति आदर भी जगाती है। सारे विश्व के पर्यावरणविदों के लिए वे न केवल प्रेरणा के स्रोत हैं, बल्कि प्रकृति पर आधारित सादे जीवन का एक आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं।
जोन चैपमैन के जीवन पर अनेक पुस्तकें, टीवी सीरियल, फिल्में और गाने बनाए गए हैं।
जोन चैपमैन नेथेनिएल चैपमैन और एलिजाबेथ चैपमैन की दूसरी संतान थे। उनके बचपन के बारे में यह ज्ञात है कि वे अक्सर अपने घर से भागकर जंगल में चले जाते थे और वहां कई दिन बिताकर पक्षियों और पेड़-पौधों को देखते रहते थे। नेथेनिएल अपने बेटे जोन को फलों की बागवानी की कला सिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने उसे क्रोफोर्ड नामक व्यक्ति के पास भेज दिया, जिनके पास सेब के बड़े-बड़े बागान थे। जोन ने सेब उगाने की कला यहीं से सीखी।
जब वे 18 वर्ष के हुए तब तक उनकी मां का निधन हो चुका था, और पिता ने दूसरी शादी कर ली थी। तब जोन अपनी एक बहन को साथ लेकर अपने देश के पश्चिम की ओर निकल पड़े जहां नई बस्तियां स्थापित हो रही थीं। इसी से उनकी यायावरी जिंदगी शुरू हो जाती है, जो जीवनपर्यंत चलती रही। जहां भी वे जाते, वे सेब के पौधे रोपते जाते और इन पौधों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर बाड़ बना देते। उसके बाद इन पौध-शालाओं को किसी स्थानीय व्यक्ति के हवाले कर देते, जो उसकी देखरेख करता। फिर दो-चार साल बाद वे लौट आते। तब तक सेब के पौधे बड़े हो चुके होते और उनमें फल और बीज आ रहे होते। इन पेड़ों को वे लोगों को बेच देते। उन दिनों अमरीका भर में सेब से शराब बनानेवाली बहुत सी चक्कियां थीं, जो सेब ऊंचे दामों पर खरीदते थे। इसलिए सेब के पेड़ों की खूब मांग थी। एक पेड़ की कीमत लगभग पांच पेन्स थी, पर वे कई बार इससे कहीं कम दामों पर भी पेड़ बेच देते थे। पेड़ों के बदले वे पैसे ही नहीं, कोई भी चीज स्वीकार कर लेते थे, जैसे, पुराने कपड़े, बर्तन, खाने की चीजें आदि। इनमें से सबसे खराब हालत के कपड़ों को वे अपने उपयोग के लिए रख लेते थे, और बाकी को गरीबों में बांट देते थे। वे जूते नहीं पहनते थे और बर्फीले प्रदेशों में भी नंगे पैर ही चलते थे। टोपी के स्थान पर वे टिन का एक बर्तन सिर पर धारण करते थे, जो चाय आदि बनाने में भी काम देता था। प्रायः वे बिना वस्त्रों के भी रह जाते थे। स्थानीय लोग, जिनमें रेड इंडियन आदिवासी भी शामिल हैं, उन्हें कोई संत ही मानते थे।
उन्हें पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों से अगाध प्रेम था। ऐसे कई किस्से प्रचलित हैं जो उनकी इस अभिरुचि को उजागर करते हैं। एक बार सर्दियों में एक रात उन्होंने ठंड से राहत पाने के लिए आग जलाई और उसके पास लेट गए। लेकिन उन्होंने देखा हवा के रुख के कारण बहुत से मच्छर उड़कर आग में गिर रहे हैं और जल कर मर रहे हैं। उन्होने तुरंत यह कहते हुए आग बुझा दी, “अपने आराम के लिए ऐसी आग जलाने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है जो ईश्वर द्वारा निर्मित दूसरे प्राणियों के लिए मौत का कारण बने।”
दूसरी एक बार उन्होंने एक पेड़ के खोल में रात बिताने का निश्चय किया और उसके पास आग भी सुलगा ली। पर जब वे खोल में जाने लगे, तो उन्होंने देखा उसमें भालू के मासूम बच्चे सो रहे हैं। तुंरत ही उन्होंने आग बुझा दी और स्वयं हिम में लेटकर रात बिता दी।
एक अन्य किस्सा जोन चैपमैंन द्वारा एक घोड़े को मृत्यु से बचाने से संबंधित है। यह घोड़ा बीमार हो गया था, और उसका मालिक उसे मार देने वाला था। जोन चैपमान ने वह घोड़ा उससे ले लिया और उसे पास के एक मैदान में छोड़ दिया। कुछ दिनों में वह घोड़ा पूर्ण स्वस्थ हो गया। तब जोन चैपमैन ने उसे किसी अन्य व्यक्ति को इस शर्त पर दे दिया, कि वह उसके प्रति क्रूर व्यवहार नहीं करेगा।
जोन चैपमैन सेब का रस निकालने वाली चक्कियों से सड़े सेब और बीज ले आते थे, और इन्हें जगह-जगह पौधशालाएं स्थापित करके रोप देते थे। सेब ले जाने का उनका तरीका यह था कि वे दो नावों को परस्पर बांध देते थे। एक नाव पर सेबों को रखते और दूसरे में स्वयं बैठकर उसे खेते। उनकी मृत्यु के समय उनके द्वारा स्थापित पौधशालाओं का विस्तार 1200 एकड़ (500 हेक्टेयर) जितना था। उन दिनों भी इसकी कीमत दसियों लाख डालर के बराबर थी। यदि वे हिसाब किताब रखने में अधिक मुस्तैद होते, तो उनकी संपत्ति और भी अधिक हो सकती थी। सच बात तो यह है कि स्वयं उन्हें ही पता नहीं था कि उन्होंने कहां-कहां सेब की पौधशालाएं लगाई हैं।
जोनी ऐपलसीड ने लंबी आयु पाई, हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि उन्हें मारफान सिंड्रोम नामक एक बीमारी थी, जिससे शरीर की हड्डियां बहुत लंबी हो जाती हैं। इस बीमारे से पीड़ित व्यक्तियों का दिल भी कमजोर होता है, और उनकी मृत्यु अक्सर हृदयाघात से होती है। लेकिन जोनी एपलसीड सौ से भी अधिक साल जिए। उनका देहांत नींद में हुआ, शायद निमोनिया के कारण। आजीवन उनका कोई घर नहीं था, हालांकि कुछ लोग बताते हैं कि वे अपने आपको पेनसिलवेनिया का निवासी कहते थे। उन्होंने कभी भी अपने लिए कोई संपत्ति एकत्र नहीं की। अपना पूरा जीवन अमरीका के पश्चिमी भागों में सेब के पौधे उगाते हुए बिता दिया।
जोन चैपमैन अमरीका की लोक कथाओं और लोक जीवन का एक अविस्मरणीय पात्र बन गए हैं। आज पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के प्रति उनकी समर्पण भावना, अत्यंत सादा जीवन, और अन्य मनुष्यों और जीवों के प्रति करुणा, हमें विस्मित ही नहीं करती, उनके प्रति आदर भी जगाती है। सारे विश्व के पर्यावरणविदों के लिए वे न केवल प्रेरणा के स्रोत हैं, बल्कि प्रकृति पर आधारित सादे जीवन का एक आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं।
जोन चैपमैन के जीवन पर अनेक पुस्तकें, टीवी सीरियल, फिल्में और गाने बनाए गए हैं।
Hindi Title
जोनी एपलसीड
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संदर्भ