मन्दिरों की शिल्पयात्रा

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 11:27
कुमारी अचरज

खजुराहो:


खजुराहोखजुराहोखजुराहो के मंदिर कलात्मकता के अनमोल उपहार हैं जिन्हें हमारे उदार संस्कृति वाले अतीत ने हमें सौंपा है। ये मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध हैं और भारत का गौरव हैं। इन मंदिरों का शिल्प हमें अपने उदार अतीत की झाँकी दिखाते हैं। काम, धर्म, मोक्ष के जीवन दर्शन को दर्शाते हैं ये मन्दिर। प्रेम की उदात्त अभिव्यक्तियों को, जीवन के हर पक्ष को, धार्मिकता, युद्ध सभी को मूर्तिकारों ने बड़ी जीवन्तता से पत्थरों पर उकेरा है। यह चन्देल राजपूतों के विशाल दृष्टिकोण के प्रतिबिम्ब हैं। चन्देल चन्द्रवंशी राजपूत थे। कहते हैं इस वंश की उत्पत्ति और इन मंदिरों के निर्माण के अतीत में एक कथा है। हेमावती वन में स्थित एक सरोवर में नहा रही थी तो उसे चन्द्रमा ने देखा और मुग्ध हो गया और उसे अपने वशीभूत कर उससे प्रेम-सम्बन्ध बना लिए जिसके फलस्वरूप हेमावती ने एक बालक को जन्म दिया। हेमावती और बालक को समाज ने अस्वीकार कर दिया, तो उसने वन में रह कर बालक का पोषण किया और बालक का नाम रखा चन्द्रवर्मन। इस चन्द्रवर्मन बड़े होकर अपना राज्य कायम किया। कहते हैं कि हेमावती ने चन्द्रवर्मन को प्रेरित किया कि वह मानव के भीतर दबे प्रेम व काम की उदात्त भावनाओं को उजागर करती मूर्तियों वाले मन्दिर बनाए जिससे कि मानव को उसके अन्दर दबी इन कामनाओं का खोखलापन दिखाई दे और जब वे इन मन्दिरों में प्रवेश करें तो इन विकारों को त्याग चुके हों। इसके पीछे एक और कारण भी हो सकता है कि चन्देल तांत्रिक अर्चना में विश्वास रखते हों और मानते हों कि इन दैहिक कामनाओं पर विजय पाकर ही निर्वाण संभव है।

चन्देल वंश के क्षरण के साथ ही ये मन्दिर विस्मृति में डूबे सदियों घने जंगलों से घिरे रहे और धीरे-धीरे समय का शिकार होते रहे। इनका पुनरूद्धार पिछली सदी में ही संभव हुआ, तबसे अब तक ये मन्दिर कलात्मकता के विषय में संसार भर में प्रसिद्ध हैं। ये मन्दिर मात्र सौ वर्षों के समय में बन कर तैयार हुए थे, लगभग 950 ए डी से लेकर 1050 के बीच। ये मन्दिर संख्या में करीब 85 थे, समय के प्रहारों से बचकर आज सिर्फ 22 मंदिर शेष हैं जो कि कलात्मक उँचाईयों के उदाहरण हैं और अपने सौंदर्य से आज भी संसार को चकित कर रहे हैं और अगर इनकी उचित सार-संभाल हुई तो हमारी आने वाली पीढ़ीयों को भी अपने महान सांस्कृतिक अतीत का स्मरण कराते रहेंगे। अपने स्थापत्य की दृष्टि से ये मंदिर अपने समय के मन्दिरों की बनावट से एकदम अलग हैं। हर मन्दिर एक ऊँचे विशाल प्लेटफार्म पर बना है। हर मन्दिर के मुख्य कक्ष की छत का मध्य भाग ऊँचाई पर है और बाहर की ओर आते-आते वह गोलाकार ढलान पर आ जाती है छत इस संरचना के अन्दर बडी बारीक नक्काशियां की गईं हैं। प्रत्येक मन्दिर के तीन मुख्य भाग हैं; प्रथम जो द्वार है वह अर्धमण्डप है, द्वितीय भाग जहाँ लोग प्रार्थना के लिए एकत्र होते हैं वह मण्डप है, तृतीय भाग गर्भगृह कहलाता है जहाँ देवता की मूर्ति की स्थापित होती है और अधिक बडे़ मन्दिरों में कई मण्डप व दो या अधिक गर्भगृह हैं।

भौगोलिक दृष्टि से ये मन्दिर तीन विभिन्न समूहों में विभाजित हैं; पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी समूह।

पश्चिमी समूह :


कन्दारिया महादेव-


यह खजुराहो के मन्दिरों में सबसे बड़ा मंदिर है। इसकी ऊँचाई 31 मीटर है। यह एक शिव मन्दिर है, इसके गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। इस मंदिर के मुख्य मण्डप में देवी-देवताओं और यक्ष-यक्षिणियों की प्रेम लिप्त तथा अन्य प्रकार की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां इतनी बारीकी से गढ़ी गईं हैं कि इनके आभूषणों का एक-एक मोती अलग से दिखाई देता है और वस्त्रों की सलवटें तक स्पष्ट हैं और शारीरिक गठन में एक-एक अंग थिरकता सा महसूस होता है। इस मन्दिर के प्रवेश द्वार की मेहराबें, गर्भ गृह की छतें और मण्डप के खम्भे अपनी मूर्तिकला की बारीकी के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

चौंसठ योगिनी-


यह मन्दिर अपने आप में अनूठा मन्दिर है। माँ काली का यह मंदिर ग्रेनाईट का बना हुआ है। इसमें माँ काली के चौंसठ अवतारों के विभिन्न रूपों को उकेरा गया है।

चित्रगुप्त मन्दिर-


यह मंदिर सूर्य देवता का मंदिर है इसलिए यह मन्दिर पूर्वमुखी है। इस मंदिर के गर्भगृह में पाँच फीट ऊँचा रथ पत्थरों की शिलाओं पर बहुत सुन्दरता और बारीकी के साथ उकेरा गया है। इस मंदिर की दीवारों पर उकेरे दृश्य चन्देल साम्राज्य की भव्य जीवन शैली की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। मसलन शाही सवारी, शिकार, समूह नृत्यों के दृश्य।

विश्वनाथ मन्दिर-


यह मंदिर मुख्यत: ब्रह्मा मन्दिर है। इस मंदिर में ब्रह्माजी की त्रिमुखी मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर का प्रवेशद्वार बड़ा प्रभावशाली है, इसके उत्तर में सिंहों की मूर्तियाँ हैं तथा दक्षिण में बनी सीढियाँ हाथियों की भव्य मूर्तियों तक ले जाती हैं। मन्दिर की ओर मुख किये एक नन्दी बैल की प्रतिमा है।

लक्ष्मण मंदिर-


इस वैष्णव मन्दिर के प्रवेशद्वार पर ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश की त्रिमूर्ति स्थित है। इसके नक्काशीदार गर्भगृह में विष्णु के अवतार नरसिंह और वराह भगवान की त्रिमुखी मूर्ति है।

मतंगेश्वर मन्दिर-


इस शिव मंदिर में आठ फीट लम्बा भव्य शिवलिंग स्थापित है और यह पश्चिमी समूह के मंदिरों में सबसे अन्त में स्थित है।

पूर्वी समूह:


पार्श्वनाथ मन्दिर-


यह जैन मन्दिर है। इस मन्दिर की दीवारों पर बहुत सुन्दर मूर्तियाँ उकेरी हैं जो कि दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या के सूक्ष्म तथ्यों को दर्शाती हैं। इस मन्दिर में जैनों के प्रथम तीर्थकंर आदिनाथ की प्रतिमा है। इसके पास ही घनताई मन्दिर भी एक जैन मन्दिर है। यहीं एक और आदिनाथ मन्दिर भी है जिसमें मूर्तिकला का सुन्दर उपयोग हुआ है, यहा अन्य आकृतियों के साथ यक्ष-यक्षिणी की भी बहुत सुन्दर मूर्ति हैं। इस समूह में तीन हिन्दू मन्दिर भी हैं। एक ब्रह्मा मन्दिर है जिसमें चतुरमुखी शिवलिंग स्थापित है। दूसरा वामन मन्दिर है, इसकी बाहरी दीवारों पर अप्सराओं की विभिन्न मुद्राओं में अभिसार लिप्त मूर्तियाँ हैं। तीसरा जावरी मन्दिर इस के प्रवेशद्वार पर कलात्मक समृद्धता दर्शाते स्थापत्य और मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने अंकित हैं।

दक्षिण समूह:


दुलादेव मन्दिर-


शिव के इस मन्दिर में नृत्यरत अप्सराएं और आभूषणों से सज्जित सुन्दर स्त्रियों की आकृतियाँ महीन बिन्दुओं को भी स्पष्टत: दर्शाती प्रतीत होती हैं। यह अद्भुत उदाहरण हैं मूर्तिकला के।

चतुर्भुज मन्दिर-


यह एक विशाल मन्दिर है और अन्य मंदिरों की तरह यह भी वास्तु और मूर्तिकला की उत्कृष्ट ऊँचाइयों को छूता है। इस मन्दिर के गर्भ में सुन्दरता से तराशी विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित है।

खजुराहो के आस-पास


पन्ना नेशनल पार्क-


पन्ना नेशनल पार्कपन्ना नेशनल पार्कयह खजुराहो से मात्र 32 कि मी की दूरी पर स्थित है। बस 30 मिनट की ड्राइव। यह पार्क केन नदी के किनारे फैला है। यहाँ वन्य जीवों की कई प्रजातियाँ हैं। प्रोजेक्ट टाईगर यहाँ भी सफलता से चल रहा है, बाघ को अपने प्राकृतिक आवास में देख पाने का अवसर भी आप यहाँ आकर पा सकते हैं। अन्य दुर्लभ प्रजातियों में आप यहाँ देख सकते हैं तेन्दुआ, भेड़िया, और घड़ियाल। नीलगाय, चिंकारा और साम्बर तो यूं ही झुण्ड में विचरते दिख जाते हैं। खजुराहो से पन्ना के रास्ते में भी अनेक मनोरम स्थान आप देख सकते हैं। जैसे पाण्डव झरने, बेनीसागर डेम, रानेह के झरने, रंगुआन लेक आदि।

चित्रकूट-


चित्रकुट धामचित्रकुट धामयह खजुराहो से 195 किमी दूर है। आश्चर्यजनक विंध्य के पहाडों और निरन्तर प्रवाहमान नदियों और मनोरम जंगलों से घिरा चित्रकूट प्रकृति की गोद में स्थित है। साथ ही यह एक माना हुआ तीर्थ है। भगवान राम और सीता जी तथा लक्ष्मण जी ने अपने वनवास के चौदह वर्षों में से ग्यारह वर्ष यहीं बिताए थे। यहाँ के मन्दिर, घाट आदि देखने योग्य हैं। यहाँ वर्ष भर तीर्थयात्रियों का आना-जाना लगा रहता है। यहाँ रामघाट, कामदगिरी, सीता कुण्ड, सती अनुसुया मन्दिर, स्फटिक शिला, गुप्त गोदावरी नदी, हनुमान धारा और भरत कूप आदि उल्लेखनीय स्थान हैं।

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संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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