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विज्ञान गंगा, जुलाई-अगस्त, 2015
मैं दूध हूँ
आपके जन्म लेते ही प्रकृति ने माँ के स्पर्श के साथ जो सबसे पहला आहार आपको दिया था, मैं वही दूध हूँ, ठीक माँ की ममता जैसा ही मीठा और उसकी भावनाओं जैसा ही स्वच्छ। केवल मानव ही क्यों और भी बहुत से प्राणी हैं जो प्रकृति की इस उदारता का लाभ उठा रहे हैं और इन सबको ही स्तनपायी जीवों की श्रेणी में रखा जाता है।

पशु | पानी | प्रोटीन | लैक्टोज प्रतिशत | लवण | वसा |
गाय | 87.0 | 3.5 | 4.0 | 0.7 | 3.0 |
बकरी | 87.0 | 3.5 | 4.3 | 0.9 | 4.3 |
भेड़ | 82.0 | 5.8 | 4.8 | 0.9 | 6.0 |
भैंस | 82.7 | 3.6 | 5.5 | 0.8 | 7.4 |
रेण्डियर | 63.3 | 10.3 | 2.5 | 1.4 | 22.5 |

मुझ दूध से बनी क्रीम, पनीर, दही मक्खन या घी आदि के बारे में तो आप सबको पता ही होगा। जो नहीं पता है वह मैं आपको बता देता हूँ और वह है केसीन जिसका उपयोग फोटोग्राफी के पेपर विशेष प्रकार के ऑयल क्लॉथ, रंग-रोगन तथा इनेमिल आदि तैयार करने में बहुतायत से होता है। इससे बनाये गये एक विशेष प्रकार के प्लास्टिक से कंघे व बटन आदि तैयार किये जाते हैं। यूरोप में एक समय था जब केसीन से बने इनकी धूम मची हुई थी।
अधिकतर बच्चे मुझे प्यार नहीं करते, यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूँ। पर क्रीम, खोया, पनीर, मक्खन, मलाई, दही आदि में से ये बच्चे किसी न किसी को जरूर पसन्द करते हैं और यह मेरे लिये बड़े सन्तोष की बात है क्योंकि ये सब भी तो आखिर मेरे ही विविध रूप हैं। क्यों, हैं न? मानते हैं न?
मैं मिट्टी हूँ
प्रकृति में एक ऐसा अजूबा मौजूद है जिससे मिलकर ही सब कुछ बना है और अन्त में सब कुछ इसमें ही मिल जाना है। यही अजूबा हूँ मैं मिट्टी। कहने को तो दो कौड़ी की चीज हूँ पर मेरी उपयोगिता के बारे में जरा ध्यान देकर सोचो तो आप पाओगे कि मैं न रहूँ तो पृथ्वी पर प्राणिमात्र का जीवन ही शायद खतरे में पड़ जाए।

मेरी एक किस्म ऐसी भी जिसको यदि गर्म किया जाये तो इसके कुछ अवयव पिघल जाते हैं और ठण्डा किये जाने पर अपने साथ दूसरे अवयवों को भी जकड़कर सीमेण्ट की भाँति मजबूती प्रदान कर देते हैं। यह गुण र्इंट व बर्तन आदि बनाने के लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। ऐसी किस्म के उपयोग से र्इंटे बनाते समय मुझे केवल थोड़े ताप तक पकाने की जरूरत होती है क्योंकि ये र्इंटें अधिक ताप सहने में असमर्थ होती हैं।
साधारणत: मेरी वह किस्म र्इंट बनाने के लिये सबसे उपयुक्त है जिसमें 45 प्रतिशत एल्यूमिनियम सिलिकेट, 35 प्रतिशत तक लोहा, 3 से 8 प्रतिशत तक चूना, 3 से 4 प्रतिशत तक मैग्नीशिया, 3 से 6 प्रतिशत तक पोटास अथवा सोडा तथा 4 से 6 प्रतिशत तक जल की मात्रा हो। आप खुश किस्मत हो कि आपके देश में र्इंट बनाने लायक मेरी किस्म तो प्राय: हर स्थान पर ही प्राप्य है। हाँ, यह बात और है कि उन स्थानों पर जहाँ यह अधिकता से मिलती है र्इंटों और खरपरैलों का निर्माण बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया जाता है।

इतने पर भी जरा सोचो कि क्या आपका यह फर्ज नहीं बनता कि अपने देश की प्राणस्वरूपा मुझ मिट्टी के बारे में अधिक से अधिक जितना हो सके जानो और मुझे दिलोजान से प्यार करो। क्यों ठीक कह रही हूँ न मैं?