मक्का का हब बन रहा है कोसी

Submitted by Hindi on Sun, 04/24/2016 - 16:09
Source
सोपान स्टेप, अप्रैल, 2016

आज कोसी इलाके में मक्का एक प्रमुख नगदी फसल बन गया है

मक्काजहाँ एक तरफ पुरे देश में ख़राब मौसम और पानी की कमी के कारण से किसान आत्म हत्या करने जैसे रास्ते अपना रहे हैं, वहीं बिहार के सीमांचल के किसान खेती के तौर तरीके को बदल कर न सिर्फ अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं बल्कि मक्का की खेती के बल पर अपनी जिन्दगी बना रहे हैं। कभी धान और जुट के लिये जाना जाने वाला यह इलाका पिछले एक दशक से मक्के के हब रूप में अपनी पहचान बना रहा है। एशिया के सबसे बड़े अनाज मंडी पूर्णिया के गुलाबबाग में होर्लिक्स, ब्रिटेनिया, हिन्दुस्तान लीवर, नेस्ले से लेकर तमाम ऐसी बड़ी कम्पनी अपने एजेंट के माध्यम से मक्का खरीदने आ रही है। लेकिन सरकारी खरीदी के दौरान उदासीनता और बिचौलियों के बढ़ते प्रभाव के कारण से किसानों को उसका उचित फायदा नहीं मिल रहा है।

कम पानी बना कारण


मक्का की खेती कोसी क्षेत्र के भागलपुर का उत्तरी इलाका, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, मधेपुरा, सहरसा, किशनगंज, बेगूसराय के अलावा समस्तीपुर जिलों में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। एक दशक पहले इस इलाके में किसान धान और जुट की खेती करना ज्यादा पसंद करते थे। कोसी की धारा बदलने और मौसम की बेरुखी के कारण से किसानों के सामने सिंचाई की समस्या बढ़ गई थी। किसानों को पारम्परिक खेती में मुनाफा कम और घाटा ज्यादा होने लगा था। कम समय में उत्पादन, कम सिंचाई और ज्यादा मुनाफा के कारण से किसान ने पहले केला फिर मक्के को अपना लिया है। आज कोसी इलाके में मक्का एक प्रमुख नगदी फसल बन गया है।

बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ आती है खरीद करने


पूर्णिया स्थित गुलाबबाग अनाज मंडी एशिया के सबसे बड़ी अनाज मंडी के रूप में जाना जाता है। यहाँ न सिर्फ पूर्णिया बल्कि आस-पास के जिलों से किसान अपने फसल को बेचने आते हैं। मक्के के व्यवसाय से जुड़े व्यापारी और एजेंट बताते हैं कि गुलाबबाग से खरीद किया जाने वाला मक्का न सिर्फ देश बल्कि बांग्लादेश, कनाडा, आस्ट्रेलिया, नेपाल समेत कई देशों में बिकने के लिये जाता है। इसके साथ-साथ कम कीमत और ज्यादा मुनाफा के लिये हरेक साल मक्के की फसल के समय न सिर्फ हेल्थ ड्रिंक्स बनाने वाली कम्पनी बल्कि हिन्दुस्तान लीवर, नेस्ले, अमृत, आहार के अलावा मुर्गा और पशुओं के लिये आहार बनाने वाली कम्पनियों के एजेंट आ कर मक्के की खरीद कर रहे हैं। एक आँकड़े के मुताबिक बिहार से हरेक साल 15 लाख टन से ज्यादा मक्का विदेश जा रहा है।

250 करोड़ का बड़ा बाजार


बिहार में मक्के की खेती का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है की बिहार में रबी के मौसम में 25 लाख से ज्यादा मक्का बीज के पैकेट की खपत हो जाती है। जिसका औसत बाजार मूल्य 250 करोड़ से ज्यादा का होता है। बीज कम्पनियाँ भी बिहार के बढ़ते बाजार को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा बीज बिहार में सप्लाई कर रही है, ताकि बिक्री से ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।

ग्रेड से तय होती है कीमत


मक्के की ट्रेडिंग ग्रेड के आधार पर तय की जाती है। एक्सपर्ट बताते हैं की सबसे बेहतरीन क्वालिटी के मक्के को कलकत्ता पास के नाम से जाना जाता है जिसे विदेशों में भेजा जाता है इसी कीमत सबसे ज्यादा होती है। इसके बाद सुपर बीडी, बीडीआर, बीडी और सीडी ग्रेड के मक्का होते हैं जिन्हें उनके रंग क्वालिटी के आधार पर बाँटा जाता है। हरेक ग्रेड के कीमत में 100 से 150 रूपये प्रति क्विंटल का अन्तर होता है।

सरकारी उदासीनता बन रही है बाधा


मक्का का दानाजहाँ एक तरफ देश-विदेश की बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मक्का की खरीद के लिये गुलाबबाग का रुख करती है, वहीं सरकारी उदासीनता के कारण से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। हरेक साल किसान मक्का के लिये समर्थन मूल्य की घोषणा कर देती है पर खरीद के नाम पर ठोस कदम नहीं उठाती है। अक्सर मक्का की खरीद के लिये भारतीय खाद्य निगम के द्वारा कम क्रय केन्द्र बनाये जाते हैं। जिसकी जानकरी किसानों तक पहुँच नहीं पाती है। अगर किसान अपने फसल को बेचने के लिये क्रय पहुँच भी जाते हैं तो जहाँ कभी नमी का बहाना बना कर खरीद से इंकार कर दिया जाता है ऐसे में किसानों को कम कीमत पर बिचौलियों के हाथों मंडी में अपने फसल को बेचने पर मजबूर होना पड़ता है। जहाँ क्वालिटी और ग्रेड के नाम पर उन्हें अक्सर कम कीमत मिलता है जिस कारण से उनका मुनाफा घट जाता है।

मक्का आधारित फैक्ट्री का अभाव है


पिछले एक दशक में मक्का की खेती का दायरा काफी बढ़ गया है। उत्पादन वही बिहार में मक्के के उत्पादन में 50 से 60 प्रतिशत का इजाफा है, लेकिन बिहार में मक्के पर आधारित उद्योग नहीं के बराबर होने के कारण से यहाँ का ज्यादा उत्पाद बिहार के बाहर चला जाता है, जिससे की किसानों को मिलने वाला फायदा काफी कम हो जाता है। बिहार में हाजीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर में मूँग दाना बनाने की फैक्ट्री तो है पर उसकी उतनी क्षमता नहीं है की वह ज्यादा मात्रा में मक्का को खरीद सके। बिहार में मक्के के फसल को और ज्यादा बढ़ावा देने के लिये कोसी इलाकों में मक्के पर आधारित फैक्ट्री लगाने की जरूरत है।