जींद। खेती को घाटे का सौदा मानकर लोग जहाँ कृषि प्रधान देश में अपने आपको बेरोजगार महसूस कर रहे हैं वहीं, दूसरी ओर जुलाना के किसान हवा सिंह प्रजापति दूसरों के लिये मिसाल बने हैं।
जमीन को ठेके पर लेकर वह पाँच एकड़ में मशरूम की खेती कर रहे हैं। उन्होंने खेतों में मशरूम के लिये छप्पर बना रखे हैं, जहाँ 20 मजदूर दिन-रात काम करते हैं। मशरूम में विटामिन, प्रोटीन और अमीनो एसिड की काफी मात्रा होती है, जो शुगर के मरीजों के लिये काफी लाभदायक साबित होती है। हड्डियों को मजबूती प्रदान करती है। मरी हुई कोशिकाओं को दोबारा से पुनर्जीवित करती है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है, जिस कारण यह दिल और कैंसर के मरीजों के लिये भी लाभदायक बताई गई है।
फसल के अनुरूप तापमान होने पर डेढ़ गुना तक मुनाफा
जिला बागवानी विभाग के सलाहकार असीम जागड़ा के अनुसार, मशरूम की खेती मौसम पर निर्भर करती है। तापमान फसल के अनुरूप होने पर फसल में डेढ़ गुना तक मुनाफा कमाया जा सकता है। अगर ज्यादा तापमान होगा तो पानी का छिड़काव करें और कम होने पर शेड को हटाकर सूरज की रोशनी को अन्दर तक पहुँचाएँ। फिर थर्मामीटर से तापमना को मापा जाता है और उसके बाद ही कोई कदम उठाया जाता है। एक एकड़ में चार शेड लगते हैं। एक फसल में पाँच लाख रुपए तक लागत आती है, जबकि सात लाख रुपए तक कमाई हो जाती है।
बेटा भी बी.ए. के बाद जुटा पिता के साथ
हवा सिंह का पुत्र विजय बेरोजगार युवाओं के लिये प्रेरणा बना है। बी.ए. करने के बाद वह नौकरी के लिये नहीं भटका बल्कि पिता के काम में हाथ बँटा लाखों कमा रहा है। विजय पढ़ाई के बाद शाम को खेत में मशरूम के काम में हाथ बँटवाता है। रात को पैकिंग कर रातों-रात बाजार में बेचने के लिये भी जाता है।
विवाह के मौकों पर बढ़ती है माँग
हवा सिंह ने बताया कि दिसम्बर और जनवरी में विवाह के मौकों पर मशरूम की माँग बढ़ जाती है। मशरूम को रात के समय में टॉर्च की सहायता से उखाड़कर पानी से साफ किया जाता है। फिर 20 लोगों द्वारा इसकी पैकिंग की जाती है। मशरूम की पैकिंग को तैयार कर रातों-रात बाजार में भेजा जाता है। अगर विवाह के मौकों पर माल की आपूर्ति पूरी हो जाए तो मोटा मुनाफा मिल जाता है। आजकल मशरूम 70 से 100 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बाजार में बिक रहे हैं।
तैयार करने की विधि
हवा सिंह ने बताया कि छप्पर का क्षेत्रफल 2,800 वर्गफीट होता है। इसमें 40 क्विंटल तूड़े का मैटीरियल डाला जाता है। 40 क्विंटल तूड़े में दो बैग यूरिया, एक बैग पोटाश, एक बैग सिंगल सुपर फास्फेट, एक बैग अमोनिया सल्फेट, 20 क्विंटल मुर्गी का खाद, सात बैग जिप्सम, 70 किलोग्राम सूरजमुखी या बिनौला खल, दो क्विंटल चोकर का मिश्रण तैयार किया जाता है। इसे कम्पोस्ट कहा जाता है। कम्पोस्ट को लगातार 28 दिन तक मिश्रित किया जाता है। मिश्रण को छप्पर में बने हुए बेड में डाला जाता है। 15 दिन बाद बिजाई की जाती है। बिजाई के 15 दिन बाद जाला बनाकर तैयार हो जाता है। लगातार एक माह तक पानी का छिड़काव किया जाता है। जाला बनने तक छप्पर का तापमान 20 से 24 डिग्री होता है और मशरूम तैयार होने पर 14 से 18 डिग्री तापमान रखना जरूरी होता है। मशरूम तैयार होने पर पैकिंग कर जींद, रोहतक और दिल्ली की आजादपुर सब्जी मंडी में बेचने के लिये भेजा जाता है।
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