कार्ली

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 11:12
कार्ली महाराष्ट्र राज्य में पूना जिले के मावल तालुका में बंबई-पूना-मार्ग पर स्थित एक ग्राम। यह पश्चिमी घाट के हीनयानीय बौद्ध चैल्य गुहाओं में विख्यात और प्रधान है। बौद्ध वास्तु और मूर्तिकला के क्षेत्र में गुहामंदिरों में प्रमाण माना जाता है। इसका निर्माण प्रसिद्ध भाजा दरीमंदिर के बाद ही पहली सदी ई.पू. के लगभग हुआ होगा। पर्वत की चट्टान को कोरबार यह लंबायत गुहा बनी है और लकड़ी की डाटों के साथ इसकी आंतरिक छत दर्शनीय है।

सामने कभी प्राय: पचास फुट ऊँचे दो सिंहस्तंभ खड़े थे, जिनकी बनावट अधिकतर अशोकीय स्तंभों की तरह थी। बरामदे में सामने रेलिंग का आभास उत्पन्न करनेवाला बहिरंग है और दाहिनी ओर अत्यंत सुंदर आधी ऊँचाई के हाथी दीवार में उभारे गए हैं। प्रवेश के तीन द्वार है जिनमें से बीच का बौद्ध पुराहितों के लिए था। ऊपर रोशनी के लिए मेंहराबदार खिड़की बनी है जिससे अत्यंत मृदु आलोक भीतर चला जाता है। लंबाई उसकी 124 फुट, चौड़ाई 46।। फुट और ऊँचाई 40 फुट है। दोनों ओर की दीवारों से भीतर की ओर की दूरी पर लगातार स्तंभों का अविराम सिलसिला चला गया है। स्तंभों की संख्या 37 है जिनमें 15-15 दोनों ओर हैं और सात गहराई में अर्धगोलाकार। स्तंभों का सौंदर्य असामान्य है, उनमें से प्रत्येक के शीर्ष पर दो-दो गजमस्तक हैं और प्रत्येक गजमस्तक पर मिथुनप्रतीक कोरे गए है। मिथुनों की परंपरा अपनी चेष्टाओं और आकृतियों में सर्वथा समान नहीं है, प्रत्येक में रंच मात्र अंतर डाल दिया गया है जिससे उनकी एकरूपता सह्य हो सके। स्तंभों के शीर्ष पीछे की ओर प्राय: इन्हीं प्रतीकों को वहन करते हैं, अंतर बस इतना है कि गजमस्तकों के स्थान पर वहाँ अश्वों के अग्रार्ध निर्मित हैं।

स्तूप सामने, चैतयगृह की गहराई में, स्तंभों के अर्धवृत्त के आगे खड़ा है और उसका निर्माण हर्मिका, छत्र आदि से संयुक्त, परंपरा के अनुकूल ही, हुआ है। पिछले प्राय: 1,000 वर्षों से संभवत: इस चैत्यमंदिर की पूजा बंद रही पर आज भी इसमें प्रवेश करने पर उसी शांति का अनुभव होता है जैसा इसके समृद्धिकाल में हुआ करता था।

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संदर्भ
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