नंदीकुंड झील हिमालय गढ़वाल क्षेत्र में हिमशिखरों से घिरी एक स्वप्निल आकर्षक एवं मनोहारी झील है। इस झील तक पहुंचने के लिए एक रास्ता बड़ा सुगम है जो हरी-भरी घाटियों, गांव, खेत, वनों से है। दिल्ली से मात्र 500 कि.मी. की दूरी पर 6,000 फुट की ऊंचाई पर गोपेश्वर नामक एक खूबसूरत पहाड़ी टीलों पर फैला-पसरा नगर है, जहां खाने-पीने, ठहरने की बेहतर सुविधायें उपलब्ध हैं यहां से 13,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ धाम एक पवित्र स्थल है। शिवजी की एक दुर्लभ कलात्मक शिला मूर्ति जो एक बड़ी से प्राकृतिक गुफा में है, देखकर मन श्रद्धानत हो उठता है।
अंतर्कथा है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव जन अपने प्रायश्चित का शमन करने के लिए बाबा भोलेनाथ के दर्शनार्थ केदारनाथ जा पहुंचे। शिवजी उन्हें दर्शन देना नहीं चाहते थे अतः वे हिमालय की ओर भाग निकले। पांडवों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। रुद्रनाथ की इस प्राकृतिक गुफा में शिवजी ने बैठकर पांडवों की जांच-परख करने के लिए जिस तिरछी भंगिमा से देखा था उसका प्रतिअंकन मूर्ति में बड़ा सुंदर बन पड़ा है।
बियावान पथरीली घाटियों को पार करते हुए जब 17,00 फुट ऊंचे भदालीखाल दर्रे के नीचे झांका जाए तो विशाल नदी कुंड झील को देखकर मन रोमांचित हो उठता है। दिव्य हिमशिखरों के बीच झिलमिलाती इस विशाल झील के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन करना दुष्कर कार्य है। लगता है कि रूखे, कठोर और ऊंचे पर्वतों की गोद में एक विशाल दर्पण रखा हो। अनुमानतः दो किलोमिटर वृत्त में फैली-पसरी इस पारदर्शी झील में बादलों के क्रियाकलाप और आकाश का विशाल प्रतिबिंब देखकर जीवन धन्य हो उठता है। इस झील की पूजा स्थली में पांडवों की कलात्मक तलवारें संग्रहित हैं, जो पांडवों द्वारा वहां छोड़ी गई थीं। झील के चारों ओर विभिन्न प्रकार के फूलों में अनन्त ब्रह्मकमल तो मन मोह लेता है। यहां ठहरने का कोई प्रावधान नहीं है, फिर भी प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय लिया जा सकता है।
अंतर्कथा है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव जन अपने प्रायश्चित का शमन करने के लिए बाबा भोलेनाथ के दर्शनार्थ केदारनाथ जा पहुंचे। शिवजी उन्हें दर्शन देना नहीं चाहते थे अतः वे हिमालय की ओर भाग निकले। पांडवों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। रुद्रनाथ की इस प्राकृतिक गुफा में शिवजी ने बैठकर पांडवों की जांच-परख करने के लिए जिस तिरछी भंगिमा से देखा था उसका प्रतिअंकन मूर्ति में बड़ा सुंदर बन पड़ा है।
बियावान पथरीली घाटियों को पार करते हुए जब 17,00 फुट ऊंचे भदालीखाल दर्रे के नीचे झांका जाए तो विशाल नदी कुंड झील को देखकर मन रोमांचित हो उठता है। दिव्य हिमशिखरों के बीच झिलमिलाती इस विशाल झील के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन करना दुष्कर कार्य है। लगता है कि रूखे, कठोर और ऊंचे पर्वतों की गोद में एक विशाल दर्पण रखा हो। अनुमानतः दो किलोमिटर वृत्त में फैली-पसरी इस पारदर्शी झील में बादलों के क्रियाकलाप और आकाश का विशाल प्रतिबिंब देखकर जीवन धन्य हो उठता है। इस झील की पूजा स्थली में पांडवों की कलात्मक तलवारें संग्रहित हैं, जो पांडवों द्वारा वहां छोड़ी गई थीं। झील के चारों ओर विभिन्न प्रकार के फूलों में अनन्त ब्रह्मकमल तो मन मोह लेता है। यहां ठहरने का कोई प्रावधान नहीं है, फिर भी प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय लिया जा सकता है।
Hindi Title
नंदीकुंड झील
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