विश्व में मैंग्रोव वनस्पति की लगभग 50 प्रजातियां पायी जाती हैं जिन्हें 16 कुलों (फैमिली) में रखा जा सकता है। इनमें से लाल मैंग्रोव वनस्पति (राइजोफोरा प्रजाति), काली मैंग्रोव वनस्पति (ब्रूगेरिया प्रजाति), सफेद मैंग्रोव वनस्पति (ऐविसेनिया प्रजाति) आदि वास्तविक मैंग्रोव की श्रेणी में आते हैं। विश्व में पाये जाने वाले चार मुख्य प्रकार के मैंग्रोव पौधों का संक्षिप्त विवरण यहां दिया जा रहा है।
(1) लाल मैंग्रोव वनस्पति की श्रेणी में वे पौधे आते हैं जो बहुत अधिक खारे पानी को सहन करने की क्षमता रखते हैं तथा समुद्र के नजदीक उगते हैं। इनमें भी अन्य मैंग्रोव पौधों की तरह विशेष रूपान्तरित जड़ें होती हैं जो तने के निचले भाग से निकल कर धरती तक पहुंचती हैं और पौधे को स्थिरता प्रदान करती हैं इसलिये इन्हें स्थिर जड़ें कहा जाता है। ये जड़ें पौधों को ऐसे स्थानों में उगने की क्षमता प्रदान करती हैं जहां भूमि में ऑक्सीजन कम होती है। इन्हीं जड़ों से पौधा वातावरण से हवा का आदान-प्रदान व भूमि से पोषक तत्वों को प्राप्त करता है।
(2) काली मैंग्रोव वनस्पति की श्रेणी में वे पौधे आते हैं जिनकी खारे पानी को सहने की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। इन पौधों में विशेष प्रकार की श्वसन जड़ें पायी जाती हैं जो दलदल में उगने वाले पौधों में देखी जाती हैं। इन जड़ों में गैसों के आदान-प्रदान के लिये विशेष संरचनाएं होती हैं जिन्हें वातरंध्र (लैन्टिकल्स) कहते हैं। इनमें हवा का प्रवेश वायव मूलों (न्यूमेथोड्स) से होता है।
(3) सफेद मैंग्रोव वनस्पति का नाम इनकी चिकनी सफेद छाल के कारण पड़ा है। इन पौधों को इनकी जड़ों तथा पत्तियों की विशेष प्रकार की बनावट के कारण अलग से पहचाना जा सकता है।
(4) बटनवुड मैंग्रोव - ये झाड़ी के आकार के पौधें होते हैं तथा इनका यह नाम इनके लाल-भूरे रंग के तिकोने फलों के कारण है।
भारत में मैंग्रोव वनस्पति
भारत में लगभग 4482 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मैंग्रोव वनों के अन्तर्गत आता है जिसमें 59 प्रतिशत पूर्व तट (बंगाल की खाड़ी), 23 प्रतिशत पश्चिमी तट (अरब सागर) तथा 18 प्रतिशत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है।
भारतीय कच्छ वनस्पति मुख्यतः तीन प्रकार के तटीय क्षेत्रों में पायी जाती है - डेल्टा, पश्च जल नदी मुहाने तथा द्वीपीय क्षेत्र।
डेल्टा क्षेत्र में उगने वाले मैंग्रोव मुख्यतः पूर्व तट पर (बंगाल की खाड़ी में) पाये जाते है जहां बड़ी नदियां जैसे गंगा, ब्रहमपुत्रा, महानदी, कृष्णा, गोदावरी और कावेरी विशाल डेल्टा क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। नदी मुहानों पर उगने वाली मैंग्रोव वनस्पति मुख्यतः पश्चिमी तट पर पायी जाती हैं जहां मुख्य नदियां जैसे सिन्धु, नर्मदा, ताप्ती आदि कीप के आकर के मुहानों का निर्माण करती हैं। इन क्षेत्रों में नदियों द्वारा डेल्टा क्षेत्रों का निर्माण नहीं होता है। द्वीपीय मैंग्रोव मुख्यतः खाडि़यों में स्थित द्वीपों में पाये जाते हैं जहां छोटी नदियों, ज्वारीय क्षेत्रों तथा खारे पानी की झीलों में मैंग्रोव के उगने के लिये आदर्श परिस्थितियां उपस्थित होती हैं।
पूर्व तथा पश्चिमी तटों पर पाये जाने वाले मैंग्रोव क्षेत्रों की संरचना एक दूसरे से बहुत भिन्न होती है। पूर्व तटों पर विशाल नदियों द्वारा बहा कर लायी गयी जलोढ़ मिट्टी से विशाल डेल्टा क्षेत्रों का निर्माण होता है वहां स्थित मैंग्रोव क्षेत्र विशाल तथा फैले हुए होते हैं। पश्चिमी तट पर जहां डेल्टा क्षेत्र तथा जलोढ़ मिट्टी का आभाव होता है वहां मैंग्रोव क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और उनमें पौधों की प्रजातियां भी कम पायी जाती हैं। पूर्व तटों पर ढलान धीमा तथा एक समान होता है जबकि पश्चिमी तटों पर ढलान तीव्र होती है, इस कारण पूर्व तटों पर मैंग्रोव वनों को विस्तार के लिये अधिक क्षेत्र प्राप्त होता है। इसी प्रकार किसी एक तट पर भी उत्तर से दक्षिण की ओर चलने पर जलवायु का अन्तर काफी अधिक होता है। भारत की मुख्यभूमि से सटे तटीय क्षेत्रों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विस्तृत व विविध मैंग्रोव वन हैं। पश्चिमी तट में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां कम ही है। इसलिए पश्चिमी तट के मैंग्रोव वन विरल होने के साथ ही कम विविधता वाले हैं। इसी प्रकार उत्तर से पश्चिम की ओर मैंग्रोव वनों का फैलाव भिन्न होता है।
विश्व विख्यात मैंग्रोव
भारत में विश्व के कुछ प्रसिद्ध मैंग्रोव क्षेत्र पाये जाते हैं। सुन्दरवन विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव क्षेत्र है। इसका कुछ भाग भारत में तथा कुछ बांग्लादेश में है। सुन्दरवन का भारत में आने वाला क्षेत्र गंगा तथा ब्रह्मपुत्रा नदियों के डेल्टा क्षेत्रों के पश्चिमी भाग में है। ये दोनों ही नदियां हिमालय के हिमाच्छादित क्षेत्रों से निकलती हैं और समुद्र में गिरने से पूर्व छोटी शाखाओं में बंट कर उस डेल्टा क्षेत्र का निर्माण करती हैं जिसमें सुन्दरवन स्थित है। इन नदियों द्वारा ताजे पानी की लगातार आपूर्ति के कारण वन क्षेत्र में तथा समुद्र के नजदीक पानी में खारापन समुद्र की अपेक्षा सदैव कम रहता है।
मैंग्रोव वनों से आच्छादित क्षेत्र (स्पेल्डिंग से, 1997) | |
क्षेत्र | क्षेत्र वर्ग किलोमीटर में (कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत) |
दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया | 75,170 (41.4%) |
अमेरिका | 49,096 (27.1%) |
दक्षिणी अफ्रीका | 27,995 (15.4%) |
आस्ट्रेलिया | 18,788 (10.4%) |
पूर्वी अफ्रीका एवं मध्य एशिया | 10,348 (5.7%) |
उड़ीसा तट पर स्थित महानदी मैंग्रोव क्षेत्र का निर्माण महानदी, ब्रहमणी तथा वैतरिणी नदियों द्वारा होता है। इस क्षेत्र में ताजे पानी की आपूर्ति तीन नदियों द्वारा होने के कारण यहां भी जैव विविधता तथा पौधों का घनत्व सुन्दरवन की ही तरह अधिक है।
मैंग्रोव वनों से समृद्ध 16 प्रमुख देशों के मैंग्रोव आच्छादित क्षेत्र | ||
देश | मैंग्रोव (X1000 हेक्टेयर) | वैश्विक प्रतिशत |
इंडोनेशिया | 4250 | 30 |
ब्राजील | 1376 | 10 |
आस्ट्रेलिया | 1150 | 8 |
नाइजिरिया | 970 | 7 |
मलेशिया | 641 | 5 |
बांग्लादेश | 611 | 4 |
म्यांमार | 570 | 4 |
वियतनाम | 540 | 4 |
क्यूबा | 530 | 4 |
मैक्सिको | 525 | 4 |
सेनेगल | 440 | 3 |
भारत | 360 | 3 |
कोलंबिया | 358 | 3 |
केमेरून | 350 | 2 |
मेगाडास्कर | 327 | 2 |
चीन | 75.69 | 0.5 |
गोदावरी मैंग्रोव क्षेत्र (आंध्र प्रदेश) गोदावरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। यह मैंग्रोव वन नदी प्रधान मैंग्रोव नमभूमि है। कृष्णा नदी के जल से पोषित कृष्णा डेल्टा में भी मैंग्रोव वनस्पतियां पाई जाती हैं। तमिलनाडु में कावेरी नदी के डेल्टा में पिचवरम और मुथुपेट मैंग्रोव वन स्थित हैं। पिचवरम मैंग्रोव कोलीरोन डेल्टा क्षेत्र में स्थित है। उक्त सभी मैंग्रोव वन जलवायु और वहां पाये जाने वाले पौधों तथा जीव-जन्तुओं की दृष्टि से एक-दूसरे से भिन्न हैं।
ये अदभुत वन क्षेत्र प्राकृतिक परिवर्तनों तथा समुद्री ज्वारों को सदियों से झेलते आये हैं परन्तु अब इन वन क्षेत्रों के अतिक्रमण के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है। इन वनों के प्रति लोगों में जानकारी के आभाव से यह समस्या और अधिक जटिल हो गई है।
मैंग्रोव क्षेत्रों के संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत सर्वप्रथम लोगों में इस विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रा के प्रति जागरूकता लानी होगी।
भारत के राज्यों एवं जिलों का मैंग्रोव आच्छादित क्षेत्र (भारतीय वन सर्वेक्षण के 1999, 2001; एफएसआई 2001 की रपट से) | |||||
क्र. | राज्य | जिलों का क्षेत्रफल | राज्यों का क्षेत्रफल | कुल क्षेत्रफल (%) |
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1 | पूर्वी तट पश्चिम बंगाल | मेदनीपुर उत्तरी 24-परगना दक्षिणी 24- परगना | 3 29 2093 |
2.125 (2081) |
43.63 (46.31) |
2 | उड़ीसा | बालासोर भद्रक जगतसिंहपुर केंद्रापाड़ा | 3 18 10 184 |
215 (219) |
4.40 (4.89) |
3 | आध्र प्रदेश | गोदावरी कृष्णा गुंटूर | 241 104 52 |
397 (333) |
8.15 (7.43) |
4 | तमिलनाडु और पांडिचेरी | दक्षिण आर्केट तंजावूर पुडुक्कोंट्टई | 9 12 |
21 (24) |
0.40 (0.55) |
5 | खाड़ी क्षेत्र (अंडमान और निकोबार) | अंडमान निकोबार | 927 37 |
966 (789) |
19.83 (17.6) |
6 | गुजरात | भड़ौंच भावनगर जामनगर कच्छ सूरत जूनागढ़ वलसाड़ | 6 25 140 854 4 1 1 |
1031 (911) |
21.17 (20.33) |
7 | महाराष्ट्र | मुम्बई नगर मुम्बई थाने रायगढ़ रत्नागिरि | 2 32 24 38 12 |
108 (118) |
2.22 (2.63) |
8 | गोवा | गोवा | 5 | 5 (5) | (0.10) (0.11) |
9 | कर्नाटक | दक्षिण कर्नाटक उत्तर कर्नाटक | 2 1 |
3 (2) |
0.06 (0.05) |
10 | केरल |
|
| विरल |
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| कुल |
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| 4,871 (4,482) | 100.00 |