कैनवास पर प्रकृति के रंग

Submitted by editorial on Sat, 02/23/2019 - 17:49
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दैनिक जागरण (संगिनी), 23 फरवरी, 2019
दृश्य चित्रणदृश्य चित्रणप्रकृति तब सबसे अधिक सुन्दर दिखती है, जब फिजा में बसन्ती हवा की खुशबू फैलने लगती है और पेड़-पौधें यहाँ तक कि हर एक पत्ता अलमस्त धूप में खिलखिलाने लगता है। तभी तो चित्रकार की कूची सबसे अधिक बसन्त ऋतु में ही प्रकृति के चित्र उकेरती है…

कहीं समतल जमीन तो कहीं दौंड़ती भागती नदियाँ। कहीं हरे-भरे घने जंगल तो कहीं आसमान का सीना चीर देने का उद्घोष करते पहाड़। इन खूबसूरत दृश्यों और विविध रंगों से सजी प्रकृति तब और मनमोहक हो जाती हैं जब ऋतुराज बसन्त का आगमन होता है। तभी तो कवि हृदय भी सबसे अधिक बसन्त के ही गीत रचता है और चित्रकारों की कूची सबसे अधिक प्रकृति और मदमस्त बसन्त पर ही चलती है। बसन्त के रंग हमें असीम उत्साह से भर देते हैं। शायद यही कारण है कि महिला चित्रकारों की बोली-भाषा भले ही अलग हो, लेकिन वे जब कूची चलाती हैं तो प्रकृति की खूबसूरती से सराबोर हो जाता है उनका कैनवास।

जीवन के रंग बनते हैं थीम महान चित्रकार स्व. राजा रवि वर्मा ने एक बार कहा था कि प्रकृति में आपको सुख-दुख दोनों रंग दिख सकते हैं। काले बादल दुख और बरसते मेघ सुख यानी प्रसन्नता के प्रतीक होते हैं। शायद यही वजह है कि जयपुर की मेघना शर्मा पिछले ग्यारह साल से पेंटिंग बना रही हैं। और पेंटिंग की थीम वे अक्सर प्रकृति और जीवन के अलग-अलग रूपों और रंगों पर ही रखती हैं। मेघना कहतीं हैं, प्रकृति की तरह ही इंसान के जीवन में सुख (ब्राइट) और दुख (डल) दोनों ही रंग आते हैं। इसलिये मैं अपनी पेंटिंग में मनुष्य के स्वभाव, सम्बन्धों और जीवन के उतार-चढ़ाव को भी प्रकृति के माध्यम से ही दर्शाती हूँ। मुझे जब खुशी को दर्शाना होता है तो चटख हरे रंग के पत्ते और पेड़-पौधे बनाती हूँ, वहीं जब उदासी को दिखाना होता है तो सूखी पत्तियाँ, सूखी डाल और खुरदुरे पहाड़ को चित्रित करती हूँ।

बसन्त ऋतु का कमाल

कोलकाता में रहने वाली रिंकी घोष छठी क्लास से ही पेंटिंग कर रही हैं। वह कहती हैं, बसन्त से निखर आई प्रकृति के बीच बैठकर हमें शान्ति और सुकून मिलता है। इसलिये हम बसन्त में सबसे अधिक पेंटिंग बनाते हैं और हमारी पेंटिंग की बिक्री भी बसन्त ऋतु में सबसे अधिक होती है। प्रकृति और मनुष्य का मन एक-दूसरे से जुड़ा होता है। जब बसन्त ऋतु आती है तो चारों तरफ प्रकृति खिल जाती है। इसी वजह से मनुष्य का मन हर्षित हो रचनात्मक कार्यों में जुट जाता है। कहती हैं जानी-मानी कवयित्री अनामिका। शायद यही कारण है कि चित्रकार भी बसन्त ऋतु में ही सबसे अधिक पेंटिंग करते हैं।

प्रकृति की रक्षा का सन्देश

द स्पिरिट ऑफ इण्डियन पेंटिंग में लेखक बी.एन. गोस्वामी कहते हैं, भारत में प्रकृति और बसन्त ऋतु की खूबसूरती पर सबसे अधिक पेंटिंग बनाई जाती है। यदि आप गौर करें तो पाएँगी कि रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशनों और सड़कों के फ्लाई ओवर की दीवारों पर सबसे अधिक हरी-भरी प्रकृति के ही चित्र बनाए जाते हैं। इन्हें बनाने वाले चित्रकार कहते हैं कि इसके माध्यम से वे मानव मन को सुकून देने के साथ-साथ प्रकृति संरक्षण का सन्देश भी देते हैं। यही वजह है कि जयपुर की अदिति अग्रवाल खासतौर से प्रकृति प्रदत्त चीजों पर ही पेंटिंग करती हैं।

वह पिछले छह साल से चिड़ियों के पंखों खासकर मोरनी के पंखों पर खास तरह की पेंटिंग बनाती हैं। अदिति कहती हैं, यदि हम अपनी प्रकृति और वातावरण को बचाएंगे, तभी हम ऋतुराज बसन्त की खूबसूरती भी देख पाएँगे। इसलिये मैं अधिकतर मोर पंखों पर ही अपनी पेंटिंग बनाती हूँ और इसके माध्यम से प्रकृति संरक्षण का सन्देश भी देती हूँ।

सम्पूर्ण बनाती है पेंटिंग

मिथिला पेंटिंग में राम-सीता के विवाह प्रसंग के साथ-साथ प्रकृति और मानव मन को प्रभावित करने वाले ऋतुराज बसन्त की छटा देखते ही बनती है। बिहार की प्रीति कर्ण जब छह साल की थीं। तभी से वह अपनी दादी गोदावरी दत्त (इस साल पद्मश्री से सम्मानित) से प्रेरणा लेकर मधुबनी पेंटिंग बना रही हैं। घर-परिवार की व्यस्तता और पेंटिंग का काम बारीक होने के बावजूद वह पन्द्रह दिन में एक पेंटिंग तैयार कर लेती हैं। यह उन्हें सम्पूर्णता का अहसास दिलाता है। प्रीति कहती हैं, पेंटिंग अब मेरी रोजमर्रा की जिन्दगी में शामिल है। प्रकृति के बीच बैठकर जब उसकी खूबसूरती को मैं पेंटिंग में उतारती हूँ तो यह मेरे अन्दर के खालीपन को भी भर देता है। कारण, इस समय मैं घर-बाहर की समस्याओं की सोच से पूरी तरह दूर रहती हूँ।

इस सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक आरती आनन्द इस बात पर सहमति जताती हैं कि व्यक्ति जब प्रकृति के बीच जाता है तो उसे प्रकृति से बिना शर्त प्रेम मिलता है। इसलिये वह तनावमुक्त महसूस करता है और वह किसी रचनात्मक कार्य से जुड़ना चाहता है।

बसन्त में चलती है कूची

मशहूर चित्रकार हिना चक्रवर्ती प्रकृति के विहंगम दृश्यों और गंगा पर कई खूबसूरत पेंटिंग बना चुकी हैं। इसके लिये वह अपने प्रशंसकों से खूब वाह-वाही भी बटोर चुकी हैं। हिना कहती हैं, सभी ऋतुओं की अपनी खासियत है, लेकिन प्रकृति के नयनाभिराम दृश्य बसन्त में कहीं अधिक देखने को मिलते हैं। इसलिये चित्रकार की कूची भी सबसे अधिक इसी ऋतु में चलती है। वह कहतीं हैं कि गंगा की अवरिल धारा किसी भी अशान्त मन को शान्त कर सकती है। इसलिये मैं पेंटिंग के लिये सबसे अधिक प्रकृति और गंगा को ही चुनती हूँ।

सजाती हूँ प्रकृति के रंगों को

प्रकृति खासकर बसन्त चित्रकारों को चित्र उकेरने की खास प्रेरणा देती हैं। शुरू से मैं संस्कृति, रीति-रिवाजों पर मिथिला पेंटिंग बनाती आई हूँ, लेकिन उनमें प्रकृति के रंगों को भरना कभी नहीं भूली। पेंटिंग की खाली जगह को मैं अक्सर तरह-तरह के फूलों, नदी, पहाड़, पेड़, तालाब, सूर्य के चित्रों से सजाती हूँ। अपनी पेंटिंग में बसन्त ऋतु के आगमन को भी दिखाती हूँ। धान की फसल कटने पर जब नया धान घर पर आता है और इससे चिवड़ा तैयार कर भगवान को चढ़ाया जाता है। इसे बड़े मनमोहक अन्दाज में मैंने अपनी पेंटिंग में सजाया है। पीपल के पेड़ को भी मैंने अपनी चित्रकारी का माध्यम बनाया है। जापान में पीपल की पेंटिंग खूब पसन्द की जाती है -पद्मश्री गोदावरी दत्त जानी-मानी मधुबनी चित्रकार

सीख देती है प्रकृति
हमारे यहाँ प्रकृति को ही एक रूपक की तरह फैलाकर ईश्वर की भी कल्पना की गई है। प्रकृति हमारे शिक्षक के समान सीख देती है। दुख हो या सुख, जब भी आप अकेले होते हैं तो प्रकृति ही आपके साथ होती है। इसलिये कोई भी रचनात्मक कार्य हो चाहे वह कविता हो या चित्रकारी, उसमें प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाना स्वाभाविक है। -अनामिका, कवयित्री

प्रकृति और बसन्त का प्रभाव

प्रकृति का असर निश्चित तौर पर हमारे मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। हमें सीजनल इफेक्टिव डिसॉर्डर खासतौर पर जाड़े के महीने में होता है। रोशनी की कमी, बादल आदि के कारण व्यक्ति डिप्रेशन में चला जाता है। और उदासी महसूस करता है। वहीं जब बसन्त आता है तो न सिर्फ दिन की लम्बाई बढ़ने लगती है, बल्कि सूर्य की रोशनी भी अच्छी तरह से आने लगती है। साथ ही फेस्टिव सीजन भी शुरू हो जाता है। इसलिये मनुष्य मनोवैज्ञानिक रूप से खुश और उत्साहित महसूस करने लगता है -आरती आनन्द, कसल्टेंट क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, गंगाराम हॉस्पिटल नई दिल्ली