काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो

Submitted by Hindi on Sat, 03/20/2010 - 08:56
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घाघ और भड्डरी

काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो, पूस अमावस की सुधि करो।
मूल विसाखा पूरबाषाढ़, झूरा जान लो बहिरें ठाढ़।।


भावार्थ- हे पंडितों! बहुत पढ़-पढ़कर क्यों जान देते हो? पौष की अमावस्या को देखो, यदि उस दिन मूल, विशाखा या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हों तो समझ लो सूखा पड़ेगा और अकाल घर के बाहर ही खड़ा है।