कीचड़ में पाये जानेवाले केकड़ा के प्रकार
स्काइला जीन के केकड़ा तटीय क्षेत्रों, नदी या समुद्र के मुहानों और स्थिर (अप्रवाही जलाशय) में पाये जाते हैं।
i. बड़ी प्रजातियाँ :
• बड़ी प्रजाति स्थानीय रूप से 'हरे मड क्रैब' के नाम से जानी जाती है।
• बढ़ने के उपरांत इसका आकार अधिकतम 22 सेंटी मीटर पृष्ठ-वर्म की चौड़ाई और 2 किलोग्राम वजन का होता है।
• ये मुक्त रूप से पाये जाते हैं और सभी संलग्नकों पर बहुभुजी निशान के द्वारा इसकी पहचान की जाती है।
ii.छोटी प्रजातियाँ:
• छोटी प्रजाति 'रेड क्लॉ' के नाम से जानी जाती है।
• बढ़ने के उपरांत इसका आकार अधिकतम 12.7 सेंटी मीटर पृष्ठवर्म की चौड़ाई और 1.2 किलो ग्राम वजन का होता है।
• इसके ऊपर बहुभुजी निशान नहीं पाये जाते हैं और इसे बिल खोदने की आदत होती है।
घरेलू और विदेशी दोनों बाजार में इन दोनों ही प्रजातियों की माँग बहुत ही अधिक है।
तैयार करने की विधि
केकड़ों की खेती दो विधि से की जाती है।
i. ग्रो-आउट (उगाई) खेती
• इस विधि में छोटे केकड़ों को 5 से 6 महीने तक बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि ये अपेक्षित आकार प्राप्त कर लें।
• केकड़ा ग्रो-आउट प्रणाली मुख्यतः तालाब आधारित होते हैं। इसमें मैंग्रोव (वायुशिफ-एक प्रकार का पौधा है जो पानी में पाया जाता है) पाये भी जा सकते हैं और नहीं भी।
• तालाब का आकार 0.5-2 हेक्टेयर तक का हो सकता है। इसके चारों ओर उचित बाँध होते हैं और ज्वारीय पानी बदले जा सकते हैं।
• यदि तालाब छोटा है तो घेराबंदी की जा सकती है। प्राकृतिक परिस्थितियों के वश में जो तालाब हैं उस मामले में बहाव क्षेत्र को मजबूत करना आवश्यक होता है।
• संग्रहण के लिए 10-100 ग्राम आकार वाले जंगली केकड़ा के बच्चों का उपयोग किया जाता है।
• कल्चर की अवधि 3-6 माह तक की हो सकती है।
• संग्रहण दर सामान्यतया 1-3 केकड़ा प्रति वर्गमीटर होती है। साथ में पूरक भोजन (चारा) भी दिया जाता है।
• फीडिंग के लिए अन्य स्थानीय उपलब्ध मदों के अलावे ट्रैश मछली (भींगे वजन की फीडिंग दर- जैव-पदार्थ का 5% प्रतिदिन होता है) का उपयोग किया जाता है।
• वृद्धि और सामान्य स्वास्थ्य की निगरानी के लिए तथा भोजन दर समायोजित करने के लिए नियमित रूप से नमूना (सैम्पलिंग) देखी जाती है।
• तीसरे महीने के बाद से व्यापार किये जाने वाले आकार के केकड़ों की आंशिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार, 'भंडार में कमी आने से' आपस में आक्रमण और स्वजाति भक्षण के अवसर में कमी आती है और उसके जीवित बचे रहने के अनुपात या संख्या में वृद्धि होती है।
ii. फैटनिंग (मोटा/कड़ा करना)
मुलायम कवच वाले केकड़ों की देखभाल कुछ सप्ताहों के लिए तब तक की जाती है जब तक उसके ऊपर बाह्य कवच कड़ा न हो जाए। ये 'कड़े' केकड़े स्थानीय लोगों के मध्य 'कीचड़' (मांस) के नाम से जाने जाते हैं और मुलायम केकड़ों की तुलना में तीन से चार गुणा अधिक मूल्य प्राप्त करते हैं।
(क) तालाब में केकड़ा को बड़ा करना
• 0.025-0.2 हेक्टेयर के आकार तथा 1 से 1.5 मीटर की गहराई वाले छोटे ज्वारीय तालाबों में केकड़ों को बड़ा किया जा सकता है।
• तालाब में मुलायम केकड़े के संग्रहण से पहले तालाब के पानी को निकालकर, धूप में सूखाकर और पर्याप्त मात्रा में चूना डालकर आधार तैयार किया जाता है।
• बिना किसी छिद्र और दरार के तालाब के बाँध को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है।
• जलमार्ग पर विशेष ध्यान दिया जाता है क्योंकि इन केकड़ों में इस मार्ग से होकर बाहर निकलने की प्रवृति होती है। पानी आने वाले मार्ग में बाँध के अंदर बाँस की बनी चटाई लगाई जानी चाहिए।
• तालाब की घेराबंदी बाँस के पोल और जाल की सहायता से बाँध के चारों ओर की जाती है जो तालाब की ओर झुकी होती है ताकि क्रैब बाहर नहीं निकल सके।
• स्थानीय मछुआरों/ केकड़ा व्यापारियों से मुलायम केकड़े एकत्रित किया जाता है और उसे मुख्यतः सुबह के समय केकड़ा के आकार के अनुसार 0.5-2 केकड़ा/वर्गमीटर की दर से तालाब में डाल दिया जाता है।
• 550 ग्राम या उससे अधिक वजन वाले केकड़ों की माँग बाजार में अधिक है। इसलिए इस आकार वाले समूह में आने वाले केकड़ों का भंडारण करना बेहतर है। ऐसी स्थिति में भंडारण घनत्व 1 केकड़ा/ वर्गमीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
• स्थान और पानी केकड़ा की उपलब्धता के अनुसार तालाब में पुनरावृत भंडारण और कटाई के माध्यम से 'उसे बड़ा बनाने' के 6-8 चक्र पूरे किये जा सकते हैं।
• यदि खेती की जानेवाली तालाब बड़ा है तो तालाब को अलग-अलग आकार वाले विभिन्न भागों में बाँट लेना उत्तम होगा ताकि एक भाग में एक ही आकार के केकड़ों का भंडारण किया जा सके। यह भोजन के साथ-साथ नियंत्रण व पैदावार के दृष्टिकोण से भी बेहतर होगा।
• जब दो भंडारण के बीच का अंतराल ज्यादा हो, तो एक आकार के केकड़े, एक ही भाग में रखे जा सकते हैं।
• किसी भी भाग में लिंग अनुसार भंडारण करने से यह लाभ होता है कि अधिक आक्रामक नर केकड़ों के आक्रमण को कम किया जा सकता है। पुराने टायर, बाँस की टोकड़ियाँ, टाइल्स आदि जैसे रहने के पदार्थ उपलब्ध कराना अच्छा रहता है। इससे आपसी लड़ाई और स्वजाति भक्षण से बचा जा सकता है।
(ख) बाड़ों और पिजरों में मोटा करना
• बाड़ों, तैरते जाल के पिजरों या छिछले जलमार्ग में बाँस के पिंजरों और बड़े श्रिम्प (एक प्रकार का केकड़ा) के भीतर अच्छे ज्वारीय पानी के प्रवाह में भी उसे मोटा बनाने का काम किया जा सकता है।
• जाल के समान के रूप में एच.डी.पी.ई, नेटलॉन या बांस की दरारों का प्रयोग किया जा सकता है।
• पिंजरों का आकार मुख्यतः 3 मीटर x 2 मीटर x 1 मीटर होनी चाहिए।
• इन पिंजरों को एक ही कतार में व्यवस्थित किया जाना चाहिए ताकि भोजन देने के साथ उसकी निगरानी भी आसानी से की जा सके।
• पिंजरों में 10 केकड़ा/ वर्गमीटर और बाड़ों में 5 केकड़ा/ वर्गमीटर की दर से भंडारण की सिफारिश की जाती है। चूंकि भंडारण दर अधिक है इसलिए आपस में आक्रमण को कम करने के लिए भंडारण करते समय किले के ऊपरी सिरे को हटाया जा सकता है।
• इस सब के बावजूद यह विधि उतनी प्रचलित नहीं है जितनी तालाब में 'केकड़ों को मोटा' बनाने की विधि।
इन दोनों विधियों से केकड़ा को मोटा बनाना अधिक लाभदायक है क्योंकि जब इसमें भंडारण सामान का प्रयोग किया जाता है तो कल्चर अवधि कम होती है और लाभ अधिक होता है। केकड़े के बीज और व्यापारिक चारा उपलब्ध नहीं होने के कारण भारत में ग्रो-आउट कल्चर प्रसिद्ध नही है।
चारा
केकड़ों को चारा के रूप में प्रतिदिन ट्रैश मछली, नमकीन पानी में पायी जाने वाली सीपी या उबले चिकन अपशिष्ट उन्हें उनके वजन के 5-8% की दर से उपलब्ध कराया जाता है। यदि चारा दिन में दो बार दी जाती है तो अधिकतर भाग शाम को दी जानी चाहिए।
पानी की गुणवत्ता
नीचे दी गई सीमा के अनुसार पानी की गुणवत्ता के मानकों का ख्याल रखा जाएगा:
लवणता | 15-25% |
ताप | 26-30° C |
ऑक्सीजन | > 3 पीपीएम |
पीएच | 7.8-8.5 |
पैदावार और विपणन
• कड़ापन के लिए नियमित अंतराल पर केकड़ों की जाँच की जानी चाहिए।
• केकड़ों को इकट्ठा करने का काम सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए।
• इकट्ठा किये गये केकड़ों से गंदगी और कीचड़ निकालने के लिए इसे अच्छे नमकीन पानी में धोना चाहिए और इसके पैर को तोड़े बिना सावधानीपूर्वक बाँध दी जानी चाहिए।
• इकट्ठा किये गये केकड़ों को नम वातावरण में रखना चाहिए। इसे धूप से दूर रखना चाहिए क्योंकि इससे इसकी जीवन क्षमता प्रभावित होती है।
कीचड़ में पलने वाले केकड़ों को बड़ा करने से संबंधित अर्थव्यवस्था (6 फसल/वर्ष), (0.1 हेक्टेयर ज्वारीय तालाब)
क. वार्षिक निर्धारित लागत | रुपये |
तालाब (पट्टा राशि) | 10,000 |
जलमार्ग (स्लुइस) गेट | 5,000 |
तालाब की तैयारी, घेराबंदी और मिश्रित शुल्क | 10,000 |
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ख. परिचालनात्मक लागत (एकल फसल) |
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1. पानी केकड़े का मूल्य (400 केकड़ा, 120 रुपये/ किलोग्राम की दर से) | 36,000 |
2. चारा लागत | 10,000 |
3. श्रमिक शुल्क | 3,000 |
एक फसल के लिए कुल | 49,000 |
6 फसलों के लिए कुल | 2,94,000 |
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ग. वार्षिक कुल लागत | 3,19,000 |
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घ. उत्पादन और राजस्व |
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केकड़ा उत्पादन का प्रति चक्र | 240 किलोग्राम |
6 चक्रों के लिए कुल राजस्व (320 रुपये/ किलोग्राम) | 4,60,800 |
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च. शुद्ध लाभ | 1,41,800 |
• यह अर्थव्यवस्था एक उपयुक्त आकार के तालाब के लिए दी गई है जिसका प्रबंधन कोई भी छोटा या सीमांत किसान कर सकता है।
• चूंकि केकड़ों के भंडारण आकार के संबंध में करीब 750 ग्राम का सुझाव मिला है इसलिए भंडारण घनत्व कम (0.4 संख्या/वर्गमीटर) होता है।
• प्रथम सप्ताह के लिए चारा देने का दर कुल जैवसंग्रह का 10% होता है और बाकी की अवधि के लिए 50% । चारा की बर्बादी को बचाने और बढ़िया गुणवत्ता वाले पानी बनाये रखने के लिए खाना देने के ट्रे का प्रयोग करना बेहतर होता है।
• अच्छे से प्रबंधित किसी भी तालाब में 8 'मोटा बनाने' के चक्र पूरे किये जा सकते हैं और इसमें 80-85% केकड़ों के जीवित बचने की उम्मीद रहती है। (यहाँ पर विचार के लिए सिर्फ़ 75 % केकड़ों के बचने की उम्मीद के साथ 6 चक्रों को लिया गया है)।
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