कालपी

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 11:27
कालपी जालौन जिले में कालपी तहसील के मुख्यालय के रूप में यमुना नदी के किनारे कानपुर-सागर-राजमार्ग पर स्थित है। किंवदंतियों के आधार पर कालपी नगर चौथी शताब्दी में वसुदेव द्वारा बसाया गया था। डा. प्रताप सिंह कनौजिया के लेख के अनुसार 'कान्यकुब्ज माहात्म्य' में वर्णित कृष्णपुत्र शांब दुर्वासा ऋषि के शापवश कोढ़ी हो गए थे और सूर्यकुंड (मकरंजनगर, कन्नौज) में स्नान करने पर कोढ़मुक्त हुए थे। अत: शांब द्वारा यमुना केतट पर कालप्रियनाथ (सूर्यदेव) का मंदिर बनवाना तथा बाद में उस स्थान का कालपी नाम से प्रसिद्ध होना सच प्रतीत होता है। कन्नौज के मौखरी नरेश यशोवर्मन्‌ तथा उनके दरबारी कवि भवभूति ने भी कालप्रियनाथ का वर्णन किया है। 'कान्यकुब्ज महात्म्य' के अनुसार कन्नौज की दक्षिणी सीमा कालपी तक थी। अत: उपर्युक्त तथ्यों से यह निर्विवाद सिद्ध हाता है कि कान्यकुब्ज प्रदेश के अंतर्गत यमुना तट पर निर्मित कालप्रियनाथ के नाम पर ही कालपी का नामकरण हुआ।

कालपी ऐतिहासिक नगर है जहाँ पुराने समय से लगातार राजनीतिक उथल-पुथल होती रही है। सन्‌ 1196 ई. में यह नगर कुतुबुद्दीन के आधिपत्य में आया। पंद्रहवी शताब्दी मं जौनपुर के इब्राहिम शाह ने कालपी को जीतने के लिए दो बार प्रयास किया लेकिन असफल रहे और नगर पर मालवा के होशांग शाह का पूर्ण अधिकार हो गया। कुछ समय बाद इब्राहिम के वंशज महमूद को कालपी पर कब्जा करने को कहा गया लेकिन शर्त थी कि उसके राज्यपाल को दंडित किया जाए। यह शर्त महमूद को मंजूर न थी। अत: दिल्ली के शासकों और जौनपुर राज्य के बीच कालपी को लेकर काफी दिनों तक संघर्ष चलता रहा और सन्‌ 1477 ई. में यहाँ एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें जौनपुर के हुशेनशाह भागकर कन्नौज चले गए। वहाँ भी वे पुन: पराजित हुए। सन्‌ 1526 ई. में पानीपत की विजय के बाद सम्राट् बाबार का मार्ग दक्षिण की ओर स्वत: खुल गया। राणा के वंशजों और अफगानों ने मिलकर उनका रास्ता रोकना चाहा। इन्होंने कालपी पर अधिकार तो कर लिया लेकिन बाद में हार खानी पड़ी। सन्‌ 1527 ई. में जौनपुर और बिहार दोनों पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद बाबर ने कालपी पर अधिकार कर लिया। सम्राट् हुमायूँ ने कालपी को अपने अधिकार में सन्‌ 1540 ई. तक रखा। अकबर के समय में कालपी सरकार का मुख्यालय रहा। बाद में मराठों ने इस नगर को राज्यपाल के मुख्यालय का रूप दिया। मई, सन्‌ 1858 ई. में झाँसी की रानी के नेतृत्व में यहाँ भयंकर युद्ध हुआ जिसमें राव साहब और बाँदा के नवाब का पूरा सहयोग था।

कालपी यमुना नदी के बीहड़ इलाके में बसा हुआ है। तमाम उथल-पुथल होने के बाद भी यह नगर तीव्र गति से विकास की ओर जा रहा है। इसके पश्चिमी भाग में अनेक प्राचीन मकबरे हैं जिन्हें 'चौरासी गुंबज' कहा जाता है। यमुना के ये बीहड़ भूभाग नगर के प्राचीन एवं आधुनिक बसावक्रम को अलग कर देते हैं। प्राचीन कालपी नगर नदी के पास एक ऊँचे भूभाग पर बसा हुआ है जिसमें भूरे पलस्तर (प्लास्टर) की दीवारें और यत्रतत्र छिटके हुए वृक्ष दिखाई देते हैं। यहाँ मुसलमान शासकों के मकबरे बहुतायत से देखने को मिलते हैं। नया कालपी नगर नदी से थोड़ी दूर, दक्षिण पूर्व की ओर बसा हुआ है। नदी के किनारे इन खंडहरों में एक भग्नावशेष ऐसा है जिसकी दीवार नौ फुट मोटी है और जिसे वहाँ के राज्यपाल का कोषागार समझा जाता है। सन्‌ 1868 ई. से ही कालपी में एक म्युनिसिपैलिटी है। दक्षिणी उत्तर-प्रदेश का यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी रह चुका है। यहाँ से अनाज एवं कपास कानपुर, कोलकाता और मिर्जापुर को भेजे जाते रहे हैं। यह 3.94 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है।

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