कानपुर

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 09:26
कानपुर उत्तर प्रदेश का एक विशाल औद्योगिक नगर जो कानपुर जिले में गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा हुआ है। यहाँ से ग्रैंड ट्रंक सड़क गुजरती है। यह नगर लखनऊ से लगभग 42 मील तथा इलाहाबाद से 120 मील की दूरी पर है। नगर की उत्पत्ति के संबंध में अनेक लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं; किंतु कानपुर ग्राम, जिसका शुद्ध नाम कान्हपुर या कन्हैयापुर माना जाता है और जिसे अब पुराना कानपुर कहते हैं, कितना प्राचीन है, इसका कुछ पता नहीं। नगर की उत्पत्ति का सचेंदी के राजा हिंदूसिंह से, अथवा महाभारत काल के वीर कर्ण से संबद्ध होना चाहे संदेहात्मक हो पर इतना प्रमाणित है कि अवध के नवाबों में शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवाँ, जुही तथा सीमामऊ गाँवों के मिलने से बना था। पड़ोस के प्रदेश के साथ इस नगर का शासन भी कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के। 1773 से 1801 तक अवध के नवाब अलमास अली का यहाँ सुयोग्य शासन रहा। 1773 की संधि के बाद यह नगर अंग्रेजों के शासन में आया, फलस्वरूप 1778 ई. में यहाँ अंग्रेज छावनी बनी।

गंगा के तट पर स्थित होने के कारण यहाँ यातायात तथा उद्योग धंधों की सुविधा थी। अतएव अंग्रेजों ने यहाँ उद्योग धंधों को जन्म दिया तथा नगर के विकास का प्रारंभ हुआ। सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ नील का व्यवसाय प्रारंभ किया। 1832 में ग्रैंड ट्रंक सड़क के बन जाने पर यह नगर इलाहाबाद से जुड़ गया। 1864 ई. में लखनऊ, कालपी आदि मुख्य स्थानों से सड़कों द्वारा जोड़ दिया गया। ऊपरी गंगा नहर का निर्माण भी हो गया। यातायात के इस विकास से नगर का व्यापार पुन: तेजी से बढ़ा।

विद्रोह के पहले नगर तीन ओर से छावनी से घिरा हुआ था। नगर में जनसंख्या के विकास के लिए केवल दक्षिण की निम्नस्थली ही अवशिष्ट थी। फलस्वरूप नगर का पुराना भाग अपनी सँकरी गलियों, घनी आबादी और अव्यवस्थित रूप के कारण एक समस्या बना हुआ है। 1857 के विद्रोह के बाद छावनी की सीमा नहर तथा जाजमऊ के बीच में सीमित कर दी गई; फलस्वरूप छावनी की सारी उत्तरी-पश्चिमी भूमि नागरिकों तथा शासकीय कार्य के निमित्त छोड़ दी गई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मेंरठ के साथ-साथ कानुपर भी अग्रणी रहा। नाना साहब की अध्यक्षता में भारतीय वीरों ने अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। इन्होंने नगर के अंग्रेजों का सामना जमकर किया किंतु संगठन की कमी और अच्छे नेताओं के अभाव में ये पूर्णतया दबा दिए गए।

शांति हो जाने के बाद विद्रोहियों को काम देकर व्यस्त रखने के लिए तथा नगर का व्यावसायिक दृष्टि से उपयुक्त स्थिति का लाभ उठाने के लिए नगर में उद्योग धंधों का विकास तीव्र गति से प्रारंभ हुआ। 1859 ई. में नगर में रेलवे लाइन का संबंध स्थापित हुआ। इसके पश्चात्‌ छावनी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकारी चमड़े का कारखाना खुला। 1861 ई. में सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल खुली। क्रमश: रेलवे संबंध के प्रसार के साथ नए-नए कई कारखाने खुलते गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात्‌ नगर का विकास बहुत तेजी से हुआ। यहाँ मुख्य रूप से बड़े उद्योग धंधों में सूती वस्त्र उद्योग प्रधान है। चमड़े के कारबार का यह उत्तर भारत का सबसे प्रधान केंद्र है। ऊनी वस्त्र उद्योग तथा जूट की दो मिलों ने नगर की प्रसिद्धि को अधिक बढ़ाया है। इन बड़े उद्योगों के अतिरिक्त कानपुर में छोटे-छोटे बहुत से कारखानें हैं। प्लास्टिक का उद्योग, इंजिनियरिंग तथा इस्पात के कारखाने, बिस्कुट आदि बनाने के कारखाने पूरे शहर में फैले हुए हैं। 16 सूती और दो ऊनी वस्त्रों में मिलों के सिवाय यहाँ आधुनिक युग के लगभग सभी प्रकार के छोटे बड़े कारखाने हैं।

पिछले वर्षों में नगर के फैलाव के फलस्वरूप् आजादनगर, किदवईनगर, अशोकनगर, सीसामऊ, काकादेव आदि बहिर्वर्ती क्षेत्रों का सुनियोजित विकास हुआ है। नगर के बीच से ग्रैंड ट्रंक सड़क यातायात के मेंरुदंड के समान गुजरती है।

योजना के फलस्वरूप मध्य शहर के सुधार के लिए सुनियोजित बाजारों, औद्योगिक क्षेत्रों तथा रहने के क्षेत्रों का पर्याप्त विकास हुआ है। कानपुर नगर उत्तर रेलवे का बहुत बड़ा जंकशन हो गया है। नगर का संबंध प्राय: देश के प्रत्येक भाग से है तथा आधुनिक काल की प्राय: सभी सुविधाएँ यहाँ सुलभ हैं।

देश के विभाजन के कारण शरणार्थी यहाँ भी अधिक संख्या में आए जिनके कारण अनेक समस्याएँ उठ खड़ी हुई हैं। विकास योजनाओं के अंतर्गत उनके समाधान की भी व्यवस्था हो रही है।

लोगों का मुख्य पेशा उद्योग धंधों से संबंधित है। संपूर्ण जनसंख्या के 98.7 प्रतिशत लोगों की जीविका व्यापार, उद्योग धंधा, यातायात तथा नौकरी आदि है। केवल 1.3 प्रतिशत लोग कृषि से संबद्ध हैं। नगर निगम के हो जाने से यह आशा की जाती है कि कानपुर शीघ्र ही भारतवर्ष का एक विशाल, सुव्यवस्थित नगर हो जाएगा।

कानपुर छावनी- कानपुर नगर में ही है। सन्‌ 1778 ई. में अंग्रेजी छावनी बिलग्राम के पास फैजपुर 'कंपू' नामक स्थान से हटकर कानपुर आ गई। छावनी के इस परिवर्तन का मुख्य कारण कानपुर की व्यावसायिक उन्नति थी। व्यवसाय की प्रगति के साथ इस बात की विशेष आवश्यकता प्रतीत होने लगी कि यूरोपीय व्यापारियों तथा उनकी दूकानों और गोदामों की रक्षा के लिए यहाँ फौज रखी जाए। अंग्रेजी फौज पहले जुही, फिर वर्तमान छावनी में आ बसी। कानपुर की छावनी में पुराने कानपुर की सीमा से जाजमऊ की सीमा के बीच का प्राय: सारा भाग सम्मिलित था। कानपुर के सन्‌ 1840 ई. के मानचित्र से विदित होता है कि उत्तर की ओर पुराने कानपुर की पूर्वी सीमा से जाजमऊ तक गंगा के किनारे-किनारे छावनी की सीमा चली गई थी। पश्चिम में इस छावनी की सीमा उत्तर से दक्षिण की ओर भैरोघोट के सीसामऊ तक चली गई थी। यहाँ से यह वर्तमान मालरोड (महात्मा गांधी रोड) के किनारे-किनारे पटकापुर तक चली गई थी। फिर दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़कर क्लेक्टरगंज तक पहुँचती थी। वहाँ से यह सीमा नगर के दक्षिण-पश्चिमी भाग को घेरती हुई दलेलपुरवा पहुँचती थी और यहाँ से दक्षिण की ओर मुड़कर ग्रैंड ट्रंक रोड के समांतर जाकर जाजमऊ से आनेवाली पूर्वी सीमा में जाकर मिल जाती थीं। छावनी के भीतर एक विशाल शस्त्रागार तथा यूरोपियन अस्पताल था। परमट के दक्षिण में अंग्रेजी पैदल सेना की बैरक तथा परेड का मैदान था। इनके तथा शहर के बीच में कालीपलटन की बैरकें थीं जो पश्चिम में सूबेदार के तालाब से लेकर पूर्व में क्राइस्ट चर्च तक फैली हुई थीं। छावनी के पूर्वी भाग में बड़ा तोपखाना था तथा एक अंग्रेजी रिसाला रहता था। 1857 के विद्रोह के बाद छावनी की प्राय: सभी इमारतें नष्ट कर दी गईं। विद्रोह के बाद सीमा में पुन: परिवर्तन हुआ। छावनी का अधिकांश भाग नागरिकों को दे दिया गया। इस समय छावनी की सीमा उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में ग्रैंड ट्रंक रोड तथा पूर्व में जाजमऊ है। पश्चिम में लखनऊ जानेवाली रेलवे लाइन के किनारे-किनारे माल रोड पर पड़नेवाले नहर के पुल से होती हुई फूलबाग के उत्तर से गंगा के किनारे हार्नेस फैक्टरी तक चली गई है। छावनी के मुहल्लों-सदरबाजार, गोराबाजार, लालकुर्ती, कछियाना, शुतुरखाना, दानाखोरी आदि-के नाम हमें पुरानी छावनी के दैनिक जीवन से संबंध रखनेवाले विभिन्न बाजारों की याद दिलाते हैं।

आजकल छावनी की वह रौनक नहीं है जो पहले थी। उद्देश्य पूर्ण हो जाने के कारण अंग्रेजों के काल में ही सेना का कैंप तोड़ दिया गया, पर अब भी यहाँ कुछ सेनाएँ रहती हैं। बैरकों में प्राय: सन्नाटा छाया हुआ है। छावनी की कितनी ही बैरकें या तो खाली पड़ी हुई हैं या अन्य राज्य कर्मचारी उनमें किराए पर रहते हैं। मेंमोरियल चर्च, कानपुर क्लब और लाट साहब की कोठी (सरकिट हाउस) के कारण यहाँ की रौनक कुछ बनी हुई है। छावनी का प्रबंध कैंटूनमेंट बोर्ड के सुपुर्द है जिसके कुछ चुने हुए सदस्य होते हैं।

कानपुर जिला- उत्तर प्रदेश (भारतवर्ष) में गंगा यमुना के दोआबे में अधोमार्ग में अवस्थित है। स्थिति 35स् 26व् उ.अ. से 26स् 28व् उ.अ. तथा 79स् 31व् पू.दे. से 80स् 34व् पू.दे.; क्षेत्रफल 6,121 वर्ग कि.मी. जनसंख्या 29,92,535 (1971)। आकार में यह एक असम चतुर्भुज है जिसकी लंबाई उत्तर से दक्षिण 70 मील तथा र्चौड़ाई पूर्व से पश्चिम 64 मील है। जिले में पानी के बहाव की ढाल पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है। यह समस्त भूभाग नदियों की लाई हुई दोमट मिट्टी के बिछाव से बना है। औसत ऊँचाई समुद्रतट से 420 फुट से 450 फुट तक है। इस जिले की मुख्य नदी गंगा है तथा अन्य बड़ी नदियाँ यमुना, पांडो (पांडव), ईशान (ईसन) तथा उत्तरी नोन हैं। यमुना की सहायक नदियाँ दक्षिणी नोन, खिंद और सेगुर हैं। जिले की भूमि स्वयं एक दोआब है तथा इस दोआबे के अंतर्गत और उसी की लंबाई में अन्य पाँच छोटे-छोटे दोआब हैं। गंगा-यमुना की सहायक नदियाँ इस भूमि में इन्हीं नदियों के समानांतर बहती हैं और इन्हीं से ये दोआबे बनते हैं।

जलवायु दोआबे के अन्य भागों की भाँति है। मार्च मास से लेकर वर्षा आरंभ होने तक जलवायु शुष्क रहती है तथा मई, जून में भयानक गर्मी पड़ती है। अक्टूबर के अंत से ही जाड़ा पड़ने लगता है। जनवरी में यथेष्ट जाड़ा पड़ता है। रात का तापक्रम 40स् फा. तक हो जाता है। प्राय: पाला भी पड़ जाता है। गर्मी के दिनों में तापक्रम 115स्-118स् फा. तक पहुँच जाता है। वार्षिक वृष्टि का वर्तमान औसत 32.87व्व् है। आखिरी 50 वर्षों में केवल 1918-19 ई. में वर्षा 14व्व् से कम रही; अन्य वर्षों में 28व्व् से अधिक ही रही। जिले में बाढ़ का भय अपेक्षाकृत कम रहा और यदि बाढ़ आई भी तो विशेषकर बिठूर तथा नवाबगंज के बीच गंगा के कछारी भाग में, जहाँ नोन नदी का पानी गंगा की बाढ़ के कारण रुक जाता है। जिले की सबसे भयंकर बाढ़ें सन्‌ 1924 ई. तथा 1948 ई. में आईं जिनमें परमट, पुराने कानपुर आदि के कुछ भागों में भी पानी भर गया था। जिले में कभी वर्षा औसत से बहुत कम हाती हे, अत: अकाल की संभावनाएँ होती रहती हैं।

जिले के संपूर्ण क्षेत्रफल के 64 भूमि पर खेती बारी होती है तथा 22.2 भूमि खेती के लिए प्राप्त नहीं है। ऊसर भूमि 15.5 है। जिले में सिंचाई मुख्य रूप से नहरों (88.7) तथा कुओं (8.4) से होती है। तालाब तथा झीलें भी सिंचाई के साधन हैं। जिले की अधिकांश भूमि पर रबी की फसलें होती हैं (कृषि का क्षेत्रफल : रबी 5,97,946 एकड़, खरीफ 5,20,167 एकड़ तथा फसल जायद 6,035 एकड़)। रबी की मुख्य उपज गेहूँ, जौ, चना, मटर अरहर और सरसों आदि तथा खरीफ की उपज चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास आदि हैं। गन्ने की खेती भी होती है।

क्षेत्रफल के अनुसार जिले का स्थान राज्य में 16वाँ है, तथा जनसंख्या के अनुसार पहला। जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्गमील 815 है जबकि उत्तर प्रदेश राज्य का घनत्व 557 है। घनत्व की इस उच्चता का कारण कानपुर नगर की जनसंख्या का आधिक्य है। देहाती क्षेत्रों का घनत्व 521 ही है। यहाँ प्रति 1,000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 796 है। शिक्षित लोगों का औसत लगभग 31 है। जिले की जनसंख्या में 50 वर्ष पूर्व से 54.1 की वृद्धि हुई जबकि उत्तर प्रदेश में केवल 30 की ही वृद्धि थी। जानवरों की संख्या लगभग 8.4 लाख है; भेड़, बकरियों की संख्या में पिछले 20 वर्षों में पर्याप्त कमी हुई है। इसका एकमात्र कारण गोचर भूमि में दिन प्रति दिन होनेवाली कमी ही है। सन्‌ 1951 में कृषि पर निर्भर रहनेवाले लोगों का औसत 51.4 रहा जो 1921 ई. में 66.2 था। इस भारी कमी का कारण कानपुर नगर का औद्योगिक विकास है। अत: यह स्पष्ट है कि जिले का आर्थिक तथा सामाजिक स्वरूप कानपुर नगर से बहुत प्रभावित हुआ है।

संपूर्ण जनपद शासन की सुविधा के लिए, अकबरपुर, भोगनीपुर, बिल्हौर, डेरापुर, धामपुर तथा कानुपर नामक छह तहसीलों में विभक्त है। कानपुर तहसील का क्षेत्रफल 418 वर्ग मील है।

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