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डाउन टू अर्थ, मार्च 2018
शुगर फ्री चावल के तौर पर पहचाने जाने वाले कोदो को अब लोग भूलने लगे हैं। आईयूसीएन के रेड लिस्ट में शुमार इस अनाज को बचाने और लोकप्रिय बनाने के प्रयास शुरू हो गये हैं।
कोदो कुटकी के भात खाले बीमारी भगा ले
यह जिंदगी हवे सुन्दर छाया है रे हाय
कोदो कुटकी के भात खाले चकोड़ा की भाजी
सब दूर होवे रहे मन में राशि
मधु मोह-मोह सपा होवे न रोगी
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विकासखंड के पोड़ी गाँव में आँगनबाड़ी सेविका रजनी मार्को यह स्वास्थ्य गीत अक्सर सुनाती हैं। दरअसल इस गीत में लघु धान्य अनाज कोदो-कुटकी के औषधीय गुणवों की व्याख्या की गई है। शहरों की चकाचौंध और तमाम तरह के अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के संग हमारी दिनचर्या ऐसी घुलमिल गई है कि हमारे पास पौष्टिक खाद्य पदार्थों के विकल्प सीमित हो चले हैं। ऐसा ही एक अनाज है कोदो, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। कोदो का वानस्पतिक नाम पास्पलम स्कोर्बीकुलातम है और यह भारत के अलावा मुख्य रूप से फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका में उगाया जाता है। दक्कन के पठारी क्षेत्र को छोड़कर भारत के अन्य हिस्सों में इसे बहुत ही छोटे रकबे में उगाया जाता है। इसकी फसल सूखारोधी होती है और ऐसी मिट्टी में भी आसानी से उगाई जा सकती है, जिसमें अन्य कोई फसल उगाना सम्भव नहीं है।
कोदो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में उगाया जाने वाला अनाज है। एक अनुमान के मुताबिक 3,000 साल पहले इसे भारत लाया गया। दक्षिणी भारत में, इसे कोद्रा कहा जाता है और साल में एक बार उगाया जाता है। यह पश्चिमी अफ्रीका के जंगलों में एक बारहमासी फसल के रूप में उगता है और वहाँ इसे अकाल भोजन के रूप में जाना जाता है। अक्सर यह धान के खेतों में घास के समान उग जाता है। दक्षिणी संयुक्त राज्य और हवाई में इसे एक हानिकारक घास के तौर पर जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया में यह उपज जहाँ पक्षियों को खिलाने के काम आती है, वहीं दक्षिण अफ्रीका में इसके बीज लगाकर कोदो की खेती शुरू की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोदो-कुटकी की बहुत माँग है। शुगर फ्री चावल के नाम पर इसे फाइव स्टार होटलों में भी परोसा जा रहा है।
कोदो कुटकी के भात खाले बीमारी भगा ले
यह जिंदगी हवे सुन्दर छाया है रे हाय
कोदो कुटकी के भात खाले चकोड़ा की भाजी
सब दूर होवे रहे मन में राशि
मधु मोह-मोह सपा होवे न रोगी
मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ विकासखंड के पोड़ी गाँव में आँगनबाड़ी सेविका रजनी मार्को यह स्वास्थ्य गीत अक्सर सुनाती हैं। दरअसल इस गीत में लघु धान्य अनाज कोदो-कुटकी के औषधीय गुणवों की व्याख्या की गई है। शहरों की चकाचौंध और तमाम तरह के अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के संग हमारी दिनचर्या ऐसी घुलमिल गई है कि हमारे पास पौष्टिक खाद्य पदार्थों के विकल्प सीमित हो चले हैं। ऐसा ही एक अनाज है कोदो, जिसे अंग्रेजी में कोदो मिलेट या काउ ग्रास के नाम से जाना जाता है। कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में भगर के चावल के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है। कोदो का वानस्पतिक नाम पास्पलम स्कोर्बीकुलातम है और यह भारत के अलावा मुख्य रूप से फिलिपींस, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड और दक्षिण अफ्रीका में उगाया जाता है। दक्कन के पठारी क्षेत्र को छोड़कर भारत के अन्य हिस्सों में इसे बहुत ही छोटे रकबे में उगाया जाता है। इसकी फसल सूखारोधी होती है और ऐसी मिट्टी में भी आसानी से उगाई जा सकती है, जिसमें अन्य कोई फसल उगाना सम्भव नहीं है।
कोदो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में उगाया जाने वाला अनाज है। एक अनुमान के मुताबिक 3,000 साल पहले इसे भारत लाया गया। दक्षिणी भारत में, इसे कोद्रा कहा जाता है और साल में एक बार उगाया जाता है। यह पश्चिमी अफ्रीका के जंगलों में एक बारहमासी फसल के रूप में उगता है और वहाँ इसे अकाल भोजन के रूप में जाना जाता है। अक्सर यह धान के खेतों में घास के समान उग जाता है। दक्षिणी संयुक्त राज्य और हवाई में इसे एक हानिकारक घास के तौर पर जाना जाता है। ऑस्ट्रेलिया में यह उपज जहाँ पक्षियों को खिलाने के काम आती है, वहीं दक्षिण अफ्रीका में इसके बीज लगाकर कोदो की खेती शुरू की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोदो-कुटकी की बहुत माँग है। शुगर फ्री चावल के नाम पर इसे फाइव स्टार होटलों में भी परोसा जा रहा है।