क्षारीय मृदा

Submitted by Hindi on Mon, 08/08/2011 - 18:52
क्षारीय मृदा (Alkaline Earths) प्रारंभ में रसायनज्ञ उन पदार्थों को मृदा कहते थे जो अधातुएँ थीं और जिनपर अत्यधिक ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। इनमें कुछ पदार्थों जैसे चूने के गुण क्षारों के गुणों से बहुत मिलते जुलते थे। इससे उन्होंने उसे क्षारीय मृदा नाम दिया।

क्षारीय मृदा में चूना, स्ट्रॉन्शिया और बाराइटा 1807 ई. तक रासायनिक तत्व समझे जाते थे। डेवी ने पहले पहल प्रमाणित किया कि ये वस्तुत: कैलसियम, स्ट्रॉन्शियम और बेरियम धातुओं के आक्साइड हैं। ये धातुएँ असंयुक्त दशा में नहीं पाई जाती। इनके दो प्रकार के आक्साइड बनते हैं। एक सामान्य आक्साइड, जो उष्माक्षेपण के साथ जल में घुलते हैं और दूसरे पेराक्साइड, जो जल में घुलकर हाइड्राक्साइड [R (OH)2] बनाते हैं और वायु में खुला रखने से कार्बन डाइ आक्साइड का अवशोषण करते हैं। धातुओं के दोनों ही आक्साइड समाक्षारीय होते हैं और अम्लों में शीघ्र घुलकर तदनुकूल लवण बनाते हैं। तत्वों के परमाणुभार की वृद्धि से हाइड्राक्साइडों की विलेयता बढ़ती जाती हैं, पर सल्फेटों की विलेयता घटती जाती है।

ये धातुएँ वायु में खुली रहने से जल्द उपचयित हो जाती है। इनके लवण अच्छे मणिभ बनाते हैं। क्लोराइड और नाइट्रेट जल में शीघ्र घुल जाते हैं, पर कार्बोनेट, फास्फेट और सल्फेट क म घुलते अथवा घुलते ही नहीं। (फूलदेवसहाय वर्मा)

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क्षारीय मृदा


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