क्योटो संधि दुनियाभर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय और कानूनी बाध्यकारी समझौता है। यह 16 फरवरी, 2005 को अस्तित्व में आया। क्योटो संधि की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह औद्योगिक देशों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाने के लिए लक्ष्य तय करता है। ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर हेक्साफ्लोराइड, हाइड्रोफ्लोरोकार्बन और परफ्लोरोकार्बन शामिल हैं। 2008 में भारत समेत 183 देशों ने इस संधि को अपनी मंजूरी दी है।
150 साल की औद्योगिक गतिविधियों के कारण ही वातावरण में ग्रीनहाउस गैंसों के उत्सर्जन का मौजूदा उच्चतम आया है जिसके लिए विकसित देशों की नीतियाँ जिम्मेदार हैं। यह संधि विकसित देशों पर ''समान लेकिन विशिष्ट जिम्मेदारियों'' के आधार पर बड़ी जिम्मेदारी रखती है। संधि के अंतर्गत विकसित देशों को 2012 तक 5.2 के औसत से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 की उत्सर्जन दरों से नीचे लाने की बाध्यता है।
संधि के तहत देशों को प्राथमिकता के तौर पर अपने लक्ष्यों को राष्ट्रीय मानदंडों के जरिये पूरा करना जरूरी है। हालांकि, क्योटो संधि तीन बाजार-आधारित प्रणालियों के तरीके से उनके लक्ष्यों को पूरा करने भी का एक अवसर देती है, वे हैं-
• उत्सर्जन व्यापार- इसे 'कार्बन बाजार' के नाम से जाना जाता है
• स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम)
• संयुक्त कार्यान्वयन (जेआई)
क्योटो संधि के अंतर्गत प्रतिबद्ध देशों ने उत्सर्जन को कम करने या सीमित रखने के लक्ष्यों को स्वीकार किया है। ये लक्ष्य उत्सर्जन की गई गैंसों की मात्रा के आधार पर तय किए गए हैं। स्वीकृत उत्सर्जन को 'एसाइंड एमाउंट यूनिट' (एएयू) में बांटा गया है।
क्योटो संधि उन देशों को जिन्होंने अपनी उत्सर्जन सीमा को पूरा कर लिया है, अन्य देशों को उत्सर्जन इकाइयां बेचने की अनुमति देती है।
इसलिए, उत्सर्जन कटौती या हटाने के रूप में एक नया जिंस यानी कमोडिटी अस्तित्व में आ गया है। कार्बन डाइ ऑक्साइड एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस हैं, इसलिए इसे कार्बन व्यापार का नाम दे दिया गया। अब अन्य जिंसों की भांति कार्बन का भी व्यापार किया जा सकता है और उसकी खोज-खबर रखी जा सकती है।
अन्य इकाइयां जिन्हें इस योजना के तहत स्थानांतरित किया जा सकता है, जो प्रत्येक एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होंगी, वे हैं-
• भू-उपयोग, भू-उपयोग में बदलाव और वानिकी कार्यक्रमों के आधार पर रिमूवल इकाइयां (आरएमयू)
• संयुक्त कार्यान्वयन परियोजना द्वारा एक उत्सर्जन कटौती इकाई (ईआरयू) का सृजन
• एक स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम) परियोजना गतिविधि से एक प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (सीईआर) का सृजन
संधि के अनुच्छेद 12 में परिभाषित स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम) क्योटो संधि के अंतर्गत एक प्रतिबद्ध देश को उत्सर्जन कटौती या उत्सर्जन को सीमित करने के लिए विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती परियोजनाएं लागू करने की अनुमति देती है। ऐसी परियोजनाएं बिक्री योग्य प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (सीईआर) क्रेडिट अर्जित कर सकती हैं। प्रत्येक क्रेडिट एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होगा जिसे क्योटो लक्ष्यों को पूरा करने के क्रम में गिना जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर एक सीडीएम परियोजना की गतिविधि में एक ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना शामिल हो सकती है जिसमें सौर पैनल लगे हों अथवा अधिक ऊर्जा-सक्षम बॉयलर का इंस्टॉलेशन भी शामिल हो सकता है। यह प्रणाली सतत विकास और उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देती है, जबकि यह औद्योगिक देशों को उत्सर्जन कटौती करने या उसे सीमित करने संबंधी लक्ष्य को पूरा करने में ज्यादा लचीलापन मुहैया कराती है।
एक सीडीएम परियोजना से की जाने वाली उत्सर्जन कटौती सामान्यतौर पर होने वाली कटौती के अतिरिक्त होनी चाहिए। ऐसी परियोजना को एक कड़ी जन पंजीकरण और प्रचालन प्रक्रिया के जरिए मंजूरी दी जानी चाहिए। यह स्वीकृति मनोनीत राष्ट्रीय प्राधिकरण द्वारा दी जाती है। सीडीएम परियोजना की गतिविधियों के लिए अनुदान सरकारी विकास कोष से नहीं लिया जाना चाहिए।
यह प्रणाली जो 'संयुक्त कार्यान्वयन' के नाम से जानी जाती है, क्योटो संधि के अनुच्छेद 6 में परिभाषित की गई है जिसमें क्योटो संधि के अंतर्गत उत्सर्जन कटौती करने या उसे सीमित करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए एक देश को किसी दूसरे देश के उत्सर्जन उन्मूलन परियोजना या उत्सर्जन कटौती से ईआरयू कमाने की अनुमति दी गई है, जो एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होता है और जिसे क्योटो लक्ष्य को पूरा करने के क्रम में गिना जा सकता है
150 साल की औद्योगिक गतिविधियों के कारण ही वातावरण में ग्रीनहाउस गैंसों के उत्सर्जन का मौजूदा उच्चतम आया है जिसके लिए विकसित देशों की नीतियाँ जिम्मेदार हैं। यह संधि विकसित देशों पर ''समान लेकिन विशिष्ट जिम्मेदारियों'' के आधार पर बड़ी जिम्मेदारी रखती है। संधि के अंतर्गत विकसित देशों को 2012 तक 5.2 के औसत से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 1990 की उत्सर्जन दरों से नीचे लाने की बाध्यता है।
क्योटो प्रणाली
संधि के तहत देशों को प्राथमिकता के तौर पर अपने लक्ष्यों को राष्ट्रीय मानदंडों के जरिये पूरा करना जरूरी है। हालांकि, क्योटो संधि तीन बाजार-आधारित प्रणालियों के तरीके से उनके लक्ष्यों को पूरा करने भी का एक अवसर देती है, वे हैं-
• उत्सर्जन व्यापार- इसे 'कार्बन बाजार' के नाम से जाना जाता है
• स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम)
• संयुक्त कार्यान्वयन (जेआई)
उत्सर्जन व्यापार- कार्बन व्यापार
क्योटो संधि के अंतर्गत प्रतिबद्ध देशों ने उत्सर्जन को कम करने या सीमित रखने के लक्ष्यों को स्वीकार किया है। ये लक्ष्य उत्सर्जन की गई गैंसों की मात्रा के आधार पर तय किए गए हैं। स्वीकृत उत्सर्जन को 'एसाइंड एमाउंट यूनिट' (एएयू) में बांटा गया है।
क्योटो संधि उन देशों को जिन्होंने अपनी उत्सर्जन सीमा को पूरा कर लिया है, अन्य देशों को उत्सर्जन इकाइयां बेचने की अनुमति देती है।
इसलिए, उत्सर्जन कटौती या हटाने के रूप में एक नया जिंस यानी कमोडिटी अस्तित्व में आ गया है। कार्बन डाइ ऑक्साइड एक महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस हैं, इसलिए इसे कार्बन व्यापार का नाम दे दिया गया। अब अन्य जिंसों की भांति कार्बन का भी व्यापार किया जा सकता है और उसकी खोज-खबर रखी जा सकती है।
कार्बन बाजार में अन्य व्यापार इकाइयां
अन्य इकाइयां जिन्हें इस योजना के तहत स्थानांतरित किया जा सकता है, जो प्रत्येक एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होंगी, वे हैं-
• भू-उपयोग, भू-उपयोग में बदलाव और वानिकी कार्यक्रमों के आधार पर रिमूवल इकाइयां (आरएमयू)
• संयुक्त कार्यान्वयन परियोजना द्वारा एक उत्सर्जन कटौती इकाई (ईआरयू) का सृजन
• एक स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम) परियोजना गतिविधि से एक प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (सीईआर) का सृजन
स्वच्छ विकास प्रणाली
संधि के अनुच्छेद 12 में परिभाषित स्वच्छ विकास प्रणाली (सीडीएम) क्योटो संधि के अंतर्गत एक प्रतिबद्ध देश को उत्सर्जन कटौती या उत्सर्जन को सीमित करने के लिए विकासशील देशों में उत्सर्जन कटौती परियोजनाएं लागू करने की अनुमति देती है। ऐसी परियोजनाएं बिक्री योग्य प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (सीईआर) क्रेडिट अर्जित कर सकती हैं। प्रत्येक क्रेडिट एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होगा जिसे क्योटो लक्ष्यों को पूरा करने के क्रम में गिना जा सकता है।
उदाहरण के तौर पर एक सीडीएम परियोजना की गतिविधि में एक ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना शामिल हो सकती है जिसमें सौर पैनल लगे हों अथवा अधिक ऊर्जा-सक्षम बॉयलर का इंस्टॉलेशन भी शामिल हो सकता है। यह प्रणाली सतत विकास और उत्सर्जन में कटौती को बढ़ावा देती है, जबकि यह औद्योगिक देशों को उत्सर्जन कटौती करने या उसे सीमित करने संबंधी लक्ष्य को पूरा करने में ज्यादा लचीलापन मुहैया कराती है।
एक सीडीएम परियोजना से की जाने वाली उत्सर्जन कटौती सामान्यतौर पर होने वाली कटौती के अतिरिक्त होनी चाहिए। ऐसी परियोजना को एक कड़ी जन पंजीकरण और प्रचालन प्रक्रिया के जरिए मंजूरी दी जानी चाहिए। यह स्वीकृति मनोनीत राष्ट्रीय प्राधिकरण द्वारा दी जाती है। सीडीएम परियोजना की गतिविधियों के लिए अनुदान सरकारी विकास कोष से नहीं लिया जाना चाहिए।
संयुक्त कार्यान्वयन
यह प्रणाली जो 'संयुक्त कार्यान्वयन' के नाम से जानी जाती है, क्योटो संधि के अनुच्छेद 6 में परिभाषित की गई है जिसमें क्योटो संधि के अंतर्गत उत्सर्जन कटौती करने या उसे सीमित करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए एक देश को किसी दूसरे देश के उत्सर्जन उन्मूलन परियोजना या उत्सर्जन कटौती से ईआरयू कमाने की अनुमति दी गई है, जो एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर होता है और जिसे क्योटो लक्ष्य को पूरा करने के क्रम में गिना जा सकता है
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