कांच

Submitted by Hindi on Mon, 08/08/2011 - 16:30
कांच अथव शीशा अकार्बनिक पदार्थों से बना हुआ वह पारदर्शक अथवा अपारदर्शक पदार्थ है जिससे शीशी बोतल आदि बनती हैं। कांच का आविष्कार संसार के लिए बहुत बड़ी घटना थी और आज की वैज्ञानिक उन्नति में कांच का बहुत अधिक महत्व है।

प्रकृति में ऑब्सीडियन (Obsidian) पाषाण पाया जाता है जो एक प्रकार का कांच है। यह ज्वालामुखी पहाड़ों से निकलता है और इसके टुकड़ों में तीव्र धार होती है। पाषाणयुग में वाण के सिरे, भालों की नोकें एवं चाकू के फल इसी के बनाए जाते थे। धातु युग में इसी आब्सीडियन पाषाण से श्रृंगार की वस्तुएँ, जैसे दर्पण इत्यादि, बनाए गए।

किंवदंती के अनुसार, मुनष्य को कांच का पता तब चला जब कुछ व्यापारियों ने सीरिया में फ़ीनीशिया के समुद्रतट पर शोरों के ढेलों पर भोजन के पात्र चढ़ाए। अग्नि के प्रज्वलित होने पर उन्हें द्रवित कांच की धारा बहती हुई दिखाई दी। यह कांच बालू और शोरे के संयोग से बन गया था।

ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वप्रथम बर्तनों पर कांच के समान चमक उत्पन्न करने की रीति का आविष्कार मेंसोपोटामिया (इराक) में ईसा से प्राय: 12,000 वर्ष पूर्व हुआ।

प्राचीनतम कांच साँचे में ढले हुए ताबीज के रूप में मिस्र में पाया गया है, जिसका निर्माणकाल ईसा से 7,000 वर्ष पूर्व माना जाता था।

ईसा से लगभग 1,200 वर्ष पूर्व, मिस्रवासियों ने खुले साँचों में कांच को दबाने का कार्य आरंभ किया और इस विधि से कांच की तश्तरियाँ, कटोरे आदि बनाए गए। ईसा के 1,550 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा युग के आरंभ तक मिस्र कांचनिर्माण का केंद्र बना रहा।

फुँकनी द्वारा तप्त कांच को फूँकने की क्रिया मानव का एक महान्‌ आविष्कार था और इसका श्रेय भी फ़ीनीशियावासियों को ही है। इस आविष्कार की अवधि ईसा से 320-20 वर्ष पूर्व है। इस आविष्कार द्वारा कांच के अनेक प्रकार के खोखले पात्र बनाए जाने लगे। वस्तुत: आजकल के कांच निर्माण के आधुनिक यंत्रों में भी इसी क्रिया का उपयोग किया जाता है।

कांच उद्योग का व्यापारिक विस्तार ईसा काल से आरंभ होता है। इटली के रोम तथा वेनिस प्रदेशों में इसका निर्माण चरम सीमा पर पहुँचा।

अपनी आवश्यकताओं और वैज्ञानिक उन्नति के साथ प्रत्येक देश में विभिन्न गुणों के कांच के निर्माण में उन्नति होती गई। कांच उद्योग की आधुनिक उन्नति का बहुत कुछ श्रेय इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी और संयुक्त राज्य अमरीका को है। उदाहरणत:, सन्‌ 1557 ई. में सीसयुक्त स्फटिक का लंदन में आविष्कार हुआ; सन्‌ 1668 में पट्टिका कांच ढालने की विधि का पेरिस में आविष्कार हुआ; सन्‌ 1880 में लेंस (लेंञ्ज़ा) आदि बनाने योग्य अनेक प्रकार के काचों का आविष्कार जर्मनी में शाट एवं एवी द्वारा हुआ; 1879 में कांच बनाने के लिए पूर्ण स्वचालित यंत्र ओवेन का निर्माण हुआ; सन्‌ 1915 में ऊष्माप्रतिरोधक 'पाइरेक्स' कांच का निर्माण हुआ, जो तप्त करके ठंडे पानी में डुबा देने पर भी नहीं तड़कता; सन्‌ 1928 में निरापद कांच (सेफ़्टी ग्लास) का निर्माण हुआ जो चोट लगने पर चटख तो जाता है, परंतु उसके टुकड़े अलग होकर छटकते नहीं। यह मोटरकारों में लगाया जाता है; 1931 ई. में कांच के धागों और वस्त्रों का निर्माण हुआ; सन्‌ 1902 में, संयुक्त राज्य अमरीका के पिट्सबर्ग नगर में और बेल्ज़ियम में 'लिबी ओवेंस' और 'फ़ूरकाल्ट' प्रणालियों द्वारा चद्दरी काचों का निर्माण होना आंरभ हुआ।

प्राचीन भारत में भी महाभारत, यजुर्वेद संहिता, रामायण और योगवाशिष्ठ में कांच शब्द का उपयोग कई जगह किया गया है। प्राचीन भारत में स्फटिक (Quartz) से बनी सामग्री, उत्तम वस्तु मानी जाती थी। भारत में कई प्रदेशों में प्राचीन कांच के टुकड़े प्राप्त हुए हैं। भारतीय कांच का विवरण वास्तव में 16वीं शताब्दी से आरंभ होता है। उस समय यहाँ से अनिर्मित कांच बहुत अधिक मात्रा में यूरोप और उत्तरी इटली को निर्यात किया जाता था; यहाँ तक कि कांच निर्माण के लिए रासायनिक पदार्थ भी वेनिस भेजे जाते थे। 19वीं शताब्दी में भारत के प्रत्येक प्रांत में कांच की चूड़ियों, शीशियों और खिलौनों का निर्माण होता था।

आधुनिक भारतीय कांच उद्योग सन्‌ 1870 से आरंभ हुआ और सन्‌ 1915 तक कितने ही कांच के कारखाने खोले गए, पर वे सब असफल रहे। प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय कांच उद्योग को खूब प्रोत्साहन मिला। परंतु युद्धोपरांत भारतीय बाजार कांच के विदेशी माल से भर गया, फलस्वरूप कई भारतीय कारखाने बंद हो गए। कांच उद्योग की जाँच और उन्नति के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक समिति का संगठन किया और उसकी संस्तुतियों को सरकार ने मान्यता दी। उसी समय से कांच उद्योग में तीव्रता के साथ उन्नति हो रही है और अब भारत में कांच की सब प्रकार की वस्तुओं का निर्माण आधुनिक ढंग से हो रहा है।

आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में कांच शब्द से (1) पदार्थ की एक विशेष 'काचीय' अवस्था समझी जाती है अथवा (2) वह पदार्थ समझा जाता है जो कुछ अकार्बनिक पदार्थों को ऊँचे ताप पर द्रवित करके बनाया जाता है। द्रव कांच ही वास्तविक कांच है; केवल द्रव कांच के विद्युत्‌ और प्रकाशीय गुण सब दशाओं में एक से होते हैं। द्रव कांच को ठंडा करने पर उसमें श्यानता (Viscosity) बढ़ती है और धीरे-धीरे बिना काचीय गुणों का साधारण ठोस कांच बन जाता है।

कांच बनाने के लिए उपयोग के अनुसार कई प्रकार के कच्चे माल विभिन्न मात्राओं में मिलाकर, ऊँचे ताप पर द्रवित किए जाते हैं। द्रवित कांच को सिलिकेटों तथा बोरेटों का पारस्परिक विलयन कहा जा सकता है। इस विलयन में ताप के अनुसार बहुत कुछ अवयव आक्साइडों में विमुक्त हो जाते हैं। विलयन में वे अतिरिक्त ऑक्साइड भी होते हैं, जो रासायनिक योगिकों के निर्माण की आवश्कताओं से अधिक मात्रा में होते हैं।

कांच को 'अधिशीतलित' (Under-cooled) द्रव भी कहा जा सकता है, क्योंकि द्रव अवस्था से ठोस अवस्था में कांच का परिवर्तन क्रमश: होता है और ठोस कांच में उसकी द्रवास्था के सभी भौतिक गुण, जैसे ऊष्माचालकता इत्यादि, होते हैं।

कांच के उपादान- कांच निर्माण के लिए मुख्य पदार्थ सिलिका (सि औ2, Si O2) है और यह प्रकृति में मुक्त अवस्था एवं सिलिकेट यौगिकों के रूप में पाया जाता है। प्रकृति में सिलिका अधिकतर क्वार्ट्‌ज़ के रूप में पाया जाता है। इसका विशुद्ध रूप बिल्लौर पत्थर है। कांच निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त सामग्री बालू, बालुका प्रस्तर और क्वार्ट्‌ज़ाइट (Quratzite) चट्टानें हैं। यदि पाने की सुविधा, प्राप्य मात्रा और ढुलाई बराबर हो तो बालू ही सबसे उपयुक्त पदार्थ है। कांच निर्माण के लिए सबसे उपयुक्त वही बालू है जिसमें सिलिका की मात्रा कम से कम 99 प्रतिशत हो और फ़ेरिक ऑक्साइड (Fe2O3) के रूप में लोहा 0.1 प्रतिशत से कम हो। बालू के कण भी 0.5-0.25 मिलीमीटर के व्यास के हों। अच्छे कांच निर्माण के लिए बालू को जल द्वारा धो भी लिया जाता है। इलाहाबाद में शंकरगढ़ और वरगढ़ के बालू के निक्षेप कांच निर्माण के लिए अति उत्तम हैं और उत्तर प्रदेश सरकार ने वहाँ पर बालू धोने के कुछ यंत्र भी लगा दिए हैं।

साधारण कांच निर्माण के लिए कुछ क्षारीय पदार्थ जैसे र्सोडा ऐश (Sodium carbonate) का होना भी अति आवश्यक है। इस मिश्रण से द्रवणंक कम और द्रवण क्रिया सरल हो जाती है। केवल इन दो पदार्थों के द्रवण से जो कांच बनता है वह जल कांच (Water glass) के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि यह जल विलेय है। कांच को स्थायी बनाने के लिए कोई द्विसमाक्षारीय (dibasic) ऑक्साइड जैसे कैल्शियम ऑक्साइड (चूना) या सीस ऑक्साइड को भी मिलाना पड़ता है। रासायनिक नियम के अनुसार, जितने ही अधिक पदार्थ मिलाए जाते हैं द्रवणंक भी उतना ही कम हो जाता है। प्रत्येक पदार्थ कांच में कुछ विशेष गुण उत्पन्न करता है और इन गुणों को ही ध्यान में रखते हुए कांच के मिश्रण बनाए जाते हैं।

कैल्शियम ऑक्साइड कांच को रासायनिक स्थायित्व प्रदान करता है, पर अधिक मात्रा में होने पर कांच में विकांचण (devitrification) होने की प्रवृत्ति आ जाती है। साधारण कांच बालू, सोडा और चूना के मिश्रण से बनाया जाता है।

कैल्शियम ऑक्साइड के लिए कांच मिश्रण में चूना या चूना-पत्थर मिलाया जाता है। बोरिक अम्ल या सुहागा से कांच में विशेष भौतिक गुण उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे न्यून प्रसार-गुणांक और अधिक तनाव सहनशीलता, तापीय सहन शक्ति एवं अधिक जल-प्रतिरोधकता। इन गुणों के कारण तापमापी नली, लालटेन की चिमनी और भोजन पकाने के पात्र आदि आकस्मिक ताप परिवर्तन सहनेवाली वस्तुओं का निर्माण करने में, बोरिक ऑक्साइड की मात्रा अधिक से अधिक और क्षार की मात्रा कम से कम रखी जाती है।

सोडियम कोर्बोनेट के स्थान में अन्य क्षार जैसे पोटैशियम कार्बेनेट का भी उपयोग विशेष काचों में किया जाता है। बहुधा क्षार, सल्फ़ेट लवण के रूप में प्रयुक्त होता है।

सीस ऑक्साइड के लिए अधिकतर लाल सीस (सिंदूर) का उपयोग किया जाता है। इस ऑक्साइड द्वारा कांच का घनत्व और वर्तनांक दोनों बढ़ते हैं और इस कारण ऐसा कांच प्रकाशीय (optical) काचों, भाजन एवं पीने के पात्रों और कृत्रिम रत्नों के निर्माण के उपयोग में आता है। सीसयुक्त कांच शीघ्र ही काटे और पालिश किए जा सकते हैं। पोटाश क्षार का सीसयुक्त कांच सबसे अधिक चमकदार होता है।

ऐल्यूमिनियम ऑक्साइड (Al2O3), अधिकतर फ़ेल्स्पार द्वारा कांच में सम्मिलित किया जाता है। इस ऑक्साइड से कांच में उष्माजनित प्रसार, कठोरता, स्थायित्व, प्रत्यास्थता, तनन शक्ति, चमक और अम्ल प्रतिरोधकता बढ़ती है। इसके द्वारा कांच में समांगता और वैज्ञानिक कार्यों में उपयोगी अन्य गुणों की वृद्धि होती है। यह ऑक्साइड कांच का प्रसार गुणांक और मृदुकरण (annealing) ताप कम करता है। यह विकांचण को रोकता है और इसके प्रयोग से कांच का द्रवण और शोध सरल हो जाता है।

जस्ता ऑक्साइड (Zn O) प्राय: जस्ता कार्बोनेट (ZnCO3) द्वारा कांच में सम्मिलित किया जाता है। यह पदार्थ कांच के प्रसार गुणांक को बहुत कम करता है। कांच में अधिक स्थायित्व एवं उष्माजनित कम प्रसार उत्पन्न करने के कारण यह रासायनिक कांच के निर्माण में प्रयुक्त होता है। कुछ काचों में मैग्नीशियम या बेरियम ऑक्साइड भी सम्मिलित किया जाता है। कुछ पदार्थ कांच में विशेष रासायनिक गुण उत्पन्न करने के उद्देश्य से सम्मिलित किए जाते हैं। सीस युक्त काचों में कुछ ऑक्सीकारक पदार्थ, जेसे पोटैशियम नाइट्रेट या शोरा का होना आवश्यक होता है।

कांच के द्रवित होने पर उसमें गैस के बहुधा असंख्य छोटे-छोटे बुलबुले, जिनको 'बीज' कहते हैं, फँस जाते हैं। कांच को इनसे मुक्त करने के लिए कुछ रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। ये पदार्थ द्रव कांच में गैस हो जाते हैं और बीजों को अपने साथ कांच के बाहर निकाल लाते हैं। इन पदार्थों को 'शोधक द्रव्य' कहते हैं। साधारणत: शोधक द्रव्य के लिए कार्बन ऐमोनियम लवण या आरसेनिक प्रयुक्त होता है। आलू, चुकंदर और भीगी लकड़ी के टुकड़े द्रवित कांच में डालकर भी कहीं-कहीं कांच का शोधन किया जाता है।

भौतिक गुण- कांच का उपयोग ऐसी कई प्रकार की वसतुओं में किया जाता है जिनमें विभिन्न भौतिक गुणों की आवश्यकता रहती है। कांच के भौतिक गुणों में भिन्नता विभिन्न आक्साइडों द्वारा लाई जा सकती है। भौतिक गुण कांच में उपस्थित प्रत्येक ऑक्साइड की आपेक्षिक मात्रा पर भी निर्भर करता है।

घनत्व- कांच में सबसे अधिक घनत्व सीस ऑक्साइड द्वारा आता है और सबसे कम बोरिक ऑक्साइड द्वारा।

वैद्युत गुण- कांच की विद्युच्चालकता उसकी रचना, ताप एवं वातावरण पर निर्भर होती है। आजकल कांच का उपयोग अचालक (insulator) के लिए भी किया जा रहा है।

तापीय गुण- तप्त करने पर कांच प्रसारित होता है, पर बोरिक ऑक्साइड एवं मैग्नीशियम ऑक्साइड के कांच में न्यूनतम प्रसार होता है और क्षारीय ऑक्साइड से अधिकतम प्रसार।

उष्मा चालकता- कांच उष्मा का अधम चालक है; सिलिका तथा बोरिक ऑक्साइड से कांच में उष्मा-चालकता कम होती है। कांच के अन्य भौतिक गुण, जैसे यंग का प्रतयास्थता-गुणांक, तनाव शक्ति, दृढ़ता तथा तापीय सहनशीलता, कांच में पड़े आक्साइडों पर निर्भर होते हैं। कांच में इनके प्रभाव का वैज्ञानिक अध्ययन करके रासायनिक कांच (जिसपर किसी रासायनिक पदार्थ या ताप का प्रभाव नहीं पड़ता), उष्माप्रतिरोधक कांच, जो लाल तप्त कर एकदम बर्फ में ठंडे किए जा सकते हैं, और तापमापी कांच का निर्माण किया जाता है।

पट्टिका कांच की शक्ति के परीक्षण के लिए पट्टिका को चारों किनारों पर रखते हैं और ज्ञात भार के इस्पात के एक गोले को विभिन्न ऊँचाई के कांच के माध्य में स्वतंत्रतापूर्वक गिरने देते हैं। जिस ऊँचाई से गोले को गिराने पर कांच में दारार पड़ जाए वह ऊँचाई कांच की पुष्टता की मात्रिक माप होती है। बोतलों की पुष्टता की परीक्षा के लिए बोतलों के भीतर जल भरकर जल की दाब धीरे-धीरे बढ़ाई जाती हे कि बोतलें फट जाएँ।

तापीय सहनशीलता- अचानक ताप परिवर्तन की उस मात्रा को, जिसे कांच बिना टूटे सहन कर सके, कांच की तापीय सहनशीलता कहते हैं। इस गुण के परीक्षण के लिए कांच की वस्तुओं को जल में विभिन्न तापों तक गर्म कर बर्फ से ठंडे किए गए जल में अचानक डुबो देते हैं।

पाश्चरीकरण, भोजन बनाने के बर्तन, लैंप की चिमनियाँ, रासायनिक कांच और तापमापी की नली के लिए, उच्च तापीय सहनशीलतावाले कांच की आवश्यकता होती है। कांच में अधिक तापीय सहनशीलता उत्पन्न करने के लिए सिलिका की मात्रा अधिक और क्षार की मात्रा कम होनी चाहिए तथा कांच में कुछ मात्रा में जस्ता ऑक्साइड, बोरन ऑक्साइड और ऐल्युमिनियम ऑक्साइड भी होना चाहिए।

प्रकाशीय गुण- लेंसों (लेंज़ों) में प्रकाशीय गुण, जैसे उच्च वर्तनांक एवं विक्षेपण भी, कांच में भिन्न आक्साइडों की मात्राओं पर निर्भर हैं और इसलिए सीस ऑक्साइड, बेरियम ऑक्साइड और कैल्शियम की मात्राओं को घटाकर बढ़ाकर प्रत्येक भाँति के विशेष वर्तनांक और विक्षेपण के बहुमूल्य कांच तैयार किए जा सकते हैं।

पराबैंगनी (ultra-violet) प्रकाश के पारगमन के लिए पारदवाष्पदीप का कांच काचीय सिलिका का बनाया जाता है, क्योंकि ये रश्मियाँ साधारण व्यापारिक कांच के पार नहीं जा सकती है; परंतु द्रवित क्वार्ट्‌ज़ के पार ये सरलता से जा सकती हैं।

श्यानता- कांच निर्माण में श्यानता भी एक आवश्यक गुण है, क्योंकि कांच का धमन (फूँकना), पीडन, कर्षण और बेलना, बहुत कुछ कांच की श्यानता पर ही निर्भर रहते हैं; अभितापन में विकृति को हटाना भी श्यानता से ही सीधा संबंधित है। कांच की श्यानता कांच के ऑक्साइड अवयवों पर निर्भर करती है। सिलिका की मात्रा बढ़ाने से कांच का श्यानता-परास (रेंज़) बढ़ जाता है; चूने की वृद्धि से श्यानता बढ़ती है, परंतु श्यानता-परास कम होता है। सोडा की मात्रा बढ़ाने से श्यानता घटती है, पर श्यानता-परास बढ़ता है।

विकृतियाँ- जब कांच की वस्तु को गर्म किया जाता है तो बाहर की सतह भीतर के भागों के अपेक्षा अधिक गर्म हो जाती है और इसी प्रकार जब तप्त द्रवित कांच को ठंडा करके ठोस किया जाता है तब ठोस होते समय कांच के बाहर की सतह भीतर की अपेक्षा अधिक ठंडी हो जाती है। ताप में अंतर होने के कारण कांच में असमान प्रसार या आकुंचन आ जाता है, जिसके फलस्वरूप उसके भीतर प्रतिबल उत्पन्न हो जाते हैं और कांच में तदनुरूप विकृतियाँ आ जाती हैं।

निर्माण के समय कांच तप्त रहता है, इसलिए ठंडा होने पर कांच की वस्तुओं में प्रतिबल और विकृतियाँ आ जाती हैं। इनको हटाने की क्रिया को कांच का अभितापन (annealing) कहा जाता है। इस विधि में कांच की वस्तुओं को फिर से कांच को कोमल होनेवाले ताप से कुछ कम ताप पर एक समान तप्त कर दिया जाता है। इससे श्यानता के परिवर्तन के कारण कांच विकृतियों से मुक्त हो जाता है। तब कांच को बहुत धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। यह अभितापन-परास भी कांच के ऑक्साइड अवयवों पर निर्भर रहता है। अधिक क्षारयुक्त कांच पर्याप्त निम्न ताप पर अभितापित किए जा सकते हैं। जटिल कांच का, जैसे रासायनिक कांच उष्मा प्रतिरोधक कांच का, अभितापन ताप बहुत ऊँचा होता है। प्रकाशीय काचों के अभितापन में बहुत अधिक सम लगता है; क्योंकि उनको बहुत धीरे-धीरे ठंडा करना होता है जिनमें वे प्राय: विकृतिहीन हों। संसार के सबसे बड़े 200 इंच व्यास वाले दूरवीक्षण यंत्र के कांच को ठंडा करने के लिए एक वर्ष से ऊपर समय लगा था।

स्थायत्वि- जिन कांच पात्रों में औषधि, भोजन या पेय रखा जाता है, उनके काचों पर बहुत समय तक द्रवों की रासायनिक क्रियाहोने की संभावना रहती है। सभी रासायनिक कांच-वस्तुओं को जल, अम्ल और क्षार का संक्षारण (corrosion) सहना पड़ता है। द्वारवाले एवं प्रकाशीय काचों को ऋतुक्षारण सहना पड़ता है। अत: यह आवश्यक है कि इन काचों में ऐसे गुण हों कि पूर्वोक्त संक्षारणों का उनपर न्यूनतम प्रभाव पड़े।

कांच का स्थायित्व कांच के भिन्न ऑक्साइड अवयवों की मात्राओं पर निर्भर है। स्थायित्व बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम पदार्थ जस्ता ऑक्साइड है और इसके बाद ऐल्यूमिनियम, मैग्नीसियम और कैल्शियम ऑक्साइड हैं। क्षार की मात्रा अधिक हाने पर कांच का स्थायित्व घटता है। बोरिक ऑक्साइड 12 प्रतिशत तक कांच का स्थायित्व बढ़ाता है और तदुपरांत स्थायित्व घटता है। क्षारीय ऑक्साइड के स्थान में सिलिका बढ़ाने से भी स्थायित्व में वृद्धि आती है।

रंगीन कांच- रंगीन कांचों के निर्माण के लिए विभिन्न प्रकार के वर्णकों को कांच-मिश्रण में डाला जाता है। इनका ब्योरा नीचे दिया जाता है।

कांच का रंग वर्णक वर्णक की मात्रा


(प्रति 1,000 भाग बालू)

पीला कैडिमियम सल्फ़ाइड 20-30 भाग

गंधक 5-10 ''

भूरा (amber) कार्बन 5-10 ''

गंधक 2-4 ''

हरा क्रोमियम ऑक्साइड 1-2 ''

नीला कोबाल्ट ऑक्साइड 1-3 ''

उपल क्रायोलाइट 100-120 ''

आसमानी क्यूप्रिक ऑक्साइड 10-20 ''

लाल स्वर्ण क्लोराइड 1-4 ''

लाल सिलीनियम 8-15 ''

कैडमियम सलफ़ाइड 10-15 ''

कांच निर्माण के लिए पिसे कच्चे पदार्थों को तौलकर खूब मिलाया जाता है और तदुपरांत उन्हें भट्ठी में रखकर द्रवित किया जाता है।

कुछ आदर्श काचों की संरचना और उपयुक्त कांचमिश्रण नीचे दिए जा रहे हैं :

(1) धमनाड द्वारा निर्मित भारतीय कांच :


संरचना मिश्रण

सिलिका (SiO2) 74ऽ बालू 1000 भाग

कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) 7ऽ चूना पत्थर 169 ''

सोडियम ऑक्साइड (Na2O) 19ऽ सोडा ऐश 439 ''

(2) यंत्रनिर्मित चादरी कांच :


संरचना कांच-मिश्रण

सिलिका (SiO2) 72ऽ बालू 1000 भाग

ऐल्युमिना (Al2O3) 1.6ऽ ऐल्युमिना 22 ''

कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) 10.4ऽ चूना पत्थर 257 ''

सोडियम ऑक्साइड (Na2O) 16.0ऽ सोडा ऐश 380 ''

(3) पूर्ण मणिभ कांच (crystal glass) :



संरचना कांच मिश्रण

सिलिका (SiO2) 52.5ऽ बालू 100 भाग

सीस ऑक्साइड (PbO) 33.8ऽ लाल सीस 660 ''

पोटैशियम ऑक्साइड (K2O) 13.3ऽ पोटाश 330 ''

शोरा 40 ''

4) यंत्रनिर्मित विद्युत्‌-प्रकाश-दीप के लिए कांच :



संरचना कांच-मिश्रण

सिलिका (SiO2) 72.5ऽ बालू 1000 भाग

ऐल्युमिना (Al2O3) 1.6ऽ ऐल्युमिना 22 ''

कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) 4.9ऽ चूना पत्थर 121 ''

मैग्नीशियम ऑक्साइड (MgO) 3.5ऽ मैग्नेसाइट 101 ''

सोडियम ऑक्साइड (Na2O) 17.5ऽ सोडा ऐश 413 ''

(5) उष्मा प्रतिरोधक कांच :


संरचना कांच-मिश्रण

सिलिका (SiO2) 73.9ऽ बालू 1000 भाग

ऐल्युमिना (Al2O3) 2.2ऽ ऐल्युमिना 30 ''

सोडियम (Na2O) 6.7ऽ सोडा ऐश 155 ''

बोरिक ऑक्साइड (B2O3) 16.5ऽ बोरिक अम्ल 395 ''

(6) रासायनिक कांच (पाइरेक्स) :


सरंचना कांच-मिश्रण

सिलिका (SiO2) 80.6ऽ बालू 1000 भाग

ऐल्युमिना (Al2O3) 2.2ऽ ऐल्युमिना 25 ''

मैग्नीशियम ऑक्साइड (M2O) 0.3ऽ मैग्नेसाइट 8 ''

बोरिक ऑक्साइड (B2O3) 11.9ऽ बोरिक अम्ल 262 ''

सोडियम ऑक्साइड (Na2O) 3.9ऽ सोडा ऐश 83 ''

पोटैशियम ऑक्साइड (K2O) 0.7ऽ पोटाश 13 ''

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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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