नन्हीं आंखों से गायब हुआ बचपन

Submitted by admin on Fri, 09/05/2008 - 08:06

आंखों से बचपन गायबआंखों से बचपन गायबराष्ट्रीय सहारा/ निवेदिता/एसएनबी/नई दिल्ली : वे सारे बच्चे कतारबद्ध खड़े थे। उनके नन्हें हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। उनकी आंखों से बचपन गायब था। एक दिन में ही कोसी ने उन्हें बड़ों की दुनिया में लाकर खड़ा कर दिया। बच्चे पटना के रेलवे स्टेशन पर अपनी पारी का इन्तजार कर रहे थे कि कब उन्हें दिन का खाना मिलेगा। ये वही बच्चे हैं जिसे कोशी ने बेघर कर दिया। बच्चे मानते हैं कि इस प्रलय ने उनका सब कुछ उजाड़ दिया। कोशी ने न उन्हें सिर्फ बेघर किया, बल्कि उस गांव, शहर, कस्बों की संस्कृति और सभ्यता भी मिटा दी। इन क्षेत्रों की मां अब लोरी में भी बाढ़ की त्रासदी ही बयान करती है। बाढ़ से उपजी पीड़ा को बच्चों ने गाकर सुनाया। ये बच्चे ही हैं जो इस हालात में भी गीत गाकर अपने उपर हंस सकते हैं। ये गीत बच्चों ने अपनी मां से सीखा और मां ने अपनी मां से। पीढ़ी दर पीढ़ी बाढ़ की त्रासदी झेल रहे बच्चों ने अपने लोक गीतों में भी इस दुख की गाथा बयां की।

‘ बाढ़ में कोना रहबे रे जटबा बाढ़ में कोना के रहबे रे? बेटा दहेतो, बेटी दहेतो, मैया दहेतो, बहिनी दहेतो बाढ़ में कोना के रहबे रे’?

ऐसे हजारों गीत हैं जिसमें बाढ़ की त्रासदी को महसूस किया जा सकता है। इन गीतों में उनके स्वाहा हो चुके जीवन का मर्म छुपा है। ‘मुश्किल में आज ई बांध बा, भईया जागल रहिय, ऐ बहिना सुत नै रहिय, समय कठिन बा, पनिया स रहिय होशियार ए भईया जागल रहियह’। ये जिन्दगी के गीत हैं। ये गीत प्रलय में फंसे लोगों की करूण व्यथा कहती है। कोसी ने इस बार कितने बच्चों को बेघर किया, फिलहाल इसका आंकड़ा सरकार के पास नहीं है, लेकिन अनुमान है कि करीब एक लाख बच्चे अपने परिवार से या तो बिछड़ गए हैं या अनाथ हो गए हैं। पिछले वर्ष बाढ़ में करीब 12 हजार बच्चे अपने घरों से उजड़ गए थे। बाढ़ के अनेक चेहरे हैं और उसके आयाम भी काफी जुदा-जुदा। बाढ़ सिर्फ भूख ही पैदा नहीं करती, बल्कि समाजिक आर्थिक व राजनीतिक विषमता भी पैदा करती है। यह बात स्वीकार किया जाना चाहिए कि बाढ़ और गरीबी को सिर्फ पारिवारिक आय के संदर्भ में नहीं समझा जा सकता। उससे निपटने के उपाय बाढ़ के बारे में बच्चों के अनुभवों पर आधारित होना चाहिए। बाढ़ बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित करती है। मधेपुरा का रहने वाला 10 वर्षीय हामिद का बयान कोशी के प्रलय का सबूत है। उसने जो कुछ बताया वह किसी युद्ध और दंगे के अनुभवों से कम नहीं है।