मरीचिका एक प्रकार का वायुमंडलीय दृष्टिभ्रम है, जिसमें प्रेक्षक अस्तित्वहीन जलाश्य एवं दूरस्थ वस्तु के उल्टे या बड़े आकार के प्रतिबिंब तथा अन्य अनेक प्रकार के विरूपण देखता है। वस्तु और प्रेक्षक के बीच की दूरी कम होने पर प्रेक्षक का भ्रम दूर होता है, वह जलाशय नहीं देख पाता। गरम दोपहरी में सड़क पर मोटर चलाते समय किसी सपाट ढालवीं भूमि की चोटी पर पहुँचने पर, दूर आगे सड़क पर, पानी का भ्रम होता है। यह मरीचिका का दूसरा सुपरिचित स्वरूप है।
इस घटना की व्याख्या प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन (total internal reflection) के सिद्धांत के आधार पर की जाती है। जब पृथ्वी की सतह से सटी हुई हवा की परत गरम हो जाती है, तब वह विरल हो जाती है और ऊपर की ठंढी परतों की अपेक्षा कम अपवर्तक (refracting) होती है। अत: किसी सुदूर वस्तु से आनेवाला प्रकाश (जैसे पेड़ की चोटी से आता हुआ) ज्यों ज्यों हवा की परतों से अपवर्तित होता आता है, त्यों त्यों वह अभिलंब (normal) से अधिकाधिक विचलित (deviate) होता जाता है और अंत में पूर्णत: परावर्तित हो जाता है। फलत: प्रेक्षक वस्तु का काल्पनिक उल्टा प्रतिबिंब देखता है, जैसा चित्र में दिखाया गया है। [ किरण चंद चक्रवर्ती]
इस घटना की व्याख्या प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन (total internal reflection) के सिद्धांत के आधार पर की जाती है। जब पृथ्वी की सतह से सटी हुई हवा की परत गरम हो जाती है, तब वह विरल हो जाती है और ऊपर की ठंढी परतों की अपेक्षा कम अपवर्तक (refracting) होती है। अत: किसी सुदूर वस्तु से आनेवाला प्रकाश (जैसे पेड़ की चोटी से आता हुआ) ज्यों ज्यों हवा की परतों से अपवर्तित होता आता है, त्यों त्यों वह अभिलंब (normal) से अधिकाधिक विचलित (deviate) होता जाता है और अंत में पूर्णत: परावर्तित हो जाता है। फलत: प्रेक्षक वस्तु का काल्पनिक उल्टा प्रतिबिंब देखता है, जैसा चित्र में दिखाया गया है। [ किरण चंद चक्रवर्ती]
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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