खरबूजा कर्कटीकुल

Submitted by Hindi on Tue, 08/09/2011 - 09:29
खरबूजा कर्कटीकुल (Cucurbitaceae) की कुकुमिस मेलो लिन (Cucumis melo Linn) नामक लता का फल जिसकी खेती उष्णतर प्रदेशों में होती है। भारत में सर्वत्र, विशेषत: उत्तरी पश्चिमी भारत के उष्ण और शुष्क भागों में, प्राय: नदी तटों की बलुई जमीन में यह बोया जाता है। इसीलिए पहले अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती हैं। फल पकने के समय सिंचाई बंद कर दी जाती है।

यह लता एक वर्षायु आरोही या विसर्पी, अविभक्त सूत्रों से युक्त और रोमश एवं खरस्पर्श होती है। पत्तियाँ प्राय: वृत्ताकार लटवाकार और किनारों पर किंचित्‌ खंडित और दंतुर होती हैं। पुष्प एकलिंगी, पीले, एकाकी (नारीपुष्प) अथवा गुच्छबद्ध (नरपुष्प) होते हैं। इनके दलपत्र बहुत नीचे तक, परस्पर पृथक्‌ पुंकेसर संख्या में तीन और परागाशय दुहरे और शिखरदार होते हैं। फल प्राय: गोलाकार और धारीदार होते हैं।

खरबूजे की लताएँ जंगली अथवा कृषिगत, दोनों प्रकार की होती हैं। कृषिजात खरबूजे की अनेक उपजातियाँ होती हैं, जो भिन्न प्रांतों में और भिन्न-भिन्न नामों से प्रचलित हैं। इन उपजातियों को परस्पर पृथक्‌ करनेवाले लक्षण फलों के परिमाण एवं आकार, छिलके की मोटाई, रंग और पृष्ठचिन्ह और मज्जा के स्वाद, गंध और वर्ण से संबंधित होते हैं। फल प्राय: गोलाकार ही होते हैं, परंतु उनका छिलका नरम या कड़ा, हरा, पीला, मलाई अथवा संतरे के रंग का हो सकता है। उसका पृष्ठ चिकना, समतल, जाल सदृश निशानों अथवा शल्य सदृश उभारों से युक्त रहता है। गूदे का रंग श्वेत, हरा, पीला या संतरे के रंग का हो सकता है। उपर्युक्त लक्षणों के भिन्न-भिन्न मेल होते हैं, जो अलग अलग उपजातियों में पाए जाते हैं।

खरबूजा पौष्टिक और तरी पहुँचानेवाला फलाहार है। इसका गदा सारक और मूत्रजनक होता है। बीज मूत्रजनक, लेखन और अवरोध निवारक होने के कारण यकृत, वस्ति और वृक्क के शोथों में उपयोगी होते हैं। फलत्वक्‌ का लेप भी चर्म तथा चर्मरोगों के लिए उपयोगी माना गया है। (ब. सिं.)

Hindi Title

खरबूजा कर्कटीकुल


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -