नौसादर को मैल ऐमोनिऐक (Sai ammoniac) भी कहते हैं। यह वस्तुत: ऐमोनिया और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का लवण ऐमोनियम क्लोराइड, नाहा4क्लो (NH4Cl), है। पहले पहल यह ऊँट की लीद जलाने से उत्पन्न कजली से प्राप्त हुआ था। पीछे मध्य एशिया के ज्वालामुखियों से प्राप्त हुआ। सैल ऐमोनिऐक नाम इसलिए पड़ा था कि मिस्र में जुपिटर ऐमन नामक मिस्री देवता के मंदिर के पास यह पहले पहल मिला था।
आजकल ऐमोनियम क्लोराइड ऐमोनिया के हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा निराकरण से प्राप्त हो सकता है, किंतु बड़े पैमाने पर यह ऐमोनियम सल्फैट और नमक को लोहे के पात्रों में गरम करने से प्राप्त होता है। पात्र में शिखर पर गुंबद रहता है, जिसमें एक छोटा छेद रहता है। यहाँ अभिक्रिया से ऐमोनियम क्लोराइट और सोडियम सल्फेट बनते हैं। ऐमोनियम क्लोराइड ऊर्ध्वपातित होकर गुंबद में इकट्ठा होता है, जिसको तोड़कर अनियमित पिंड में प्राप्त करते हैं। पिंड में बहुधा फेरिक्लोराइड की पीली लकीर पाई जाती है। संपीडन से इसे टिकिया के रूप में प्राप्त करते हैं।
ऐमोनिया-सोडा विधि में सोडियम बाइकार्बोंनेट के निकल जाने पर जो द्रव बच जाता है उसमें ऐमोनियम क्लोराइट के अतिरिक्त सोडियम क्लोराइड और कैल्सियम क्लोराइड रहते हैं। इस द्रव को भी उष्ण वायु सुखाने से ऐमोनियम क्लोराइड प्राप्त हो सकता है। सोडियम क्लोराइड और ऐमोनियम कार्बोनेट की अभिक्रिया से आज बहुत सस्ता एमोनियम क्लोराइड प्राप्त होता है, जो उर्वरक के रूप में प्रयुक्त हो सकता है।
ऐमोयिम क्लारोइड सफेद दानेदार चूर्ण या क्रिस्टलीय होता है। छोटे छोटे अष्टफलकीय क्रिस्टल बनते अथवा षड्भुजीय या चतुर्भुजीय दिखाई पड़ते हैं। यूरिया की उपस्थिति में क्रिस्टल घनाकार होते हैं। यह चूर्ण या टिकिया अथवा छड़ के रूप में बिकता है। एक समय पर्याप्त ऐमोनियम क्लोराइड बाहर से भारत में आता था, पर अब यह भारत में बनने लगा है और देश की माँग पूरी हो जाती है।ऐमोनियम क्लोराइड में कोई गंध नहीं होती। स्वाद नमकीन होता है। यह पानी में जल्द घुल जाता है, जिससे पानी का ताप गिर जाता है। परिशुद्ध ऐलकोहल में यह बहुत थोड़ा घुलता है। इसका जलीय विलयन उदासीन होता है, पर उबालने से ऐमोनिया निकल जाता है और तब विलयन स्पष्टतया अम्लीय हो जाता है।
इसका वाष्प ऐमोनिया और हाइड्रोजन क्लोराइड में विघटित हो जाता है, पर बिल्कुल सूखा लवण विघटित नहीं होता। चूने के उपचार से इसमें से ऐमोनिया निकलता है। ऐमोनियम क्लोराइड टाँका लगाने, कलई करने, वंग और जस्ते का लेप चढ़ाने में, द्रावक के रूप में, बैटरी (विशेषत: सूखी बैटरी) और विद्युत् सेलों में, रंजक के निर्माण में, छींट की छपाई में, उर्वरक के रूप में तथा अल्प मात्रा में वस्त्र और रबर के व्यवसाय में काम आता है। औषधियों में शीतक के रूप में, मूत्र लाने और कफ निकालने के लिए अच्छा समझा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार नौसादार शोथनाशक, तथा शीतल है। यह यकृत और प्लीहा के रोगों में उपकारी है।(फूलदेवसहाय वर्मा)
आजकल ऐमोनियम क्लोराइड ऐमोनिया के हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्वारा निराकरण से प्राप्त हो सकता है, किंतु बड़े पैमाने पर यह ऐमोनियम सल्फैट और नमक को लोहे के पात्रों में गरम करने से प्राप्त होता है। पात्र में शिखर पर गुंबद रहता है, जिसमें एक छोटा छेद रहता है। यहाँ अभिक्रिया से ऐमोनियम क्लोराइट और सोडियम सल्फेट बनते हैं। ऐमोनियम क्लोराइड ऊर्ध्वपातित होकर गुंबद में इकट्ठा होता है, जिसको तोड़कर अनियमित पिंड में प्राप्त करते हैं। पिंड में बहुधा फेरिक्लोराइड की पीली लकीर पाई जाती है। संपीडन से इसे टिकिया के रूप में प्राप्त करते हैं।
ऐमोनिया-सोडा विधि में सोडियम बाइकार्बोंनेट के निकल जाने पर जो द्रव बच जाता है उसमें ऐमोनियम क्लोराइट के अतिरिक्त सोडियम क्लोराइड और कैल्सियम क्लोराइड रहते हैं। इस द्रव को भी उष्ण वायु सुखाने से ऐमोनियम क्लोराइड प्राप्त हो सकता है। सोडियम क्लोराइड और ऐमोनियम कार्बोनेट की अभिक्रिया से आज बहुत सस्ता एमोनियम क्लोराइड प्राप्त होता है, जो उर्वरक के रूप में प्रयुक्त हो सकता है।
ऐमोयिम क्लारोइड सफेद दानेदार चूर्ण या क्रिस्टलीय होता है। छोटे छोटे अष्टफलकीय क्रिस्टल बनते अथवा षड्भुजीय या चतुर्भुजीय दिखाई पड़ते हैं। यूरिया की उपस्थिति में क्रिस्टल घनाकार होते हैं। यह चूर्ण या टिकिया अथवा छड़ के रूप में बिकता है। एक समय पर्याप्त ऐमोनियम क्लोराइड बाहर से भारत में आता था, पर अब यह भारत में बनने लगा है और देश की माँग पूरी हो जाती है।ऐमोनियम क्लोराइड में कोई गंध नहीं होती। स्वाद नमकीन होता है। यह पानी में जल्द घुल जाता है, जिससे पानी का ताप गिर जाता है। परिशुद्ध ऐलकोहल में यह बहुत थोड़ा घुलता है। इसका जलीय विलयन उदासीन होता है, पर उबालने से ऐमोनिया निकल जाता है और तब विलयन स्पष्टतया अम्लीय हो जाता है।
इसका वाष्प ऐमोनिया और हाइड्रोजन क्लोराइड में विघटित हो जाता है, पर बिल्कुल सूखा लवण विघटित नहीं होता। चूने के उपचार से इसमें से ऐमोनिया निकलता है। ऐमोनियम क्लोराइड टाँका लगाने, कलई करने, वंग और जस्ते का लेप चढ़ाने में, द्रावक के रूप में, बैटरी (विशेषत: सूखी बैटरी) और विद्युत् सेलों में, रंजक के निर्माण में, छींट की छपाई में, उर्वरक के रूप में तथा अल्प मात्रा में वस्त्र और रबर के व्यवसाय में काम आता है। औषधियों में शीतक के रूप में, मूत्र लाने और कफ निकालने के लिए अच्छा समझा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार नौसादार शोथनाशक, तथा शीतल है। यह यकृत और प्लीहा के रोगों में उपकारी है।(फूलदेवसहाय वर्मा)
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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