Source
केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान कोच्ची
उष्णमेखला वर्षा वनों के समान मैंग्रोव (गरान) मेखलाएं भी हजारों वर्षों से अपने विभवों से लोगों के आर्थिक उन्नयन में योगदान दे रही हैं। यहां के जंगलों से लकड़ी, ईंधन, चारा घास, इकट्ठा करते हैं तो गीले प्रदेश मात्स्यिकी, जलकृषि, नमक उत्पादन के लिए अनुयोज्य है। सिवा इसके यहां के पेड़-पौधे तट-रेखा में रहने के कारण मिट्टी अपरदन और तट में पानी के प्रवाह को भी रोकते हैं।
बैनरजी और घोष 1998 के अनुसार भारत में मैंग्रोव का विस्तार 6740 किमी2. है, यह विश्व के मैंग्रोव क्षेत्र का 3 प्रतिशत है। दुनिया में सब से अधिक मैंग्रोव क्षेत्र इंडोनेशिया में है जो कि दुनिया का 30 प्रतिशत है। मैंग्रोव से मतलब अन्तराज्वारीय तटीय, द्वीपीय और ज्वारनदमुँहीय प्रदेशों के पर्यावरम तंत्र और वहां के विशेष प्रकार के पेड़ पौधों से हैं।
पूरा कॉपी पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
बैनरजी और घोष 1998 के अनुसार भारत में मैंग्रोव का विस्तार 6740 किमी2. है, यह विश्व के मैंग्रोव क्षेत्र का 3 प्रतिशत है। दुनिया में सब से अधिक मैंग्रोव क्षेत्र इंडोनेशिया में है जो कि दुनिया का 30 प्रतिशत है। मैंग्रोव से मतलब अन्तराज्वारीय तटीय, द्वीपीय और ज्वारनदमुँहीय प्रदेशों के पर्यावरम तंत्र और वहां के विशेष प्रकार के पेड़ पौधों से हैं।
पूरा कॉपी पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें