भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत में कृषि कई वर्षों से की जा रही है। कृषि (Agriculture) के क्षेत्र से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 64 प्रतिशत लोग जुड़े हुए हैं। कृषि केवल पारम्परिक किसनों के लिए ही नहीं है बल्कि इस क्षेत्र से आजकल युवा भी अपना करियर बना सकते हैं। इस क्षेत्र में रोजगार के लिए आप नए व आधुनिक तरीके से फसलों की खेती करके कृषि उत्पादों की मार्केटिंग करके भी अपना बेहतर भविष्य बना के अच्छी सैलरी कमा सकते हैं।
क्या है कृषि विज्ञान
बीएचयू के प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह बताते हैं ‘एग्रीकल्चर साइंस, साइंस की ही एक प्रमुख विधा है, जिसमें कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, फार्मिंग की क्वालिटी सुधारने, क्षमता बढ़ाने आदि के बारे में बताया जाता है। इसका सीधा सम्बन्ध बायोलॉजिकल साइंस से है। इसमें बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स के सिद्धान्तों को शामिल करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है।’ राजेन्द्र आगे बताते हैं ‘प्रोडक्शन टेक्निक को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च एवं डेवलपमेंट को इसके सिलेबस में शामिल किया गया है। इसकी कई शाखाएँ जैसे प्लांट साइंस, फूड साइंस, एनिमल साइंस व सॉयल साइंस आदि है, जिनमें स्पेशलाइजेशन कर इस क्षेत्र का जानकार बना जा सकता है।’
कब ले सकेंगे दाखिला
एग्रीकल्चर साइंस में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को बॉटनी, फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथ्स की जानकारी होना बहुत जरूरी है। ऐसे कई अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा व डॉक्टरल कोर्स हैं, जो एग्रीकल्चर साइंस की डिग्री प्रदान करते हैं। इसके बैचलर कोर्स (बीएससी इन एग्रीकल्चर) में दाखिले के लिए साइंस स्ट्रीम में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 पास होना जरूरी है। कोर्स की अवधि चार वर्ष है। दो वर्षीय मास्टर प्रोग्राम के लिए बीएससी अथवा बीटेक की डिग्री आवश्यक है। मास्टर डिग्री (एमएससी/एमटेक) के बाद पीएचडी की राह आसाना हो जाती है। कई ऐसे संस्थान हैं, जो पीजी डिप्लोमान कोर्स कराते हैं।
प्रमुख कोर्स
- बीएससी इन एग्रीकल्चर
- बीएससी इन एग्रीकल्चर (ऑनर्स)
- एमएससी इन एग्रीकल्चर
- एमएससी इन एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग
- इन एग्रीकल्चर (बायोटेक्नोलॉजी)
- एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोकेमिस्ट्री/इकोनॉमिक्स)
- एमटेक इन एग्रीकल्चर वॉटर मैनेजमेंट
- पीएचडी इन एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स
- पीजी डिप्लोमा इन एग्री बिजनेस मैनेजमेंट
- पीजी डिप्लोमा इन एग्री मार्केटिंग मैनेजमेंट
- पीजी डिप्लोमा इन एग्री वॉटर मैनेजमेंट
एग्रीकल्चर साइंस के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की वेतन उनकी योग्यता, संस्थान और कार्य अनुभव पर निर्भर करती है। सरकारी क्षेत्र में कदम रखने वाले ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स को प्रारम्भ में 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। कुछ साल के अनुभव के बाद यह राशि 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह हो जाती है, जबकि प्राइवेट सेक्टर में प्रोफेशनल्स की स्किल्स के हिसाब से वेतन दिया जाता है। यदि आप अपना फर्म या कंसल्टेंसी सर्विस खोलते हैं तो आमदनी की रूपरेखा फर्म के आकार एवं स्वरूप पर निर्भर करती है। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में भी पर्याप्त सेलरी मिलती है।
इन पदों पर मिलता है काम
- एग्रीकल्चर एक्सटेंशन ऑफिसर
- रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर
- फील्ड ऑफिसर
- एग्रीकल्चर क्रेडिट ऑफिसर
- एग्रीकल्चर प्रोबेशनरी ऑफिसर
- प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर
- सीड प्रोडक्शन ऑफिसर
- एग्रीकल्चर असिस्टेंट/टेक्निकल असिस्टेंट
- प्लांट पैथोलॉजिस्ट
प्रवेश प्रक्रिया
प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इसके सभी कोर्सों में दाखिला प्रवेश प्रक्रिया के बाद मिलता है। प्रवेश परीक्षाएँ सम्बन्धित संस्थान, यूनिवर्सिटी अथवा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा कराई जाती है। कुछ चुनिंदा संस्थान आईसीएआर के अंक को आधार बनाकर प्रवेश देते हैं। आईसीआर पोस्टग्रेजुएट के लिए फेलोशिप भी प्रदान करता है।
आवश्यक स्किल्स
प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बताते हैं ‘एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट बनने के लिए छात्रों के पास विज्ञान की अच्छी समझ होनी चाहिए। उसे फसलों, मिट्टी के प्रकार, प्रमुख केमिकल्स के बारे में जानकारी नही चाहिए। साथ ही उसके पास तार्किक दिमाग, धैर्य, शोध का गुण, घंटों काम करने का जज्बा, लिखने-बोलना का कौशल, कम्युनिकेशन स्किल, प्रजेंटेशन क्षमता आदि गुणों का होना जरूरी है। आजकल इस सेक्टर में भी बायोलॉजिकल केमिकल, प्रोसेसिंग कट्रोल करने व डाटा आदि निकालने में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, इसलिए कम्प्यूटर का ज्ञान होना बहुत जरूरी है।’
आकार लेतीं सम्भावनाएँ
शोध - वैश्विक समस्या का रूप ले रहे खाद्यान्न संकट ने इस क्षेत्र को शोध संस्थाओं की प्राथमिकता का केन्द्र बना दिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सहित देश की तमाम कृषि शोध संस्थाएँ कृषि उत्पादकता बढ़ाने वाली तकनीकें और फसलों की ज्यादा उपज देने वाली प्रजातियाँ विकसित करने में जुटी हैं।
प्रोसेसिंग - निजी क्षेत्र की कई कम्पनियाँ कृषि उत्पादों का ज्यादा समय तक उपभोग सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर फूड प्रोसेसिंग शुरू कर चुकी हैं। डिब्बाबंद जूस, आइसक्रीम, दुग्ध उत्पाद और चिप्स जैसे उत्पाद प्रोसेस्ड फूड के उदाहरण हैं।
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