गंगा नदी भारतीयों की आस्था, सभ्यता, अध्यात्म और संस्कृति का अभिन्न अंग है। हिंदू धर्म के शास्त्रों और उपनिषदों में गंगा नदी को पवित्र और मोक्षदायिनी तथा गंगा जल को अमृत समान माना गया है। ऐसी मान्यता है कि गंगा नदी के जल में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। इसलिए हिंदुओं के लिए गंगा मात्र नदी नहीं अपितु ‘मां’ है, जो अपनी शरण में आने वाले हर भक्त को मोक्ष प्रदान करती है। गंगा उत्तराखंड के उत्तरकाशी में गोमुख से गंगा सागर तक की लंबी यात्रा तय करती है और अपने इस पूरे सफर में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की धरती को सींचती और ऊर्जा प्रदान करती है। जीवनदायिनी गंगा नदी के तट (हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज) पर भव्य कुंभ मेले का आयोजन भी किया जाता है। प्रयागराज में तो इसी वर्ष अर्द्ध-कुंभ मेले का भव्य आयोजन किया गया था, जबकि हरिद्वार में वर्ष 2021 में कुंभ मेला आयोजित होने वाला है। हर वर्ष होने वाले विभिन्न पर्व-त्योहारों और स्नान पर्वों पर करोड़ों श्रद्धालु गंगा में भी डुबकी लगाकर सुख समृद्धि की कामना करते हैं, लेकिन इतनी अगाध आस्था होने के बाद भी गंगा नदी की स्थिति काफी दयनीय है और मां गंगा मानवीय प्रदूषण के कारण अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संषर्घ कर रही है।
हाल ही में कुंभ मेले का भव्य आयोजन कराने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की बात करें तो कुंभ के दौरान यहां सरकार ने काफी वादे किए थे और गंगा के पानी को स्वच्छ व आचमन योग्य बताया था, लेकिन कुंभ के कुछ समय बाद ही शासन और प्रशासन की पोल खुलती दिख रही है। दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर के अनुसार प्रयागराज में छोटे-बड़े 82 नाले हैं, जिनसे 406 एमएलडी गंदा पानी निकलता है। इनमें से 42 नाले टैप कर दिए गए हैं, जिनका करीब 268 एमएलडी पानी शोधित कर दिया जाता है, लेकिन शेष बचे 40 नालों का 138 एमएलडी गंदा पानी साल में दो ही महीने शोधित हो पाता है। यानी दस महीने 138 एमएलडी गंदा पानी रोजाना गंगा और युमना नदी में बहकर पानी को जहरीला बनाता है। यही नहीं सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या/क्षमता कम होने के कारण चार एसटीपी पर 70 एमएलडी अधिक पानी पहुंच रहा है। हालाकि अभी 20 नालों की टैपिंग के लिए 3 नए एसटीपी का निर्माण होना है, जबकि तीन एसटीपी की क्षमता भी बढ़ाई जानी है।
प्रयागराज का ये हाल तब है, जब नमामि गंगे जैसी बड़ी योजना में कई वादे किए गए थे। प्रधानमंत्री ने तो नमामि गंगे योजना के अंतर्गत किए जा रहे कार्यों के तरीफों के पुल बांध दिए थे। वादों के इस पुल पर योजना चली तो, लेकिन पांच साल बाद न तो वादे पूरे हुए और न पुल। आलम ये हुआ कि योजना की कामयाबी से प्रसन्न होकर योजना के अंतर्गत गंगा की निर्मलता के लिए रखे गए लक्ष्यों को पूरा करने की समय सीमा बढ़ाकर वर्ष 2019 से 2020 कर दी गई। हाल ही में कुंभ के दौरान करोड़ों रुपया खर्च किया गया, लेकिन धरातल पर गंगा की स्थिति सुधरने की जगह और खराब होती दिख रही है। ऐसे में शासन के साथ ही सरकार की कार्यप्रणाली और मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगना लाजमी है, लेकिन अभी भी उम्मीद का सूर्य अस्त नहीं हुआ है और हर किरण से बदलाव की अपेक्षा है। जिससे गंगा नदी फिर से निर्मल होकर अपने पुराने स्वरूप में लौट सके, लेकिन गंगा की स्वच्छता के लिए जनता को भी अपना कर्तव्य समझना होगा।
लेखक - हिमांशु भट्ट
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