मौसम की प्रचंडता-जनजीवन पर प्रभाव

Submitted by admin on Mon, 09/16/2013 - 15:20
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विज्ञान प्रसार
धरा पर तापवृद्धि के फलस्वरूप उन्मुक्त हुई सामान्य और प्रचंड मौसमी स्थितियाँ तबाही का कारण बन रही हैं। उदाहरण के लिए बाढ़ की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ बाढ़ पीड़ितों की संख्या भी बढ़ी है। बाढ़ के मामले में बांग्लादेश से अधिक संवेदनशील शायद ही कोई देश हो। यहां एक करोड़ सत्तर लाख से अधिक लोग समुद्र के स्तर से 1 मीटर से भी कम ऊंचे स्थानों पर रहते हैं और लाखों अन्य लोग गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के सपाट तटों पर बसे हुए हैं। जैसे-जैसे जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, सूखा, बाढ़, लू, अत्यधिक वर्षा, उष्णकटिबंधीय तूफान और चक्रवात जैसी मौसमी प्रचंडताओं में वृद्धि होने की आशंका है जिसका प्रभाव मानव स्वास्थ्य, जनजीवन, जन कल्याण और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। विडंबना यह है कि आने वाले वर्षों में प्रत्यक्ष रूप से तो जलवायु में हो रहे परिवर्तन के कारण समाज में मौसम और जलवायु की प्रचंडताओं का सामना कर सकने की क्षमता घटने के कारण ये स्थितियाँ अधिक गंभीर रूप से सामने आएंगी। गर्माते वायुमंडल के परिणामस्वरूप गर्म थपेड़ों की संख्या में वृद्धि होगी परंतु प्रचंड सर्दी के काल में कमी आएगी। पिछले कई दशकों के जलवायु रिकार्ड़ इस प्रकार के बदलावों की पुष्टि करते हैं। जहां एशिया में हाल के वर्षों में सर्दियां औसत से हल्की रही हैं वहीं कई देशों ने रिकार्ड रूप से गर्म थपेड़े झेले हैं।

प्रचंड मौसमी घटनाओं पर तापवृद्धि के प्रभावों का आकलन करना काफी कठिन है। इसका कारण यह है कि इस तरह के आकलन वैश्विक तापवृद्धि की क्षेत्रीय भविष्यवाणियों पर आधारित होते हैं। फिर भी यह लगभग पूर्णतया सत्य है कि पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग का भिन्न प्रभाव पड़ता है, इसलिए समस्त क्षेत्र मौसम की प्रचंडता के लिए भी एक समान संवेदनशील नहीं हो सकते। परंतु यह भी लगभग निश्चित है कि गर्म वायुमंडल के परिणामस्वरूप प्रचंड लू के थपेड़ों की संख्या में वृद्धि होगी। इसके साथ ही गर्म वायुमंडल अधिक नमी को संजो सकता है जिससे जल चक्र में होने वाला बदलाव बाढ़ और सूखे के प्रतिमानों को पलट सकता है।

धरा पर तापवृद्धि के फलस्वरूप उन्मुक्त हुई सामान्य और प्रचंड मौसमी स्थितियाँ तबाही का कारण बन रही हैं। उदाहरण के लिए बाढ़ की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ बाढ़ पीड़ितों की संख्या भी बढ़ी है। बाढ़ के मामले में बांग्लादेश से अधिक संवेदनशील शायद ही कोई देश हो। यहां एक करोड़ सत्तर लाख से अधिक लोग समुद्र के स्तर से 1 मीटर से भी कम ऊंचे स्थानों पर रहते हैं और लाखों अन्य लोग गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के सपाट तटों पर बसे हुए हैं। पिछली बाढ़ों में बांग्लादेश में लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और अधिक बाढ़ का परिणाम अधिक अनर्थकारी हो सकता है। चीन और वियतनाम जैसे अन्य देशों में भी पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ से हजारों लोगों की मौत हुई है और अपार सम्पत्ति को क्षति पहुंची है।

भूमि उपयोग में परिवर्तन, जैसे शहरीकरण और जनसंख्या का उमड़ना, के चलते लोगों की बाढ़ संभाव्य क्षेत्रों में रहने की आवश्यकता बाढ़ पीड़ितों की संख्या में वृद्धि का एक कारण है। इसके मुख्य प्रभाव चोटग्रस्त होना, रोग, संक्रमण, शरीर का तापमान कम होना, मानसिक तनाव, एलर्जी और मृत्यु हैं। ज़रूरतमंद व्यक्ति, वृद्ध, बच्चे और ऐसे लोग जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो, इन प्रभावों की चपेट में सामान्यतया आ जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन और जैविक तंत्र


जलवायु परिवर्तन विशिष्ट रूप से मानव जीवन को ही प्रभावित नहीं करता, यह वनस्पतियों और पशु-पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है। हालांकि इन प्रभावों को मापना आसान नहीं है। चूंकि कई पशु एवं वनस्पति प्रजातियाँ स्पष्ट रूप से जलवायवीय परिस्थितियों से परिबद्ध स्थानों पर निवास करती हैं, जलवायु में मामूली परिवर्तन भी इनके आवास या खाद्य उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है। पुराने समय में पशु इस प्रकार के प्रभावों से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर बच लिया करते थे। आज, भूमि विकास के कारण प्रवास यात्रा के इन रास्तों में अत्यधिक बाधाएं खड़ी की जा चुकी हैं जिससे जलवायु परिवर्तन के जवाब में प्रजातीय निष्क्रमण बहुत कठिन हो गया है। साथ ही प्रमुख शिकारी प्रजातियों के नष्ट होने से खाद्य श्रृंखला के अन्य जीवों का जीवन चक्र प्रभावित हो सकता है।

तालिका : 5


 

कारक

संभावित प्रभाव

बाढ़

नदी जल में वृद्धि, अचानक तेज पानी का बहाव, कीचड़ खिसकना या बहना, भू-स्खलन

डूबना, चोटग्रस्त होना

 

जलप्लावन

श्वसन तंत्र संबंधी रोग

 

पानी से संपर्क (जल प्रदूषण)

टिटनेस, नेत्रश्लेष्मकला शोथ

 

मल, जल निस्तारण तंत्र को क्षति, पीने के पानी का प्रदूषण

जल जनित संक्रमण (ई. कोली बैसिलस, हैजा)

 

चूहों का प्लेग

लैप्टोस्पाईरा का संक्रमण

 

चूहों का सम्पर्क

हन्टावाइरस पल्मोनरी सिन्ड्रोम

 

मच्छरों में अत्यधिक वृद्धि

मलेरिया, पीत ज्वर

 

रसायनों और औद्योगिक कचरे का फैलाव

रासायनिक संदूषण

 

जीवन और सम्पत्ति का नुकसान

मानसिक तनाव

लगातार, मूसलाधार बरसात

मिट्टी का बहाव, परजीवी कीटों की संख्या में वृद्धि

चोटग्रस्त होना, परजीवी कीटों द्वारा फैलाये जाने वाले रोगों का संक्रमण

सूखा, अल्प बरसात

फसल पैदा नहीं होना, मच्छरों का गंभीर विस्तार, जंगल की आग से निकले धुएं से नुकसान

प्रतिरक्षा तंत्र पर संकट, पश्चिमी नील ज्वर विषाणु का संक्रण, आंख, नाक और गले का शोथ, संचरण तंत्र के रोग

लू के थपेड़े, गर्म ग्रीष्मकाल

असामान्य रूप से उच्च तापमान, शहरी ओजोन के स्तर में वृद्धि

तापघात, निर्जलीकरण, श्वसन तंत्र पर प्रभाव, दमा, एलर्जी

 



मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा वन्यजीवों, पशुधन, फसलों, वनों और जलीय जीवों से संबंधित रोगों से भी है। 2005 का ‘सहस्राब्दि पारिस्थितिकी तंत्र मूल्यांकन’ दर्शाता है कि मत्स्य से लेकर शुद्ध जल तक परीक्षण किए गए स्रोत और जीवन को अवलंब प्रदान करने वाले तंत्रों में से 60 प्रतिशत या तो घट रहे हैं या इस तरह प्रयोग किए जा रहे हैं कि लंबे समय तक टिके नहीं रह पाएंगे। इसके परिणामस्वरूप होने वाली जैविक निर्धनता का गंभीर प्रभाव हमारी हवा, खाद्य और पानी पर पड़ेगा।

पादप रोगों पर मौसम की महत्ता के बावजूद भी अभी तक यह जानकारी उपलब्ध नहीं है कि जलवायु परिवर्तन किस प्रकार उन पादप रोगों को प्रभावित करेगा जो कृषि प्रजातियों में प्राथमिक उत्पादन पर प्रभाव डालते हैं। फिर भी, यह साफ नजर आता है कि फसलें अधिक अस्थिर मौसम, ग़ायब हो रहे परागणकर्ता और कीटों तथा रोगजनक जीवों के विस्तार जैसी परेशानियों से जूझ रही हैं।

तालिका 6 – स्वास्थ्य पर वैश्विक तापवृद्धि के संभावित प्रभावों की विशिष्टताएं और इसके प्रभावों को घटाने के लिए कुछ उपाय।

प्रभाव

सर्वाधिक प्रभावित जनसंख्या

अनुकूलन के उपाय

तापघात

बुजुर्ग, श्वसन तंत्र के रोगी, नवजात

वास्तुशिल्प, वातानुकूलन

प्रचंड मौसमी घटनायें

तटीय, निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर

वास्तुशिल्प, पूर्व चेतावनी, अभियांत्रिकी (लामबंद करना, समुद्र के किनारे दीवार निर्माण)

समुद्र के स्तर में वृद्धि

निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर

समुद्र के किनारे दीवार निर्माण, जगह का परित्याग

सांस के रोग

बुजुर्ग, विशेषकर श्वसन रोग से ग्रस्त

तकनीकी उन्नति, प्रदूषण नियंत्रण, नियम, घर के अंदर रहना

खाद्य आपूर्ति/कुपोषण

निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर, बुजुर्ग, बच्चे

खाद्य आपूर्ति प्रणाली, तकनीकी दक्षता, अधिकाधिक जलवायु संबंधी भविष्यवाणी

मलेरिया

नवजात, व्यस्क

जनस्वास्थ्य सर्वे, दवाओं हेतु शोध व विकास, टीका, सुरक्षित कीटनाशक

डेंगू

बच्चे विशेषकर जो डेंगू से संक्रमित हैं

जनस्वास्थ्य सर्वे, दवाओं हेतु शोध व विकास, टीका, सुरक्षित कीटनाशक

लाईम रोग

कस्बाई जनता

जनशिक्षा, टीका, नैदानिक देखरेख

हन्टावायरस

किशोर, ग्रमीण जनता

जनशिक्षा, जनस्वास्थ्य निगरानी

हैजा

तटीय जनसंख्या

स्वच्छता की मूलभूत सुविधाओं का रखरखाव, संभावित वैक्सीन, नैदानिक देखरेख, तटीय भोजन से बचाव

क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस

कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले व्यक्ति

अधिक जल निस्यंदन या छानना

अन्य जलजनित संक्रमण

नवजात, बुजुर्ग

जल का अधिकाधिक उपचार, भूजल स्रोतों सहित

अंतरराष्ट्रीय विवाद

सामान्य जन

संसाधनों से संबंधित विवादों के सुलझाने के लिए बेहतर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता

 



फफूंदी रोग, जैसे सोयाबीन रस्ट, गर्मी और नमी के कारण अधिक तेजी से फैलेगा। मौसम के बदलते प्रतिमान कई ऐसे देशों में पानी की उपलब्धता को खतरा पैदा कर रहे हैं जहां भूजल का या तो अत्यधिक दोहन कर लिया गया है या जहां भूजल स्तर बढ़ाने के उपाय नहीं हुए।

कुल मिलाकर, यह मानना एकदम सही है कि विश्व में तेजी से बढ़ रहा तापमान रोग पैदा करने वाले जीवों और खाद्यान्न वनस्पति नाशियों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करेगा। यदि वैश्विक जलवायु परिवर्तन में वृद्धि उपलब्ध खाद्यान्न को नष्ट करने में सहायक होती है तो मानव सभ्यता के लिए इसके परिणाम अत्यधिक नकारात्मक होंगे। अभी भी बड़ी संख्या में लोग खाद्यान्न और पोषण के अभाव में जी रहे हैं और यह संख्या हर वर्ष बढ़ रही है। कुपोषण से संक्रामक और पारिस्थितिकीय रोगों, जैसे दस्त और प्रदूषण संबंधी रोग, की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है। कृषि उत्पादन स्तर में कमी, जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरणीय अपकर्ष से अधिक घातक बनकर, संभवतया दुनिया में कुपोषण को तेजी से बढ़ाएगी और साथ ही अन्य रोगों की वृद्धि में भी सहायक होगी।