कुलभूषण उपमन्यु

Submitted by RuralWater on Thu, 11/05/2015 - 15:02
.उम्र : 66 वर्ष
गाँव : कामला (भटियात), जिला चम्बा, हिमाचल प्रदेश
पर्यावरणविद व समाजसेवी
45 साल से कार्यरत
फोन : 094184-12853

5 फरवरी, 1949 को हिमाचल प्रदेश के छोटे से गाँव कामला में जन्मे कुलभूषण उपमन्यु पर्यावरण संरक्षण व सामाजिक चेतना के लिये 45 वर्षों से जी जान एक किये हुए हैं। कॉलेज की पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरी को ठोकर मारकर कुलभूषण उपमन्यु ने प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम तेज की। यह मुहिम कई सफल मुकाम हासिल करते हुए निरन्तर जारी है।

राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान के अध्यक्ष कुलभूषण उपमन्यु अब पूरे हिमालय के लिये अलग विकास मॉडल और नीति की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसके अलावा ग्राम सभाओं को मजबूत करने व ग्राम आधारित रोजगार के लिये विभिन्न मंचों पर आन्दोलन कर रहे हैं। प्रदेश की पर्यावरण व वन सम्बन्धी नीति में बदलाव में उनका बड़ा योगदान रहा है।

सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के दौरान जय प्रकाश नारायण से प्रभावित होकर इस आन्दोलन में कूदे। इसके बाद 1980 के दशक में उत्तराखण्ड में चिपको आन्दोलन के दौरान प्रख्यात पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा के साथ देश भर में यात्राएँ की व वन संरक्षण नीति को बदलवाने के लिये देश-प्रदेश में आन्दोलन किये। उत्तराखण्ड में यह मॉडल सक्सेसफुल रहा तो हिमाचल में इसकी बागडोर सम्भाली। गाँव-गाँव में घूमकर लोगों को जागरूक किया।

उस दौरान प्रदेश सरकार यहाँ प्राकृतिक जंगलों को काटकर व्यापारिक हित के लिये चीड़ व सफेदा के पौधे लगा रही थी। इसका बड़े पैमाने पर विरोध किया और चम्बा जिला के भटियात क्षेत्र में बड़ा जनान्दोलन छेड़ दिया। लोगों के साथ मिलकर सरकार की चीड़ और सफेदे की नर्सरियाँ नष्ट कर दीं।

कश्मीर से कोहिमा पदयात्रा


1981 में पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा के साथ मिलकर ‘कश्मीर से कोहिमा’ की पदयात्रा के दौरान सारे हिमालयी राज्यों की परेशानियाँ समझीं और लोगों को संगठित किया। लोगों के साथ मिलकर बिना सरकारी मदद के ग्रामीण समितियाँ बनाकर खुद वन भूमि पर पौध रोपण किया और आदर्श मॉडल प्रस्तुत किया। इसके साथ ही लोगों को वन अधिकारों के लिये भी जागरूक किया।

जेल गए पर पीछे नहीं हटे


चिपको आन्दोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। चीड़ और सफेदे के पेड़ न तो वैज्ञानिक रूप से क्षेत्र के लिये सही थे और न कृषि व पशुपालन के लिये। इससे ग्रामीणों को पशुओं के लिये चारे का संकट पैदा हो गया। उपमन्यु ने एक के बाद एक कई जगह आन्दोलन खड़े कर दिये। सरकारी नर्सरियाँ नष्ट करने के लिये उन्हें 1988 में तीन साथियों के साथ जेल में बन्द कर दिया। इससे आन्दोलन और भड़क गया और सरकार डर गई। उन्होंने पशुओं और कृषि के लिये फायदेमन्द चौड़ी पत्ती वाले पौधे लगाने की वकालत की।

कोयले की भट्ठियाँ उखाड़ीं


दो महीने तक जेल में रहने के बाद उन्होंने आन्दोलन को और तेज किया। क्षेत्र में सरकारी और अवैध कोयला भट्ठियों का कड़ा कारोबार चल रहा था। इसके लिये कोयला माफिया से टक्कर ली और लोगों के साथ मिलकर भट्ठियाँ उखाड़ दीं। इसकी विस्तृत रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजी, तो सरकार की टीम ने मौके का जायजा लेकर यह कारोबार करने वालों को जुर्माना किया। इसके बाद ‘हिमालय बचाओ समिति’ का गठन कर पंचायती राज को मजबूत करने की वकालत करते हुए वन नीति बदलवाने के लिये आन्दोलन छेड़ा।

झुक गई सरकार


1998 में सरकार को जॉइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट का सुझाव दिया। और फॉरेस्ट पॉलिसी के रिव्यू के लिये दबाव बनाया। सरकार ने नीति में दो बड़े बदलाव किये। प्रदेश में हरे पेड़ों के कटान पर प्रतिबन्ध लगा दिया और चीड़ व सफेदे का रोपण कृषि योग्य भूमि व प्राकृतिक वनों में करने पर भी रोक लगा दी। इसके ओक के पेड़ का इस्तेमाल कोयला बनाने पर भी रोक लगा दी गई, जो आज तक लागू है।

पेड़ों को बाँधी राखियाँ


पेड़ों की हिमाजत के लिये हिमाचल में पड़ों को राखी बाँधने का अभियान छेड़ा, जो काफी कामयाब रहा। बड़े हाइड्रो प्रोजेक्टों के निर्माण से होने वाले नुकसान के विरोध में जनान्दोलन छेड़ा और लोगों के विस्थापन और उनके वनाधिकार के लिये लड़ाई छेड़ी। यहाँ भी सरकार को मुँह की खानी पड़ी और कई नीतियों में बदलाव करना पड़ा। उपमन्यु 66 साल की उम्र में भी कई सामाजिक, पर्यावरणीय विषयों और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों के लिये लड़ रहे हैं। उन्हें ‘हिमाचल के बहुगुणा’ के नाम से भी जाना जाता है।