नेपाल

Submitted by Hindi on Fri, 08/19/2011 - 10:17
नेपाल स्थिति यह स्वतंत्र राष्ट्र मध्य एशिया में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। इसका क्षेत्रफल 54,563 वर्ग मील ओर जनसंख्या 97,53,378 (1961) थी। इसके दक्षिण तथा पश्चिम में भारत के बिहार एवं उत्तर प्रदेश राज्य, पूर्व में पश्चिमी बंगाल राज्य एवं सिक्किम राज्य तथा उत्तर में तिब्बत है। हिमालय की 500 मील लंबी शृंखला इसकी लंबाई में पड़ती है, अत: नेपाल की सीमा के अंदर या सीमा पर कई ऊँची चोटियाँ हैं। इसकी औसत लंबाई पूर्व से पश्चिम 530 मील और उत्तर से दक्षिण इसकी चौड़ाई 156 से 89 मील तक है।

नेपाल के दो प्राकृतिक क्षेत्र हैं : (1) दक्षिण का तराई क्षेत्र, इसमें कृषियोग्य भूमि तथा घने जंगल हैं। इन जंगलों में हाथी, चीते तथा अन्य भारतीय जंगली पशु पाए जाते हैं। इन जंगलों से बहुमूल्य इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। तराई का यह क्षेत्र नेपाल के कुल क्षेत्रफल का एक चौडाई है। नेपाल की जनसंख्या का एक तिहाई भाग यहाँ निवास करता है। (2) नेपाल का दूसरा प्राकृतिक क्षेत्र पर्वतीय क्षेत्र है, जो उत्तर में तिब्बत तक फैला हुआ है। उत्तरी सीमा में संसार की सर्वोच्च चोटी माउंट एवरेस्ट (29,241) है। इसके अतिरिक्त कांचनजुंगा (28,140), मकालू (27,790), धौलागिरी (26,800) गोसाईथान (26,305), मनसालू (26,698), हिमा लचुली (25,801) एवं गौरीशंकर (23,440) चोटियाँ भी इसी क्षेत्र में हैं। इन पर्वतों से जा नदियाँ निकलती हैं उन्हें चार समूहों में विभक्त किया गया है। प्रथम समूह में काली (शारदा), सरजू, कुरनाली, पूर्वी सरजू तथा राप्ती नदियाँ हैं। यह सब मिलकर घाघरा नदी बनाती हैं और गंगा में मिल जाती हैं। दूसरे समूह में सप्त गंडकी नदी आती है, जो धौलागिरि एवं गोसाईथान नामक चोटियों के मध्य से निकलकर त्रिवेणीघाट पर गंडक में परिवर्तित हो जाती है। नदियों के तीसरे समूह में बड़ी, गंडक, छोटी राप्ती, बागमती तथा कुमला नदियाँ हैं। इनसे नेपाल घाटी का जलनि:सारण होता है। चौथे समूह की नदियों को नेपाली में सप्तकोसी कहते हैं। ये गोसाईथांन और कंचनजुंगा चोटियों के मध्य से निकलकर सनकोसी नदी बनाती हैं, जो गंगा में मिल जाती हैं। हिमालय एवं महाभारत श्रेणी के मध्य की घाटी, काठमांडू घाटी कहलाती है, जिसका क्षेत्रफल लगभग 230 वर्ग मील है। इस घाटी का जलवायु शीतोष्ण, मिट्टी उपजाऊ है, अत: यह कृषि में समृद्ध है। इसी घाटी में इस राष्ट्र की राजधानी काठमांडू समुद्रतल से 4,700फ़ की ऊँचाई पर स्थित है, इसके चारों ओर 9,000फ़ से लेकर 10,000फ़ फुट तक ऊँचे पर्वत हैं। नगर की जनसंख्या 1,22,510 (1961) थी। इसी घाटी में गिरिपाद पर भटगांव एवं पाटननगर है। नेपाल राज्य की घनी आबादी इस क्षेत्र में निवास करती हैं।

हिमालय की एवरेस्ट चोटी 28 मई, 1953 तक अविजित रही। 29 मई, 1953 को न्यूजीलैंड के निवासी श्री एडमंड हिलैरी तथा नेपाल के निवासी शेरपा तेजिंग नोरके पथप्रदर्शक ने इस पर विजय प्राप्त की। सन्‌ 1965 में चार भारतीय दलों ने क्रम से इसके अभियान में विजय प्राप्त की। संपूर्ण तराई एवं काठमांडू घाटी के नीचे का क्षेत्र उपोष्ण कटिबंधीय है। नेपाल में वर्षाऋतु जुलाई से अक्टूबर तक होती है और औसत वार्षिक वर्षा लगभग 60फ़ फ़ होती है। अक्टूबर के मध्य से लेकर अप्रैल के मध्य तक शीतकाल रहता है। अप्रैल से वर्षा के आरंभ तक ग्रीष्म ऋतु रहती है। यहाँ का ताप 38रू सें. से कभी ऊँचा नहीं जाता। यहाँ का औसत ताप 16रू सें. रहता है। यहाँ समय समय पर भूकंप आते रहते हैं। वज्रझंझावात नेपाल के लिए साधारण घटना है।

पशु एवं वनस्पति की दृष्टि से नेपाल को तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है : (1) तराई और 4,000की ऊँचाई वाली श्रेणियाँ, (2) मध्य एवं 10,000 ऊँचाईवाली श्रेणियाँ तथा (3) 10,000 से लेकर 29,000 तक ऊँचा पर्वतीय क्षेत्र।

तराई की निचली जलोढ़ भूमि नेपाल का सबसे अधिक उपजाऊ भूभाग है। इसमें गेहूँ, धान, दलहन, गन्ना, तंबाकू, कपास तथा कुछ शाक एवं फलों की खेती होती है। तराई के इस भाग का अधिकांश जंगलों एवं दलदली भूमि से घिरा हुआ है। इन जंगलों में साल, सिसू (Sisu), कीकर, माइमोसा (Mimosa), सेमल, पलाश, बड़े बड़े बाँस, फर्न एवं आर्किड की कई जातियाँ मिलती हैं। 2,000 से 4,000की ऊँचाई पर चाय उगाई जा सकती है। चड़िया घाटी श्रेणी में चीड़ बहुतायत से उगता है। यहाँ तेंदुआ, हाथी, गीदड़, जंगली भैंसा, हरिण, गैंडा, भालू, लकड़बग्घा, तीतर, मोर इत्यादि जीवजंतु पाए जाते हैं।

मध्यक्षेत्र में धान, गेहूँ, मक्का, जौ, जई, ज्वार, अदरख, हल्दी, लाल मिर्च, आलू, अनन्नास तथा अन्य बहुत से यूरोपीय फल एवं शाक उगाए जाते हैं। इस क्षेत्र के जंगलों में रोडोडेंड्रान, चीड़, बांज (oak), हार्स, चेस्टनट, अखरोट, मैपिल, जंगली मकोय, नाशपाती तथा उपोष्णकटिबंधीय अन्य वनस्पतियाँ मिलती हैं। यहाँ चीता, काला हरिण, खरगोश, हरिण की कुछ अन्य जातियाँ, जंगली कुत्ते तथा बिल्लियाँ, साही, चकोर, उकाब, ग्ध्रृा, इत्यादि पशुपक्षी पाए जाते हैं।

10,000 से लेकर 29,000 फुट तक की ऊँचाई वाले पर्वतीय क्षेत्र में कई जाति के कॉनिफर, नुकीली पत्तियों की सदाबहार झाड़ियाँ, सदाबहार के बौने वृक्ष (Box), भोज वृक्ष, शूलपर्णी तथा अन्य पहाड़ी वनस्पतियाँ मिलती हैं। यहाँ भूरे रंग की भालू, याक, कस्तूरी मृग, जंगली बकरी एवं भेड़, हिममूष (marmot), लाल एवं श्वेत चकोर, श्वेत तीतर आदि पाए जाते हैं।

नेपाल में आवागमन का मुख्य साधन सड़कें हैं जिनमें से 500 मील लंबी सड़कें मोटर चलने योग्य हैं। इनमें से 158 मील लंबा त्रिभुवन राजपथ है, जो प्रत्येक ऋतु में खुला रहता है। इसे भारत सरकार ने कोलंबों योजनांतर्गत बनवाया है। संयुक्त राज्य ने राप्ती घाटी में 50 मील लंबी सब ऋतुओं में खुली रहने योग्य सड़क बनवायी है। रक्सौल (भारत) से अमलेखगंज तक तथा जयनगर (भारत) से जनकपुर एवं बिजुलपुर तक रेल की दो छोटी लाइने हैं। काठमांडू घाटी में 28 मील लंबा विद्युतचालित रज्जुमार्ग है जिसकी भार ढोने की क्षमता 25 टन प्रति घंटा है। यह 4,500 फुट ऊँचाई तक जाता है। यहाँ पहले ताँबा, कोबाल्ट और सोने का उत्खनन होता था। संप्रति यहाँ लोहा, सीसा, जस्ता, लिगनाइट, ग्रेफाइट निकल, अभ्रक, मैंगनीज, कोयला, टाल्क, चीनी मिट्टी, संगमरमर इत्यादि खनिजों का पता लगा है पर अभी इनका उत्खनन नहीं हो रहा है। पेट्रोलियम एवं सोने की खानों का भी पता लगा है।

विराटनगर में दो जूट के एवं एक दियासलाई का, एक सिगरेट का और एक चीनी का कारखाना है। काठमांडू एवं वीरगंज में भी सिगरेट के कारखाने हैं। यहाँ तेल पेरना, धान कूटना, हथकरघे पर कपड़ा बुनना इत्यादि कार्य घरेलू उद्योग के रूप में विकसित हैं। यहाँ भेड़ों का पालन होता है, जो अपने ऊन के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ धातुओं के सामान और घंटियों का भी निर्माण होता है। यहाँ से ऊन और ऊनी वस्त्र, लकड़ी, चावल, जूट आदि का निर्यात होता है।

धान नेपाल का प्रमुख कृषि उत्पाद है। इसके अतिरिक्त यहाँ मक्का, ज्वार, गेहूँ, आलू, गन्ना, तंबाकू, कपास, तिलहन एवं जूट की खेती होती है। ज्यों ज्यों परिवहन के साधनों में वृद्धि हो रही है, अनाज के स्थान पर कपास, गन्ना, जूट तथा तिलहन इत्यादि नगद धन देनेवाली फसलों उत्पन्न होता है और यहाँ के लोग इसका उपयोग अधिक करते हैं। इसके अतिरिक्त सेब, नाशपाती तथा खूबानी इत्यादि भी बड़ी मात्रा में होते हैं।

नेपाल में अब शिक्षा का भी उत्तरोत्तर प्रसार हो रहा है। यहाँ अंग्रेजी के दो, नेपाली के नौ और हिंदी के दो दैनिक पत्र प्रकाशित होते हैं। यहाँ 26 प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं। 50ऽ लोग नेपाली भाषा बोलते हैं। यही नेपाल की राष्ट्रभाषा भी है, जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है।

काठमांडू का पशुपतिनाथ का मंदिर हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान है और शिवरात्रि को यहाँ बड़ा मेला लगता है। काष्ठमंडप, बसंतपुर दरबार, तालेजूमंदिर, सिंह दरबार, स्वयंभूनाथ मंदिर, न्यतापोला मंदिर, महाबौद्ध मंदिर, नेपाली वास्तु के अद्भुत नमूने हैं। काष्ठ पर की गई नेपाल की नक्काशी विश्वप्रसिद्ध है।

अर्थव्यवस्था- लगभग 95ऽ नेपाली पशुपालन और कृषि में संलग्न हैं। उद्योगों के नाम पर छोटे मोटे कारखाने हैं, जो संपूर्ण उत्पादन में बहुत न्यून योग देते हैं। हिमालय की ढाल पर औषध बहुत उत्पन्न होती है, जिसका बाहर निर्यात होता है, जिसका बाहर निर्यात होता है। वनज और खनिज उपलब्धियों के लिए नेपाल में व्यापक सर्वेक्षण चल रहा है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था में संतुलन लाया जा सके।

1953 से आर्थिक उन्नयन का कार्य तेजी से आरंभ हुआ। अनेक क्षेत्रों में सामुदायिक विकास योजनाओं को लागू किया गया। कृषिगत उत्पादन में वृद्धि के लिए सिंचाई योजनाओं को लागू किया गया। 1956 में इन सभ येजनाओं को पंचवर्षीय कार्यक्रम का रूप दे दिय गया। प्रथम योजना (1956-61) में, जिसके अतर्गत बड़े उद्योगों की सहायता, कुटीर उद्योगों का विकास और विस्तार, वयक्तिगत व्यापार को प्रोत्साहन और टेकनिकल प्रशिक्षण आदि कार्यक्रम संमिलित थे, 33 करोड़ व्यय किया गया था।

मार्च 1962 में नेपाल ने 36 करोड़ 50 लाख रुपए (नेपाली सिक्का) के व्यय से त्रिवर्षीय योजना का सूत्रपात किया। 30 करोड़ रुपए विदेशों से ऋण के रूप में प्राप्त हुए।

शिक्षा - 1962 की जनगणना के अनुसार नेपाल में शिक्षितों की संख्या 6 प्रतिशत है। इधर शिक्षा के प्रसार और आधुनिकीकरण की गति में तेजी आयी है। इस समय एक विश्वविद्यालय (त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू) कला और विज्ञान के छोटे बड़े 33 कालेज, 156 माध्यमिक स्कूल, 3845 प्राथमिक स्कूल, 24 टेकनिकल स्कूल और शिक्षकों की ट्रेनिंग के 15 स्कूल हैं।

परंपरा से चले आ रहे स्कूलों में प्राचीन ढंग ही प्रचलित है, और उनमें मुख्यतया भाषाओं की पढ़ाई होती है। उत्त्री सीमाओं पर बैद्ध धर्म की शिक्षा के लिए स्कूल है। 1954 में बनी एक योजना के अनुसार टेकनिकल और व्यावहारिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जा रहा है। शिक्षासंस्थाओं में छात्राओं तथा छात्रों की संख्या 15 प्रतिशत है।

इतिहास और संस्कृति- नेपाल एक छोटा स्वतंत्र राष्ट्र है, किंतु जाति के आधार पर नेपाल राज्य की मित्र राष्ट्र भारत के समान विभिन्न जातियों के रहने का एक अजायबघर जैसा है। उत्तरी भाग की ओर भोटिया, तामाङ्‌, लिंबू, शेरपा, महाभारत शृंखला में मगर, किरात, नेवार, गुरुङ्‌, सुनुवार, और भीतरी तराई क्षेत्र में घिमाल, थारू, मेचै, दनवार आदि जातियों की बहुलता विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ठाकुर, खस, जैसी, क्षत्री जातियों तथा ब्राह्मणों की सख्या नेपाल में यत्र-तत्र काफी है। यहाँ पर प्रवासी भारतीयों की संख्या भी पर्याप्त है।

'नेपाल' शब्द की व्युत्पत्ति - 'नेपाल' शब्द की व्युत्पत्ति के संबंध में विद्वानों की विभिन्न धारणाएँ हैं। 'ने' मुनि द्वारा पालित होने के कारण इस भुखंड का नाम नेपाल पड़ा, ऐसाभी कहा जाता है। तिब्बती भाषा में 'ने' का अर्थ मध्य और 'पा' का अर्थ देश होता है। तिब्बती लोग 'नेपाल' को 'नेपा' ही कहते है। 'नेपाल' और 'नेवार' शब्द की समानता के आधार पर डॉ. ग्रियर्सन और यंग ने एक ही मूल शब्द से दोनों की व्युत्पत्ति होने का अनुमान किया है। टर्नर ने नेपाल, नेवार, अथवा नेवार, नेपाल दोनों स्थिति को स्वीकार किया है। 'नेपाल' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है। उस काल में बिहार में जो मागधी भाषा प्रचलित थी उसमें 'र' का उच्चारण नहीं होता था। सम्राट् अशाक के शिलालेखों में 'राजा' के स्थार पर 'लाजा' शब्द व्यवहार हुआ है। अत: नेपार, नेबार, नेवार इस प्रकार विकास हुआ होगा।

इतिहास - नेपाल का इतिहास मुख्यतया तीन कालों में विभक्त है - (1) प्राचीन काल, (2) मध्य काल, (3) आधुनिक काल।

प्राचीन काल सभ्यता, संस्कृति और र्शार्य की दृष्टि से बड़ा गौरवपूर्ण रहा है। प्राचीन काल में नेपाल राज्य की बागडोर क्रमश: गुप्तवंश किरात वंशी, सोमवंशी, लिच्छवि, सूर्यवंशी राजाओं के हाथों में रही है। किरातवंशी राजा स्थुंको, सोमवंशी लिच्छवी, राजा मानदेव, राजा अंशुवर्मा के राज्यकाल बड़े गौरवपूर्ण रहे हैं।कला, शिक्षा, वैभव और राजनीति के दृष्टिकोण से लिच्छवि काल 'स्वर्णयुग' रहा है। जन साधारण संस्कृत भाषा में लिखपढ़ और बोल सकते थे। राजा स्वयं विद्वान्‌ और संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ होते थे। 'पैगोडा' शैली की वास्तुकला बड़ी उन्नत दशा में थी और यह कला सुदूर महाचीन तक फैली हुई थी। मूर्तिकला भी समृद्ध अवस्था में थी। धार्मिक सहिष्णुता के कारण् हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म समान रूप से विकसित हो रहे थे। काफी वजनदार स्वर्णमुद्राएँ व्यवहार में प्रचलित थीं। विदेशों से व्यापार करने के लिए व्यापारियों का अपना संगठन था। वैदेशिक संबंध की सुदृढ़ता वैवाहिक संबंध के आधार पर कायम थी।

ई. सन्‌ 880 में लिच्छवि राज्य की समाप्ति पर नुवाकोटे ठकुरी राजवंश का अभ्युदय हुआ। इस समय नेपाल राज्य की अवनति प्रारंभ हो गई थी। केंद्रीय शासन शिथिल पड़ गया था। फलत: नेपाल अनेक राजनीतिक इकाइयों में विभाजित हो गया। हिमालय के मध्य कछार में मल्लों का गणतंत्र राज्य कायम था। लिच्छवि शासन की समाप्ति पर मल्ल राजा सिर उठाने लगे थे। सन्‌ 1350 ई. में बंगाल के शासक शमशुद्दीन इलियास ने नेपाल उपत्यका पर बड़ा जबरदस्त आक्रमण किया। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गयी। सन्‌ 1480 ई. में अंतिम वैश राजा अर्जुन देव अथवा अर्जुन मल्ल देव को उनके मंत्रियों ने पदच्युत करके स्थितिमल्ल नामक राजपूत को राजसिंहासन पर बैठाया। इस समय तक केंद्रीय राज्य पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न होकर काठमाडों, गोरखा, तनहुँ, लमजुङ, मकबानपुर आदि लगभग तीस रियासतों में विभाजित हो गया था।

मध्यकालीन स्थिति - राजा स्थितिमल्ल अस्तव्यस्त आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में पूर्ण रूप से समर्थ हुए। राजा पक्षमल्ल ने केंद्रीय शासन को सुदृढ़ करने का प्रयत्न किया, किंतु उनके निधन पर पश्चात्‌ उनके उत्तराधिकारियें ने राज्य को आपस में बाँटकर पुन: राजनीतिक इकाइयाँ खड़ी कीं। मध्यकालीन नेपाल साहित्य, संगीत और कला की दृष्टि से उन्नत होने पर भी राजनीतिक दृष्टि से अवनति की ओर ही बढ़ा। जनजीवन अशांत था। यूरोपीय साम्राज्यवादियों की कुदृष्टि भारत के पश्चात्‌ नेपाल पर भी पड़ गई थी। नेपाल के विरुद्ध किनलोक का सैनिक अभियान और उपत्यका में ईसाई पादरियों की चहल पहल इस तथ्य के प्रमाण हैं।

गोरखा राज्य इन दिनों काफी सबल हो चुका था। नेपाल की छोटी छोटी राजनीतिक इकाइयों पर और नेपाली जनजीवन पर गोरखा राज्य का प्रभाव छा गया था। न्यायमूर्ति राजा रामशाह के न्याय की चर्चा नेपाल भर में फैल गयी थी। राजा पृथ्वीपति शाह के राज्यकाल में बंगाल के नवाब ने गुर्गिन खाँ के नेतृत्व में नेपाल पर आक्रमण करने के लिए पचास साठ हजार फौज भेजी थी। नवाब की सेना मकवानपुर के तराई क्षेत्र में पड़ाव डाले हुई थी। मकबानपुर ने गोरखा राज्य से सहायता की याचना की। गोराखा के कुछ जवानों ने नवाब की सेना को गाजर मूली की तरह काट डाला। बचे हुए सैनिक अपनी जान बचाकर भाग निकले।

उपर्युक्त इन दो कारणो से गोरखा राज्य नेपाली जनजीवन के सुखद भविष्य का आशाकेंद्र हो गया था। जनजीवन की इस आकांक्षा को नेपाल राष्ट्र के जनक की 5 बड़े महाराजाधिराज पृथ्वीनारायण शाह ने समझा और नेपाल के एकीकरण के लिए अभियान प्रारंभ किया। जिस प्रकार यूरोप में सार्डिनिया राज्य ने इटली का और प्रशा राज्य ने जर्मनी का एकीकरण किया, उसी प्रकार गोरखा राज्य ने पृथ्वीनारायण शाह के नेतृत्व में नेपाल का एकीकरण किया।

मध्यकालीन नेपाल के अंतिम चरण में अर्थात्‌ राष्ट्र के जनक पृथ्वीनारायण शाह के उदय होने से पूर्व विदेशी लोग नेपाल पर दाँत गड़ाने लगे थे। नेपाल उपत्यका में पादरी लोग ईसाई धर्म का प्रचार करने लगे थे। मल्ल राजा आपसी फूट-वैमनस्य, झगड़ा, युद्ध आदि बातों में निरंतर व्यस्त थे।

नेपाल उपत्यका के बाहर के राज्य भी आपस में लड़-झगड़कर अपनी जन-धन-शक्ति को क्षीण कर रहे थे। राजाओं ने आपसी झगड़े, मल्ल राजाओं द्वारा देव-मंदिर की संपत्ति का व्यक्तिगत उपभोग, राजा भास्कर मल्ल द्वारा हिंदू भावना के विरुद्ध एक मुसलमान को प्रधान मंत्री बनाने का कार्य आदि मध्यकालीन राजनीतिक स्थिति को धूमिल बनाते हैं और साथ ही नेपाल की सार्वभौम स्वतंत्रता को अधर में डाल देते है। जिस प्रकार शमशुद्दीन इलियास के आक्रमण के पश्चात्‌ राजा स्थितिमल्ल ऐतिहासिक आवश्यकता के रूप में दिखाई पड़ते हैं उसी प्रकार साम्राज्यवादियों से नेपाल का बचाने वाले के रूप में पृथ्वीनारायण शाह ऐतिहासिक आवश्यकता स्वरूप दिखलाई पड़ते हैं। गोरखों ने 1790 में तिब्बत पर आक्रमण किया किंतु यह आक्रमण नेपाल को महँगा पड़ा। चीन ने 1791 में तिब्बत का पक्ष लेकर अपनी सेनाएँ नेपाल में प्रविष्ट करा दीं और 1792 में गोरखों को संधि करने पर विवश किया। इसी वर्ष ग्रेट ब्रिटेन और नेपाल में द्वितीय वाणिज्य संधि संपन्न हुई, और नेपाल में एक अंग्रेज कूटनीतिज्ञ की नियुक्ति की व्यवस्था हो गई। भारत नेपाल सीमा विवाद के समय 1814 में ब्रिटेन ने नेपाल के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया। मार्च 1816 में नेपाल ने अपनी कुछ भूमि अंग्रेजों को दे दी, और काठमांडू में अंग्रेजी रेजीडेंसी की स्थापना हो गई। 1857 के भारतीय 'सिपाही विद्रोह' में नेपालके तत्कालीन प्रधान मंत्री जंगबहादुर ने अंग्रेजी सेना की सहायता के लिए 12000 सैनिक भेजे।

धर्मविरोधी, जातिविरोधी तथा राष्ट्रविरोधी कार्यों ने सच्चे नेपाली के मन में सुदृढ़ नेपाल राष्ट्र खड़ा करने की भावना को जन्म दिया। नेपाल की छिन्न-भिन्न राजनीतिक इकाइयों को एक सूत्र में बाँधकर नेपाल राष्ट्र खड़ा करने के लिए वहाँ की राजनीतिक इकाइयों का एकीकरण हुआ।

आधुनिक युग - आधुनिक नेपाल की नींव नेपाल राष्ट्र के एकीकरण से और साम्राज्यवाद के विरोध से निर्मित हुई है। पृथ्वी नारायण शाह के निधन के पश्चात्‌ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने नेपाल पर फिर दाँत गड़ाये और नेपाल के विरुद्ध सैनिक अभियान किया। सिगौली संधि के द्वारा राज्य की सीमा छोटी कर दी गई और नेपाल में रेजिडेंट रहने लगा। पृथ्वीनारायण शाह के चौथे वैधानिक उत्तराधिकारी श्री 5 राजेंद्र विक्रम शाह ने भारत के सिख, मराठे और मुगलों तथा वर्मा, चीन और अफगानिस्तान में अपने राजदूतों को गुप्त रूप से भेजकर यूरोपीय साम्राज्यवादियों के विरुद्ध एक होकर युद्ध करने के लिए आह्वान किया था। नेपाली समाज के सभी वर्गों ने पूर्व में चीन से लेकर पश्चिम में महाकाली तक 103 वर्षों के भीतर राणाशासन के विरुद्ध भिन्न-भिन्न रूपों में अपना असंतोष बराबर प्रकट किया और और वहाँ के राणा-शासन की ओर से भी दमन का कार्य अपनाया गया। श्री 5 महेंद्र ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय के दीक्षांत भाषण में इस तथ्य को इन शब्दों में स्वीकार किया है - 'हम इतिहास से भी पीड़ित है'।

श्री 5 महाराजाधिराज त्रिभुवन ने जल-नेतृत्व अपने हाथ में लिया। नेपाल के भीतर और बाहर रहने वाले नेपाली श्री 5 त्रिभुवन के मार्गप्रदर्शन के अनुसार अपने ढंग से काम करने लगे। श्री वि.सं. 2007 साल में क्रांति हुई। राणा-शासन की सत्ता का अंत हो गया। स्वतंत्र गणतंत्र भारत ने राणा शासन का अंत करने के महान्‌ कार्य में जो सहयोग प्रदान किया उसे नेपाल कभी भूल नहीं सकता। राणाशाही समाप्त होने के बाद त्रिभुवन वीर विक्रमशाह ने क्रांतिकारी नेता मातृकाप्रसाद कोइराला को प्रधान मंत्री नियुक्त किया, किंतु नेपाल में शांति और व्यवस्था स्थापित नहीं हो पाई। 1957 तक छह सरकारें बदलीं। कई मास तक महाराज महेंद्र को बिना मंत्रिमंडल, केवल एक सलाहकार परिषद् की सहायता से काम चलाना पड़ा। 12 फरवरी 1959 को नया लोकतांत्रिक संविधान लागू हुआ, जिसमें राजा के साथ द्विसदनीय संसद और एक मंत्रिमंडल की व्यवस्था थी। प्रथम संसद का उद्घाटन 24 जुलाई 1959 को हुआ। किंतु इतनी गड़बड़ी पैदा हो गयी कि दिसंबर 1960 में महाराज महेंद्र ने प्रधानमंत्री विश्वेश्वरप्रसाद कोइराला के मंत्रिमंडल को, अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगाकर, बर्खास्त कर दिया और संसद भंग कर दी। 1962 के पूरे वर्ष सुवर्ण शमशेर ने, जो विश्वेश्वरप्रसाद कोइराला के मंत्रिमंडल में उप प्रधान मंत्री थे, विद्रोह का संचालन किया, किंतु अक्तूबर 1962 में यह विद्रोह स्थगित हो गया।

16 अगस्त 1962 को वर्तमान संविधान पारित हुआ था। इसमें चारस्तरीय पंचायतीं राज्य की व्यवस्था है, राष्ट्रीय पंचायत सर्वोपरि है। राष्ट्रीय पंचायत में 15 प्रतिशत सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार राजा को है। कोई भी विधेयक पारित होने के पूर्व राजा की स्वीकृति अनिवार्य है। राजपरिवार के कुछ सदस्यों तथा कुछ विशिष्ट जनों को मिलाकर एक विशेष समिति बनती है, संविधान के संशोधन पर इस समिति की स्वीकृति ही अंतिम होती है। राजा को मंत्रिपरिषद् की अध्यक्षता करने तथा संविधान के किसी भाग को स्थगित करने का अधिकार भी है।

वर्तमान संविधान में राजनीतिक दलों का कोई स्थान नहीं है। नेपाल में राजनीतिक दलों की स्थापना वर्तमान शती के चौथे दशक से आरंभ हुई। 1959 के निर्वाचन में प्रजा परिषद, नेपाल नेशनल काँग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑव नेपाल, नेपाल राष्ट्रवादी गोरखा परिषद आदि दलों ने भाग लिया था। किंतु राणा शासन ने पार्टीबंदी को श्रेयस्कर न समझा दिसंबर 1960 में सभी दल अवैध घोषित हो गए। श्री 5 महाराजाधिराज महेंद्र को देश की सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए 1 पौष 2017 वि.सं. को महान्‌ कदम उठाना पड़ा। नेपा की संपूर्ण प्रजा ने और प्रवासी नेपालियों ने दीपावली के रूप में इस महान्‌ कदम का स्वागत किया।

विश्व के एक कोने में स्थित नेपाल ने शताब्दियों से विश्व को नया संदेश प्रदान किया है। भगवान्‌ बुद्ध के द्वारा नेपाल ने ही सर्वप्रथम विश्व शांति की भावना को फैलाया है। श्री 5 पृथ्वीनारायण शाह के द्वारा नेपाल ने ही राष्ट्रीय एकीकरण का पाठ पढ़ाया है। आज फिर श्री 5 महेंद्र के द्वारा नेपाल ने वैदिक परंपरा से चली आयी हुई पंचायती शासन प्रणाली को युग के अनुरूप प्रस्तुत किया है। नेपाल की आज की पंचायती व्यवस्था वह निर्दलीय प्रजातांत्रिक विकेंद्रीय शासन प्रणाली है जिसके माध्यम से शासक और शासित के बीच में दीवार स्वरूप स्थित दलगत भावना से मुक्त रहकर राज्य की एक इकाई गांव से उठकर कोई भी बालिग व्यक्ति अपनी योग्यता, ईमानदारी और कर्मठता के आधार पर केंद्र तक पहुँच सकता है और साथ ही अपने वर्गीय हित की रक्षा करते हुए अपने व्यक्तित्व और देश का सर्वतोन्मुखी विकास कर सकता है। आज की पंचायती व्यवस्था ने भूमि कानून जारी करके भूमि समस्या का समाधान करने की ओर क्रांतिकारी कदम उठाया है; 'मुलुकी ऐन' के द्वारा सामाजिक और न्यायिक एकरूपता कायम की है, और असंलग्न परराष्ट्र नीति के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जगत में नेपाल के गौरव की भी श्री वृद्धि की है।

समाज और संस्कृति - नेपाली सामाजिक जीवन की मान्यता, विश्वास और संस्कृति हिंदू भावना में आधारित धार्मिक सहिष्णुता और जातिगत सहिष्णुता का आपस का अन्योन्याश्रित संबंध नेपाल की अपनी मौलिक संस्कृति है। यहाँ के पर्वों में वैष्णव, शैव, बौद्ध, शाक्त सभ धर्मों का प्रभाव एक दूसरे धर्मावलंबियों पर समान रूप से पड़ा है। किसी भी एक धार्मिक पर्व को धर्मावलंबियों पर समान रूप से पड़ा है। किसी भी एक धार्मिक पर्व को धर्मावलंबी विशेष का कह सकना और अलग कर पाना बहुत कठिन है। सभी धर्मावलंबी आपस में मिलकर उल्लासमय वातावरण में सभी पर्वों में भाग लेते हैं। नेपाल में छुआछुत का भेद न कट्टर रूप में है और न जन्मसंस्कार के आधार पर ही है। शक्तिपीठों में चांडाल और भंगी, चमार, देवपाल और पुजारी के रूप में प्रसिद्ध शक्ति पीठ गुह्येश्वरी देवी, शोभा भागवती के चांडाल तथा भंगी, चमार पुजारियों को प्रस्तुत किया जा सकता है।

उपासना की पद्धति और उपासना के प्रतीकों में भी समन्वय स्थापित किया गया है। मूर्तिपूजा और कर्म कांड के विरोध में उत्पन्न बौद्ध धर्म ने नेपाल में स्वयं मूर्तिपूजा और कर्मकांड अपनाया है। बौद्ध पशुपतिनाथ की पूजा आर्यावलोकितेश्वर के रूप में करते हैं और हिंदू मंजुश्री की पूजा सरस्वती के रूप में करते हैं। नेपाल की यह समन्वयात्मक संस्कृति लिच्छवि काल से अद्यावधि चली आ रही है।

नेपाल अनुग्रहपरायण देश है। वह किसी ने मैत्रीपूर्ण अनुग्रह को कभी भूल नहीं सकता। नेपाल का पराक्रम विश्वविख्यात है। नेपाल की सांस्कृतिक परंपरा को कायम रखने के लिए वि.सं. 2017 साल में संयुक्त राज्य अमरीका के काँग्रेस के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधन करते हुए श्री 5 महेंद्र ने स्पष्टरूप में निम्न उद्गार प्रकट किया था 'सैनिक कार्यों में लगने वाले खर्च संसार की गरीबी हटाने में व्यय हों'।(ढुंढिराज भंडारी)

सं.ग्रं. - सिलवाँ लेवी : 'ला नेपाल', 2 खंड (पेरिस, 1905); पी. लैडन : 'नेपाल', 2 खंड (लंदन, 1928); सी.जे. मॉरिस : 'दि गोरखाज़' (लंदन, 1928)।

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संदर्भ
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