कहा जाता है ब्रह्मा जी ने क घड़ा अमृत यहां रखा था। उस घड़े की टोंटी से अमृत रिस-रिस कर बाहर निकल गया और पांच कोस की भूमि भीग गई। इसी क्षेत्र का नाम कुम्भकोणम पड़ा। किंवदंती है- प्रलय काल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की उत्पादन मूल प्रकृति को एक घड़े में रखकर यहीं स्थापित किया तथा सृष्टि के आरंम्भ में यहां से उस घट को लेकर सृष्टि की रचना की। कुछ लोगों के मत के अनुसार ब्रह्माजी के यज्ञ में शंकर भगवान यहीं अमृत कुंड लेकर प्रकट हुए। यहां हर बारहवें वर्ष में कुम्भ का मेला लगता है। और इसी के महामघम सरोवर में स्नान कर तीर्थ यात्री पुण्य प्राप्त करते हैं। कहा जाता है कुम्भ-पर्व पर इस सरोवर के नीचे से स्वतः जलधारा निकलती है और गंगाजी का प्रादुर्भाव होता है तथा गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, महानदी पयोष्णी नामक नव गंगाएं यहां स्नान करने आती हैं। यहां आकर हर बारहवें वर्ष में पापियों द्वारा उनमें बहाये पापों को धोती हैं तथा शिव, विष्णु, आदि देवता भी उस समय पधार कर स्नान करते हैं।
पास ही नागेश्वर मंदिर है जहां शिवजी की अराधना की जाती है। यहां अन्य कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।
कुम्भेश्वर मंदिर में घड़े के आकार की मूर्ति है। यह भी शिवजी की ही मूर्ति है। पास ही वेद नारायण का मंदिर है जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। कावेरी नदी यहां से दो ढाई कि.मी. दूर बहती है। वहां पर भी कई मंदिर स्थापित हैं। उस क्षेत्र में कावेरी को हरिहर नदी के नाम से जाना जाता है।
पास ही नागेश्वर मंदिर है जहां शिवजी की अराधना की जाती है। यहां अन्य कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।
कुम्भेश्वर मंदिर में घड़े के आकार की मूर्ति है। यह भी शिवजी की ही मूर्ति है। पास ही वेद नारायण का मंदिर है जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। कावेरी नदी यहां से दो ढाई कि.मी. दूर बहती है। वहां पर भी कई मंदिर स्थापित हैं। उस क्षेत्र में कावेरी को हरिहर नदी के नाम से जाना जाता है।
Hindi Title
कुम्भकोणम झील
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
1 -
2 -
2 -