मछली संसाधन (क्योरिंग) की उन्नत विधि

Submitted by Hindi on Wed, 08/03/2011 - 10:42

मछली संसाधन (क्योरिंग) की उन्नत विधि


संसाधन (क्योरिंग) हमारे देश में प्रचलित एक पारंपरिक, सस्ती और पुरानी ऐसी विधि है जिसका प्रयोग मछली के संरक्षण के लिए किया जाता है।

संसाधन की वर्तमान विधि से हानि


सामान्यतया क्योर्ड उत्पादों के लिए निम्न गुणवत्ता वाली मछलियों का उपयोग किया जाता है।

उपयोग में लाये जाने वाले नमक की गुणवत्ता कम होती है। इसमें ढेर सारी गंदगियाँ और बालु पाये जाते हैं। स्वास्थ्यकर स्थितियों के बारे में ध्यान दिये बिना इस प्रकार के नमक का प्रयोग कर प्राप्त क्योर्ड फ़िश प्राकृतिक रूप से निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं।

ऐसे मछली संसाधन यार्ड में अच्छे पानी का प्रयोग नहीं किया जाता है।

प्राप्त सभी मछलियों को सीमेंट से बने एक बड़े टैंक में जमा कर दिया जाता है जिसमें नमक के अलग-अलग परत होते हैं। परिसर को साफ रखने के महत्व को महसूस नहीं किया जाता है। इस प्रकार के टैंक के नमक में दो-तीन दिनों तक मछलियों को रखने के बाद उसे निकालकर समुद्र किनारे खुले आकाश में धूप में सुखाया जाता है। इस प्रक्रिया में इनके ऊपर ढेर सारे बालू जमा हो जाते हैं और फिर इन्हें बिना किसी पैकिंग के ज़मीन के ऊपर एकत्रित किया जाता है।

इस तरह क्योर्ड की गई मछली सामान्यतया लाल हैलोफिलिक बैक्टिरिया से संदूषित हो जाती हैं और इन उत्पादों को दो या तीन सप्ताह से अधिक के लिए संरक्षित नहीं किया जा सकता है।

कालीकट में स्थित केन्द्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान व अनुसंधान केन्द्र ने अच्छी गुणवत्ता वाली क्योर्ड मछली तैयार करने के लिए मानक विधि स्थापित की है। इसके बारे में संक्षेप में निम्न जानकारी प्रस्तुत है:

विधि


प्राप्त की गई ताजी मछलियों को तुरंत स्वच्छ समुद्री पानी में धोया जाता है ताकि स्लाइम, चिपकी गंदगी आदि को निकाला जा सके।

इसे फिर मछली सफाई यार्ड में ले जाया जाता है जहाँ स्वास्थ्यपरक स्थिति और सामान की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए बहुत अधिक सावधानी बरती जाती है। पारंपरिक विधि के विपरीत, आगे की सभी प्रक्रियाएँ एक साफ टेबल के ऊपर की जाती है ताकि बालू, गंदगी आदि से संदूषित होने से बचा जा सके।

सफाई की इन सभी प्रक्रियाओं के लिए 100 पीपीएम तक का क्लोरिनेटेड पानी के उपयोग के लिए सलाह दी जाती है।

प्रसंस्करण टेबल पर अंतरियाँ आदि हटायी जाती है और मछलियों की ड्रेसिंग की जाती है। सार्डाइन जैसी मछलियों के मामलों में स्केल भी हटा देने की सलाह दी जाती है जिससे कि अंतिम क्योर्ड उत्पाद आकर्षक दिखे। अंतरियाँ तुरंत टेबल के नीचे रखी कचरे की टोकरी में डाल दी जानी चाहिए। छोटी मछलियों के मामलों में व्यापारिक दृष्टिकोण से इस प्रकार किया जाना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में मछली की सफाई के बाद इसे सीधे साल्टेड (नमक से संपर्क) किया जाता है।

इस प्रकार सफाई (ड्रेसिंग) की गई मछली को अच्छे पानी में धोया जाता है और फिर पानी को सूखने दिया जाता है। इसे छिद्रदार प्लास्टिक के बर्तन में आसानी से किया जा सकता है।

पानी पूरी तरह सूख जाने के बाद मछली को साल्टिंग टेबल पर ले जाया जाता है। यहाँ मछली पर एक-समान रूप से हाथ द्वारा अच्छी गुणवत्ता वाली नमक लगायी जाती है। ध्यान रखें कि नमक लगाने वाले लोगों का हाथ ठीक से साफ हो। सामान्य रूप से नमक और मछली में 1:4 का अनुपात होना चाहिए (नमक के एक भाग के साथ मछली के चार भाग)।

नमक लगाने (साल्टिंग) के बाद मछली अत्यंत ही स्वच्छ सीमेंट के टैंक में एक के ऊपर एक जमा की जाती है और इन टैंकों में इसे कम से कम 24 घंटों के लिए रखा जाता है। इसके बाद मछली बाहर निकाली जाती है और इसके सतह पर जमे अत्यधिक ठोस नमक निकालने के लिए स्वच्छ पानी में उसे साफ किया जाता है।

इस प्रकार से साल्टेड मछली सुखाने वाले स्वच्छ प्लेटफॉर्म पर सुखाई जाती है। ये स्वच्छ सीमेन्ट का प्लेटफॉर्म या बांस की जाली भी हो सकती है। यदि ये उपलब्ध नहीं हों तो बाँस की साफ चटाई पर भी इसे सुखाया जा सकता है। लेकिन इस स्थिति में मछली को 25% या उससे नीचे स्तर तक की नमी तक ही सुखायी जानी चाहिए।

प्रत्येक अवस्था में स्वास्थ्य के उचित मानक बनाये रखने के लिए पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

उपयोग किये गये संरक्षक (प्रिज़र्वेटिव्स)


इस तरह से सुखाई गई मछली के ऊपर कैल्सियम प्रोपायोनेट और नमक के बारीक पाउडर के मिश्रण का छिड़काव किया जाता है।

इस मिश्रण को ठीक से बनाने के लिए कैल्सियम प्रोपायोनेट के तीन भाग के साथ नमक के बारीक पाउडर का 27 भाग मिलाया जाता है।

यह ध्यान दें कि मिश्रण का प्रयोग मछली के सभी हिस्सों में एक-समान रूप से किया जाता है।

इसके बाद रिटेल मार्केटिंग (खुदरा व्यापार) के लिए इसे उपयुक्त वज़न के अनुसार सील किये गये पोलिथिन बैग में पैक किया जा सकता है। थोक बिक्री के लिए इसे पोलिथिन लाइन्ड गन्नी बैगों में पैक किया जा सकता है। इस प्रकार के पैकिंग से संरक्षण के दौरान अत्यधिक निर्जलीकरण होने से बचा जाता है। साथ में, हानिकारक जीवाणु से भी सुरक्षा मिलती है।

सामान्य रूप में 10 किलोग्राम मछली की डस्टिंग के लिए 1 किलोग्राम मिश्रण की आवश्यकता होती है।

कुकिंग (पकाने) से पहले जब अत्यधिक नमक निकालने के लिए मछली पानी में डुबोयी जाती है तो यह संरक्षक भी निकल जाता है।

इस प्रकार क्योर्ड मछली को अधिक समय तक संरक्षित रखने के लिए यह बहुत ही सुरक्षित, सरल और प्रभावी विधि है।

इस विधि द्वारा संरक्षित की गई मछली कम से कम आठ महीने के लिए अच्छी स्थिति में रखी जा सकती है।

इस विधि के लाभ


यह विधि बहुत ही सरल है और सामान्य व्यक्ति द्वारा आसानी से अपनायी जा सकती है।
हानिकारक जीवाणु से संदूषित होने से यह बचाती है और क्योर्ड मछली की संरक्षण जीवन में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है।
क्योर्ड मछली के रंग, गंध या स्वाद पर कैल्सियम प्रोपायोनेट का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
तुलनात्मक रूप से यह सस्ती विधि है। इस विधि द्वारा मछली संसाधन के बाद मूल्य में आयी वृद्धि और इसके स्वयं के जीवन में हुई प्रगति पर विचार करते हुए इसके उत्पादन लागत में थोड़ी वृद्धि नगण्य है।

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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
केन्द्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान, कोचीन, केरल

बाहरी कड़ियाँ
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