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15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। उस समय की विषम परिस्थितियों से सामान्यतः हर व्यक्ति परिचित है। विभाजन से त्रस्त परिवारों को पुर्नवास और उन्हें तात्कालिक रूप से जीवनोपयोगी राहत सामग्री उपलब्ध कराना एक जटिल समस्या थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित नेहरू ने अपने मित्र विशप पिकेट से राहत कार्यों में सहयोग देने का अनुरोध किया। पं. नेहरू के इस भावानुरोध पर नेशनल क्रिश्चियन काउंसिल की राष्ट्रीय परिषद ने पूर्ण सहयोगात्मक रुख अपनाया और एनसीसी राहत समिति का गठन करके प्रभावित समूहों के लिए तुरंत राहत के काम प्रारंभ किये गये। भारत के प्रोटेस्टेंट और आर्थोडोक्स मंडलियों के सहयोग से गठित एनसीसी राहत समिति द्वारा अपने गठन के समय से ही प्राकृतिक और मानव जनित आपदाओं में लोगों को तात्कालिक राहत सहायता उपलब्ध कराने पर ध्यान दिया गया। इसके पश्चात वर्तमान परिस्थितियों और समय की परिवर्तनशीलता के चलते एनसीसी राहत समिति ने अपने दृष्टिकोण और लक्ष्य में बदलाव लाकर अपने ध्येय को व्यापक रूप प्रदान किया। आज यही समिति देश में एक स्वतंत्र व स्वायत्त राहत प्रदान करने वाली प्रमुख विकास संस्था के रूप में जिसे कि चर्च्स ऑग्जिलियरी फॉर सोशल एक्शन (कासा) के नाम से जाना जाता है। कासा ने अपने द्वारा किये गये कार्यों से अपनी विशिष्ट पहचान पूरे देश में ही नहीं, अपितु दक्षिण एशिया के निकटस्थ देशों में भी स्थापित की है। समग्र रूप से समर्पित और पूर्ण प्रतिबद्ध व्यक्तियों/सहयोगियों के माध्यम से कार्य करते हुए कासा ने सदैव ही गरीबों और उपेक्षित वर्गो के समन्वित तथा टिकाऊ विकास के लिए सक्रियता से अपनी भूमिका का निर्वाह करने का दायित्व गंभीरता के साथ पूर्ण किया है।
कासा की अपनी दृष्टि और ध्येय के प्रति निरंतर प्रयत्नशील रहने की सजगता ने ही, उसे जनता की तात्कालिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाया। जनकेन्द्रित, जनआधारित और जन सहभागिता के आधार पर चिरन्तन विकास के कार्यक्रमों को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। यह समस्त कार्यक्रम स्वंतंत्र रूप से विभिन्न जन संगठनों और गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से क्रियान्वित किये जाते हैं। कासा ने इस तथ्य पर विशेष जोर दिया है कि क्रियान्वित कार्यक्रम केवल परियोजना आधारित होकर न रह जाये, अपितु प्रक्रिया प्रधानता पर अधिक ध्यान दिया जाये। व्यापक सामुदायिक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले जन आन्दोलनों को प्रेरित करने के उद्देश्य में तथा क्षेत्र में औपचारिक और अनौपचारिक आधार पर जन-समूहों, मंचों, गठबंधनों और अन्य सोद्देश्यपूर्ण प्रकारों से लोगों की सामूहिक शक्ति और भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु कासा निम्न मुद्दों पर सक्रियतापूर्वक कार्य कर रही हैः-
1. समान विचारधारा वाले समूहों तथा व्यक्तियों को प्रभावी मंच उपलब्ध कराना।
2. निर्धनों तथा भूमिहीनों के लिए संचालित टिकाऊ विकास कार्यक्रमों को दृढ़ता प्रदान करने हेतु स्थानीय स्तर के मुद्दों को राज्यस्तरीय मुद्दों से जोड़ना, ताकि उन्हें प्रभावी रूप से उठाया जा सके।
3. पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन हेतु कार्य करना।
4. लैंगिक समानता हेतु कार्य करना।
5. पंचायत राज सशक्तिकरण हेतु विभिन्न स्तरों पर कार्य करना।
अपने द्वारा किये गये कार्यों को अधिक प्रभावी और संगठित रूप से क्रियान्वित करने के उद्देश्य से कासा ने संचालित कार्यों को विभिन्न क्षेत्रों में “पैकेज प्रोग्राम” के तहत क्रियान्वित किया है। विभिन्न राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, महाराष्ट्र आदि के साथ ही देश के पूर्वोत्तर राज्यों में भी कासा द्वारा क्रियान्वित “पैकेज प्रोग्राम” सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
अपने इसी दृष्टिकोण व लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में कासा ने पश्चिमी मप्र में जनकेन्द्रित समन्वित विकास योजना का चरणबद्ध कार्यक्रम प्रारंभ किया है। वर्ष 1996 से क्रियान्वित किये जा रहे इस पैकेज प्रोग्राम को मुख्यतः तीन मुद्दों पर केन्द्रित किया गया है।
1. भूमि संरक्षण
2. जल व प्रर्यावरण संवर्धन
3. महिला उत्थान
उपरोक्त तीनों मुद्दे यूं तो मानव जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। लेकिन पश्चिमी मध्यप्रदेश के संदर्भ में इनका विशेष महत्व है। इस मुद्दों ने क्षेत्र के अधिसंख्य आदिवासी समाज को उद्वेलित कर रखा है, इन मुद्दों से उनके जीवन की हर छोटी-बड़ी बात जुड़ी है। पश्चिमी म.प्र. का यह क्षेत्र जो कि मालवा, निमाड़ और सतपुड़ा अंचल के नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें की धार, झाबुआ, रतलाम, मन्दसौर, खंडवा, खरगौन, बड़वानी, इन्दौर, बैतूल जिले सम्मिलित है, में कासा ने क्षेत्र के स्वैच्छिक संगठनों के साथ मिलकर चिरन्तन विकास के कार्य प्रारंभ किये। इस संपूर्ण कार्यक्षेत्र की अर्थव्यस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। लेकिन सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता के कारण बहुसंख्यक आदिवासी वर्ग केवल वर्षाकाल में ही फसल ले पाता हैं। इसके पश्चात जीविकाउपार्जन के लिए आदिवासी समाज वनों पर आश्रित रहता था। लेकिन कटते जंगल और वनों के व्यवसायिक दोहन ने आदिवासियों को प्रकृति प्रदत्त जीविका के इन साधनों से भी वंचित कर दिया। इसके फलस्वरूप गांवों से शहरों की ओर पलायन का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ है वह शनैः-शनैः बढ़ता ही जा रहा है। कासा ने क्षेत्र की इस मूल समस्या को पहचाना और समन्वित रुप से इसके निराकरण के प्रयास प्रारंभ किये। चिरन्तन विकास के कार्यों में सहभागिता के साथ ही साथ कासा ने क्षेत्र में उत्पन्न सूखे की परिस्थिति का सामना करने हेतु भी संस्थाओं को संसाधन उपलब्ध कराए है। इन संसाधनों के माध्यम से क्षेत्र में पशुओं के लिए भूसा और चारा, पेयजल तथा काम के बदले अनाज कार्यक्रम के तहत खाद्दान्न का वितरण क्षेत्रों में किया गया। उपरोक्त संसाधनों के सदुपयोग और ग्रामिणों के श्रमदान से जल संरक्षण हेतु कई संरचनाओं का निर्माण किया गया है, जो कि आगामी कई वर्षों तक वर्षाजल को सहेजने में सक्षम है।
लेखक-परिचय
श्री जयंत कुमार: नई दिल्ली स्थित चर्चेज आग्जलरी फॉर सोशल एक्शन (कासा) के राष्ट्रीय प्रबोधन अधिकारी के रूप में पदस्थ है एवं मध्य प्रदेश के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रदेशव्यापी संजाल मध्यांचल स्वयंसेवी संस्था फोरम के संस्थापकों में से है। वे कासा के माध्यम से पश्चिम मध्य प्रदेश के अंचलों में स्वंसेवी संस्थाओं के साथ जल, जमीन, जंगल के मुद्दों पर कई वर्षों से कार्यरत है।
कासा की अपनी दृष्टि और ध्येय के प्रति निरंतर प्रयत्नशील रहने की सजगता ने ही, उसे जनता की तात्कालिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाया। जनकेन्द्रित, जनआधारित और जन सहभागिता के आधार पर चिरन्तन विकास के कार्यक्रमों को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। यह समस्त कार्यक्रम स्वंतंत्र रूप से विभिन्न जन संगठनों और गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से क्रियान्वित किये जाते हैं। कासा ने इस तथ्य पर विशेष जोर दिया है कि क्रियान्वित कार्यक्रम केवल परियोजना आधारित होकर न रह जाये, अपितु प्रक्रिया प्रधानता पर अधिक ध्यान दिया जाये। व्यापक सामुदायिक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले जन आन्दोलनों को प्रेरित करने के उद्देश्य में तथा क्षेत्र में औपचारिक और अनौपचारिक आधार पर जन-समूहों, मंचों, गठबंधनों और अन्य सोद्देश्यपूर्ण प्रकारों से लोगों की सामूहिक शक्ति और भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु कासा निम्न मुद्दों पर सक्रियतापूर्वक कार्य कर रही हैः-
1. समान विचारधारा वाले समूहों तथा व्यक्तियों को प्रभावी मंच उपलब्ध कराना।
2. निर्धनों तथा भूमिहीनों के लिए संचालित टिकाऊ विकास कार्यक्रमों को दृढ़ता प्रदान करने हेतु स्थानीय स्तर के मुद्दों को राज्यस्तरीय मुद्दों से जोड़ना, ताकि उन्हें प्रभावी रूप से उठाया जा सके।
3. पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन हेतु कार्य करना।
4. लैंगिक समानता हेतु कार्य करना।
5. पंचायत राज सशक्तिकरण हेतु विभिन्न स्तरों पर कार्य करना।
अपने द्वारा किये गये कार्यों को अधिक प्रभावी और संगठित रूप से क्रियान्वित करने के उद्देश्य से कासा ने संचालित कार्यों को विभिन्न क्षेत्रों में “पैकेज प्रोग्राम” के तहत क्रियान्वित किया है। विभिन्न राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार, महाराष्ट्र आदि के साथ ही देश के पूर्वोत्तर राज्यों में भी कासा द्वारा क्रियान्वित “पैकेज प्रोग्राम” सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
अपने इसी दृष्टिकोण व लक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में कासा ने पश्चिमी मप्र में जनकेन्द्रित समन्वित विकास योजना का चरणबद्ध कार्यक्रम प्रारंभ किया है। वर्ष 1996 से क्रियान्वित किये जा रहे इस पैकेज प्रोग्राम को मुख्यतः तीन मुद्दों पर केन्द्रित किया गया है।
1. भूमि संरक्षण
2. जल व प्रर्यावरण संवर्धन
3. महिला उत्थान
उपरोक्त तीनों मुद्दे यूं तो मानव जीवन से गहराई से जुड़े हुए हैं। लेकिन पश्चिमी मध्यप्रदेश के संदर्भ में इनका विशेष महत्व है। इस मुद्दों ने क्षेत्र के अधिसंख्य आदिवासी समाज को उद्वेलित कर रखा है, इन मुद्दों से उनके जीवन की हर छोटी-बड़ी बात जुड़ी है। पश्चिमी म.प्र. का यह क्षेत्र जो कि मालवा, निमाड़ और सतपुड़ा अंचल के नाम से प्रसिद्ध है। जिसमें की धार, झाबुआ, रतलाम, मन्दसौर, खंडवा, खरगौन, बड़वानी, इन्दौर, बैतूल जिले सम्मिलित है, में कासा ने क्षेत्र के स्वैच्छिक संगठनों के साथ मिलकर चिरन्तन विकास के कार्य प्रारंभ किये। इस संपूर्ण कार्यक्षेत्र की अर्थव्यस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। लेकिन सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता के कारण बहुसंख्यक आदिवासी वर्ग केवल वर्षाकाल में ही फसल ले पाता हैं। इसके पश्चात जीविकाउपार्जन के लिए आदिवासी समाज वनों पर आश्रित रहता था। लेकिन कटते जंगल और वनों के व्यवसायिक दोहन ने आदिवासियों को प्रकृति प्रदत्त जीविका के इन साधनों से भी वंचित कर दिया। इसके फलस्वरूप गांवों से शहरों की ओर पलायन का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ है वह शनैः-शनैः बढ़ता ही जा रहा है। कासा ने क्षेत्र की इस मूल समस्या को पहचाना और समन्वित रुप से इसके निराकरण के प्रयास प्रारंभ किये। चिरन्तन विकास के कार्यों में सहभागिता के साथ ही साथ कासा ने क्षेत्र में उत्पन्न सूखे की परिस्थिति का सामना करने हेतु भी संस्थाओं को संसाधन उपलब्ध कराए है। इन संसाधनों के माध्यम से क्षेत्र में पशुओं के लिए भूसा और चारा, पेयजल तथा काम के बदले अनाज कार्यक्रम के तहत खाद्दान्न का वितरण क्षेत्रों में किया गया। उपरोक्त संसाधनों के सदुपयोग और ग्रामिणों के श्रमदान से जल संरक्षण हेतु कई संरचनाओं का निर्माण किया गया है, जो कि आगामी कई वर्षों तक वर्षाजल को सहेजने में सक्षम है।
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