मानव निर्मित बाढ़

Submitted by Hindi on Tue, 09/25/2012 - 15:31
Source
सप्रेस/सीएसई, डाउन टु अर्थ फीचर्स, सितंबर 2012
पर्यावरण भूवैज्ञानिक के. एस. वैद्य उत्तराखंड में रहते हैं और पूर्व में प्रधानमंत्री की विज्ञान सलाहकार परिषद के सदस्य भी रह चुके हैं। प्रस्तुत साक्षात्कार स्पष्ट करता है कि बाढ़ के लिए वास्तव में कौन जिम्मेदार हैं।-

हिमालय के साथ ही साथ भारत के अन्य हिस्सों में लगातार बाढ़ की पुनरावर्ती हो रही है। किस भूगर्भीय परिस्थिति के चलते इनमें वृद्धि हो रही है?
वर्तमान बाढ़ों का भूगर्भ से बहुत कम लेना देना है। इनका संबंध वर्षों से वातावरण में बढ़ रहे तापमान से है। इस बात के प्रमाण हैं कि वातावरण के तापमान में हो रही वृद्धि से अब वर्षा ऋतु में एक वेग से बारिश नहीं होती? गर्मी में लंबे समय तक सूखा पड़ने के बाद बहुत थोड़े समय में भयंकर बारिश हो जाती है। यह सब कुछ इतना तेजी से होता है कि पानी को जमीन में उतर पाने जितना समय ही नहीं मिलता। वृक्षों के न होने ने स्थितियों को और भी बदतर बना दिया है, क्योंकि इस वजह से मिट्टी इस हद तक ठोस हो गई है कि उसमें पानी का नीचे उतरना असंभव हो गया है। इसके परिणामस्वरूप नदी के प्रवाह में वृद्धि होती है और बाढ़ आ जाती है।

उत्तरकाशी में अगस्त में आई बाढ़, जिसे सरकार ने पिछले 30 वर्षों की सबसे भयंकर बाढ़ बताया है, के पीछे क्या यही कारण है?
यह पूर्णतया मानव निर्मित है। नदी में गहरी नालियां हैं और दोनों तरफ पानी के फैलने का स्थान है, जो कि पठार तक फैला है। ऐतिहासिक तौर पर लोग बाढ़ के रास्तों पर घर बनाने से बचते रहे हैं और वहां केवल खेती करते थे। लेकिन दशकों से चल रही मानव गतिविधियों के चलते बाढ़ संबंधी मैदानों एवं बाढ़ के रास्तों का भू आकृतिक अंतर ही समाप्त हो गया है। अब निर्माण कार्य सिर्फ बाढ़ के मार्ग में ही नहीं हो रहा है बल्कि नदियों के एकदम नजदीक तक हो रहा है। रेलवे पटरियों और पुल, जिनके आसपास बाढ़ के फैलाव का स्थान नियत होता है, के ठीक विपरीत सड़के और पुल आसानी से बह जाते हैं क्योंकि भवन निर्माता वहां की भू-संरचना की ओर ध्यान ही नहीं देते। सर्वप्रथम वे खंबे खड़े करके जलमार्ग को बाधित कर देते हैं। उसके बाद वे नदी तट पर पहुंचने के लिए दोनों ओर तटबंध बनाते हैं। ये तटबंध बांधों का काम करते है और पुल खुले स्लुज दरवाजे को दर्शाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माता लागत कम करने के लिए या तो छोटी पुलियाएं बनाते हैं या कई बार तो सिर्फ छेद छोड़ देते हैं। उत्तरकाशी में सभी निर्माण, जिसमें सड़कें और पुल भी शामिल हैं या तो बाढ़ के रास्ते में या कगार पर ही निर्मित हुए हैं। नदी किनारे बनी सभी नई रिहायशी बस्तियां बाढ़ के रास्तों पर ही स्थित हैं। ऐसे में नदी में आई बाढ़ और क्या कर सकती है?

क्या आप सोचते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि पर बढ़ता दबाव ही इस प्रलयंकारी बाढ़ का कारण है?
बिल्कुल, भूमि पर दबाव है। इसके बावजूद आपको गांव वाले कगार पर घर बनाते नहीं मिलेंगे। वे ढलान पर घर बनाने को प्राथमिकता देते हैं। इस तरह के भूस्खलन के लिए दोषपूर्ण योजना निर्माण जिम्मेदार है। हिमालय क्षेत्र में साधारणतया पहले हुए भूस्खलन के ऊपर ही सड़क निर्माण कार्य प्रचलन में रहा है। इससे खोदने या पहाड़ को काटने की लागत में कमी आती है। अतएव अच्छे इंजीनियर सड़क निर्माण ठेकेदारों पर दबाव डालते हैं कि वे सड़कों के समानांतर पानी के निकास की प्रणाली भी निर्मित करें। परन्तु अनेक स्थानों पर पानी के नीचे बहने के लिए कोई प्रणाली ही नहीं हैं। इससे और अधिक भूस्खलन होता है।