नौसेना विमालचालन तथा वायुयानवाहक

Submitted by Hindi on Fri, 08/19/2011 - 12:45
नौसेना विमालचालन तथा वायुयानवाहक नौसैनिक कृतिक बल (task force) का दृढ़ केंद्र वायुयानवाहक होता है। यह जटिल जलयान है, जिसपर उसके आकार और टनमान के अनुसार दो से लेकर तीन हजार तक अधिकारी तथा कर्मी रहते हैं। इसपर स्थित प्रत्येक वायुयान में इतनी फायर (fire) शक्ति होती है जितनी क्रूज़र के एक बाजू में होती है। इस फायर शक्ति को अल्पकालिक सूचना पर दूर परास पर बड़े वेग से संचालित किया जा सकता है। समुद्र के विस्तृत क्षेत्र पर तैरते हवाई अड्डे के रूप में इसमें अचानक आक्रमण का तत्व भी प्रचुर मात्रा में रहता है।

वायुयानवाहक में विमानों के ठहरने, उतरने और उड़ने की सुविधाएँ वैसी ही होती हैं जैसी भूतलवर्ती हवाई अड्डों पर होती हैं। इसमें उड्डयन डेक (deck) के दक्षिण पार्श्व (starboard side) की तरफ पुल होता है, जो सभी परिचालनों का तंत्रिका केंद्र होती है। प्रधान जलयानों के समान इसका पुल होता है। इसपर उडुयन नियंत्रण स्थिति (Flying Control Position, Fly CO), क्रिया सूचना संगठन (Action Information Organisation, A. I. O.), वायुयान नियंत्रण कक्ष (Aircraft Control Room) और वायुयान निर्देश कक्ष (Aircraft Direction Room) की अतिरिक्त व्यवस्था भी होती है। उडुयन डेक पर अवतरण क्षेत्र हाता है, जो जहाज के बाएँ भाग से 5 से लेकर 10 अंश तक का कोण बनाते हुए चि्ह्रत रहता है। अवतरण क्षेत्र के पूर्वार्ध में निरोधकतार (arresting wires) होते हैं। उडुयन डेक के नीचे विमानशाला होती है, जिसमें आगे पीछे स्थित लिफ्टों से विमान उतारे जाते हैं। परिचालन में शीघ्रता के लिए बड़े बड़े जलयानों में डेक के किनारे पर लिफ्ट की व्यवस्था होती है। वायुयानों के ठहरने का स्थान जहाज के आगे के हिस्से में कोणंकित डेक से अलग होता है। अग्रभाग (bows) में दो वाष्प अपक्षेपी (Catapults) होते हैं, जिनसे वायुयान हवा में प्रशिप्त होता है। अवतरण स्थान के पार्श्व की ओर और दूसरा दाहिने पार्श्व (starboard) की ओर दो दर्पण अवतरण दर्शाने के लिए लगे होते हैं।

वायुयानवाहक के अभिनव साधन  रेडियो, रेडार और इलेक्ट्रॉनिकी युक्तियाँ इसमें हाल ही में सज्जित की गई हैं। कोणी (angled) डेक, वाष्प अपक्षेपी और अवतरण दर्शाने के दर्पण के कारण वायुयानवाहक की दक्षता बहुत बढ़ गई है।

कोणी डेक  इस प्रकार का उड्डयन डेक ग़्लात ढंग से अवतरण करते हुए वायुयान को, या निरोधक तारों से न रुके हुए वायुयान को, पहले से ही उतरे तथा आगे की ओर खड़े वायुयानों से बिना टकराए, निरापद रूप से पुन: उड्डयन का अवसर प्रदान करता है।

वाष्प अपक्षेपी  जहाज के प्रधान वाष्पित्रों (beiler) से अग्रभाग में स्थापित वाष्प अपक्षेपियों को वाष्प मिलता है, जिससे भारी वायुयानों को अत्यधिक वेग से छोड़ा जा सकता है। अपक्षेपी की ढाल (ramp) से एक वायुयान के उड़ते ही उसपर दूसरा वायुयान अपक्षेपी के लाञ्च (launch) की मदद से उतर सकता है। वाष्प अपक्षेपी के लाभों को स्पष्ट करने के लिए कभी कभी बंदरगाहों पर खड़े वायुयानवाहक से वायुयानों को उड़ाया गया है।

अवतरण दर्शाने के लिए दर्पण  यह एक महत्वपूर्ण अभिनव साधन है, जिसने अब डेक अवतरण नियंत्रण अधिकारी, या 'बैट्समैन (Bastman) का स्थान लेकर अवतरण की सही रीति की जाँच में मनुष्य से हो सकनेवाली त्रुटियों की संभावना मिटा दी है। दर्पण वाले दर्शा से प्रकाशपुंज निकलकर विमानचालक को डेक पर पहुँचने के कोण का सही संकेत देता है।

इन तीन साधनों का उपयोग अब सभी वायुयानवाहकों में होने लगा है, जिससे विमान दुर्घटनाओं में काफी कमी हो गई है।

तीन प्रकार के वायुयानवाहक होते हैं :


बड़े बेड़ों के वाहक (Large Fleet Carriers, C.V.A.)- ये कवचित होते हैं और सभी प्रकार के नौसैनिक वायुयानों को ढो सकते हैं। ये आधुनिक कृतिक बल के आधारस्तंभ हैं। इनसे जहाजों और तटीय टार्गेटों (targets) पर मार करने के लिए आक्रामक शक्ति की व्यवस्था की जाती है और ये रक्षात्मक छतरी (defensive umbrella) के भी आधार हैं। प्राय: इनका परिचालन जोड़े में, मिसाइल क्रूज़रों और पनडुब्बीमार ध्वंसकों के साथ तेज मार करनेवाले कृतिक बल के रूप में किया जाता है।

बेड़ा वाहक (Fleet Carriers, C. V.)- ये अपेक्षाकृत छोटे होते हैं और प्राय: सभी नौसैनिक वायुयानों का परिचालन कर सकते हैं। इनकी तोपें हल्की किस्म की होती हैं और इनपर लंबे परास की हवामार तोपें नहीं होती। ये प्राय: कूज़र या ध्वंसक अनुरक्षी (escort) के साथ व्यापाररक्षा तथा आक्रामक काररवाइयों में स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।

विशिष्ट वाहक (Special Carriers, C. V. L.)- इनका उपयोग आक्रामक कार्यवाहियों की विशिष्ट भूमिकाओं में, व्यापाररक्षा में (पनडुब्बीमार हेलिकॉप्टरवाहक, कमांडोवाहक) या गुदारा (ferrying) करने में तथा पुनर्भरण में होता है।

वायुयानवाहक का क्रियाकलाप- वायुयानवाहक की क्रिया के लिए दो समस्याएँ हैं, सीमित स्थान का उपयोग और परिचालन की शीघ्रता, और ये दोनों एक दूसरे के प्रतिकूल हैं। अन्य बातें हैं :

(क) यदि डैक साफ हो तो 16 विमानों को सही परास पर फेंकने में लगभग 40 मिनट का समय लगता है।

(ख) विमानों को उड़ाते से पहले वाहक को हवा की दिशा के अनुकूल मोड़कर वेग को समंजित कर लेना पड़ता है, जिससे डेक के साथ पवनवेग भी सहायक हो। बड़े जलयान को 180 घुमाने में लगभग चार मिनट का समय लगता है। अधिकतर वायुयान अब वाष्प अपक्षेपियों से अवतीर्ण किए जाते हैं।

(ग) समुद्र और उसकी महातरंगों से भी वायुयानवाहक की क्रियाओं में असुविधा होती है।

(घ) कभी कभी वायुयानों को अपक्षिप्त करने के लिए वाहक हवा की दिशा में घुमाना आवश्यक नहीं होता, लेकिन वायुयान को उतारने के लिए वायुयानवाहक का हवा की दिशा में घूम जाना आवश्यक है।

(ङ) कार्य (mission) की योजना बनाते समय इस बात के लिए भी गुंजाइश रख छोड़नी चाहिए कि डेक पर अवतरण के समय विलंब हो सकता है।

(च) नियमत: वायुयानवाहक पर विमानों के बड़े मरम्मती काम नहीं हो सकते।

(छ) वायुयान के कर्मीं वर्ग, परिचालन करनेवाले दल और सर्वेक्षण करनेवाले दलों को बराबर प्रशिक्षण देते रहना चाहिए, जिससे उनकी दक्षता बनी रहे।

नैश उड़ान (Night Flying)  द्वितीय विश्वयुद्ध में वायुयानवाहकों से रात के समय लड़ाई और उड़ान का महत्व सिद्ध हुआ और तभी से इनकी तकनीकों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।

दिन रात परिचालन करने के कारण वायुयानवाहकों की प्राय: सराहना की जाती है, पर इस प्रकार दिन रात श्रम करने से वाहक के वरिष्ठ और प्रधान अधिकारियों पर अत्यधिक तनाव पड़ता है। अत: इस प्रकार के विलंबित क्रियाकलापों में, एक वायुयानवाहक नैश उड़ानों के लिए निश्चित कर दिया जाता है, जो दिन में अतिरिक्त डेक का काम करता है।

वायुयानवाहकों पर अवतरण की तकनीक- वाहक का उपयोग समझने के लिए वाहक उड्डयन की तकनीकी का चित्रण आवश्यक है। वाष्प अवक्षेपी से वायुयान वायुवाहित होते हैं और एक बार वायुवाहित होते ही, इनका नियंत्रण रेडियो द्वारा होता है। अभ्यास पूरा होते ही ये जलयान पर अवतरण के लिए लौट पड़ते हैं। ये जहाज के ऊपर ऊपर उड़ते हैं, मुड़ते हैं और अवतरण दर्शाने वाले दर्पण तथा श्रवय पवनवेग सूचक (Audio air speed indicator) की सहायता से पहुँच (approach) और विसर्पण पथ (glide path) की जाँच करके अंतिम 'पहुँच' पर आ जाते हैं। प्रत्येक वायुयान क्रमानुसार ठीक उसी क्षेत्र में उतरता है जहाँ निरोधक तार होते हैं। इसके बाद तार छोड़कर वायुयान रुकने के स्थान की ओर आगे बढ़ जाता है। इस उडुयन अभ्यास में ठीक ठीक समय का मिलना और टीम भावना से काम करना आवश्यक है।

वाहकस्थित वायुयान की परिचालनीय क्रियाएँ- नौसैनिक वायुयानों को दो प्रकार के काम करने पड़ते हैं। स्वदेश, समुद्री मार्गों और बेड़ों की रक्षा तथा आवश्यकता पड़ने पर जवाबी हमला।

आक्रामक कार्यों में, नौसैनिक वायुयानों से सभी प्रकार के समुद्री और स्थलीय टार्गेटों पर काररवाई की जा सकती है। यदि दिन में आक्रामक सेनाओं और शत्रु के युद्धकों से सामाना होने क संभावना हो तो प्राय: युद्धक अनुरक्षी (fighter escort) की व्यवस्था कर दी जाती है। प्रहार की काररवाइयों में प्रहार वाहक दल (Assault carrier group) द्वारा युद्धक या स्थलीय वायुयानों से सभी आक्रामक काररवाइयाँ की जाती हैं। नौसैनिक यद्ध के पनडुब्बीमार विभाग में अधिकतर नौसैनिक विमान द्विकर्मक (double packet) विमान हैं, जो पनडुब्बी को खोजकर नष्ट कर सकते हैं। उच्च निरूपण रेडार, जो पारिदर्शी (periscope) तथा स्नॉर्ट (snort) की पहचान कर सकता है, तथा सोनार बॉय (sonar buoy) से खोज कार्य किया जाता है। मारक अस्त्रों में जलबम (depth charges) का स्थान रेडियो अनुसरण (homing) तारपीडो ले रहे हैं। हाल ही में स्वनावेष (sonar) साधनों से युक्त हेलीकॉप्टर भी नौसैनिक पनडुब्बीमार वायुयानों में रहने लगे हैं। अब इन्होंने स्थिर पंख वायुयानों का स्थान बहुत कुछ ले लिया है और थोड़ा पनडुब्बीमार अनुरक्षी जहाजों का भी कार्य करने लगे हैं।

रक्षात्मक कार्यों में हवाई और पनडुब्बी आक्रमणों से बेर्ड़ों का आवरण और रक्षा वायुयानों का कार्य है। 'स्थिर शिरोपरि समाघात हवाई गश्त' (overhead combat Air Patrol) से अनेक प्रकार के युद्धक आवरण की व्यवस्था होती है। 'शिरोपरि समाघात हवाई गशत' युद्धक आवरण का नौसैनिक नाम हैं। बेड़ों के लिए टोह कार्य बहुस्थानिक (multiseater) रेडार सज्जित वायुयान अकेले या दुकेले करते हैं। यथार्थं नौचालन तथा शत्रु की सूचना देने के लिए विमान में प्रेक्षक हवाई कर्मी का होना अभीष्ट होता है। बेड़े से 300 मील की दूरी के भीतर टोह कार्य होता है और प्रयुक्ति से पहले तट-आधारित अनुसमुद्री (maritime) वायुयान से इसका समन्वय सावधानी से कर लेना चाहिए। वायुयान पूर्व चेतावनी (Aircraft Early, Warning, AEW) के, जो दूर परास रेडार सज्जित विमान होता है, आ जाने से टोह विमानों की संख्या कम हो गई है और साथ ही निम्नतल से वाहक तक पहुँचने की चेष्टा करनेवाले शत्रु विमानों के अचानक आक्रमण का भी निराकरण हो गया है। जहाँ तक बमबारी के लिए पता लगाने का प्रश्न है, युद्धक विमानों के जोड़ों का उपयोग किया जाता है। वायुयानों से जहाज के तोपों की मार (ships fire) का पता लगाना अब गौण विधि है, मुख्य विधि छपाके (splash) का रेडार द्वारा प्रेक्षण है। नौसैनिक वायुयान तोपखाना की टोह का कार्य भी कर सकते हैं।

खोज और बचाव- इसके लिए पनडुब्बीमार हेलिकॉप्टर के साथ ही वायुयानवाहक में विशिष्ट हेलिकॉप्टर भी होते हैं। आधुनिक नौसेना में वायुयानवाहक शक्ति का केंद्र और बहुत ही विश्वसनीय आक्रामक हथियार है जिसे विविध कार्यों में लगाया जा सकता है। इससे शत्रु पर इतने विस्फोटक और अन्य अस्त्र चलाए जा सकते हैं जितनों को फेंकने के लिए कई जहाजों की जरूरत पड़ सकती है। यदि वायुयान वाहक के गुणों में सुचलता भी जोड़ दी जाए, तब तो यह एक ऐसा सामरिक साधन हो जाता है जो अधिकतम अस्त्रों को विद्युद्वेग से अचानक चला सकता है। न्यूक्लीय नोदन (neuclear propulsion) और वाहक की खोज करनेवालों की धोखा देने की विधियों के आविष्कार से वायुयानवाहक को खोजना और नष्ट करना अत्यंत कठिन होगा।(लेफ्टिनेंट कमांडर सोखी)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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