महाद्वीप

Submitted by Hindi on Sat, 08/27/2011 - 16:08
महाद्वीप (Continent) सागरतल से एक औसत ऊँचाई तक ऊपर उठे हुए पृथ्वी के क्रमबद्ध विस्तृत भूभागों को कहते हैं। ये द्वीपों से केवल आकार में ही भिन्न होते हैं। इनके अंतर्गत सागर निहित लगभग 600 फुट तक की महाद्वीपीय मग्नतट भूमि तथा महाद्वीपीय मग्नढाल को भी सम्मिलित किया जाता है। विश्व में सात महाद्वीप हैं : एशिया (1,64,94,217 वर्ग मील), अफ्रीका (1,15,29,480 वर्ग मील), उत्तरी अमरीका (93,63,866 वर्ग मील) तथा ऐंटार्कटिका (53,62,626 वर्ग मील)। ऑस्ट्रेलिया एक लघु महाद्वीप है। कभी कभी ऐसा भी कहा जाता है कि महाद्वीप के बीच में बेसिन तथा बेसिन के दोनों ओर पर्वतमालाएँ भी होनी चाहिए, किंतु यूरेशिया इसका अपवाद है। अधिकतर महाद्वीप बड़े बड़े पर्वतों द्वारा सीमाबद्ध हैं।

उपर्युक्त सात महाद्वीपों के अंतर्गत विश्व का 28 प्रतिशत भाग आता है। यूरोप को भौतिक दृष्टि से एशिया का ही भाग माना जा सकता है। अफ्रीका एवं यूरोप महाद्वीप एक दूसरे से जिब्राल्टर जलसंयोजक, बाब-अल-मांदेब तथा स्वेज नहर द्वारा अलग होते हैं। अफ्रीका, यूरोप, एवं एशिया महाद्वीप चारों ओर से महासागरों द्वारा घिरे हैं। ये तीनों महाद्वीप उत्तर में केप चिल्यापिनस्क (साइबीरिया) तथा दक्षिण में केप ऑव गुड होप तक विस्तृत हैं। ये तीनों महाद्वीप भूखंड के 66 प्रति शत भाग में विस्तृत हैं एवं इनमें विश्व की 7/8 जनसंख्या निवास करती है। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट (29,241 फुट) तथा सबसे गहरा स्थान (सागरतल से 1,292 फुट नीचा) मृतसागर एशिया में स्थित है।

उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका महाद्वीप ऐटलैंकि, प्रशांत तथा आर्कटिक महासागरों से घिरै हैं और पनामा नहर द्वारा विभक्त हैं। ऑस्ट्रेलिया तथा ऐंटार्कटिका दोनों महाद्वीप दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं। ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप ऐटलैंटिक, प्रशांत एवं हिंद महासागरों से घिरा तथा ऐंटार्कटिका, को छोड़कर यह सबसे विरल बस्तीवाला महाद्वीप है। ऐंटार्कटिका, यूरोप तथा आस्ट्रेलिया से बड़ा है, किंतु पूर्णरूपेण निर्जन है। इसके बारे में अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि यह एक ही भूखंउ है या बर्फ में दबे हुए कई द्वीपों का एक समूह है।

यद्यपि साधारण तौर पर मनुष्य की दृष्टि में ये महाद्वीप स्थिर हैं, तथापि वास्तव में ये गतिमान हैं और एक दूसरे से अलग होते जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि महाद्वीप महासागरों की अपेक्षा हलकी चट्टानों से बने हैं, जो सागरों की भारी तली पर तैर रहे हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार पृथ्वी के महाद्वीपों का प्रवाह ही पर्वतों की उत्पत्ति का कारण हैं। कुछ जीव एक दूसरे से दूरस्थ महाद्वीपों में मिलते हैं, जिनका विवरण संकेत करता है कि ये भाग पूर्वकाल में एक दूसरे से अवश्य ही संबद्ध रहे होंगे। दूरस्थ महाद्वीपों की चट्टानों और उनमें प्राप्त होनेवाले खनिजकों की उपलब्धि भी प्रवाह सिद्धांत के आधार पर समझी जा सकती है। पिछले कई भूवैज्ञानिक कालों में समुद्र के जलतल में भी काफी अंतर आता रहा है। कुछ महाद्वीपों में पर्वत श्रृंखलाओं का विवरण भी उन स्थलखंडों के पूर्वकालिक संबंध को बताता है। इन्हीं सब बातों से यह सिद्ध होता है कि ये महाद्वीप गतिशील हैं।

वेगनर (Wegner) का महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धाँत -


ज़ुस (Swess) की भाँति वेगनर ने भी यह माना है कि पृथ्वी की ऊपरी परत सिऐल (sial, सिलिका मैगनीशियम) और केंद्र में निफे (Nife, निकल फेरस) की स्थित है। कार्बनी कल्प में सिऐल से निर्मित एक विशाल महाद्वीप था, जिसे 'पैंजिया' (Pangaea) कहते थे। कार्बनी कल्प के पश्चात्‌ कुछ शक्तियों के कारण विशाल महाद्वीप पैंजिया के विघटन का कार्य आरंभ हो गया, जिसके फलस्वरूप आधुनिक स्थिति के महाद्वीपों का निर्माण हुआ। यह विघटन कार्य सामान्यतया दो दिशाओं में हुआ। प्रथम भूमध्य रेखा की ओर तथा द्वितीय पश्चिम की ओर। वेगनर ने भूमध्यरेखा की ओर महाद्वीपों की गति के लिये पृथ्वी के केंद्र से गुरुत्वाकर्षण और महाद्वीपों की उत्प्लावकता (buoyance) के संबंध का आश्रय लिया। उत्पवकता का केंद्र महाद्वीप विशेष के गुरुत्वाकर्षण के केंद्र के मध्य स्थित होगा, किंतु इस प्रकार की उत्प्लावकता पृथ्वी के केंद्र और गुरुत्वाकर्षण शक्ति की तुलना में नगण्य ही है। पश्चिमोत्तर प्रवाह के लिये वेगनर ने ज्वार की शक्ति का आश्रय लिया है। उनका कहना है कि सूर्य एवं चंद्रमा की आकर्षण शक्ति, पृथ्वी के ऊपरी, उभरे हुए भाग को पश्चिमीय गति प्रदान करती है। श्वीडार (Schweydar) ने विभिन्न भूवैज्ञानिक युगों में ध्रुवों की स्थिति के प्रभाव को भी एक कारण बताया है।

वेगनर के अनुसार उत्तरी ध्रुव सिल्यूरियन (Silurian) कल्प में 14 उo अo तथा 124 पo देo पर और कार्बनी कल्प में 16 उo अo तथा 147 पo देo पर था, किंतु तृतीय युग में 51 उo अo तथा 153 पo देo पर हो गया। वेगनर ने ऐटलैंटिक महासागर के दोनों तटों का अध्ययन कर बताया कि यदि ब्राज़िल के उभरे हुए भाग को गिनी की खाड़ी में रखा जाय, तो वह उसमें पूर्ण्रूप से समा जाता है। भूवैज्ञानिक प्रमाण देते हुए आपने कहा कि दोनों तटों के पर्वत निर्माण में भी काफी समानता है। इसी प्रकार बाईआ व्लैंका और जूरबर्ग के दक्षिण प्रदेश की भूवैज्ञानिक रचना में समानता है, क्योंकि दोनों की पूर्व ट्राइऐसिक चट्टानों में ज्वालामुखी क्रियाएँ अधिक हैं और उनपर मध्य क्रिटेशियम विघटन का प्रभाव पड़ा है। बाईआ व्लैंका की पर्वत श्रृंखलाएँ अफ्रीका की अंतरीपीय मोड़दार पर्वत श्रेणियों से समानता रखती हैं। उत्तर कार्बनी कल्प में हिमयुग का प्रभाव ब्राज़िल के सेंट कैथारिना, फॉकलैंड द्वीप, दक्षिणी अफ्रीका के कैरू, प्रायद्वीपीय भारत तथा ऑस्ट्रेलिया आदि में मिलता है। इससे पता चलता है कि ये भाग कभी आपस में एक रहे हैं और अब एक दूसरे से काफी दूर दूर हो गए हैं। वर्तमान महाद्वीपों के कुछ भागोंश् को यदि स्थानांतरित कर मिलाया जाए, तो वे दो आरियों के दाँतों एक दूसरे में बैठ जा सकते हैं। इस संबंध में ज़ुस, जॉली, डैली (Daly) तथा होम्स (Holmes) ने भी अपने अपने सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं।

[रमेश चंद्र दुबे]

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संदर्भ
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