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नई दुनिया-जागरण, 30 सितंबर 2012
मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी।
मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी। छब्बीस जुलाई 2005 का हादसा कौन भूल सकता है भला? पूरी मुंबई बाढ़ में डूबी थी। ग्राउंड फ्लोर वाले ज्यादातर घरों में पानी भर गया था और हर घर में सामान का काफी नुकसान हुआ था। आबिद भाई ने बताया कि उनकी पेन्टिंग्स और किताबें सब भीग गई थीं। लेकिन उनका बताने का अंदाज यह थाः रात को खाना वगैरह खाकर सोए और अच्छी-खासी नींद ले रहे थे कि लगा एक बढ़िया सपने में वे समुद्र में तैर रहे हैं। पानी के समन्दर में पूरी खाट लहरों पर हिलोरें खा रही थी। खाट बार-बार दरवाजे से खट से टकराती और फिर पानी में तैरने लगती। जब पानी मुंह तक आने लगा तो पता चला कि सपने में नहीं, हकीकत में पानी का समुद्र उनके घर के अंदर उन्हें खाट समेत झूला झुला रहा है। अपने बड़े-से-बड़े नुकसान को जज्ब करने का हौसला और अंदाज उनका अपना है। पता नहीं, यह विपश्यना की देन है या ओशो की कि बड़ी-से-बड़ी त्रासदी को वे हंसकर बयान करते हैं और अपने भीतर के दुःख को हमेशा हंसी में उड़ा देते हैं।
इधर सुधीर तैलंग का बनाया आबिद भाई का कार्टून- हाथ में प्लम्बिंग के औजार लिए-खासी चर्चा में है। एक 'वन मैन एनजीओ' भी आबिद भाई ने शुरू कियाः' ड्रॉप डेड' के नाम से। मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी। काफी दिनों तक यह मुहीम जारी रही, अब फंड की तलाश में दम तोड़ रही है पर मीरा रोड के हजारों मकानों के नलों की मरम्मत इस नेक काम के तहत हो चुकी है। शाहरुख खान से आमिर खान तक ढब्बूजी के इस नए कायाकल्प के मुरीद हो चुके हैं।
प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, पानवाला, बाल काटने वाला, अखबार बेचनेवाला बस, क ख ग पढ़ना जानता हो, आबिद भाई न सिर्फ उसको साक्षर बनाएंगे बल्कि उसे पढ़ने की लत लगाए बगैर नहीं मानेंगे। हमारे पुस्तक केंद्र 'वसुंधरा' को सैरगाह मानकर इन सबको तफरीह करवाने मीरा रोड से पवई ले आया करते थे। इस खब्त का ताजा शिकार एक धोबी है। बेचारा आया था कपड़े प्रेस करने और अब कपड़े न हों तो भी कोई बात नहीं, पत्रिकाएं लेने चला आता है। आबिद भाई को शागिर्द पालने की आदत है, फिर चाहे वह 24 साल का हो या 74 साल का। बस, यह अघोषित एडल्ट एजुकेशन प्रोग्राम उनकी बहुत सारी स्वान्तः सुखाय योजनाओं का हिस्सा है।
ऐसे ही एक रविवार- छुट्टी के दिन-आबिद भाई अपने एक शागिर्द के साथ वसुंधरा में जाने के लिए हमारे घर आए और उन्हें वसुंधरा ले जाकर दिखाने की हड़बड़ाहट में बाथरूम के बाहर फैले हुए पानी में पैर फिसलने से मेरे पति अपने दाहिने हाथ की कलाई की हड्डी तोड़ बैठे। उन्हें अस्पताल में एडमिट करवाया। डॉक्टर ने फौरन अगले दिन सुबह ऑपरेशन की तैयारी में ठेठ व्यवसायी लहजे में यह तक पूछ लिया कि अंदर जो स्टील प्लेट डाली जाएगी, वह इंपोर्टेड डाली जाए या देसी? साथ ही यह अग्रिम सूचना भी कि छः महीने लग जाएंगे हाथ को ठीक से काम करने लायक होने में। इत्तेफाक से उस दिन वसुंधरा में मेरी एक मीटिंग थी और मुझे अपनी मित्रों को बताना पड़ा कि मेरे पति के हाथ में फ्रैक्चर हो गया है तो मीटिंग संभव नहीं हैं। वसुंधरा की जगह वे अस्पताल मेरे पति को देखने आ गईं और अगले दिन के ऑपरेशन के बदले विकल्प के तहत एक हाड़वैद्य बताया जिसने बीस मिनट में हाथ खींचकर ऐसे हड्डी जोड़ी कि अगले दिन सुबह हाथ की उंगलियां सामान्य रूप से काम करने लगीं। यह घटना मैं लगभग सभी मित्रों को बता चुकी थी। अखबार में भी इसकी रिपोर्ट दे चुकी थी। नागपुर से प्रकाशित ‘लोकमत समाचार’ में इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था।
इस घटना को अभी छः महीने भी नहीं बीते थे कि एक शाम आबिद भाई का फोन आया, हंसकर कहते हैं, ‘अरे सुनों भई, मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया है।’ जैसे हाथ तुड़वाकर पता नहीं कौन-सा तीर मारा हो। आवाज में चहक ऐसी जैसे अस्पताल से नहीं, किसी आयोजन में लखटकिया पुरस्कार जीत आने का ऐलान कर रहे हों। सड़क पर चलते हुए एक साइकिल के धक्के से उनके हाथ की हड्डी टूट गई थी। मुझसे तो सच बयान किया पर बाकी लोगों में से किसी से कहा, मोटरसाइकिल ने मार दिया, किसी से कहा गाड़ी से टक्कर हो गई, किसी से कहा, बैल से टकरा गए। जब दो मित्र आपस में बात करने लगे तो सफाई मांगी गई कि किससे टक्कर हुई तो बोले-अब एक ही कहानी सबको सुना-सुनाकर बोरियत होती है न, इसलिए कहानी में वेरिएशन लाने के लिए ये तब्दीलियां बयान करना जरूरी था।
मीरा रोड के अस्पताल का डॉक्टर बिल्कुल वैसा ही ऑपरेशन कर अंदर स्टील की प्लेट डालने का इलाज बता रहा था। रात के दस बजे वे मीरा रोड से और हम दोनों पवई से कुर्ला पहुंचे। उन्हीं यूनानी हकीम हाड़बैद्य, जो कुर्ला वाले चाचा के नाम से उस इलाके में मशहूर हैं-से इलाज करवाया। आबिद भाई के हाथ की हड्डी जुड़ गई। उस दिन के वे आज भी एहसानमंद हैं। सन् 2006। मैंने आबिद भाई को फोन किया कि मुझे विपश्यना का पता-ठिकाना दें, मैं इगतपुरी जाना चाहती हूं। उन्होंने कहा, ‘नहीं, विपश्यना अभी तुम्हारे बस का नहीं है- मौन रहना, कागज-कलम भी नहीं ले जाना- तुमसे सधेगा नहीं। अभी पूना जाओ। वहां एक ज्ञानदेव हैं। वर्कशॉप लेते हैं। उनसे मिलकर आओ।’ मैं पूना गई। बेहद अस्त-व्यस्त मानसिकता में। वाकई ज्ञानदेव ने जीने के जो टोटके थमाए, लौटकर मैंने आबिद भाई को फोन किया कि आपने मुझे सही जगह भेजा था। आज आपने अपने हाथ की हड्डी जुड़वाने का कर्ज उतार दिया। वर्ना कौन याद रखता है कि किसकी वजह से वे अपने भीतर स्टील के रॉड, लोहा लक्कड़ डलवाने से बच गए और उंगलियां कम्प्यूटर पर मजे से काम कर रही हैं।
आबिद भाई के परिवार की अगली पीढ़ी भी उनसे इक्कीस ही है। उनका छोटा बेटा अलिफ अपने पिता से भी दो कदम आगे है। हमेशा सुर्खियों में रहता है। अलिफ और अदिति का पहला बेटा पैदा हुआ। उसका बर्थ सर्टिफिकेट लेने के लिए फार्म भरना पड़ा, उसमें रिलीजन के आगे की जगह खाली छोड़ दी। फार्म लौटाया गया कि बच्चे का धर्म लिखकर दीजिए। दोनों ने कहा, ‘यह तो बच्चा बड़ा होकर तय करेगा कि वह मां का हिंदू धर्म लेगा या बाप का मुस्लिम धर्म। हम लोग उसका धर्म तय करने वाले कौन होते हैं।’
जवाब मिला, ‘तब तो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा।’ बात म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन से होती हुई कोर्ट-कचहरी तक पहुंची। कैमरा टीम के साथ अलग-अलग चैनल वालों ने घर को घेर लिया। आखिर एक कमिश्नर ने सुझाव दिया कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध के साथ-साथ एक कॉलम में ‘अदर्स’ होता है। आप अदर्स लिख दें। खाली जगह पर अदर्स लिखा गया। तब जाकर बर्थ सर्टिफिकेट हासिल हुआ। सारा दिन न्यूज चैनल पर यह खबर बार-बार दिखाई जाती रही। मुझे खुशी हुई कि मासूमा भाभी का दादी बनने का सपना पूरा हुआ।
बड़ा बेटा साहिल, जिसके साथ मासूमा भाभी रहती हैं, छोटे अलिफ से बढ़कर है। उसकी बात फिर कभी क्योंकि यह आलेख तो उनके मल्टी डायमेंशन वाले यानी बहुआयामी पिता पर केंद्रित करना है न!
पिछले चार साल से आबिद भाई को नहीं देखा। छठे-छमाही कभी फोन कर लेते हैं या कुछ अच्छी मेल अटैच कर भेज देते हैं। मैं भी महीनों फोन नहीं करती पर जब भी मेरा मन हंसने को करता है, तो मैं आबिद भाई को फोन कर लेती हूं। हंसी का खजाना हैं आबिद भाई, जो आज के जमाने में दुर्लभ होता जा रहा है। आबिद भाई का एक बेहद प्रिय वाक्य है, ‘यू हैव मेड माय डे।’ जो खास तौर पर प्रशंसिकाओं से बोला जाता है। इस आलेख को लिखकर जब समाप्त कर रही हूं तो आबिद भाई का यह पचासो बार दोहराया गया जुमला मेरे कानों में बज रहा है। मुझे पता है, पढ़ने के बाद वे अपनी खुली हंसी में ‘एक लेखक की बीवी’ से यही जुमला दोहराएंगे।
मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी। छब्बीस जुलाई 2005 का हादसा कौन भूल सकता है भला? पूरी मुंबई बाढ़ में डूबी थी। ग्राउंड फ्लोर वाले ज्यादातर घरों में पानी भर गया था और हर घर में सामान का काफी नुकसान हुआ था। आबिद भाई ने बताया कि उनकी पेन्टिंग्स और किताबें सब भीग गई थीं। लेकिन उनका बताने का अंदाज यह थाः रात को खाना वगैरह खाकर सोए और अच्छी-खासी नींद ले रहे थे कि लगा एक बढ़िया सपने में वे समुद्र में तैर रहे हैं। पानी के समन्दर में पूरी खाट लहरों पर हिलोरें खा रही थी। खाट बार-बार दरवाजे से खट से टकराती और फिर पानी में तैरने लगती। जब पानी मुंह तक आने लगा तो पता चला कि सपने में नहीं, हकीकत में पानी का समुद्र उनके घर के अंदर उन्हें खाट समेत झूला झुला रहा है। अपने बड़े-से-बड़े नुकसान को जज्ब करने का हौसला और अंदाज उनका अपना है। पता नहीं, यह विपश्यना की देन है या ओशो की कि बड़ी-से-बड़ी त्रासदी को वे हंसकर बयान करते हैं और अपने भीतर के दुःख को हमेशा हंसी में उड़ा देते हैं।
इधर सुधीर तैलंग का बनाया आबिद भाई का कार्टून- हाथ में प्लम्बिंग के औजार लिए-खासी चर्चा में है। एक 'वन मैन एनजीओ' भी आबिद भाई ने शुरू कियाः' ड्रॉप डेड' के नाम से। मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी। काफी दिनों तक यह मुहीम जारी रही, अब फंड की तलाश में दम तोड़ रही है पर मीरा रोड के हजारों मकानों के नलों की मरम्मत इस नेक काम के तहत हो चुकी है। शाहरुख खान से आमिर खान तक ढब्बूजी के इस नए कायाकल्प के मुरीद हो चुके हैं।
प्लम्बर, इलेक्ट्रिशियन, पानवाला, बाल काटने वाला, अखबार बेचनेवाला बस, क ख ग पढ़ना जानता हो, आबिद भाई न सिर्फ उसको साक्षर बनाएंगे बल्कि उसे पढ़ने की लत लगाए बगैर नहीं मानेंगे। हमारे पुस्तक केंद्र 'वसुंधरा' को सैरगाह मानकर इन सबको तफरीह करवाने मीरा रोड से पवई ले आया करते थे। इस खब्त का ताजा शिकार एक धोबी है। बेचारा आया था कपड़े प्रेस करने और अब कपड़े न हों तो भी कोई बात नहीं, पत्रिकाएं लेने चला आता है। आबिद भाई को शागिर्द पालने की आदत है, फिर चाहे वह 24 साल का हो या 74 साल का। बस, यह अघोषित एडल्ट एजुकेशन प्रोग्राम उनकी बहुत सारी स्वान्तः सुखाय योजनाओं का हिस्सा है।
ऐसे ही एक रविवार- छुट्टी के दिन-आबिद भाई अपने एक शागिर्द के साथ वसुंधरा में जाने के लिए हमारे घर आए और उन्हें वसुंधरा ले जाकर दिखाने की हड़बड़ाहट में बाथरूम के बाहर फैले हुए पानी में पैर फिसलने से मेरे पति अपने दाहिने हाथ की कलाई की हड्डी तोड़ बैठे। उन्हें अस्पताल में एडमिट करवाया। डॉक्टर ने फौरन अगले दिन सुबह ऑपरेशन की तैयारी में ठेठ व्यवसायी लहजे में यह तक पूछ लिया कि अंदर जो स्टील प्लेट डाली जाएगी, वह इंपोर्टेड डाली जाए या देसी? साथ ही यह अग्रिम सूचना भी कि छः महीने लग जाएंगे हाथ को ठीक से काम करने लायक होने में। इत्तेफाक से उस दिन वसुंधरा में मेरी एक मीटिंग थी और मुझे अपनी मित्रों को बताना पड़ा कि मेरे पति के हाथ में फ्रैक्चर हो गया है तो मीटिंग संभव नहीं हैं। वसुंधरा की जगह वे अस्पताल मेरे पति को देखने आ गईं और अगले दिन के ऑपरेशन के बदले विकल्प के तहत एक हाड़वैद्य बताया जिसने बीस मिनट में हाथ खींचकर ऐसे हड्डी जोड़ी कि अगले दिन सुबह हाथ की उंगलियां सामान्य रूप से काम करने लगीं। यह घटना मैं लगभग सभी मित्रों को बता चुकी थी। अखबार में भी इसकी रिपोर्ट दे चुकी थी। नागपुर से प्रकाशित ‘लोकमत समाचार’ में इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था।
इस घटना को अभी छः महीने भी नहीं बीते थे कि एक शाम आबिद भाई का फोन आया, हंसकर कहते हैं, ‘अरे सुनों भई, मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया है।’ जैसे हाथ तुड़वाकर पता नहीं कौन-सा तीर मारा हो। आवाज में चहक ऐसी जैसे अस्पताल से नहीं, किसी आयोजन में लखटकिया पुरस्कार जीत आने का ऐलान कर रहे हों। सड़क पर चलते हुए एक साइकिल के धक्के से उनके हाथ की हड्डी टूट गई थी। मुझसे तो सच बयान किया पर बाकी लोगों में से किसी से कहा, मोटरसाइकिल ने मार दिया, किसी से कहा गाड़ी से टक्कर हो गई, किसी से कहा, बैल से टकरा गए। जब दो मित्र आपस में बात करने लगे तो सफाई मांगी गई कि किससे टक्कर हुई तो बोले-अब एक ही कहानी सबको सुना-सुनाकर बोरियत होती है न, इसलिए कहानी में वेरिएशन लाने के लिए ये तब्दीलियां बयान करना जरूरी था।
मीरा रोड के अस्पताल का डॉक्टर बिल्कुल वैसा ही ऑपरेशन कर अंदर स्टील की प्लेट डालने का इलाज बता रहा था। रात के दस बजे वे मीरा रोड से और हम दोनों पवई से कुर्ला पहुंचे। उन्हीं यूनानी हकीम हाड़बैद्य, जो कुर्ला वाले चाचा के नाम से उस इलाके में मशहूर हैं-से इलाज करवाया। आबिद भाई के हाथ की हड्डी जुड़ गई। उस दिन के वे आज भी एहसानमंद हैं। सन् 2006। मैंने आबिद भाई को फोन किया कि मुझे विपश्यना का पता-ठिकाना दें, मैं इगतपुरी जाना चाहती हूं। उन्होंने कहा, ‘नहीं, विपश्यना अभी तुम्हारे बस का नहीं है- मौन रहना, कागज-कलम भी नहीं ले जाना- तुमसे सधेगा नहीं। अभी पूना जाओ। वहां एक ज्ञानदेव हैं। वर्कशॉप लेते हैं। उनसे मिलकर आओ।’ मैं पूना गई। बेहद अस्त-व्यस्त मानसिकता में। वाकई ज्ञानदेव ने जीने के जो टोटके थमाए, लौटकर मैंने आबिद भाई को फोन किया कि आपने मुझे सही जगह भेजा था। आज आपने अपने हाथ की हड्डी जुड़वाने का कर्ज उतार दिया। वर्ना कौन याद रखता है कि किसकी वजह से वे अपने भीतर स्टील के रॉड, लोहा लक्कड़ डलवाने से बच गए और उंगलियां कम्प्यूटर पर मजे से काम कर रही हैं।
आबिद भाई के परिवार की अगली पीढ़ी भी उनसे इक्कीस ही है। उनका छोटा बेटा अलिफ अपने पिता से भी दो कदम आगे है। हमेशा सुर्खियों में रहता है। अलिफ और अदिति का पहला बेटा पैदा हुआ। उसका बर्थ सर्टिफिकेट लेने के लिए फार्म भरना पड़ा, उसमें रिलीजन के आगे की जगह खाली छोड़ दी। फार्म लौटाया गया कि बच्चे का धर्म लिखकर दीजिए। दोनों ने कहा, ‘यह तो बच्चा बड़ा होकर तय करेगा कि वह मां का हिंदू धर्म लेगा या बाप का मुस्लिम धर्म। हम लोग उसका धर्म तय करने वाले कौन होते हैं।’
जवाब मिला, ‘तब तो बर्थ सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा।’ बात म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन से होती हुई कोर्ट-कचहरी तक पहुंची। कैमरा टीम के साथ अलग-अलग चैनल वालों ने घर को घेर लिया। आखिर एक कमिश्नर ने सुझाव दिया कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध के साथ-साथ एक कॉलम में ‘अदर्स’ होता है। आप अदर्स लिख दें। खाली जगह पर अदर्स लिखा गया। तब जाकर बर्थ सर्टिफिकेट हासिल हुआ। सारा दिन न्यूज चैनल पर यह खबर बार-बार दिखाई जाती रही। मुझे खुशी हुई कि मासूमा भाभी का दादी बनने का सपना पूरा हुआ।
बड़ा बेटा साहिल, जिसके साथ मासूमा भाभी रहती हैं, छोटे अलिफ से बढ़कर है। उसकी बात फिर कभी क्योंकि यह आलेख तो उनके मल्टी डायमेंशन वाले यानी बहुआयामी पिता पर केंद्रित करना है न!
पिछले चार साल से आबिद भाई को नहीं देखा। छठे-छमाही कभी फोन कर लेते हैं या कुछ अच्छी मेल अटैच कर भेज देते हैं। मैं भी महीनों फोन नहीं करती पर जब भी मेरा मन हंसने को करता है, तो मैं आबिद भाई को फोन कर लेती हूं। हंसी का खजाना हैं आबिद भाई, जो आज के जमाने में दुर्लभ होता जा रहा है। आबिद भाई का एक बेहद प्रिय वाक्य है, ‘यू हैव मेड माय डे।’ जो खास तौर पर प्रशंसिकाओं से बोला जाता है। इस आलेख को लिखकर जब समाप्त कर रही हूं तो आबिद भाई का यह पचासो बार दोहराया गया जुमला मेरे कानों में बज रहा है। मुझे पता है, पढ़ने के बाद वे अपनी खुली हंसी में ‘एक लेखक की बीवी’ से यही जुमला दोहराएंगे।