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चरखा फीचर्स, जनवरी 2012
(19-22 जनवरी, 2012 के दौरान गुजरात में आयोजित द्वितीय ग्लोबल बर्ड वॉचर्स कांफ्रेंस पर आधारित लेख)
ठंड का मौसम पक्षी निहारकों के लिए सर्वाधिक रोमांचकारी होता है। इसी मौसम में विदेशों से आए प्रवासी पक्षी नदियों, झीलों और नमभूमियों (आर्द्रभूमि), (वेटलैंड) के आस-पास डेरा डाले होते हैं। जिसे करीब से देखना किसी भी पक्षी प्रेमी के लिए अद्भुत क्षण होता है। ऐसे अवसरों का सहारा लेकर अनेक राज्यों में इको-पर्यटन पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इसी को बढ़ावा देने के मकसद से गुजरात सरकार तथा फिक्की के संयुक्त प्रयास से 19-22 जनवरी तक गांधीनगर में द्वितीय ग्लोबल बर्ड वॉचर्स कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें भारत के करीब 400 पक्षी प्रेमियों के अलावा 38 विभिन्न देशों से आए लगभग 100 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम में जहां विशेष रूप से इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने की बात कही गई। वहीं इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया गया कि भौगोलिक सीमाओं से परे पक्षियों और मानव के मध्य एक अटूट संबंध है जिसे समझने की आवश्यकता है। अनेक पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्राएं कर एक देश से दूसरे देश की यात्राएं करते हैं।
गुजरात में इस प्रकार के कांफ्रेंस का आयोजन उसके भौगोलिक दृष्टि से काफी मायने रखता है। गुजरात राज्य मे अनेक नमभूमि क्षेत्र हैं जिनके कारण वहां भारी संख्या में प्रवासी पक्षी डेरा डालते हैं। नमभूमि का अर्थ है नमी या दलदली क्षेत्र। वह क्षेत्र जिसका सारा या थोड़ा भाग वर्ष भर जल से भरा रहता है नमभूमि कहलाता है। इस प्रकार नमभूमि जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। दलदल बहुत सारे विलुप्त प्रायः जीव का ठिकाना है। हमारे देश की पारिस्थितिकी सुरक्षा में इन दलदलों की अहम भूमिका है। खाद्यान्नों की कमी और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के बीच हमें दलदलों को बचाने की जरूरत है ताकि वे अपनी पारिस्थितिकी भूमिका निभा सकें। नमभूमि की मिट्टी झील, नदी, विशाल तालाब के किनारे का हिस्सा होता है जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ भी हैं। नमभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाता है।
नमभूमि धरती की भू-सतह के लगभग 6 प्रतिशत भाग पर फैली हुई है। नमभूमि में झीलें, नाले, सोता, तालाब और प्रवाल क्षेत्र शामिल होते हैं। भारत में नमभूमि ठंडे और शुष्क इलाकों से होकर मध्य भारत के कटिबंधी मानसूनी इलाकों और दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक में फैली हुई हैं। नमभूमियां प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ नियंत्रण में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती हैं। जहां यह तलछट का काम करती है जिससे बाढ़ जैसी विपदा में कमी आती है। नमभूमि शुष्क मौसम के दौरान पानी को सहजे रखती है वहीं बाढ़ के दौरान यह पानी का स्तर कम बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अलावा ऐसे समय में नमभूमि पानी में मौजूद तलछट और पोषक तत्वों को अपने में समा लेती हैं और सीधे नदी में जाने से रोकती हैं। इस प्रकार झील, तालाब या नदी के पानी की गुणवत्ता बनी रहती है। नमभूमियां जैवविविधता को सुरक्षित बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है साथ हीं यह शीतकालीन पक्षियों और विभिन्न जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल होती हैं। विभिन्न प्रकार की मछलियां और जंतुओं के प्रजनन के लिए भी यह भूमि उपयुक्त होती है। विशेष बात यह है कि नमभूमि में समुद्री तूफान और आंधी के प्रभाव को सहन करने की क्षमता होती है। समुद्री तटरेखा को स्थिर बनाए रखने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। जो समुद्र की धारा से होने वाले कटाव से तटबंध की रक्षा करती हैं। नमभूमियां अपने आस-पास बसी मानव बस्तियों के लिए जलावन, फल, वनस्पतियां, पौष्टिक चारा और जड़ी-बूटियों का स्रोत होती हैं। कमल जो कि दुनिया के कुछ विशेष सुंदर फूल होने के साथ ही भारत का राष्ट्रीय फूल है इसी नमभूमियों में ही उगता है। वास्तव में नमभूमियां पानी के संरक्षण का एक प्रमुख स्रोत है। इन नम भूमियों पर विशेष मौसम में कई पक्षी आते हैं। पक्षियों का कलरव और रंग रूप, हमेशा से पक्षी निहारकों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं। जैव विविधता के मामले में भी इसके विशेष योगदान से इंकार नहीं किया जा सकता है। गुजरात स्थित नलसरोवर, थोल, वेलावदार, तारापुर एवं भरतपुर स्थित केऊलादेव पक्षी विहार कई प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा स्थल है।
भारत में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहां नमभूमियों की बर्बादी के साथ ही जंगली जानवरों या पौधों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल के दलदली क्षेत्र में ‘दलदली हिरण’ पाया जाता है। यह हिरण भी कम हो रहा है। इस प्रजाति के हिरणों की संख्या लगभग एक हजार बची है। इसी प्रकार तराई वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली फिशिंग कैट यानी मच्छीमार बिल्ली पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इसके साथ ही गुजरात के कच्छ क्षेत्र में जंगली गधा भी खतरे में है। असम के काजीरंगा और मानव दलदलीय क्षेत्रों से जुड़ा एक सींग वाला भारतीय गैंडा भी विलुप्तप्राय प्राणियों की श्रेणी में शामिल है। इसी प्रकार अनेक ऐसे जीव जो नमभूमियों से जुड़े हैं संकट में है जैसे ओटर, गैंजेटिक डॉल्फिन, डूरोंग, एशियाई जलीय भैंस आदि। नमभूमियां प्रवासी पक्षियों की पनाहस्थली के रूप में विख्यात है। ऐसे क्षेत्र पट्ट शीर्ष राजहंस, पनकौआ, बायर्स वॉचार्ड, ओस्प्रे, इंडियन स्किम्मर, श्याम गर्दनी बगुला, संगमरमरी टील, बंगाली फ्लोरीकान पक्षियों का मनपसंद स्थल होते हैं। रेंगने वाले जीव जैसे समुद्री कछुआ, घड़ियाल, मगरमच्छ, जैतूनी रिडली और जलीय मॉनीटर पर भी नमभूमियों के प्रदूषित होने के कारण संकट मंडरा रहा है। जीवों के अतिरिक्त कुछ वनस्पतियां भी नमभूमि के संकट से प्रभावित हो रही हैं। कई सारे वनस्पति, सरीसृप, पक्षियों और जनजाति आदि की निवास स्थली यह नम भूमियां बढ़ते प्रदूषण, बिगड़ती जलवायु, विकास के दुष्परिणामों आदि के कारण अपना स्वरूप खोती जा रही हैं ।
भारत में नमभूमि के संरक्षण के लिए पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 1987 से एक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत अभी तक 15 राज्यों में 27 नमभूमि क्षेत्र चिन्ह्ति किए गए हैं। इनके अंतर्गत पंजाब में कंजली और हिरके, उड़ीसा में चिल्का, मणिपुर में लॉकटक, चंडीगढ़ में सुखना और हिमाचल में रेणुका क्षेत्र हैं। इन जगहों में संरक्षण और उनके बारे में जागरुकता लाने का प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, सुन्दरवन, मनास और काजीरंगा को ‘अंतर्राष्ट्रीय विरासत’ का दर्जा दिया गया है। इन क्षेत्रों में देश-विदेश के मेहमान पक्षी आते हैं। जिन्हें बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। नमभूमियां पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाखों व्यक्तियों का जीवन आश्रित होने के साथ ही यह सामाजिक व सांस्कृति महत्व का प्रतीक भी है। साथ ही यह जल संरक्षण में अहम भूमिका निभाती हैं और प्रवासी पक्षियों का बसेरा बन कर पक्षी प्रेमियों के आनंद का कारण बनती हैं। इसलिए नमभूमियों के संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति को अपना योगदान देकर इन अनोखे पारिस्थतिकी तंत्र को बचाए रखना होगा। भारत में प्रवासी पक्षियों का मेहमान की तरह स्वागत करने की संस्कृति रही है। जिसे हमें निरंतर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि प्रकृति के सुंदर पक्षियों के माध्यम से पूरे विश्व के नागरिकों के मध्य भी प्रेम भावना का प्रसार हो सके।
लेखक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन स्वायत्त संगठन ‘विज्ञान प्रसार‘ में प्रॉजेक्ट अधिकारी (एडूसेट) के पद पर कार्यरत हैं तथा वर्ष 2010 में इन्हें ”ग्लोबल वार्मिंग का समाधान गांधीगीरी“ पुस्तक के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रथम मेदिनी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।Email:-ngupta@vigyanprasar.gov.in