नालिका या फ्लूम

Submitted by Hindi on Thu, 08/18/2011 - 12:09
नालिका या फ्लूम अंग्रेजी का फ्लूम शब्द प्रारंभ में लकड़ी या अन्य पदार्थ की बनाई कृत्रिम पानी की नालिका के लिए प्रयुक्त होता था। अब किसी सामान्य आकारवाले जलमार्ग को संकीर्ण करना तथा संकीर्ण जलमार्ग को पुन: सामान्य आकार में परिवर्तित करना नालिका बनाना या फ्लूमिंग (fluming) कहलाता है।

इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नालिकाओं का उपयोग प्राचीन समय से होता आया है। प्राचीन रोमन कृत्रिम जल प्रणालों (aqueducts) तथा फ्रांस, स्पेन, उत्तरी अमरीका और मेक्सिको आदि के नालिकावाले निर्माण कार्यो को देखने से सिद्ध होता है कि चाहे प्राचीन काल के इंजीनियर नालिका के आकल्प के सिद्धांत नहीं जानते थे, परंतु वे इनके उपयोग तथा सार्थकता से भली भाँति परिचित थे।

नालिकाओं के निर्माण में सुधार के लिए प्राचीन काल से ही काफी प्रयोग होते आए हैं, परंतु आज की स्टैडर्ड नालिका (standard flume) का जन्म इस शताब्दी के प्रथम दशक में ही हुआ। साथ ही साथ नालिका आकल्प के सिद्धांतों में भी बहुत प्रगति हुई है।

ऊर्जा समीकरण (equation of energy), जो बेर्नुलि प्रमेय (Bernoulli Theorem) कहलाता है, नालिका के आकल्प का प्रमुख सिद्धांत है। इस प्रमेय को बेनुँलि ने सन्‌ 1736 ई. में निर्धारित किया था। जलमार्ग का आकार कम होने तथा वेग में वृद्धि होने के कारण जो शीर्ष (head) की हानि होती है उसे एक समान रूप से नालिका की लंबाई में बाँटा जाना आवश्यक है।

नालिका की पूर्ण लंबाई को छोटे छोटे भाग में बाँटने के पश्चात्‌ ऊर्जा समीकरण द्वारा हर भाग की ऊर्जा निकाली जाती है और नालिका का ऐसा आकल्प तैयार किया जाता है कि नालिका के शीर्ष की हानि एक समान रूप से हो। यह भी आवश्यक है कि संकीर्णता इस सीमा तक ही की जाए कि जल का वेग क्रांतिक वेग से कम रहे।

नहरों के निर्माण में बहुधा नदी नाले अदि पार करने पड़ते हैं। उनमें कृत्रिम जलप्रणालों तथा साइफनों के आकल्प में नालिका का प्रयोग करने से बड़ी बचत होती है। इसके अतिरिक्त पुल आदि पक्के कामों से बड़ी बचत होती है। इसके अतिरिक्त पुल आदि पक्के कामों के निर्माण में भी नालिकाओं के प्रयोग से व्यय कम हो जाता है। अत: नालिकाविधि इंजीनियरी का महत्वपूर्ण पहलू है। ( बालेश्वरनाथ)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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