यूनेस्को की विश्व धरोहर कमेटी ने विगत 21 जून को असम के विश्व प्रसिद्ध मानस राष्ट्रीय पार्क को खतरनाक अभयारण्यों की सूची से बाहर निकाल दिया है। हिमालय की तराई में स्थित असम के इस राष्ट्रीय पार्क को एक अक्तूबर, 1928 को अभयारण्य घोषित किया गया और 1973 में इसे बाघों के लिए आरक्षित कर दिया गया।
इस आरक्षित क्षेत्र को छह जिलों में विस्तारित किया गया है-कोकराझार, बोंगाइगांव, बारपेटा, नलबाड़ी, कामरूप और दारांग। जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता वाले इस आरक्षित अभयारण्य में 22 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं, जैसे-बाघ, चीता, क्लाउडिड चीता, सुनहरी बिल्ली, लैपर्ड कैट, एक सींग वाले गेंडा, पोंगोलिन, हाथी, पिग्मी हॉग, सुनहरे लंगूर इत्यादि। पिग्मी हॉग और सुनहरे लंगूर केवल इसी अभ्यारण्य में हैं। सुनहरे लंगूरों को बचाने के लिए इस अभयारण्य में जल्दी ही एक प्रजनन केंद्र खोलने की भी योजना है।
राज्य में चल रहे आंदोलनों की वजह से विश्व धरोहर स्थल घोषित होने के सात साल बाद ही इसे खतरनाक घोषित कर दिया गया था। क्योंकि उग्रवादियों ने इसे अपनी शरणगाह बना ली थी और संरक्षित जीव-जंतुओं के शिकार की घटनाएं भी काफी बढ़ गई थीं। लेकिन वर्ष 2000 के बाद जब स्वायत्त बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् की स्थापना हुई, तो इस क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति में सुधार हुआ। उसके बाद सरकार के साथ स्थानीय लोगों और प्रतिबद्ध स्वयंसेवी संगठनों ने इसके पुराने गौरव को लौटाने की दिशा में काफी प्रयास किए। नतीजतन असम ने वन्यजीव संरक्षण की दिशा में विश्व में एक मुकाम हासिल किया।
इस वन के भीतर एक ही जंगली गांव है-अगरांग। लेकिन 56 से ज्यादा गांव इसके आसपास फैले हैं, जिनमें से ज्यादातर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस वन पर निर्भर हैं। इस पार्क का नाम मानस नदी के नाम पर रखा गया है, जो इस पार्क के बीच से होकर गुजरती है।
इस आरक्षित क्षेत्र को छह जिलों में विस्तारित किया गया है-कोकराझार, बोंगाइगांव, बारपेटा, नलबाड़ी, कामरूप और दारांग। जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता वाले इस आरक्षित अभयारण्य में 22 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं, जैसे-बाघ, चीता, क्लाउडिड चीता, सुनहरी बिल्ली, लैपर्ड कैट, एक सींग वाले गेंडा, पोंगोलिन, हाथी, पिग्मी हॉग, सुनहरे लंगूर इत्यादि। पिग्मी हॉग और सुनहरे लंगूर केवल इसी अभ्यारण्य में हैं। सुनहरे लंगूरों को बचाने के लिए इस अभयारण्य में जल्दी ही एक प्रजनन केंद्र खोलने की भी योजना है।
राज्य में चल रहे आंदोलनों की वजह से विश्व धरोहर स्थल घोषित होने के सात साल बाद ही इसे खतरनाक घोषित कर दिया गया था। क्योंकि उग्रवादियों ने इसे अपनी शरणगाह बना ली थी और संरक्षित जीव-जंतुओं के शिकार की घटनाएं भी काफी बढ़ गई थीं। लेकिन वर्ष 2000 के बाद जब स्वायत्त बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद् की स्थापना हुई, तो इस क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति में सुधार हुआ। उसके बाद सरकार के साथ स्थानीय लोगों और प्रतिबद्ध स्वयंसेवी संगठनों ने इसके पुराने गौरव को लौटाने की दिशा में काफी प्रयास किए। नतीजतन असम ने वन्यजीव संरक्षण की दिशा में विश्व में एक मुकाम हासिल किया।
इस वन के भीतर एक ही जंगली गांव है-अगरांग। लेकिन 56 से ज्यादा गांव इसके आसपास फैले हैं, जिनमें से ज्यादातर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस वन पर निर्भर हैं। इस पार्क का नाम मानस नदी के नाम पर रखा गया है, जो इस पार्क के बीच से होकर गुजरती है।
Hindi Title
मानस राष्ट्रीय पार्क
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संदर्भ