लीची

Submitted by Hindi on Wed, 08/24/2011 - 09:57
लीची नामक फल की जन्मभूमि चीन है। संसार में सबसे अधिक लीची पैदा करनेवाला देश चीन है। लगभग 18वीं शताब्दी में यह भारत में आई। लीची के उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है। भारत में बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में इसका उत्पादन होता है।

मुख्य किस्में- भारतीय लीची की मुख्य किस्में कलकतिया, लेट, वेदाना, अर्ली, सीडलेस, लेटलार्जरेड तथा रोज़ सेंटैड हैं।

लीची के लिए तर और थोड़ी गर्म जलवायु की आवश्यकता है। पाला पड़नेवाले और लू वाले प्रदेशों में लीची अच्छी नहीं होती, क्योंकि लू से फल चटककर खराब हो जाता है और पाले से प्राय: छोटे पेड़ों को हानि पहुँचती हैं।लीची के लिए गहरी उपजाऊ दुमट भूमि, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, उपयुक्त होती है। जिस भूमि में चूना नहीं हो, उसमें थोड़ा चूना मिलाना लीची के लिए लाभप्रद होता है।

लीची के पेड़ गूटी बाँधकर तैयार किए जाते हैं। लगभग स्वस्थ शाखाएँ चुनकर, उनको फुनगी से लेकर 2 फुट नीचे चारों ओर लेकर 2 इंच लंबाई में छिलका छील लेते हैं। छिले स्थान के चारों ओर चिकनी मिट्टी और गोबर का मिश्रण बाँध देते हैं। ऊपर से टाट के टुकड़े से उसे लपेट देते हैं। मिट्टी सदा नम रखते हैं। यह कार्य जुलाई-अगस्त में करते हैं। लगभग तीन चार माह में बाँधी गई मिट्टी में से जड़ें फूट आती हैं। अब जड़वाली शाखा को काटकर क्यारी, या गमले में लगा देते हैं।

लीची के पेड़ लगाने के लिए 30 से 40 फुट के फासले 3 अर्धव्यास के और 3 गहरे गोलाकार गड्ढे गर्मियों में खोद लेने चाहिए। वर्षा प्रारंभ होने पर प्रत्येक गड्ढे में सड़े गोबर की लगभग 30 सेर खाद और दो सेर हड्डी की खाद मिलाकर भर देना चाहिए। गड्ढों के बीचोबीच पेड़ लगा देना चाहिए। प्रारंभ के दो वर्ष तक पेड़ों को लू एवं पाले से बचाना पड़ता है। सिंचाई सदा आवश्यकतानुसार करते रहना चाहिए। लीची की जड़े उथली रहती हैं, इसलिए बाग की कभी गहरी गुड़ाई, या जुताई न करनी चाहिए। बाग में द्विबीजपत्री फसलें लगाना लाभप्रद होता है। प्रति वर्ष प्रति पेड़ लगभग 1 मन गोबर की खाद, 2 सेर हड्डी की खाद और 4 सेर लकड़ी की राख देना चाहिए।

लीची के फल नई टहनियों में आते हैं। पुरानी टहनियाँ फलों के साथ ही टूट जाती हैं, क्योंकि लीची सदा मय टहनी के तोड़ी जाती है। इसके अलावा लीची में कोई कटाई की आवश्यकता नहीं होती।

लीची लगभग 5 से 6 साल में फलना प्रारंभ करती है तथा 20 से 25 साल तक इसकी फसल बढ़ती जाती है। स्वस्थ पेड़ 100 साल तक जीवित रहता है और एक पेड़ में लगभग 3 से लेकर 5 मन तक फल लगता है।

लीची में कोई खास कीड़ा, या बीमारी नहीं लगती। सफेद छोटा कीड़ा, जिसे माइट कहते हैं, कभी कभी हानि पहुँचाता है। इसके लिए 0.5 प्रतिशत डी.डी.टी. का छिड़काव कर देना चाहिए।

भारत में चमगादड़ और चिड़ियाँ फलों को बहुत हानि पहुँचाते हैं। पटाखे आदि छोड़कर उनसे फलों को बचाना चाहिए। यदि 2-4 पेड़ हों, तो उन्हें अलग अलग बड़े जाल से ढँक कर उनकी रक्षा कर सकते हैं। (श्री राम शुक्ल)

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