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इंडिया साइंस वायर, 19 मई, 2018
अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक इस समस्या से निजात पाने के लिये अपशिष्ट जल का उपचार करने वाले संयंत्रों की नियमित निगरानी जरूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण में इन अपशिष्टों को निस्तारित करने से पहले नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाए। इसके साथ-साथ लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है, ताकि अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई में करने से रोका जा सके। नई दिल्ली: पानी की कमी के चलते अपशिष्ट जल का उपयोग दुनिया भर में सिंचाई के लिये होता है। लेकिन ऐसा करना मिट्टी और भूमिगत जल की सेहत के लिये ठीक नहीं है। कानपुर में चमड़े का शोधन करने वाली इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल से सिंचित कृषि क्षेत्रों की मिट्टी एवं भूजल के नमूनों का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल से लंबे समय तक सिंचाई करने से हानिकारक धात्विक तत्व मिट्टी और भूमिगत जल में जमा हो जाते हैं। भोपाल स्थित मृदा विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं के अनुसार लंबे समय तक चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई के लिये करने से कानपुर के कई इलाकों की मिट्टी में हानिकारक धातुओं की मात्रा बढ़ गई है, जिसमें क्रोमियम की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है।
अध्ययन के दौरान चमड़े का शोधन करने वाली औद्योगिक इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल, भूमिगत जल और मिट्टी के नमूने उन कृषि क्षेत्रों से एकत्रित किए गए थे, जहाँ इस प्रदूषित पानी से सिंचाई की जाती है। अपशिष्ट जल से सिंचित क्षेत्र के नमूनों की तुलना अन्य इलाकों की मिट्टी और भूमिगत जल के नमूनों से की गई। भूमिगत जल के कुछ नमूनों में क्रोमियम की मात्रा संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों से काफी अधिक पाई गई है। यह अध्ययन ‘बुलेटिन ऑफ एन्वायरनमेंटल कन्टैमिनेशन ऐंड टॉक्सिलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं की टीम में शामिल एम.एल. दोतानिया के अनुसार चर्म-शोधन इकाइयां पर्यावरण में क्रोमियम के प्रवाह का प्रमुख स्रोत हैं और चर्म-शोधन उद्योग में उपयोग होने वाले कुल क्रोमियम का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा पर्यावरण में हानिकारक तत्व के रूप में सीधे निस्तारित कर दिया जाता है।
शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए भू-संचय सूचकांक से पता चलता है कि मिट्टी के कुछ नमूनों में कॉपर, निकिल, जिंक, कैडमियम और लेड जैसी धातुओं का स्तर सामान्य से अधिक था। चर्म-शोधन इकाइयों से निकाले अपशिष्ट जल के नमूनों में कैडमियम का मामूली स्तर पाया गया है, जबकि क्रोमियम की मात्रा सबसे अधिक थी। अपशिष्ट जल का उपचार करके निस्तारित करना काफी खर्चीली प्रक्रिया है। शोधकर्ताओं के अनुसार घरेलू अथवा छोटी औद्योगिक इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल को बिना उपचारित किए सीधे छोड़ दिया जाता है, जिससे मिट्टी एवं जल प्रदूषित होता है।
कानपुर को ‘लेदर सिटी’ के नाम से भी जाना जाता है। भारत के कई बड़े चर्म-शोधन कारखाने यहीं पर स्थित हैं। यहाँ चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई के लिये करने से मिट्टी में कुल क्रोमियम का स्तर सामान्य कृषि क्षेत्रों की मिट्टी की अपेक्षा 28-30 गुना अधिक पाया गया है। कानपुर और इसके आस-पास के इलाकों में लंबे समय से मिट्टी और भूमिगत जल प्रदूषित होने के कारण यहाँ फसलों की उपज में कमी आई है और कुल फसल क्षेत्र भी घटा है।
चमड़े का शोधन करने वाली इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल में घुलनशील रासायनिक ऑक्सीजन, जैव रासायनिक ऑक्सीजन, कार्बोनेट, क्लोराइड, कैल्शियम और क्रोमियम की मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के तय मापदंड से अधिक पाई गई है। इसलिये चर्म-शोधन कारखानों से निकले अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई के लिये करना ठीक नहीं है क्योंकि इसका सीधा असर पर्यावरण और मानवीय स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
मिट्टी में लवण और धातुओं की सांद्रता बढ़ने से उसकी गुणवत्ता कम हो सकती है और इसका सीधा असर खाद्य श्रृंखला पर भी पड़ सकता है। अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक “इस समस्या से निजात पाने के लिये अपशिष्ट जल का उपचार करने वाले संयंत्रों की नियमित निगरानी जरूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण में इन अपशिष्टों को निस्तारित करने से पहले नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाए। इसके साथ-साथ लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है, ताकि अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई में करने से रोका जा सके।” (इंडिया साइंस वायर)
Using tannery waste in fields adding toxics to soil: study
By Umashankar Mishra
Twitter handle: @ usm_1984
New Delhi, May 22, 2017 (India Science Wire): Use of waste water for irrigation in agricultural lands is a common practice across the globe. But a study by Indian researchers has found that it can also affect the quality of soil and ground water and consequently human health.
The researchers studied soil and ground water samples from farms irrigated by tannery effluents in and around Kanpur city in Uttar Pradesh and found that they were contaminated with heavy metals such as chromium, nickel, cadmium, lead and zinc. They found that many small scale units released their effluent directly into water bodies without any pre-treatment.
The researchers have prepared a geo-accumulation index for soil in the area. They found that soil samples were ‘heavily’ to ‘extremely’ polluted with chromium, ‘moderately’ polluted with cadmium and ‘unpolluted’ to ‘moderately’ polluted with copper, nickel, zinc, lead and arsenic.
In a paper published in scientific journal, Bulletin of Environmental Contamination and Toxicology, researchers have noted that the amount of chromium in many ground water samples was found to be much higher than the standards set by United States Environment Protection Agency.
The study was conducted by scientists from the Bhopal based-Indian Institute of Soil Science under the Indian Council of Agricultural Research (ICAR).
A member of research team, M.L. Dotaniya told India Science Wire that about 40 percent of the total chromium used in the tannery industry was found to be released into the environment.
Kanpur is called ‘leather city’ as some of the largest tanneries in India are situated there. The study revealed that the use of tannery effluent irrigation for crop production has led to built up of chromium in the soil. This is 28 to 30 times higher than chromium found in soils irrigated with groundwater. In addition, tannery effluents were found to have more chemical and biochemical oxygen demands (COD and BOD) and higher carbonate, chloride and calcium levels than the permissible limits prescribed by Bureau of Indian Standards (BIS).
The researchers have recommended that “the government should take initiatives to strictly monitor the effluent treatment plants regularly and enforce regulations before release of tannery effluent into the environment. They said that it is also necessary to spread awareness among the people on the impact of tannery effluents on soil-plant-human systems through government and non-government organizations in the tannery effluent irrigated areas.” The research team included V.D. Meena, S. Rajendran, J.K. Saha, S. Kundu, A.K. Patra and M. Vassanda Coumar. (India Science Wire)
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