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जल चेतना - तकनीकी पत्रिका, जनवरी 2015
यदि वर्षा का जल समुचित ढंग से संचयन किया जाये तो भूजल का स्तर भी बना रहेगा और अतिरिक्त जल बहकर घाटियों और पास की नदियों में चला जाएगा जिससे नदी और छोटे जल स्रोत भी पानीदार हो जाएँगे और बहाव का पैटर्न भी सामान्य बना रहेगा। और यह तभी सम्भव है जब बारिश का पानी जहाँ गिरे वहीं रोक लिया जाये। ‘शहर का पानी शहर में, खेत का पानी खेत में’ के माॅडल पर पानी का समुचित संचय हो।
जल एक प्राकृतिक संसाधन तो है ही उससे अधिक यह मानवीय संसाधन है क्योंकि इससे मानवीय अस्तित्व जुड़ा है। जल, साँस और भोजन की तरह बुनियादी और जीवन्त आवश्यकता है। विडम्बना यह है कि पृथ्वी पर मानव जीवन की पुनर्संरचना के संकेत मिलने लगे हैं क्योंकि आधुनिक मनुष्य ने जीवन के आधारभूत तत्त्व को ही पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है। औद्योगिकता की अति और उससे होने वाले प्रदूषण, बड़े बाँधों का निर्माण और उससे होने वाला विस्थापन, पानी पर गरमाती राजनीति और उससे होने वाले जलस्रोतों के बँटवारे तथा पानी को बाजार की वस्तु बनाना और इस सार्वजनिक सम्पदा का निजीकरण, मानवीय अस्तित्त्व के संकट और जीवन क्षरण के कारण बन रहे हैं। यदि जीवन में जल इतना अनिवार्य है तो जल में जीवन अवश्य होता होगा। अब तो यह वैज्ञानिक शोधों ने भी सिद्ध कर दिया है कि जल में जीवन होता है (डाॅ. मसारूइमोटो)। जल (H2O) की संरचना हाइड्रोजन और आॅक्सीजन के संयोग से हुई है। लेकिन क्या इस ज्ञानमात्र से इसे बनाया जा सकता है। पानी की असली सामर्थ्य यही है कि पानी से सब कुछ बनता है किन्तु सब कुछ से पानी नहीं बनाया जा सकता। इसे कभी नहीं बनाया जा सकता। इसे सिर्फ बचाया जा सकता है। इसलिये आज अगर मानवीय चिन्ता का प्राथमिक बिन्दु जल संरक्षण नहीं बनता तो हम जीवन द्रोही होंगे। हमारे शरीर में भी केवल खून ही नहीं बल्कि दो हिस्से तो पानी ही है। शरीर के भीतर पानी होने के लिये आवश्यक है कि बाहर उससे भी अधिक पानी हो। क्योंकि जल सिर्फ जलचरों के लिये ही नहीं होता बल्कि थलचरों, नभचरों और यहाँ तक कि अचरों के लिये भी आवश्यक है। पानी चर-अचर सब कुछ है। एक तरल और गतिशील जीवन का नाम ही पानी है। पानी से ही जीवन के गुणसूत्र हैं। इसलिये जल ही जीवन है।हमने एक महानगरीय जीवन में जल के महत्त्व को समझने की दृष्टि से दिल्ली के एक नगरीय गाँव शाहपुर जट का अध्ययन किया क्योंकि दिल्ली की एक धनी और बड़ी आबादी दिल्ली के ऐसे ही करीब 300 गाँव में रहती है। अब सवाल उठता है कि नगरीय गाँव किसे कहे? किसी भी समुदाय का आकार और उसकी जनसंख्या का घनत्त्व वहाँ के लोगों के व्यवहार प्रतिमानों को प्रभावित करते हैं (हाॅट एवं रिस: 1851)। किसी भी समुदाय की श्रेणी का निर्धारण उसकी जनसंख्या का आधार, उसकी प्रशासनिक व्यवस्था और वहाँ की सामाजिक संरचना और मूल्य व्यवस्था के आधार पर किया जा सकता है। नगरों में आबादी जैसे-जैसे विजातीय स्वरूप लेती जाती है उसमें धीरे-धीरे कई वर्ग पनपने लगते हैं और परिणामस्वरूप नई प्रकार की अन्तःक्रियाएँ जन्म लेती हैं। द्वितीय समूह बनने लगते हैं तथा औपचारिक व्यवस्था आकार पाने लगती है। ये सभी उसे नगरीय बनावट प्रदान करते हैं। किसी नगरीय गाँव में परम्परागत सामाजिक संरचना व मूल्यों का प्रभाव वहाँ पर आने वाले बाहरी लोगों पर भी पड़ता है और इन अप्रवासियों का प्रभाव वहाँ की सम्पूर्ण सामाजिक संरचना पर भी दिखाई देता है। इसमें अलग-अलग अवधि के अप्रवासियों, मकानों के निजी स्वामित्त्व के अलग-अलग प्रतिमान निवास सम्बधी आर्थिक परिवर्तन, व्यवस्थागत कृषि कार्यों में लगना आदि (देसाई: 1864)। वहीं जाति तथा धार्मिक समूहों का अलग-अलग पड़ोस के रूप में एक साथ रहना बताता है कि द्वितीय और तृतीय नातेदारों से बने संयुक्त परिवारों का आधिक्य इन जगहों पर पाया जाता है। अनजानापन तथा व्यक्तिवादिता व्यक्तियों व समूहों की निरन्तर गतिशीलताओं का परिणाम है।

राजधानी दिल्ली में पानी की स्थिति
बरसात का पानी बहकर कई नदी नालों के जरिए यमुना में जाकर मिलता है। घरों से निकला पानी प्रतिदिन उसी वर्षा के पानी के साथ बहकर बसन्त कुंज से निकला सिटी और डिफेंस काॅलोनी से गुजरता हुआ राष्ट्रपति भवन के पीछे से आकर बारापुला के नीचे से गुजरते हुए यमुना में मिलता है। छोटे-बड़े करीब 17 नाले यमुना में गिरते हैं। वजीराबाद में यमुना का पानी लगभग पूरी तरह बाँध लिया जाता है उसके नीचे यमुना में सिर्फ गन्दा पानी ही बहता है। दिल्ली में बरसाती पानी नीचे नालों के माध्यम से बह जाता है या फिर खादर और डाबर इलाकों में जमा हो जाता है। यही पानी फिर भूजल के रूप में प्रकट होता है। जिसको कुओं के द्वारा नांगलोई, महरौली, नजफगढ़ और शाहदरा प्रखण्डों में ट्यूबवेल के द्वारा निकाल कर उपयोग में लाया जाता है। बाकी क्षेत्रों में वजीराबाद से यमुना के पानी को पाइप लाइन के द्वारा भेजा जाता है। दक्षिणी दिल्ली के छतरपुर क्षेत्र में भी भूजल है। पहले शहर का विस्तार रिज और यमुना के मध्य था। जैसे-जैसे शहर का विस्तार रिज को पार कर पश्चिमी क्षेत्रों में बढ़ता गया वहाँ का दूषित पानी भी नजफगढ़ नाले से होता हुआ वजीराबाद के ऊपर यमुना में आकर गिरने लगा जिससे पानी लगातार दूषित होता चला जा रहा है।
वास्तव में दिल्ली में जल संकट कुप्रबन्धन का परिणाम है। यह मानव निर्मित है न की प्राकृतिक। कुछ आवश्यकता से अधिक उपभोग कर रहे हैं तो कुछ की जरूरत भी पूरी नहीं हो पाती। समस्या को उल्टा करके देखा जाता है। हरदम सप्लाई बढ़ाने की बात होती है जबकि दिल्ली के पास अपना कोई जलस्रोत भी नहीं है। आये दिन जल विवाद पर पड़ोसी राज्यों की धमकियाँ आम बात है। पानी के निजीकरण से वितरण में और ज्यादा असमानता आएगी। अमीरों का उपभोग बढ़ेगा और गरीबों का घटेगा जिससे उनकी जीवन गुणवत्ता सीधे तौर पर प्रभावित होगी।

नगरीय गाँव ‘शाहपुर जट’ के विभिन्न हिस्सों के 162 परिवारों से जल से जुड़े आँकड़े लिये गए। अध्ययन के प्रथम चरण में प्रत्येक परिवार से जल सम्बन्धी सामान्य सूचनाएँ एकत्रित की गई। परिवार के एक व्यक्ति का सघन साक्षात्कार किया गया। विभिन्न सूचनाओं को साक्षात्कार अनुसूची के माध्यम से एकत्र किया गया। दूसरे चरण में ग्रामीणों से समूह चर्चाएँ और औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत के माध्यम से जल संकट के कारणों को समझने का प्रयास रहा। सम्पूर्ण क्षेत्र-कार्य (Field Work) के दौरान अवलोकन को एक अतिरिक्त अध्ययन विधि के तौर पर इस्तेमाल करते हुए सार्वजनिक जल व्यवस्था की आधारभूत संरचना, पाइप लाइन का विस्तार, अवैध कनेक्शनों की स्थिति, लीकेज एवं अन्य स्थितियों का जायजा लिया गया। तृतीय चरण में गाँव के प्राचीन जल स्रोतों, तालाबों, जोहड़ों, कुओं के बारे में गाँव के बुजुर्गों से जानने का प्रयास किया गया।

तालिका से स्पष्ट है कि ग्रामीणों द्वारा पानी का उपयोग प्रतिदिन कितनी बाल्टी परिवार के स्तर पर किया जा रहा है या जरूरी है। प्राप्त तथ्यों से सामने आया कि सर्वाधिक उत्तरदाताओं ने दिन भर में दस से बीस बाल्टी पानी उपयोग की बात स्वीकार की। ऐसा कहने वालों का प्रतिशत सर्वाधिक 38.2 प्रतिशत था वही 22.8 प्रतिशत परिवार ऐसे थे जो 20-30 बाल्टियाँ तक उपयोग करते थे। 12.3 प्रतिशत सहभागियों ने 30-40 बाल्टियों के उपयोग की बात कहीं। मात्र 12 परिवार ऐसे थे जो 40 से ऊपर बाल्टियों को इस्तेमाल करते थे। लगभग इतने ही उत्तरदाताओं ने अन्दाजा न होने की बात कही। दिल्ली के नगरीय गाँवों में, जहाँ अधिकांश मध्यम आकार के और संयुक्त प्रकार के परिवारों का आधिक्य है, वहाँ लगभग 40 प्रतिशत परिवारों को 10-20 बाल्टी पानी उपलब्ध होना मानकों के कहीं तक भी अनुरूप नहीं है। वही 10 प्रतिशत परिवारों को दस बाल्टी से कम पानी उपलब्ध है। मात्र 23 प्रतिशत परिवार 20-30 बाल्टी पानी का उपभोग करते हैं। मात्र 12 प्रतिशत परिवार 30-40 बाल्टी इस्तेमाल कर पाते हैं। 2 परिवार ऐसे थे जो 40 बाल्टी से ऊपर पानी इस्तेमाल कर रहे थे।

11.8 सूचनादाताओं ने अवैध कनेक्शनों को पानी संकट के लिये जिम्मेदार बताया और 17.3 प्रतिशत ने पाइपों से पानी लीकेज को जल संकट की जड़ बताया। इन गाँवों में लगातार बढ़ती बाहरी आबादी इस संकट को बढ़ा रही है। पानी वितरण की असमानता तो जग जाहिर कारण है ही।
दिल्ली के नगरीय गाँव में जल संकट के परिणामों की परिणति विभिन्न रूपों में सामने आ रही है। आये दिन दिल्ली के अखबार जल संकट की स्थितियों से उत्पन्न परिणामों जल विवादों, लड़ाई झगड़ों, आपसी प्रतिस्पर्धा, जलचोरी और सीना जोरी के समाचारों से भरे रहते हैं। जहाँ तक शाहपुर जट गाँव में जल संकट के परिणामों का सवाल है तो अध्ययन के दौरान अनेक बार अनौपचारिक बातचीत में यह उभरकर सामने आया कि इस गम्भीर समस्या को ग्रामीण स्थानीय कारकों का परिणाम मानते हैं। सर्वेक्षण के दौरान 12 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अवैध कनक्शनों को अपने क्षेत्र में जल संकट का कारण बताया। इससे स्पष्ट है कि ग्रामीण जल संकट की इस उलझी हुई समस्या को अपने आस-पास की ही वजह मानते है जबकि यह उस सम्पूर्ण व्यवस्था के दोषों का परिणाम है जो जलापूर्ति के अन्यायपूर्ण वितरण से शुरू होती है। यहीं कुछ लोगों के द्वारा पानी के चोरी करने और अवैध कनेक्शनों के परिणाम के रूप में उभरकर सामने आता है।

निष्कर्ष
1. अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि सर्वाधिक सूचनादाता (59 प्रतिशत) ने पानी की कम समय सप्लाई (30-60 मिनट/दिन) की बात स्वीकार की जो जल संकट की गम्भीर समस्या को इंगित करता है।
2. अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ कि जहाँ 38.2 प्रतिशत व्यक्ति 10 से 20 बाल्टी पानी का उपयोग करते हैं, वहीं 7.40 प्रतिशत व्यक्ति ऐसे भी हैं जिन्हे काफी मात्रा में पानी आपूर्ति होती है। पानी का यह असमान वितरण पानी की चोरी, अवैध कनेक्शनों और दंबगई के चलते होता है। गाँव के जो प्रभावशाली लोग हैं वे अधिक पानी कब्जा लेते हैं।
3. गाँव में सर्वाधिक प्रतिशत (72.2 प्रतिशत) संयुक्त परिवारों को पाया गया जोकि गाँव के परम्परागत रहन-सहन को जीवन्त बनाए हुए हैं। स्पष्ट है कि इन बड़े परिवारों में पानी की खपत ज्यादा होती होगी और आपूर्ति का समय कम होने की वजह से संकट स्वाभाविक है।
4. गाँव में जनसंख्या दबाव व पानी का असमान वितरण जल संकट का मुख्य कारण है। उत्तरदाताओं ने जल संकट में जनसंख्या आधिक्य की भूमिका 46.29 प्रतिशत व 24.69 प्रतिशत ने पानी वितरण की असमानता को जिम्मेदार ठहराया।
5. गाँव में 35.80 प्रतिशत लोग निम्न आय वाले थे जिनकी अधिकतर आय पानी पर ही खर्च हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि जल उपलब्धता में निम्न आय वर्ग वालों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
6. अधिकांश उत्तरदाता 31.48 प्रतिशत गाँव में केवल अपनी पैतृक सम्पत्ति को सम्भाले हुए थे, कुछ पुरानी सम्पत्ति के किराए के लिये या किसी विशेष आयोजन अथवा घटना के दौरान गाँव आते थे।
7. सर्वेक्षण से स्पष्ट हुआ कि गाँव का शैक्षिक स्तर बहुत ही कम था। 32.09 प्रतिशत हाईस्कूल व 25.30 प्रतिशत इंटर शिक्षा प्राप्त उत्तरदाता थे जिससे पता चलता है कि अधिकांश ग्रामीण निम्न व मध्य स्तर तक ही शिक्षित थे और जल सकंट को दूर करने के उपायों से अनभिज्ञ।
8. दैनिक समाचार पत्रों के अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में जल संकट को लेकर निरन्तर पानी के समाचारों में वृद्वि हुई जो कि अप्रैल में 18.7 प्रतिशत व जून में 30 प्रतिशत तक हो गई।
9. दैनिक समाचार पत्रों के अध्ययन से पाया गया कि पानी को लेकर शिकायत/विरोध प्रर्दशन व झगड़े/रंजिश एवं दुघर्टनाओं के समाचार बड़े पैमाने पर स्थान पा रहे हैं।

गत 50-60 वर्षों में दिल्ली में पानी की खपत तीन गुणा बढ़ी है। झुग्गियों, गाँवों और पिछड़े इलाकों में मात्र 30 प्रतिशत ही पानी मिल पाता है। रिहायशी इलाकों में यह वितरण भरपूर है। पानी की कमी वाले इलाकों में पानी के टैंकरों द्वारा पानी भिजवाया जाता है। जिसके लिये 975 टैंकरों का सहारा लिया जाता है। जिनमें 575 टैंकर दिल्ली जल बोर्ड के व 400 प्राइवेट हैं। एक टैंकर प्रतिदिन प्रति शिफ्ट 330 रुपए लेता है। इस प्रकार वर्ष के औसतन 35 करोड़ रुपए टैंकर पर व्यय होते हैं। सरकारी अनुमान बताते हैं कि पाइप द्वारा पानी पहुँचाने में 55 रुपए प्रति वर्ग मीटर खर्च आता है अतः वर्ष में 2.5 लाख से ज्यादा घरों में इस खर्च से पानी पहुँचाया जा सकता है।


डाॅ. राकेश राणा
असिसटेंट प्रो. समाजशास्त्र,
पी.टी. जे.एन. पी.जी. कॉलेज,
बांदा, उत्तर प्रदेश,