Land and sea breeze in hindi ( समीर)

Submitted by admin on Thu, 05/13/2010 - 07:51

स्थल-समुद्र समीर

सागर के निकटवर्ती (तटीय) भाग में रात्रि में स्थल से सागर की ओर चलने वाली दैनिक पवन जो स्थल और सागर के असमान शीतलन के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। सूर्यास्त के पश्चात् स्थल पर ताप के तीव्र विकिरण के कारण स्थलीय भाग अपेक्षाकृत शीघ्र ठंडे हो जाते हैं और वहाँ उच्चदाब बन जाता है जबकि सागर पर निम्नदाब क्षेत्र रहता है। अतः मध्यरात्रि या उसके कुछ बाद से स्थल से सागर की ओर मंद हवाएं चलने लगती हैं। थल समीर सूर्योदय के पश्चात क्षीण होने लगती है और दोपहर के पहले ही समाप्त हो जाती है। यह मुख्यतः ऊष्ण कटिबंध में सागर के तटीय भागों में चलती है किंतु शीतोष्ण कटिबंध में भी ग्रीष्म ऋतु में थल समीर उत्पन्न होती है। इस पर स्थलाकृतिक बनावट का अधिक प्रभाव होता है जिसके कारण तट के विभिन्न भागों में इसकी गति एवं दिशा में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। पीरू और चिली के पश्चिमी तट पर चलने वाली थल समीर को टेराल (terral) या वीराजन (virazon) कहते हैं।

अन्य स्रोतों से
वायु की उस धारा के लिए सामान्यतः प्रयुक्त होने वाला एक शब्द, जिसकी शक्ति ब्यूफोर्ट पैमाने के अनुसार बल-बल (हल्की समीर, 5-नॉट) और बल-6 (प्रबल समीर, 28 नॉट) के मध्य पाई जाती है। यह इतना होता है कि इसे पवन की संज्ञा नहीं दी जा सकती ।