खानदेश

Submitted by Hindi on Wed, 08/10/2011 - 13:35
खानदेश महाराष्ट्र में दक्षिणी पठार के उत्तरीपश्चिमी कोने पर स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक क्षेत्र, जो बंबई से लगभग 200 मील उत्तरपश्चिम है। 18 वीं शताब्दी में यह भाग मराठा शासन में था तथा यहाँ अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएँ हुई थीं। उसके पूर्व यह अहमद नगर के सुल्तानों के अधिकार में था। 1601 ई. में अकबर ने इसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। पूरे क्षेत्र का क्षेत्रफल 9,918 वर्गमील है। 1906 ई. में इस क्षेत्र को दो जिलों में विभाजित कर दिया गया (1) पश्चिमी खानदेश और (2) पूर्वी खानदेश।

पश्चिमी खानदेश-


इसका क्षेत्रफल 5,320 वर्गमील है। इसके उत्तरपूर्व में सतपुड़ा पर्वत, उत्तरपश्चिम में नर्मदा नदी तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट का उत्तरी किनारा है। इसमें ताप्ती और पनझरा नदियाँ बहती हैं। पश्चिमी भाग में जंगल हैं, जिनमें कीमती लकड़ियाँ मिलती हैं। इस जिले की मुख्य उपज ज्वार, बाजरा, कपास, गेहूँ और तिलहन हैं। इस जिले का केंद्रीय नगर धुलिया है, जो व्यापार और शिक्षा का केंद्र है। इसके अतिरिक्त शिरपुर, शाहदर और नंदउर्बर आदि प्रसिद्ध स्थान हैं। इन सभी नगरों में कपास से बिनौला निकालने के कारखाने हैं। यहाँ के निवासियों में अधिक संख्या हिंदुओं की है, फिर आदिवासी और तब मुसलमान हैं।

पूर्वी खानदेश-


महाराष्ट्र के उत्तरपूर्व में दक्षिणी पठार पर स्थित है, जिसका क्षेत्रफल 4,598 वर्गमील है। इसका केंद्रीय नगर जलगाँव है। इसके उत्तर में सतपुड़ा पर्वत और दक्षिण में अजंता की पहाड़ियाँ है। इसमें ताप्ती और गिरना नदियाँ बहती है। चालीस गाँव के उत्तर-उत्तर-पश्चिम में आठ मील की दूरी पर जमदा सिंचाई प्रणाली प्रारंभ होती है। यहाँ पर कपास, मक्का, ज्वार, गेहूँ और आम उत्पन्न होते है। सतपुड़ा पर्वत की ढालों पर पर्वतीय वन में इमारती लकड़ियाँ मिलती है जिन्हें फैजपुर और यावल के बाजारों में बेचा जाता है। यहाँ पर कपास से बिनोला निकालने के कारखाने है। कुटीर उद्योग में वस्त्र बनाए जाते हैं। अमलनेर, चालीसगाँव, जलगाँव और भुसावल में कपास का व्यापार होता है। यहाँ भी अधिक संख्या हिंदुओं की फिर मुसलमानों की तथा आदिवासियों की है। (कष्णमोहन गुप्त)

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खानदेश


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संदर्भ
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