उत्तर प्रदेश के जल में “आर्सेनिक” का जहरएक तरफ हम विश्व जल दिवस (22 मार्च) मनाने की तैयारी कर रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दी लक्ष्य घोषित किए जा रहे हैं, लोगों को साफ सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने के जितने प्रयास किए जा रहे हैं वहीं ऐसा लगता है कि मंजिल कोसों दूर होती जा रही है। हाल में मिलने वाली खबरें कुछ ऐसे ही खतरे का संकेत दे रहीं हैं।
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सीएसडी द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी पर आमंत्रण
विषयः जल संसाधन प्रबंधन के लिए भागीदारी दृष्टिकोणगुरूवार और शुक्रवार, 19-20 मार्च, 2009 स्थान:
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, एनेक्सी
लोधी एस्टेट, नई दिल्ली - 110003 मुख्य व्याख्यानटी. हक मार्च 19, 2009, 10:00, आईआईसी-एनेक्सी
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रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर सीएसई का विशेष वर्कशॉप
नई दिल्ली की प्रसिद्ध संस्था "सीएसई" ने अर्बन रेनवाटर हार्वेस्टिंग; विषय पर एक विस्तृत और अग्रगामी कोर्स (अभ्यास सत्र) तैयार किया है जो कि इस क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिये उपयोगी साबित होगा। इस चार दिनी कोर्स का आयोजन 23 से 27 मार्च 2009 को नई दिल्ली में किया जायेगा।
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निमंत्रण : पटना में राष्ट्रीय नदी परिसंवाद
पिछले वर्ष कोसी नदी के बांध के टूटने से उत्पन्न विभिषिका से आप परिचित होंगे। इसके कारण नेपाल एवं भारत (बिहार) के कई जिले जलमग्न हो गए तथा हजारों लोगों एवं पशुओं की मौत हुई। इस विभिषिका ने बड़े बांधों पर एक बार फिर से प्रश्नचिन्ह लगा दिया है तथा नदियों से जुडे़ सभी मुद्दों पर नए सिरे से चिंतन को अनिवार्य बना दिया है।
सर्वोदय विचार के राष्ट्रीय संगठन सर्व संघ(अ.भा.सर्वोदय मंडल) इस प्रश्न को राष्ट्रीय प्रश्न मानता है। अतः इसका समाधान भी राष्ट्रीय दृष्टि से ही हो सकता है।
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अकाल के काल विलासराव सालुंके की जबानी उनकी कहानीएक कथा ऐसी भी...
"एक-दो नहीं, पसीने से लथपथ चालीस हजार लोगों को तपती दुपहरिया और झुलसाती लू को झेलते हुए एक साथ पत्थरों को तोड़ते देख मैं अवाक् रह गया। हरियाली का एक तिनका नहीं। कहीं-कहीं से छोटे बच्चों के बिलखने की आवाज और उन पर खीजतीं, चुप कराती मजदूर माताएं। चालीस हजार छोटी,
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कहाँ खो गया बुन्देलखण्ड का पानी
अजय भान सिंह सागर से
पिछले कुछ सालों से सब कुछ बदला हुआ है.जिस बुन्देलखण्ड में कुंओं की खुदाई के समय पानी की पहली बूंद के दिखते ही गंगा माई की जयकार गूंजने लगती थी, वहां एक अरसे से कुंओं बावड़ियों से गंगा माई नदारद हैं. जिस गऊ की, माता कहकर पूजा की जाती थी,चारे पानी के अभाव में उसको तिलक करके घरों से रूख्सत करना पड़ रहा है. सूखे खेतों में ऐसी मोटी और गहरी दरारें पड़ गई हैं, जैसे जन्म के बैरियों के दिलों में होती हैं.
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