मिनी संसद है स्थायी समिति

Submitted by Hindi on Wed, 08/31/2011 - 19:11
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि लोकपाल विधेयक संसद की स्थायी समिति के पास है। जहां इस पर व्यापक विचार-विमर्श होगा। समाज के किसी वर्ग को इसमें कुछ सुझाव देना है, तो स्थायी समिति के पास जा सकता है, लेकिन अन्ना हजारे के टीम की सदस्य अरविंद केजरीवाल का कहना है कि अधिकतर मामलों में देखा गया है कि सरकार स्थायी समिति की सिफ़ारिशों को नजरअंदाज करती आयी है। कई वर्षो से स्थायी समिति के पास महत्वपूर्ण विधेयक पड़े हैं, उनका निपटारा नहीं हो रहा है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि स्थायी समिति मिनी संसद है और यहां विधेयक के सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा होती है। क्या है स्थायी समिति और क्या हैं इसके कार्य, इसी पर केंद्रित आज का नॉलेज। जन लोकपाल विधेयक संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में पास कराने के लिए अन्ना हजारे की अगुवाई में देशभर में जन आंदोलन चल रहा है। बड़ी संख्या में लोग भ्रष्टाचार के दानव से लड़ने के लिए मजबूत कानून लाये जाने के पक्ष में हैं। इसके लिए देश की जनता सड़कों पर उतर आयी है। अप्रैल में अन्ना हजारे शर्तों के अनुरूप सरकार ने दस सदस्यीय लोकपाल मसौदा निर्माण समिति की घोषणा की थी। इसमें सरकार के पांच और सिविल सोसायटी के पांच प्रतिनिधि रखे गये।

समिति ने दो मसौदा तैयार किया। संसद के मौजूदा मॉनसून सत्र में मंत्रियों के मसौदे को पूर्णतः प्रस्तुत किया गया, लेकिन जन लोकपाल की कुछ ही सिफ़ारिशों को उसमें शामिल किया गया। मंत्रिमंडल ने मंत्रियों के मसौदे को अपनाकर संसद में पेश करने के लिए सहमति दे दी। इसके तुरंत बाद विधेयक के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया गया। संसद में पेश लोकपाल विधेयक को अप्रभावी करार देते हुए उसके स्थान पर अन्ना हजारे ने जन लोकपाल विधेयक पास कराने की मांग की। सरकार की अवहेलना के बाद अन्ना हजारे अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठै हैं। उन्होंने स्थायी समिति से कहा है वह लोकपाल विधेयक को खारिज कर दे। एक बार जब विधेयक स्थायी समिति के पास चला जाता है, तब उस पर से संसद का अधिकार खत्म हो जाता है। स्थायी समिति पर लोकसभा के अध्यक्ष का अधिकार होता है। इसके सुझावों के बाद ही स्थायी समिति कोई फ़ैसला ले सकती है। वहीं सरकार का कहना है कि अन्ना हजारे का अनशन असंवैधानिक है, क्योंकि विधेयक स्थायी समिति के पास चला गया है। अब समिति में ही इसमें फ़ेरबदल संबंधी सुझावों पर विचार-विमर्श हो सकता है। पिछले दिनों स्थायी समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा यह एक विधायी प्रक्रिया है। दुनिया पिछले तीन सौ से चार सौ वर्षों से यह प्रक्रिया अपना रही है। अन्ना अपने सभी सुझाव स्थायी समिति को दे सकते हैं। कानून का निर्माण एक विधायी प्रक्रिया है और इसमें समय लगता है। जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है।

स्थायी समिति का महत्व


संसद के कार्यों में विविधता होती है, साथ ही उसके पास काम की अधिकता भी रहती है। संसद के पास समय बहुत सीमित होता है, इसीलिए उसके समक्ष प्रस्तुत सभी विधायी या अन्य मामलों पर गहन विचार नहीं हो पाता है। इसके ज्यादातर कार्यों को विभिन्न समितियों को सौंप दिया जाता है। संसद के दोनों सदनों की समितियों की संरचना कुछ अपवादों को छोड़कर एक जैसी होती है। यह संविधान के अनुच्छेद 118 (1) के अंतर्गत दोनों सदनों द्वारा निर्मित नियमों के तहत अधिनियमित होती हैं। कानून का विषय महत्वपूर्ण, जटिल और व्यापक होने पर उसे संसद के स्थायी या प्रवर समिति के पास भेजने का प्रावधान होता है। समिति इसके सभी पहलुओं पर चर्चा करती है। इसमें सदन के ही सदस्यों को शामिल किया जाता है। इसके अलावा दोनों सदनों के सदस्यों को मिलाकर एक संयुक्त समिति का भी गठन किया जाता है। समिति विधेयक के समस्त प्रावधानों पर विचार करती है, लेकिन वह इसके मूल विषय में परिवर्तन नहीं करती है। समिति देशभर से लोगों का सुझाव मांगती है। इसके लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित कराया जाता है। इसके लिए कम-से-कम 15 दिनों का समय निर्धारित है। समीक्षा और परिचर्चा के बाद समिति संशोधन के साथ विधेयक को वापस सदन को सौंप देती है। इनकी कार्यवाही पार्टी पूर्वाग्रह से मुक्त होती है, अपनायी जाने वाली प्रक्रिया लचीली होती है। संसद के सभी सदस्यों को इसके कार्य में भाग लेने व समझने के लिए अवसर पैदा करती है। इसे मिनी संसद का दर्जा प्राप्त है।

समिति के प्रकार


संसद के पास सीमित समय में कार्यों की भरमार रहती है, जिससे विधायी मामलों से संबंधित कार्य समितियों द्वारा किया जाता है। समितियां दो तरह की होती हैं- स्थायी और तदर्थ समितियां। स्थायी समितियां प्रतिवर्ष या समय-समय पर नियुक्त की जाती हैं और इनका कार्य निरंतर चलता रहता है। तदर्थ समितियों की नियुक्ति जरूरत पड़ने पर की जाती है और अपना काम पूरा कर लेने के बाद वे समाप्त हो जाती हैं। जैसे- विधेयकों से संबंधित प्रवर या संयुक्त समिति। स्थायी समितियां लोकसभा की स्थायी समितियों में तीन वित्तीय समितियां, यानी लोक लेखा समिति, प्राक्कलन समिति और सरकारी उपक्रम समिति प्रमुख हैं। 8 अप्रैल 1993 में विभिन्न विभागों से संबंधित 17 स्थायी समितियों के गठन के पश्चात भारतीय संसद के इतिहास में नये युग का सूत्रपात हुआ। 2004 में स्थायी समितियों की संख्या को 17 से बढ़ाकर 24 कर दिया गया। जिनमें से 8 समितियां राज्यसभा के सभापति के निर्देश से कार्य करती हैं, जबकि 16 समितियां लोकसभा अध्यक्ष के निर्देश से कार्य करती हैं। लोकसभा के सदस्यों को अध्यक्ष और राज्यसभा से सभापति मनोनीत करते हैं। स्थायी समिति में मंत्री को सदस्य के रूप में नहीं चुना जा सकता है। इनका कार्यकाल एक वर्ष का होता है। राज्यसभा के सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किसी भी सभा में स्थापित किये जाने वाले विधेयकों की जांच और इस संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना इन समितियों का महत्वपूर्ण कार्य है।

विधेयक के अध्ययन में स्थायी समितियों के प्रतिवेदनों का काफ़ी महत्व होता है। यदि सरकार समिति की किसी सिफ़ारिश को स्वीकार कर लेती है, तो वह विधेयक पर विचार करने की प्रक्रिया में सरकारी संशोधन प्रस्तुत कर सकती है अथवा स्थायी समिति के प्रतिवेदन के अनुसार विधेयक को वापस भी लिया जा सकता है और स्थायी समिति की सिफ़ारिशों को सम्मिलित करने के पश्चात सदन एक नया विधेयक ला सकती है। इनकी सिफ़ारिशें सलाहपरक होती हैं, उन्हें मानने के लिए संसद बाध्य नहीं है। प्रवर समिति विशेष विधेयकों पर विचार करने और रिपोर्ट देने के लिए नियुक्त प्रवर या संयुक्त समितियां गठित की जाती हैं। जहां तक विधेयकों से संबंधित सवाल है, ये समितियां अन्य तदर्थ समितियों से भिन्न हैं। इनके द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया का उल्लेख अध्यक्ष या सभापति के निर्देश और प्रक्रिया संबंधी नियमों में किया जाता है।

समितियों के कार्य


भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के अनुदानों की मांग पर विचार करना और उसके बारे में सदन को सूचित करना, लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा समिति के पास भेजे गये ऐसे विधेयकों की जांच-पड़ताल करना और जैसा भी मामला हो उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना, मंत्रालयों और विभागों की वार्षिक रिपोर्ट पर विचार करना और रिपोर्ट तैयार करना, सदन में प्रस्तुत नीति संबंधी दस्तावेज, यदि लोकसभा के अध्यक्ष अथवा राज्यसभा के सभापति द्वारा समिति के पास भेजे गये हैं, उन पर विचार करना और जैसा भी हो, उसके बारे में रिपोर्ट तैयार करना। सीमाएं मंत्रालयों या विभागों के रोजमर्रा के मामलों पर विचार नहीं करती हैं, साथ ही किसी अन्य संसदीय समिति के समक्ष विचाराधीन मामले पर विचार नहीं करती है।

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