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शिवमपूर्णा, फरवरी 2015
नदियों को जोड़ने का विषय चर्चा और वाद- विवादों तक सीमित है। इस पर कोई भी अंतिम नीतिगत निर्णय लेने से पूर्व एक से अधिक राज्यों से बहने वाली अथवा एक ही राज्य की दो नदियों को जोड़ा जाए। कुछ वर्षों (पाँच से 10 वर्ष) तक उससे होने वाली लाभ-हानि का मूल्यांकन किया जाए। दावों और वादों से प्रत्यक्ष होने के बाद आगे विचार हो।नदियों के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र नीति की आवश्यकता है। बेशक, इसमें नदियों के भौतिक पक्ष पर विस्तार से विचार और समावेश करने की जरूरत है, लेकिन इसमें किसी देश या अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की नकल करके ही नीति नहीं बनाई जा सकती। भारत में नदी नीति बनाते समय नदियों को एक पूरी प्राकृतिक इकाई के रूप में ही देखना होगा। उसके भौतिक पक्ष की समस्याओं का निवारण सिर्फ भौतिक साधनों से ही किया जा सकता है, अगर यही एक मात्र दृष्टि अपनाई गई तो हम एक दुष्चक्र में फंस कर रह जायेंगे। श्रेष्ठतर तो यही रहता कि समाज आत्मानुशासन से नदियों व जल के संरक्षण में जुटे। लेकिन दुर्भाग्य से भारत के नीति -नियम कर्तव्य प्रधान होने की तुलना में अधिकार प्रधान है।
निम्न कारकों के बारे में एक नीति की तत्काल आवश्यकता है:-
नदी की एक प्रमुख धारा सदा प्रवाहित रहे।
नदी के उद्गम क्षेत्र का 1 से 5 कि.मी. व्यास का क्षेत्र संरक्षित किया जाए।
नदी की कुल लम्बाई का प्रारम्भिक 1/3 भाग उसके विकास का प्रथम सोपान है। अत: सिंचाई, बिजली, उत्पादन आदि हेतु निषेध हो।
जल ग्रहण क्षेत्र में वनों का संरक्षण व कटाई पर पूर्ण प्रतिबन्ध।
बांस व घास जैसी विभिन्न प्रजातियों से भूमि क्षरण व किनारे के कटाव को रोकने की पहल।
नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक/जैविक कृषि का आग्रहपूर्वक विस्तार व रसायनिक कृषि को हतोत्साहित करना।
नदी तल में होने वाली कृषि में सभी प्रकार के रसायनिक खाद व इकाईयों पर पूर्ण प्रतिबंध।
नदी से पानी लेने वाली सभी संस्थाएं और समाज को प्रत्युत्तर से नदी संरक्षण के कार्य में सहभागिता करें अर्थात प्रत्यक्ष कार्य में प्रभावी भूमिका निभायें। पैसा या अन्य संसाधन से क्षतिपूर्ति का मार्ग ठीक नहीं। अत: लिए गये पानी के अनुपात में सहभागी बनना।
भारत की केन्द्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभाग नदी व जल पर कार्य करते हैं इनमें समन्वय का सर्वथा अभाव है। अत: नदी के सभी आयामों पर विचार व कार्य करने वाली एक एकीकृत इकाई बने जिसके निष्कर्षों का पालन अन्य विभागों के लिए बाध्यकारी हो।
नदियों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक नदी आयुर्विज्ञान संस्थान बने जो नदियों के स्वास्थ्य का प्रतिवर्ष परीक्षण कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। इसके रोग निदान के लिए आवश्यक पथ्य औषधी (नदी संदर्भ में) का सुझाव व आदेश दें।
पानी के स्थानान्तरण पर आवश्यक नीति बने। अनिवार्य होने पर ही इसे किया जाए। महानगर व छोटे-बड़े उद्योग पहले अपने पास उपलब्ध जल का योग्य संरक्षण व भण्डारण करें तत्पश्चात् अनिवार्य होने पर ही जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित करें।
पानी के प्रयोग में मितव्ययता व जल अनुशासन को पहले ऐच्छिक व बाद में नियमों के तहत अनिवार्य करना।
बिजली की तरह जल का प्रयोग भी सशुल्क हो। पानी लेने की गणना हेतु प्रभावी व्यवस्था हो यह भूजल, तालाब, नदी, कुओं जैसे सभी जलस्रोतों से पानी लेने पर लागू हो।
नदी के जलग्रहण क्षेत्र व प्रत्यक्ष नदी से जल लेने व उसके प्रयोग करने में भी अनुशासन हो। उपयोग के अनुपात में अनुपात में इस जल का शुल्क वसूला जाए।
वनों के विस्तार में खेत व मेढ़ का प्रयोग हो इस पर उगने वाले वृक्ष व उसकी पैदावार का स्वामित्व खेत मालिक का रहे। किसान की मेढ़ पर उगे वृक्षों को अन्य पैदावार की तरह परिपक्व होने पर उसे काटने व बेचने की किसान को स्वतंत्रता रहे।
जलग्रहण क्षेत्र की पड़त भूमि पर वनों में निवास करने वाली जनजाति के युवकों को सामाजिक वानिकी जैसी योजनाओं के अन्दर वृक्षारोपण हेतु दी जाए। जिसकी पैदावार व लकड़ी पर उसका अधिकार रहे व भूमि पर स्वामिस्व सदैव सरकार के पास रहे।
नदी में किसी भी प्रकार का उपचारित अथवा अनुपचारित प्रदूषित जल न मिलाया जाए। किसी भी रूप में नदी प्रदूषित जल बहाने का माध्यम नहीं है। इसके अतिरिक्त किसी नदी में कहीं भी शहर या औद्योगिक इकाइयों का कचरा बहाने पर प्रतिबंध। जहां इसका उल्लंघन हो वहां दण्डात्मक कार्यवाही तत्काल हो।
बांधों के सम्बन्ध में उसके आकार-प्रकार पर विचार करने से पहले पूर्व के बनाये गए (औसत 24 वर्ष पुराने) बांधों का सामाजिक व आर्थिक अंकेक्षण किया जाये। इसका लाभ- हानि खाता बनाया जाए। इन दावों का मूल्यांकन किया जाए जो उस बांध को बनाते समय योजना में किये गए थे। उसी के बाद आगे की दिशा तय की जाए।
छोटे बांधों के (नदी के औसत बाढ़ के बिन्दु से 30 प्रतिशत कम ऊँचाई के हो) निर्माण का आग्रह।नदियों से जल ले जाने या उसके प्राकृत स्वरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन करने से पूर्व अन्य उपलब्ध विकल्पों का मूल्यांकन योजना का प्रथम भाग हो।
नदियां सार्वजनिक धरोहर हैं, इसका निजीकरण किसी भी रूप में नहीं किया जाये।
नदियों को जोड़ने का विषय चर्चा और वाद-विवादों तक सीमित है। इस पर कोई भी अंतिम नीतिगत निर्णय लेने से पूर्व एक से अधिक राज्यों से बहने वाली अथवा एक ही राज्य की दो नदियों को जोड़ा जाए। कुछ वर्षों (पांच से 10 वर्ष) तक उससे होने वाली लाभ- हानि का मूल्यांकन किया जाए। दावों और वादों से प्रत्यक्ष होने के बाद आगे विचार हो।
नदी में प्रदूषण रोकने की प्रथम जवाबदारी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत व नगरीय क्षेत्र में स्थानीय निकायों की हो।
‘नदी का घर’ सीनियर एम.आई.जी.-2, अंकुर कॉलोनी, शिवाजी नगर, भोपाल 462016 (म.प्र.)
निम्न कारकों के बारे में एक नीति की तत्काल आवश्यकता है:-
नदी की एक प्रमुख धारा सदा प्रवाहित रहे।
नदी के उद्गम क्षेत्र का 1 से 5 कि.मी. व्यास का क्षेत्र संरक्षित किया जाए।
नदी की कुल लम्बाई का प्रारम्भिक 1/3 भाग उसके विकास का प्रथम सोपान है। अत: सिंचाई, बिजली, उत्पादन आदि हेतु निषेध हो।
जल ग्रहण क्षेत्र में वनों का संरक्षण व कटाई पर पूर्ण प्रतिबन्ध।
बांस व घास जैसी विभिन्न प्रजातियों से भूमि क्षरण व किनारे के कटाव को रोकने की पहल।
नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में प्राकृतिक/जैविक कृषि का आग्रहपूर्वक विस्तार व रसायनिक कृषि को हतोत्साहित करना।
नदी तल में होने वाली कृषि में सभी प्रकार के रसायनिक खाद व इकाईयों पर पूर्ण प्रतिबंध।
नदी से पानी लेने वाली सभी संस्थाएं और समाज को प्रत्युत्तर से नदी संरक्षण के कार्य में सहभागिता करें अर्थात प्रत्यक्ष कार्य में प्रभावी भूमिका निभायें। पैसा या अन्य संसाधन से क्षतिपूर्ति का मार्ग ठीक नहीं। अत: लिए गये पानी के अनुपात में सहभागी बनना।
भारत की केन्द्र व राज्य सरकारों के विभिन्न विभाग नदी व जल पर कार्य करते हैं इनमें समन्वय का सर्वथा अभाव है। अत: नदी के सभी आयामों पर विचार व कार्य करने वाली एक एकीकृत इकाई बने जिसके निष्कर्षों का पालन अन्य विभागों के लिए बाध्यकारी हो।
नदियों के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण के लिए एक नदी आयुर्विज्ञान संस्थान बने जो नदियों के स्वास्थ्य का प्रतिवर्ष परीक्षण कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। इसके रोग निदान के लिए आवश्यक पथ्य औषधी (नदी संदर्भ में) का सुझाव व आदेश दें।
पानी के स्थानान्तरण पर आवश्यक नीति बने। अनिवार्य होने पर ही इसे किया जाए। महानगर व छोटे-बड़े उद्योग पहले अपने पास उपलब्ध जल का योग्य संरक्षण व भण्डारण करें तत्पश्चात् अनिवार्य होने पर ही जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित करें।
पानी के प्रयोग में मितव्ययता व जल अनुशासन को पहले ऐच्छिक व बाद में नियमों के तहत अनिवार्य करना।
बिजली की तरह जल का प्रयोग भी सशुल्क हो। पानी लेने की गणना हेतु प्रभावी व्यवस्था हो यह भूजल, तालाब, नदी, कुओं जैसे सभी जलस्रोतों से पानी लेने पर लागू हो।
नदी के जलग्रहण क्षेत्र व प्रत्यक्ष नदी से जल लेने व उसके प्रयोग करने में भी अनुशासन हो। उपयोग के अनुपात में अनुपात में इस जल का शुल्क वसूला जाए।
वनों के विस्तार में खेत व मेढ़ का प्रयोग हो इस पर उगने वाले वृक्ष व उसकी पैदावार का स्वामित्व खेत मालिक का रहे। किसान की मेढ़ पर उगे वृक्षों को अन्य पैदावार की तरह परिपक्व होने पर उसे काटने व बेचने की किसान को स्वतंत्रता रहे।
जलग्रहण क्षेत्र की पड़त भूमि पर वनों में निवास करने वाली जनजाति के युवकों को सामाजिक वानिकी जैसी योजनाओं के अन्दर वृक्षारोपण हेतु दी जाए। जिसकी पैदावार व लकड़ी पर उसका अधिकार रहे व भूमि पर स्वामिस्व सदैव सरकार के पास रहे।
नदी में किसी भी प्रकार का उपचारित अथवा अनुपचारित प्रदूषित जल न मिलाया जाए। किसी भी रूप में नदी प्रदूषित जल बहाने का माध्यम नहीं है। इसके अतिरिक्त किसी नदी में कहीं भी शहर या औद्योगिक इकाइयों का कचरा बहाने पर प्रतिबंध। जहां इसका उल्लंघन हो वहां दण्डात्मक कार्यवाही तत्काल हो।
बांधों के सम्बन्ध में उसके आकार-प्रकार पर विचार करने से पहले पूर्व के बनाये गए (औसत 24 वर्ष पुराने) बांधों का सामाजिक व आर्थिक अंकेक्षण किया जाये। इसका लाभ- हानि खाता बनाया जाए। इन दावों का मूल्यांकन किया जाए जो उस बांध को बनाते समय योजना में किये गए थे। उसी के बाद आगे की दिशा तय की जाए।
छोटे बांधों के (नदी के औसत बाढ़ के बिन्दु से 30 प्रतिशत कम ऊँचाई के हो) निर्माण का आग्रह।नदियों से जल ले जाने या उसके प्राकृत स्वरूप में किसी प्रकार का परिवर्तन करने से पूर्व अन्य उपलब्ध विकल्पों का मूल्यांकन योजना का प्रथम भाग हो।
नदियां सार्वजनिक धरोहर हैं, इसका निजीकरण किसी भी रूप में नहीं किया जाये।
नदियों को जोड़ने का विषय चर्चा और वाद-विवादों तक सीमित है। इस पर कोई भी अंतिम नीतिगत निर्णय लेने से पूर्व एक से अधिक राज्यों से बहने वाली अथवा एक ही राज्य की दो नदियों को जोड़ा जाए। कुछ वर्षों (पांच से 10 वर्ष) तक उससे होने वाली लाभ- हानि का मूल्यांकन किया जाए। दावों और वादों से प्रत्यक्ष होने के बाद आगे विचार हो।
नदी में प्रदूषण रोकने की प्रथम जवाबदारी ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत व नगरीय क्षेत्र में स्थानीय निकायों की हो।
‘नदी का घर’ सीनियर एम.आई.जी.-2, अंकुर कॉलोनी, शिवाजी नगर, भोपाल 462016 (म.प्र.)