मीठी नदी पर तीखी राजनीति

Submitted by Hindi on Thu, 03/03/2011 - 09:27
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नटखट पत्रिका
हर साल मानसून आने के पहले मीठी नदी को लेकर राजनीति शुरू हो जाती है। मई महीने का आखिरी सप्ताह सभी दलों के नेताओं के लिए एक पिकनिक केंद्र बन जाती है। हर दिन नेताओं का काफिला लावलश्कर के साथ पहुंचता है और शुरू हो जाता है, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला। मीठी नदी का विकास मनपा और एम्.एम्.आर.डी.ए. कर रही है। लिहजा कोई भी अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभाने के बजे एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ना उचित समझते हैं।

संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान से निकलकर माहिम की खाड़ी में समाहित होने वाली मीठी नदी का अस्तित्व डेढ़ सौ साल पुराना है। मुंबई में पानी कि ज़रुरत को पूरा करने के लिए 1860 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने विहार जलाशय का निर्माण करवाया था। जलाशय के लबालब होने के बाद बरसात का पानी मीठी नदी के जरिये अरब सागर में जाने लगा। उस समय मुंबई के उपनगरों कि आबादी बहुत कम थी। साकीनाका,मरोल,कुर्ला का काफी इलाका घने जंगलों से घिरा था। जिसके कारण बारिश के मौसम में मीठी नदी स्वच्छंद रूप से बहा करती थी। इसका पानी पीने के उपयोग में भी आता था। सामान्य रूप से मीठी नदी में केवल 4 माह ही पानी बहता था। बांकी समय में यह लगभग सूखी ही रहती थी। जिसके कारण लोग इस नदी के बारे में बहुत कम जानते थे। मुंबई में हुयी औद्योगिक क्रांति के बाद शहर कि आबादी में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। मीठी नदी जिस जगह से होकर बहती थी। लोगों ने वहां झोपड़े बना लिए। मीठी नदी के इर्द-गिर्द कल कारखानों ने अपनी जगह बना ली। और कारखानों का कचरा सीधे इसी नदी में प्रवाहित होने लगा। इतना ही नहीं मरोल, अँधेरी, कुर्ला और साकीनाका के कई बड़े नालों को भी इससे जोड़ दिया गया। जिसके कारण मीठी नदी बदबूदार नदी के रूप में अपनी पहचान बनाने लगी। घरों का कचरा,प्लास्टिक,मकानों का मलबा आदि जमा होने के कारण नदी के पानी का प्रवाह धीरे - धीरे कम होता गया। लेकिन इस तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। मानसून आने के पहले महानगरपालिका कि तरफ से थोड़ा बहुत कचरा निकाल कर साफ़ कर दिया जाता था। जिससे पानी निकलकर अरब सागर में चला जाता था।

26 जुलाई 2005 को मुंबई में 934 सेमी से अधिक बारिश हुई और उसी समय समुद्र में मानसून का सबसे ऊंचा ज्वार भी उठा। बारिश का पानी समुद्र में जाने के बजाय रिहायशी इलाकों में भरने लगा। देखते ही देखते मुंबई में बाढ़ आ गयी। और इसका ठीकरा मीठी नदी पर फोड़ दिया गया। 50 से अधिक लोगों की मौत और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति के नुक्सान के बाद इसके कायाकल्प की कवायद शुरू हो गई। मुंबई महानगर पालिका, राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने मिलकर सयुंक्त परियोजना पर काम शुरू किया। 5 साल का समय गुजर जाने के बाद भी मीठी नदी के स्वरूप में कोई विशेष फर्क नहीं आया। लेकिन ये अलग बात है कि मीठी नदी विकास परियोजना से जुड़े जन प्रतिनिधियों,अधिकारियों और ठेकेदारों का विकास तेजी से हुआ।

26/7 की बाढ़ के बाद मुंबई में बरसाती पानी की निकासी को लेकर कवायद शुरू हो गई। शहर के 50 से अधिक नालों को ब्रिम्स्तोवोड़ परियोजना से जोड़ा गया। जिसके लिए केंद्र सरकार ने 1200 करोड़ रुपये कि व्यवस्था कि है। जबकि 18 किलोमीटर लम्बी नदी को चौड़ा और गहरा दोनों तरफ सुरक्षा दीवार बनाने, प्रभावितों को दूसरी जगह बसाने अदि को लेकर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मीठी नदी विकास प्राधिकरण बनाया गया। और मुंबई मनपा, एम्.एम्.आर.डी.ए. और एयरपोर्ट अथोरटी को सयुंक्त रूप से इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। अब तक मीठी नदी के नाम पर 600 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। एक हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया जाना बाकी हैं । लेकिन इसका स्तर अभी भी किसी बदबूदार नाले से ऊपर नहीं उठ पाया है । मानसून के पहले राजनीति शुरू होती है और नदी में राजनीती की बदबू आने लगती है।

शुरूआती दौर में मीठी नदी के विकास का खर्च 700 करोड़ रुपये आंका गया था। इसमें से 200 करोड़ रुपये केंद्र सरकार की तरफ से मिलने थे। लेकिन नदी और नालों को लेकर केंद्र सरकार कि तरफ से रूपये मिलने में देरी होती गयी। खर्च का दायरा बढ़ता गया। और ये खर्च बढ़कर 1657 करोड़ रुपये हो गया। 18 किलोमीटर लम्बी नदी का विकास 11.8 किलोमीटर हिस्से का विकास मुंबई महानगर पालीका कर रही है।

नदी को फिर से जीवीत रखने की कवायद शुरू हो गयी है। विहार लेक, पवई से माहिम तक बहने वाली मीठी नदी में 43 नालों से लाखों तन कचरा बहता है। जिससे नदी के पानी में ऑक्सिजन की मात्रा कम हो गई है। लिहाजा मछलियों को ऑक्सिजन देने के लिए एम्.एम्.आर.डी.ए.. ने ऑक्सिजन डालने का काम शुरू किया। और अमेरिकी कम्पनी इन्वायरमेंटल कंसल्टिंग टेक्नोलॉजी इंक से डेढ़ करोड़ रुपये कि लगत वाली 2 मशीने किराये पर ली थी। जो प्रति मिनट 8 से दस गैलन पानी में ऑक्सिजन डाल सकती है। हालाँकि मीठी नदी के प्रदुषण को रोकने के लिए निरी भी जुटा हुआ हैं। ताकि प्रदुषण को रोका जा सके।

कुल मिलाकर मीठी नदी राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ जयका बनता जा रहा है।