खजूर पामी

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 08:57
खजूर पामी (Palmae) कुल के अंतर्गत फीनिक्स (Phoenix) जाति की कई उपजातियों को प्राय: खजूर नाम दिया जाता है। इनमें फीनिक्स डैक्टिलिफेरा (P.dactylifera) और फीनिक्स सिल्वेस्ट्रिस (Sylvestris) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पहला उत्तरी, अफ्रीका तथा दक्षिणी-पश्चिमी एशिया का देशज है और सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान तथा कई अरब देशों में इसकी खेती की जाती है। इस विदेशी जाति के ताजे पके फल को खजूर, पिंडखजूर तमर या खुर्मा और पके, सूखे फल को छुहारा, खारिक अथवा डेट (Date) कहते हैं। दूसरी जाति का भारतीय खजूर भारत में अनेक जगह स्वयंजात या लगाया हुआ, मिलता है। इसके फल भी पकने पर खाए जाते हैं, परंतु ताड़ी की तरह इससे निकलनेवाले खजूरी रस और उससे तैयार किए हुए मद्य तथा गुड़ का प्रचुर उपयोग होता है।

भारतीय खजूर के वृक्ष 30-40 फुट ऊँचे होते हैं। इनका तना गिरी हुई पुरानी पत्तियों के कड़े पत्राधारों से ढका रहता है। पत्तियाँ 12-15 फुट तक लंबी, पक्षाकार और पत्रक 6-18 इंच तक लंबे तथा 1 इंच तक चौड़े, गुच्छबद्ध तथा नीचेवाले काँटों में परिवर्तित होते हैं। पुष्प छोटे, एकलिंगी, अलग अलग सशाख मंजरियों में निकले हुए रहते हैं, जो आधार पर कड़े पत्रकोशों (Spathes) से ढकी रहती हैं। नर मंजरियाँ सघन, श्वेत और सुगंधित तथा नारी मंजरियाँ एवं उनमें लगनेवाले फल नारंगपीत वर्ण के होते हैं। फल लगभग एक इंच बड़े, मधुर, परंतु अत्यल्प मज्जावाले होते हैं।

खजूर के फल का रस मधुर, गुरु , शीतल तथा क्षत, क्षतक्षय तथा रक्तपित्त को दूर करनेवाला होता है। छुहारा (सूखाफल) पौष्टिक, बाजीकर, उष्णताजनक और वातनाड़ी के लिये बलदायक होता है। खजूरी शीतल, मूत्रजनक और पौष्टिक होती हैं। सड़ाने से इसमें मद्य बनता और अमलत्व उत्पन्न होता है। इससे खींचा हुआ मद्य दीपक, पाचक और उत्तेजक होता है। इसके रस से तैयार गुड़ गन्ने के गुड़ से अधिक पौष्टिक और सारक होता है। पत्तियों का उपयोग चटाई तथा टोकरियाँ बनाने में होता है। (ब. सिं.)

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